Wednesday, September 09, 2020

परसाई के पंच- 30

 . अवैध शराब का धन्धा सहकारिता के सिद्धांत पर चलता है। शहरों में धड़ल्ले से खुले रूप में अवैध शराब बिकती है पुलिस का हफ़्ता बंधा है। एक्साइज वालों का हफ़्ता बंधा है। अक्सर स्थानीय विधायक और नेता का सहयोग इस धन्धे में होता है।

2. ठेकदार-अफ़सर में जो स्नेह सम्बन्ध सदियों से बना है, उसे भ्रष्टाचार पता नहीं किस तर्क से मान लिया गया है। इस स्नेह-सम्बन्ध के कारण ही निर्माण-कार्य होते हैं। पुल बनते हैं, जो साल भर में ही तिड़कने लगते हैं। सरकारी इमारतें बनती हैं, जो पहली बरसात में ही धसकने लगती हैं। सड़क बनती है, जिस पर बनते ही गड्ढे पड़ने लगते हैं। ठेकेदारों की सम्पन्नता और अफ़सरों के सुखी जीवन का रहस्य यही ठेकेदार-अफ़सर प्रेम-सम्बन्ध हैं।
3. सरकारी निर्माण-कार्य में सीमेण्ट की चोरी नैतिकता है, जो युगों से चली आ रही है। झूठे बिलों का भुगतान भी इन्हीं स्नेह-सम्बन्धों के कारण होता है जो नैतिक है।
4. सार्वजनिक क्षेत्र में सबसे व्यापक और बड़ा उद्योग यह तबादले कराना और रद्द कराना है।
5. भ्रष्टाचार की बात करना अब वैसा ही है, जैसे सत्यवादी हरिशचन्द्र की कथा सुनाना। ’सत्यवादी’ हरिशचन्द्र की कथा जितनी पुरानी है, उतनी ही पुरानी है इस देश के भ्रष्टाचार की कथा।
6. ईमानदारी इस देश में लुप्त चीज हो गयी है। बेईमानी इतनी पुरानी बात हो गयी है कि अब कोई बेईमानी की बात करे, तो लगता है, बड़ा पिछड़ा आदमी है।
7. व्यापारियों को सामान्य भ्रष्टाचारी अफ़सर प्रिय है, पर ज्यादा भ्रष्टाचारी उनमें नैतिकता जगा देता है।
8. उपभोक्ता संस्कृति में गधे को भी ग्वालियर रेयान की पोशाक पहनाकर विज्ञापन में खड़ा कर सकते हैं, इस शब्दों के साथ- वाह ! यह गधा घुड़दौड़ में प्रथम आया, क्योंकि यह ग्वालियर रेयान की पोशाक पहने है।
9. अखिल भारतीय पार्टियों की यह हास्यास्पद दुर्गति दयनीय है। कहीं कोई बाबा, कोई तान्त्रिक, कोई पाखण्डी साधु खड़ा हो जाय, तो ऑल इण्डिया नेता उसे घेर लेंगे, उसे नेता बना लेंगे। इनका ऑल इण्डियापन तहसील में सिकुड़ जाता है।
10. ये सब नेता क्षेत्रीयता की निन्दा करते हैं। जातिवाद, भाषावाद के खिलाफ़ हैं। मगर किसी कस्बे में कोई बाबा राजनीति में खड़ा हो जाये, तो उसे ये ऑल इण्डिया नेता घेर लेते हैं।
11. परम्परा से भाग्यवादी, चमत्कार विश्वासी, वैज्ञानिक दृष्टि से हीन हमारे इस अति प्राचीन समाज में हर कुछ अलौकिक होकर पुजने लगता है। निराकार ब्रह्म से लेकर प्रेत तक की पूजा होती है।

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