Wednesday, November 06, 2019

न्यूजर्सी में सुबह की सैर




सुबह टहलने निकले। आठ बजे। हवा में सर्दी थी। लेकिन सूरज भाई खूब जलवे से खिले हुए थे। एकदम साफ वाली -एक्सपोर्ट क्वालिटी धूप के साथ। हमने उलाहना दिया कि आप उधर कानपुर में धुँएवाली धूप लाते हो लेकिन यहां खिली-खिली धूप सप्लाई करते हो। इस पर सूरज भाई खिलखिलाकर हंसने लगे। बोले - धूप हम एक जैसी ही सप्लाई करते हैं। ये तुम लोग हो जो उसे गन्दा कर देते हो ।
हमारे पास कुछ कहने को नहीं था। हम धूप-धुली सड़क देखने लगे। सड़क पर गाड़ियां तेजी से आ-जा रहीं थीं। लेकिन कोई इंसान सड़क पर नहीं दिखा। सामने वाली सड़क पर एक आदमी खड़ा दिखा। सोचा उससे हेल्लो-हाय करें। लेकिन जब तक सोच पर अमल करें तब तक वह बस में बैठकर चल दिया।
इसके बाद हम बाईं तरफ टहलने निकल लिए। चलने के पहले मोड़ की फोटो ले लिए । फोटो इसलिए कि भूल जाएं तो पहुंच जाएं देखकर। सेल्फी भी ले लिए यह सोचकर कि हम ही भूले हैं, कोई और नहीं। परदेश में गजनी बनते देर नहीं लगती।
बाईं तरफ कई सड़क पार कर गए लेकिन कोई दिखा नहीं। एक दुकान दिखी। लपके उधर तो बन्द मिली। खुलने का समय 11 बजे।
आगे बढ़े। एक जगह cash 4 car का बोर्ड खेत में पड़ा दिखा। शायद पुरानी कारों की खरीद का विज्ञापन हो।
वहीं न्यूजर्सी नगर पालिका की गाड़ी खड़ी थी। ऊपर सोलर पैनल । किसी चुनाव की सूचना चल रही थीं। कोई विज्ञापन नहीं। कोई बैनर नहीं। हिंदुस्तान में चुनाव होता तो शायद लाउडस्पीकर पर बहनों और भाइयों चल रहा होता।
एक मैदान में साकर के कई गोलपोस्ट दिखे। लेकिन खिलाड़ी कोई नहीं। शायद शाम को या छुट्टी के दिन आते हों।
आगे एक जगह सड़क किनारे गटर सफाई का विज्ञापन लगा था। सफाई की सम्भावित कीमत भी। और भी कई तरह के विज्ञापन दिखे। लेकिन हम हिंदुस्तान की तरह दीवारों पर शर्तिया इलाज वाले विज्ञापन देखने को तरस गए यहां। शायद यहां चलन नहीं शर्तिया इलाज का।
देशी फूड गैलेक्सी देखकर लगा कि यहां तो चाय पक्का मिलेगी। लेकिन वहां भी ताला मिला। अलबत्ता शाम की चाय का ठिकाना मिल गया। दुकान का समय 11 से 8 है।
एक जगह घर के आगे पुरानी बोतलों और प्रयोग किये सामान ड्रमों में रखा था। शायद कूड़े की गाड़ी के इंतजार में।
रास्ते में एक क़ब्रस्तान दिखा। अंदर गए तो पता चला अठाहरवीं सदी तक से उन्नीसवीं सदी तक की कब्रें। मां-बाप-भाई-पत्नी की कब्रें । हमने कब्र को पास से छूकर देखना चाहा लेकिन 'होइहैं शिला सब चन्द्रमुखी' याद आ गया। क्या पता कौन बवाल हो जाये परदेश में।
जगह-जगह पानी की लाइनों के ऊपर लोहे के मेनहोल दिखे। सफाई रखने के अनुरोध के साथ।
घण्टे भर टहलने के बावजूद कोई चाय की दुकान नहीं मिली। लौट के बुद्धू घर को आ गए। चाय पी। मन खुश हुआ।
अभी निकलते घूमने के लिए। आगे का किस्सा लौटकर।
पोस्टिंग समय: न्यूजर्सी 6 नवम्बर,2019 सुबह 12.08 बजे
कानपुर में 6 नवम्बर, 2019 रात के 1040 बजे।


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