Saturday, September 19, 2020

परसाई के पंच-40

 1. अतिशासन से शासनहीनता के दौर में आ जाना भी क्रान्ति है।

2. यहां सफ़ाई-दरोगा अगर नौकरी से निकाल दिया जाय, तो उसे कारपोरेशन में क्रान्ति कहेंगे।
3. सबसे कॉमिक रोल क्रान्तिकारी बुद्धिजीवी का है। वह यह है कि जो अपने को ईमानदार और वीर कह ले वह हुआ। जो नहीं कहे, वह बेईमान, दब्बू, पिछलग्गू, स्वार्थी वगैरह सब हुआ। परमवीर चक्र अपने सीने पर अपने ही हाथों से खोंसना पड़ता है।
4. कोई दस को बेईमान कहे तो कहने वाला अपने खुद ईमानदार सिद्ध हो जाता है।
5. जो शासन समस्यायें हल कर सकता है वह करता है। जो नहीं कर सकता है वह कमीशन बिठाता है।
6. शासन एक रेलगाड़ी है। वह चलती है। शासक रेलगाड़ी में बैठे हैं। न वे चलते हैं, न गाड़ी को चलाते हैं। वे समय काटते हैं। मुसाफ़िर समय काटने के लिये मूंगफ़ली खाता है –टाइम पास। नये शासकों के लिये जांच कमीशन मूंगफ़ली है –टाइम पास।
7. इस देश के लोग ऐसे ही हैं कि उन्हें बताना पड़ता है कि तुम पर क्या अत्याचार हुये।
8. सरकार का काम शासन करना है, दुकान करना नहीं। फ़िर कीमत खरीददार और बेचनेवालों के बीच का मामला है। सरकार इसमें क्या करे?
9. अपने को दुखी मानकर और मनवाकर आदमी राहत पा लेता है। बहुत लोग अपने लिये ’बेचारा’ सुनकर सन्तोष का अनुभव करते हैं।
10. चिट भीतर भेजकर बाहर बैठे रहने में हर क्षण मृत्य-पीड़ा होती है। बहादुर लोग तो महीनों चिट भेजकर बाहर बैठे रहते हैं, मगर मरते नहीं।
11. कोई लाभ खुद चलकर दरवाजे पर नहीं आता। उसे मनाना पड़ता है, चिरौरी करनी पड़ती है। लाभ जब थूकता है तो उसे हथेली पर लेना पड़ता है।

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