Friday, November 08, 2019

कैमरे की बदमाशी और न्यूयार्क में कलकत्ता

 



स्टेच्यु ऑफ लिबर्टी और लिबर्टी बाइक देखने के बाद वहीं मौजूद म्यूजियम देखने गए। म्यूजियम में स्टेच्यू आफ लिबर्टी के निर्माण से सम्बंधित विवरण मौजूद हैं। कैसे बनना शुरू हुई। इतनी बड़ी मूर्ति को बनाने के लिए तांबा कैसे गलाया गया। कैसे ढाला गया। सब विवरण।
इस मामले में यूरोपियन और अमेरिकन का कोई जबाब नहीं। अपने इतिहास को अच्छे से संरक्षित रखते हैं । बाद में पता चल सके कि निर्माण प्रक्रिया क्या थी। तरह-तरह की फोटो, वीडियो और मॉडलों के माध्यम से बताया गया था कि कैसे यह विश्व प्रसिद्द स्मारक बना
म्यूजियम के बाहर ही पर्यटक बैठे भी थे। आराम करते। कुछ बच्चे दौडते-भागते खेल भी रहे थे। एक बच्ची बड़ी दूर से भागती आई और सीढ़ियों पर चढ़ती चली गयी। उसके दौड़कर भागने में बेपरवाही और विश्वास देखकर बहुत अच्छा लगा। जिस उम्र की वह बच्ची थी उस उम्र में अपने यहां बच्चियों को 'सावधान' होकर उठना, बैठना, चौकन्ना रहना सिखाया जाता है। बच्चों की उन्मुक्तता सहमने लगती है।
ज्यादातर फोटो हम लोगों ने अकेले ही खींचे। सभी खींचते हैं। स्टेच्यू आफ लिबर्टी की मूर्ति के पीछे खड़े हुए दोनों का साथ फ़ोटो खिंचाने के लिए वहीं बैठी एक महिला से अनुरोध किया। उसने sure कहते हुए हमारा कैमरा हाथ में ले लिया। हमारा कैमरा भी विदेशी महिला के हाथ में पहुंचते ही नटखट हो गया। महिला के हाथ की संगत में देर तक रहने के लालच में बदमाश ने कई फोटो खराब खींचे। खराब क्या, खींचे ही नहीं। महिला इसे अपनी गलती मानते हुए फोटो देखकर हर बार सॉरी बोलते हुए फिर से फोटो खींचती रही। कई शॉट के बाद फोटो ओके हुआ।
हमने कैमरा वापस लेकर उस महिला को धन्यवाद दिया। फिर उसका फोटो घरैतिन के साथ लिया। उसको फ़ोटो दिखाया। फोटो देखकर उसने खुशी जाहिर की। हम उसको फिर से धन्यवाद बोलकर आगे बढ़ गए।
भूख लग आई थी इस बीच। वहीँ मौजूद कैफेटेरिया में कुछ खाने गए। कई बार पूछकर कि यह वेज ही है न चीज पिज्जा लिया। साथ में चाय। चाय के लिए कहते ही डिलीवरी काउंटर वाले ने पच्चीस तरह की चाय की पत्ती ट्रे में सामने धर दी। बोलो कौन वाली चाय?
हमको चाय के नाम पर सिर्फ ताजमहल चाय पसंद है। लेकिन वह यहां दिखी ही नहीं। बाकी सब चाय एक समान। हमने बिना देखे एक चाय चुनकर बता दी। उसने चाय और पिज्जा ट्रे में थमा दिया। हम दोनों को लेकर काउंटर की तरफ भुगतान के लिए बढ़े। चाय का दाम याद है 2.95 डॉलर मतलब करीब 200 रुपये। लगभग इतनी मंहगी तो अपने यहां एयरपोर्ट पर भी पी चुके हैं। मन किया बयान जारी कर दें -'इतना तो मंहगा नहीं है अमेरिका।' लेकिन फिर यह सोचकर कि विदेश में बयानबाजी में हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए, थम गए।
भुगतान के लिए डॉलर दिए। उसने वापस काफी रेजगारी लौटाई। उन सिक्कों में एक सेंट का सिक्का भी है। सेंट मकतब डॉलर का सौंवा हिस्सा। मतलब लगभग सत्तर पैसे । यह देखकर अच्छा लगा कि अमेरिका अपने सिक्कों को अभी भी चलन में रखे है। अपने यहाँ तो एक पैसे, दो पैसे की बात तो छोड़ दो, चवन्नी तक चलन से बाहर हो गयी है।
यहां रेजगारी का चलन देखकर बरबस कलकत्ता याद आ गया। वहां भी अभी तक सिक्के चलते हैं। लगा कि कलकत्ता अमेरिका आ गया है।
फोन की बैटरी कम हो रही थी। पावर बैंक साथ न लाने के अपनी काहिली को मन ही मन कोसते हुए हमने वहां चार्जिंग प्वाइंट खोजा। एक जगह दिखा भी तो पेमेंट बेसिस पर। पेमेंट की बात देखते ही हम सन्तोषी हो गए। जितना बच गया उसे ही बचाकर काम चलाओ।
खरीदा खाना वहीं बेंच पर बैठकर खाया। पिज्जा बुढ़ापे में किसी कामरेड के जोश की ठंडा हो गया था। चाय भी बिना दूध वाली थी। बिना दूध वाली चाय हमने बेमन से पी। ठंडा पिज्जा भी खाया। इसके बाद वापस चलने के लिए सोचने लगे।
लौटने वाली फेरी चार दस पर थी। फेरी लग गयी। हम बैठ गए फेरी में। बगल वाली फेरी भी चलने को तैयार थी। इस बीच उसका समय हो गया। जिनकी छूट रही थी वे लोग भागते हुए आये। लेकिन तब तक फेरी वाले ने समय हो जाने की बात कहते हुए चढ़ने से मना कर दिया। इत्मीनान से प्लेटफार्म हटाया। लंगर से रस्से खुले और फेरी चल दी।
समय हो जाने पर फेरी वाले ने लोगों को अंदर आने से मना कर दिया। वे बेचारे अगली फेरी के इंतजार करने लगे। लेकिन यह देखकर हमको बड़ा खराब लगा। अपने यहां तो लोग रेलवे क्रासिंग तक लोगों को देखकर खुला रखते हैं कि भाई पहले ये भी निकल जाएं, ट्रेन तो दिन भर आती रहतीं हैं। नहीं भी खुला रखते हैं तो लोग जबरियन गाड़ी अड़ा देते हैं कि पहले हम निकल जाएं तब निकालना ट्रेन। कई बार ट्रेन भी बेचारी क्रासिंग पर खड़े होकर इंतजार कर लेती है।
फेरी में बैठते ही फिर फोटोबाजी हुई। सूरज भाई विदा हो रहे थे। पानी में उनकी छवि बड़ी खूबसूरत लग रही थी। पीछे न्यूयार्क की ऊंची इमारतों में बत्तियां जल चुकी थीं। यह हाल शाम साढ़े चार का था। पीली बत्तियां अपनी रोशनी से इमारतों को और खूबसूरत बना रहीं थी।
फेरी से उतरकर हम वापस आ गए। लौटने के लिए टैक्सी का जुगाड़ करने में जुट गए।

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