Thursday, September 17, 2020

परसाई के पंच-36

 . इधर कुछ डाकुओं , गुण्डों की फ़िल्म बनने लगी है, जिसमें लड़की डाकू से प्रेम करने लगती है। बस मैं देखता हूं कि अनेक किशोर बिल्कुल उन डाकुओं जैसा अभिनय करते हैं, मारपीट करते हैं, क्योंकि डाकू से लड़की प्यार करने लगती है।

2. फ़िल्मों में प्रेम ’मरने’ के लिये है, ’जीने’ के लिये नहीं। नायक और नायिका बरबाद होते ही हैं- पागल होते हैं या मर जाते हैं। गोया प्रेम कोई जहर है, जिसने चखा कि मर गया।
3. सिर्फ़ फ़िल्म में ही नहीं – लगभग सब पतनशील कलाओं में प्रेम जहर बना दिया गया है- वह प्राण, शक्ति, स्फ़ूर्ति, आनन्द देने वाला नहीं है। वह मारने वाला है, पागल करने वाला है, निष्क्रिय करने वाला है।
4. सरकार से भ्रष्टाचार की शिकायत करोगे तो ,भ्रष्टाचार बन्द नहीं करेगी, कमेटी बिठायगी। अन्नाभाव की शिकायत करोगे तो अन्न पैदा नहीं करायेगी, अन्न कमेटी बिठायगी। सरकारी काम ऐसे ही होता है।
5. यह शायद हमारे ही जनतन्त्र में होता है कि गुण्डे भी चुनाव में जीतकर शासन करने पहुंच जाते हैं। जुयें में फ़ड़ चलाने वाले, शराबखोरी करने वाले ,गुण्डागिरी करने वाले बड़े-बड़े निर्वाचित पदों पर हमारे ही प्रदेश में हैं। यह प्रजातन्त्र है भाई !
6. प्रजातन्त्र में सबसे बड़ा दोष है तो यह कि इसमें योग्यता को मान्यता नहीं मिलती, लोकप्रियता को मिलती है। हाथ गिने जाते हैं, सिर नहीं तौले जाते।
7. यह ’मिसफ़िट्स’ का युग है भाई ! जिसे जुआखाना चलाना चाहिये वह मन्त्री है; जिसे डाकू होना चाहिये वह पुलिस अफ़सर है; जिसे दलाल होना चाहिये वह प्रोफ़ेसर है; जिसे जेल में होना चाहिये , वह मजिस्ट्रेट है; जिसे कथावाचक होना चाहिये, वह उपकुलपति है। जिसे जहां नहीं होना चाहिये , वह ठीक वहीं है।
8. भारतीय संस्कृति ’बाहुल्य की संस्कृति’ है, अभाव की संस्कृति नहीं। यहां किसी एक को निमन्त्रण देने पर अगर एक ही जाय तो वह असभ्य और दरिद्र माना जाता है।
9. दूसरे की जगह हड़प लेना हमारी सांस्कृतिक विशेषता है। बस में, मोटर में, सिनेमा में, रेल में, दूसरे की जगह बैठ जाना और फ़िर हाथापाई करना भारत में ही देखने को मिलेगा।
10. नेताओं और मन्त्रियों को नैतिक स्तर की बड़ी चिन्ता है। याने जीवन-स्तर चाहे रसातल में चला जाय, नैतिक स्त्र हिमालय के शिखर पर चढा होना चाहिये।
11. जहां तक परीक्षकों का सवाल है, उनमें से कुछ यह समझते हैं कि जितना कठिन परचा निकलता है वह उतना ही महान विद्वान माना जाता है, इसलिये परचा ऐसा निकालना चाहिये जो खुद अपने से न हो।

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