Sunday, September 20, 2020

परसाई के पंच-42

 

1. अन्धे में अजब काइयांपन आ जाता है। वह खरे और खोटे सिक्के को पहचान लेता है। पैसे सही गिन लेता है। उसमें टटोलने की क्षमता आ जाती है। वह पद टटोल लेता है, पुरस्कार टटोल लेता है, सम्मान के रास्ते टटोल लेता है। बैंक का चेक टटोल लेता है। आंख वाले जिन्हें नहीं देख पाते, उन्हें टटोल लेता है।
2. नये अन्धों के तीर्थ भी नये हैं। वे काशी, हरिद्वार, पुरी नहीं जाते। इस कांवड़ वाले अन्धे से पूछो – कहां ले चलें? वह कहेगा –तीर्थ ! कौन सा तीर्थ? जबाब देगा –केबिनेट ! मन्त्रिमण्डल ! उस कांवड़ वाले से पूछो, तो वह भी तीर्थ जाने को प्रस्तुत है। कौन सा तीर्थ चलेंगे आप ? जबाब मिलेगा – अकादमी, विश्वविद्यालय।
3. जब प्रतिवाद करने वाला नहीं हो तो जिसके पास उसके साहित्य के बारे में कहने को कुछ नहीं है, वह यह भी कह सकता है कि यह लेखक चोरी करता था। यही बात सबसे महत्वपूर्ण मानी जायेगी और अखबारों में इसी का शीर्षक बनेगा।
4. भारतीय साहित्य की वह उज्ज्वल परम्परा अभी जीवित है, जिसके अनुसार हर लेखक के बारे में कहा जाता है कि वह गरीब और भुखमरा था।
5. अगर सुअर मैला खाकर परम आनन्द अनुभव करता है तो मैं फ़ल खाने की सलाह देकर उसका मजा किरकिरा नहीं करना चाहता। दुख इतना ही है कि दिन भर मैले की तलाश में रहकर सुअर कोई रचनात्मक काम नहीं कर पाता। भगवान वाराह का अवतार कम से कम इतना लोकहित तो करता ही है कि मैदान में पड़े मल को उदरस्थ कर लेता है।
6. व्यंग्य रचनात्मक लेखन होता है, साहित्य होता है। बलात्कार, चोरी और अपहरण की रिपोर्टिंग नहीं होता।
7. निन्दा की मैं परवाह नहीं करता। मैं खुद लोगों की आलोचना तो करता हूं, पर निन्दा नहीं। दोनों में बहुत फ़र्क है। आलोचना स्वस्थ प्रवृत्ति है। निन्दा कैंसर है। निन्दक अपनी मौत मरता है। अकाल मृत्यु। यह उसके शरीर की नहीं उसकी आत्मा की , उसकी स्पिरिट की मृत्यु होती है।
8. यह शायद हमारे देश के दार्शनिक, सांस्कृतिक मूल्यों की विकृति है कि किसी को दीन बनाये बिना उसे महत्वपूर्ण नहीं माना जाता।
9. त्याग अच्छा गुण है। पर लादी हुई गरीबी पाप है।
10. ऐसा नहीं कि दु:ख हमेशा आदमी को ऊंचा उठाता है। दु:ख आदमी को नीच भी बनाता है।
11. कमजोरियां सबमें होती हैं। पर उन कमजोरियों की चर्चा कब करना और कैसे करना, यह विवेक की मांग करता है।

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