Thursday, November 14, 2019

न्यूजर्सी से पोर्टलैेंड- एक दिन में चार प्रदेश

 न्यूजर्सी में हमारे दिन पूरे हो गये। 5 को आये 12 को सुबह निकल लिये। हमारा अगला पड़ाव पोर्टलैंड था। पोर्टलैंड में इन्द्र अवस्थी रहते हैं। उन्होंने खुद 12 से 15 की तारीख तय की् थी हमारे पोर्टलैंड प्रवास की। पोर्टलैंड ओरेगन प्रान्त में पड़ता है जहां आचार्य रजनीश का आश्रम था।

रिजर्वेशन हमने कानपुर से ही करा लिया था। फ़्लाइट न्यूयार्क से थी। न्यूयार्क से पोर्टलैंड की करीब 6 घंटे की हवाई यात्रा है। एक तरफ़ अटलांटिक महासागर तो दूसरी तरफ़ प्रशान्त महासागर।
फ़्लाइट का रिजर्वेशन तो करा लिया था। लेकिन सीट तय करनी थी। यहां फ़्लाइट की सीट 24 घंटे पहले कराना शुरु हो जाता है। देर की तो गये। जहाज कम्पनियां अपनी क्षमता से 10-20 प्रतिशत ज्यादा टिकट बेंचती हैं। ताकि जहाज फ़ुल रहे। गलाकाट कम्पटीशन के चलते ही हम दोनों की 6 घंटे की यह फ़्लाइट और आगे पोर्टलैंड से सैनफ़्रान्सिस्को की फ़्लाइट कुल करीब 28000 की पड़ी। मतलब 1750 रुपये प्रतिघंटा। भारत में भी अभी देखा कि 15 दिन बाद की लखनऊ से दिल्ली की एक घंटा 10 मिनट फ़्लाइट 1817 रुपये की है। मतलब हवाई यात्रा के मामले में दोनो जगह दाम बराबर।
लेकिन नहीं। अमेरिका में अपन से 35 डालर एक बड़े बैग के भी धरा लिये गये। 35 डालर मतलब 2500 रुपये करीब। मतलब जितने का यात्रा का किराया नहीं उससे ज्यादा उसके सामान का। जित्ते का ढोल नहीं उससे ज्यादा का मजीरा।
फ़्लाइट सुबह आठ बजकर पांच मिनट पर थी। घर से पांच बजकर दस मिनट पर चल दिये। बैग की चेक इन हवाई अड्डे के बाहर ही हो रही थी। एक स्वयंसेवक ने हमारा बैग तौला। स्लिप दी। इसके बाद बोला -’इस सेवा के लिये कुछ देना चाहें तो दे सकते हैं।’
हम असमंजस में। देना तो नहीं चाहते। लेकिन मांग रहा है तो मना कैसे करें? अंतत: ढाई डालर प्रति बैग सेवा खर्च और जुड गया।
अंदर बोर्डिंग पास खुद बनाना था। विवरण भरते हुये उसने पूछा कि क्या आप अपनी सीट किसी दूसरे को देना चाहेंगे? हमने सोचा - ’अजब बात है। सीट किसी और को दे देंगे तो का खड़े-खड़े जायेंगे?’ हमने साफ़ मना कर दिया। पता चला कि हवाई कम्पनियां चूंकि ज्यादा बुकिंग कराती हैं तो पूछती हैं कि अगर कोई मना कर दे तो किसी दूसरे यात्री को लेती चले।
अन्दर सिक्योरिटी चेकिंग हुई। जैकेट, बेल्ट, वालेट और जूते भी ट्रे में धरवा के स्कैनिंग हुई। सबकी हो रही थी। हमारी भी हुई। हमको याद आया कि एक बार शाहरुख खान से पूछताछ और किसी के जूते उतरवाने पर अपने यहां मीडिया में बहुत हल्ला हुआ था। अरे जब हमारी चेकिंग हुई, हमने मना नहीं किया तो शाहरुख खान कौन चीज हैं। सुरक्षा मामलों को इज्जत से जोड़ना बेफ़ालतू का चोंचला है।
जहाज समय से आधा घंटा देरी से चला। छह घंटे की यात्रा में एक बार नाश्ता और एक बार बार सूप/जूस दिया गया। सीट हमारी साथ की नहीं मिली थी। आगे पीछे की थी। छह घंटे बैठे-बैठे टांगे अकड गयीं। उतरे तो बहुत देर तक टांगे सीधी करीं।
अभी यह लिखते हुये याद आया कि कल अपन को सैनफ़्रान्सिस्को के लिये निकलना है। अभी तक सीट नहीं तय की। देर करेंगे तो फ़िर रह जायेंगे। याद आते ही लपककर सीट बुक कराई ! सांस में सांस आई।
पोर्टलैंड पर उतरकर निकले। अवस्थी बाहर ही हमारा इंतजार कर रहे थे। बार-बार फ़ोनिया रहे थे -’अभी पहुंचे नहीं सामान लेने।’ हमको लगा कि ये हमको कहां से देख रहे कि अभी पहुंचे नहीं। पता चला बैग मिलने का स्थान एयरपोर्ट के एकदम बाहर (शुरु में) के हिस्से में है। ताकि आदमी आराम से निकाल ले जाये सामान। सारा कुछ बाहर शीशे से दिखता है। एयरपोर्ट से निकलकर सीधे सड़कपर !
पोर्टलैंड में बारिश हो रही थी। बारिश के बदनाम शहर है पोर्टलैंड। लगातार होती बारिश से शायद शहर उदास हो जाता होगा। शहर देश के सबसे अवसाद वाले शहरों में है जहां आत्महत्या की दर ऊंची है।
