Saturday, September 26, 2020

परसाई के पंच-48

 1. बीमारी बरदाश्त करना अलग बात है, उसे उपलब्धि मानना दूसरी बात। जो बीमारी को उपलब्धि मानने लगते हैं, उनकी बीमारी उनको कभी नहीं छोड़ती। सदियों से अपना यह समाज बीमारियों को उपलब्धि मानता आया है और नतीजा यह हुआ है कि यह भीतर से जर्जर हो गया है, मगर बाहर से स्वस्थ होने का अहंकार बताता है।

2. लोग तो बीमारी से लोकप्रिय होते हैं, प्रतिष्ठा बढाते हैं। एक साहब 15 दिन अस्पताल में भरती रहे, जो सार्वजनिक जीवन में मर चुके थे, तो जिन्दा हो गये। बीमारी कभी-कभी प्राणदान कर जाती है। उनकी बीमारी की खबर अखबार में छपी , लोग देखने आने लगे और वे चर्चा का विषय बन गये। अब चुनाव लड़ने का इरादा रखते हैं।
3. इस जमाने में दिमाग तो सिर्फ़ सुअर का शान्त रहता है। यहां-वहां का मैला खा लिया और दिमाग शान्त रखा। जो ऐसा नहीं करता और जो सचेत प्राणी है, उसका दिमाग बिना मुर्दा हुये कैसे शान्त रहेगा?
4. जो नहीं है उसे खोज लेना खोजकर्ता का काम है। काम जिस तरह होना चाहिये , उस तरह न होने देना विशेषज्ञ का काम है। जिस बीमारी से आदमी मर रहा है, उससे उसे न मरने देकर दूसरी बीमारी से मार डालना डॉक्टर का काम है। अगर जनता सही रास्ते पर जा रही है तो उसे गलत रास्ते पर ले जाना नेता का काम है। ऐसा पढाना कि छात्र बाजार में सबसे अच्छे नोट्स खोजने में समर्थ हो जाये, प्रोफ़ेसर का काम है।
5. मेरे आसपास ’प्रजातन्त्र बचाओ’ के नारे लग रहे हैं। इतने ज्यादा बचाने वाले खड़े हो गये हैं कि अब प्रजातन्त्र का बचना मुश्किल दिखता है।
6. जो कई सालों से जनतन्त्र की सब्जी खा रहे हैं, कहते हैं बड़ी स्वादिष्ट होती है। ’जनतन्त्र’ की सब्जी में जो ’जन’ का छिलका चिपका रहता है उसे छील दो और खालिस ’तन्त्र’ को पका लो।आदर्शों का मसाला और कागजी कार्यक्रमों का नमक डालो और नौकरशाही की चम्मच से खाओ ! बड़ा मजा आता है –कहते हैं खानेवाले।
7. सफ़ाई सप्ताह कचरे का ढेर दे जाता है और नया साल बैरंग शुभकामना लेकर आता है।
8. कई गर्दनें मैंने ऐसी देखी हैं जैसे वे माला पहनने के लिये ही बनी हों। गर्दन और माला बिल्कुल ’मेड फ़ार ईच अदर’ रहती हैं। माला लपककर गले में फ़िट हो जाती है।
9. फ़ूल की मार विकट होती है। कई गर्दनें, जो संघर्ष में कटने के लिये पुष्ट की गयीं थीं, माला पहनकर लचीली हो गयी हैं। एक क्रांतिकारी इधर रहते हैं जिनकी कभी तनी हुई गर्दन थी। मगर उन्हें माला पहनने की लत गयी। अब उनकी गर्दन छूने से लगता है, भीतर पानी भरा है। पहले जन-आन्दोलन में मुख्य अतिथि होते थे, अब मीना बाजार में मुख्य अतिथि होते हैं।
10. फ़ूल की मार बुरी होती है। शेर को अगर किसी तरह एक फ़ूलमाला पहना दो तो गोली चलाने की जरूरत नहीं है। वह फ़ौरन हाथ जोड़कर कहेगा – मेरे योग्य कोई सेवा !
11. किसी को दिशा नहीं मालूम। दिशा पाने के लिये यहां की राजनैतिक पार्टियां एक अधिवेशन उत्तर में श्रीनगर में करती हैं, दूसरा दक्षिण में त्रिवेन्द्रम में, तीसरा पूर्व में पटना में और चौथा पश्चिम में जोधपुर में –मगर चारों तरफ़ घूमकर भी जहां की तहां रहती हैं। बायें जाते-जाते लौटकर दायें चलने लगती हैं।

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