Wednesday, September 02, 2020

परसाई के पंच-25

 

1. मौन मूर्ख , मुखर मूर्ख से फ़िर भी अच्छा होता है। मुखर को बाद में मौन होना पड़ता है।
2. रचनात्मक कार्य यानी लोगों को लाइसेन्स , परमिट दिलाना, उनके तबादले कराना, उनकी नियुक्ति कराना, कभी-कभी उनकी जमानत कराना, केस उठवाना, सार्वजनिक जमीन कर कब्जा करवाना, तस्करियों , जुआडियों को सुरक्षा प्रदान करना। ये सब ’रचनात्मक कार्य’ ही तो हैं।
3. जयन्ती करने के और भी फ़ायदे हैं। सरकारी अनुदान और चन्दा मिलता है, जिससे आत्मा का उन्नयन होता है।
4. फ़फ़ूंद से पेनिसिलिन बनता है जो रोगाणुओं को पास फ़टकने नहीं देता। फ़फ़ूंदे हुये दिमागों में वैचारिक पेनिसिलिन बन जाता है, जिससे नये विचारों के रोगाणु उस पर असर नहीं करते।
5. पूंजीवादी सभ्यता अमानवीकरण करती है। महाजनी सभ्यता यही है। यह शोषक और शोषित दोनों का अमानवीकरण करती है।
6. कोई सरकार न आज तक शराबबन्दी कर सकी , न कर सकेगी। न यह इस्लाम के नाम से सम्भव है, न महात्मा गांधी के नाम से। शराब बन्दी तो कमाई करके पीने का सुभीता दिलाती है।
7. पुलिस और आबकारी वाले अगर छापा मारें , तो नेताजी बीच में पड़कर मामला संभाल भी लेते हैं। पुलिस वाले जरूरतमन्द को खुद बता देते हैं कि कहां मिल जायेगी। अगर कहीं पुलिस छापा मारे, तो वहां के ग्राहकों को बता देती है कि दो-तीन दिन फ़लां अड्डे से ले लीजिये।
8. हमें-जनता को समझ में नहीं आता कि हम मनुष्यों को चुन रहे हैं या केचुओं को, जिनके हड्डी ही नहीं है।
9. क्रांति इस देश में भुनी हुई मूंगफ़ली हो गयी है। इसके खोमचे लगे हैं। जिसे देखो, वही पचीस पैसे में क्रांति की मूंगफ़ली का पूड़ा लेता है और छीलकर खाने लगता है।
10. इस्तीफ़े की घोषणा मनाने वालों को ध्यान में रखकर की जाती है। जैसे आमरण अनशन की घोषणा दूसरे दिन मुसम्मी का रस पिलाने वाले को ध्यान में रखकर की जाती है।
11. अगर निष्कण्टक राज करना है तो प्रजा में अज्ञान और अन्धविश्वास फ़ैलाना जरूरी है।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10220653658904858

No comments:

Post a Comment