1. राजनीति में हारे हुये की बड़ी दुर्गति होती है।
2. क्रान्ति हुई है तो कुछ तो बदलना चाहिये, न बदले तो जनता कहेगी कि क्रान्ति हुई ही नहीं। अब क्रान्ति तो यही हो सकती है कि पुराने बेईमानों की जगह नये बेईमान बिठाये जायें। पुराने स्वार्थियों की जगह नये स्वार्थी फ़िट हों। यही तो क्रान्ति है।
3. चुनाव के बाद यही तो बुनियादी परिवर्तन हुआ है कि पुराने बेईमान की जगह नया बेईमान बैठ गया है। यह अच्छा भी है। पुराने बेईमानों से जनता बोर हो गयी थी। नये बेईमान आने से उसे ताजगी का अनुभव हुआ।
4. एक वर्ग ऐसा है, जो कभी किसी चीज के लिये नहीं लड़ता। लड़ना इसके स्वभाव में है ही नहीं।
यह वर्ग केंचुए की तरह है। इसकी रीढ़ की हड्डी नहीं होती। मेरुदण्डविहीन वीरों का वर्ग है यह। यह जूतों पर सिर रखकर सुविधा लेने वाला वर्ग है। यह चूहे की तरह स्वस्थ जीवन मूल्यों को कुतरता है। यह दो-मुंहा, दो-रूपी होता है। समाज की किसी समस्या से इसे मतलब नहीं। यह दिखावट में जीता है।
5. धरने पर बैठे, सत्याग्रह पर बैठे, अनशन पर बैठे आदमी से कोई कुछ नहीं कह सकता। ये लोग निर्दोष, नैतिक और पवित्र हो जाते हैं।
6. धर्म, अनुष्ठान, मन्त्र, यज्ञ का जोर एटमी शक्ति को तो नष्ट कर सकता है, मगर चोरों से हार जाता है। ज्यादा सही यह है कि धर्म, यज्ञ, मन्त्र, वगैरह चोरों की सहायता करते हैं।
7. हर तरह के चौर कर्म- घूस, कालाबाजारी, मुनाफ़ाखोरी, राजनैतिक बेईमानी, पाखण्ड सबकी साधना धर्म की मदद से होती है।
8. शासकों को जितनी लुच्चई, बदमाशी, झूठ, पाखण्ड, छल, कपट, अत्याचार –चाणक्य ने सिखाये उतने दुनिया के किसी राजनैतिक गुरु ने नहीं सिखाये। हमारे शासक जो जनता में अज्ञान, भाग्यवाद, अन्धविश्वास फ़ैलाते हैं, यह चाणक्य की ही शिक्षा है।
9. चाणक्य ने लिखा है कि जनता को मूढ़ और अन्धविश्वासी कर देने से राजा निष्कंटक राज करता है। यज्ञों की भरमार, कथा-प्रवचन, चमत्कार, तन्त्र-मन्त्र, योगी, स्वामी और भगवान – ये सब शासक और शोषक वर्ग द्वारा प्रोत्साहित किये जा रहे हैं। यह चाण्क्य-नीति है।
10. इस देश के लोग अब जन-कल्याण करने वालों, निस्वार्थ देशसेवकों, गरीबों पर बलि चढ़नेवालों से बहुत तंग हो चुके हैं। वे हाथ जोड़कर कहते हैं –हमें बख्शो ! हमें छोड़ो। हमें चैन लेने दो। मेहरबानी करके हमारा कल्याण करना छोड़ो। और उन्हें जबाब मिलता है –तुम्हारा कल्याण कौन बेवकूफ़ कर रहा है? हम तो हमारा कल्याण कर रहे हैं। तुम अपने कल्याण के भ्रम से परेशान क्यों होते हो?
11. ईमानदारी कितनी दुर्लभ है कि कभी-कभी अखबार का शीर्षक बनती है। ऐसी खबर और शीर्षक का दूसरा गहरा अर्थ भी है। वह यह कि गरीब लोग बेईमान होते हैं। जो गरीब नहीं होते, वे ईमानदार होते हैं। इन बेईमान गरीबों में कोई रिक्शावाला या मजदूर ईमानदारी का काम कर बैठता है। यह चमत्कार है, जैसे दो सिरवाले बच्चे का पैदा होना। इसलिये यह समाचार विशेष रूप से छपना चाहिये।
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