घर में अम्मा जी हमारा इन्तजार कर रहीं थीं। 36 साल पहले जब साइकिल यात्रा के दौरान पहली बार कलकत्ता गये थे। तब भी अम्मा जी के हाथ का खाना खाया था। अब जब पहली बार अमेरिका आये तब भी अम्मा जी मौजूद थीं खिलाने-पिलाने के लिये। कतकी का दिन था। सुमन ने अम्मा जी के साथ मिलकर कचौरी बनाई । सबने जम कर खाईं। खा-पीकर जो सोये शाम को ही नींद खुली।
शाम को जगे तो इंद्र Indra ने सूचना दी –’सुरेन्द्र गुप्ता के यहां चलना है। खाने पर बुलाया है। चलो जूठन गिरा आते हैं।’
सुरेन्द्र गुप्ता Surendra Guptaभी हमारे कालेज के ही पढे हैं। उरई के रहवासी। लखनऊ के सैनिक स्कूल में पढने के बाद मोतीलाल आये थे। 1986 में इंजीनियरिंग करने के बाद दस साल बाद अमेरिका आये। पिछले 23 साल अमेरिका में रच-बस गये हैं। हां को ’यप्प’ बोलने लगे हैं। बच्चे दोनों बड़े हो गये। बिटिया नौकरी के लिये और बच्चा पढाई के लिये बाहर हैं। मियां-बीबी अब जिन्दगी के मजे ले रहे हैं। इन्द्र के घर से करीब आधे घंटे की दूरी पर दूसरे प्रदेश वाशिंगटन प्रदेश के बैन्कोवर में रहते हैं।
सुरेन्द्र के यहां जाने से पहले कुछ मिठाई लेने एक दुकान पर गये। जलेबी ली। आधा किलो जलेबी के दाम 10 डालर में। मतलब लगभग 1400 रुपये किलो जलेबी। जलेबी शायद सुबह की निकली थीं। अमेरिकन ठंड में अकड़कर इतनी कड़ी हो गयीं थीं कि फ़ेंक के मार दें किसी को घायल हो जाये। जलेबी का असल मजा तो गरम-गरम शीरे के साथ ही है। ठंडी होकर कड़ी होने के बाद तो जलेबी के हाल ऐसे हो जाते हैं जैसे ताबूत में सुरक्षित रखी ममी। लेकिन मिठाई के नाम पर जलेबी ही तय की पंचों ने।
अब बहुमत की राय के आगे फ़िर किया क्या जा सकता है। बहुमत के नाम पर न जाने कितने नमूने , जमूरे दुनिया के देशों के राष्टाध्यक्ष बने बैठे हैं। अपने समाजों के वर्तमान और भविष्य को धड़ल्ले से हिल्ले लगा रहे हैं। जलेबी तो फ़िर भी बेचारी निरीह मिठाई है। लिहाजा तौला ही ली गयी जलेबी।
जलेबी के साथ और मिठाइयां भी मिल रहीं थीं दुकान पर। मजे की बात वहीं एक किताब भी थी काउंटर पर जिसमें 10 तरह की डायबिटीज के बारे में जानकारी दी गयी थी। मतलब मर्ज और दवा पास-पास। मेराज फ़ैजाबादी का शेर है न :
“पहले पागल भीड़ में शोला बयानी बेंचना
फ़िर जलते हुये शहरों में पानी बेंचना।“
सुरेन्द्र से 1985 के बाद मुलाकात हुई ! मतलब 24 साल बाद। पुरानी तमाम यादें उलट-पुलटकर ताजा की गयीं। कुंवारे दोस्त अब शादी-शुदा-बाल-बच्चेदार हो गये हैं। सबको परिचय के दायरे में लाया गया। सुरेन्द्र की पत्नी भारती टैक्स सलाहकार का काम करती हैं। जनवरी से अप्रैल भयंकर व्यस्त रहती हैं। टैक्स का काम कैसा करती हैं यह तो उनके टैक्सिये जानें लेकिन घर, घरवाले को शानदार ढंग से रखती हैं। उनके घर की बढाई सुमन कई बार कर चुकी हैं। खाना भी बहुत बढिया बना। चाय भी कई बार मिली। बहुत आनन्दित हुये मुलाकात करके।
12 नवंबर को अपन ने अमेरिका के चार प्रदेश नाप लिये। न्यूजर्सी से चले थे, न्यूयार्क से उड़े, ओरेगन में उतरे और शाम को वाशिंगटन पहुंचे। न्यूजर्सी में चाय, न्यूयार्क में नाश्ता (जहाज में) ओरेगन (पोर्टलैंड) में लंच और अंत में डिनर वाशिंगटन स्टेट (बैन्कोवर) में।
इस बीच आस्ट्रेलिया में Sanjiv Sharma संजीव शर्मा से बात हुई। सिडनी में संजीव महीने में एक बार आस्ट्रेलिया रेडियो पर अपनी प्रस्तुति देते हैं। हमारी एक पोस्ट रेडियो से पढी थी। अब तय हुआ कि हमारे अमीन सायनी संजीव से तय हुआ कि जल्द ही हमारी भेंटवार्ता सिडनी रेडियो से प्रसारित करेंगे।
इस तरह अपन एक दिन कायदे से ग्लोबल होकर खा-पीकर वापस लौट आये। आते ही नींद ने हमला किया। हम पहले ही हमले में बिस्तर पर धरासायी हुये तो अगले दिन सुबह ही नींद खुली।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10218093228695703

No comments:

Post a Comment