Friday, September 18, 2020

परसाई के पंच-37

 

1. निरीक्षक लोग नकल कराना अपने कर्तव्य में शामिल समझते हैं लेकिन वे नकल उन्हीं को कराते हैं जो अपने हों या जिनकी ट्यूशन के हों।
2. जब तक कॉलेज का प्रोफ़ेसर तहसीलदारी के लिये लालायित रहेगा और रीडर आई.ए.एस. की परीक्षाओं में बैठेगा, तब तक कॉलेजों में अच्छे पढाने वाले आ ही नहीं सकते।
3. जो जनता का विश्वास खो दे उसे शिक्षा विभाग भेज देना चाहिये। शिक्षा विभाग कचरे की टोकरी है। जो सामान बेकार होता जाय उसे इसमें फ़ेंकते जाना चाहिये।
4. जिनका कक्षा में मुंह न खुले, जो विद्यार्थियों को देखकर कांप जायें, उन्हें प्रोफ़ेसर बना देना चाहिये। जो अफ़सर सब जगह नालायक सिद्ध हो गये उन्हें तरक्की देकर शिक्षा विभाग का अफ़सर बनाना चाहिये।
5. ’भारतीय बनिया संस्कृति’ एक अलग ही संस्कृति है। इस संस्कृति का लक्षण है कि किसी भी मामले में आदमी के मन में पहिले यह विचार आता है कि मैं इसमें कहां बेईमानी कर सकता हूं।
6. सच्चा कार्यकर्ता वह है जो पार्टी को ’पालटी’ बोलता है, विरोधी को ’चुनैटी’ देता है और जिसकी सारी कोशिश यह होती है कि उम्मीदवार से ज्यादा-से-ज्यादा पैसे चाय-नाश्ते के लिये झटक ले।
7. वर्षा और शीत की संधि बेला में पतंगे बल्ब के आसपास मंडराते हैं। वे मुझे कार्यकर्ता लगते हैं और बल्ब उमीदवार। फ़िर पतंगे लोप हो जाते हैं, बल्ब बराबर जलता रहता है। कार्यकर्ता अब सिर्फ़ तब दिखेगा, जब किसी की जमानत दिलानी होगी, पुलिस केस दबाना होगा या तबादला करना होगा।
8. घोषणायें की जाती हैं कि यह चुनाव धर्मयुद्ध है; कौरव-पाण्डव संग्राम है। धृतराष्ट्र चौंककर संजय से कहते हैं –ये लोग अभी भी हमारी लड़ाई लड़ रहे हैं। ये अपनी लड़ाई कब लड़ेंगे? संजय कहते हैं –इन्हें दूसरों की लड़ाई में उलझे रहना ही सिखाया गया है। ये दूसरों की लड़ाई लड़ते-लड़ते ही मर जाते हैं।
9. देख रहा था कि जो अपने को पाण्डव कहते हैं , वही दौप्रदी को चौराहे पर नंगा कर रहे थे। और अब देख रहा हूं कि कुछ पाण्डव कौरवों से भीतर-ही-भीतर मिले हुये हैं और कुछ कौरव पाण्डवों से।
10. जो पहले लिखा गया है, उसके बारे में कोई सवाल नहीं उठाना चाहिये। पहले लिखे की पूजा और रक्षा होनी चाहिये। वह पवित्र है। भोजपत्र पर जो लिखा है वह आर्ट पेपर पर छपे से ज्यादा पवित्र होता है।
11. न्याय देवता का मैं आदर करता हूं। पर एक न्याय देवता सेशन कोर्ट में बैठता है, दूसरा हाईकोर्ट में और तीसरा सुप्रीम कोर्ट में। सेशनवाला न्यायदेवता मुझे मौत की सजा दे देता है। मैं जानता हूं कि मैं बेकसूर हूं। उधर हाईकोर्ट में बैठा न्याय देवता बड़ी बेताबी से मेरा इन्तजार कर रहा है कि यह मेरे सामने आये तो मैं इस निर्दोष को बरी कर दूं। पर मैं उसके सामने जा नहीं सकता क्योंकि मेरे पास 5-6 हजार रुपये नहीं हैं। न्याय देवता मेरी तरफ़ करुणा से देखता है और मैं उसकी तरफ़ याचना से- पर हम आमने-सामने नहीं हो सकते।

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