Saturday, October 10, 2020

व्यंग्य के बवाल

 बड़ा बवाल है व्यंग्य में आजकल।

व्यंग्य के बाद 'विधा' हम जानबूझकर नहीं लिखे। 'विधा' और 'स्पिरिट' में अभी भी तनातनी है। वैसे लफड़ा तो 'विधा' और 'स्पिरिट' की पहचान में भी है। हमारे एक ज्ञानी दोस्त के अनुसार 'विधा' , विधि (कानून) का पति है और स्पिरिट , प्रवृत्ति वाली नहीं है बल्कि यहां 'स्पिरिट' का मतलब वो वाली 'स्पिरिट' से है जिसकी दुकाने खुलते ही कोरोना काल में भी भीड़ उमड़ पड़ी थी।
बहरहाल कहने का मतलब यह कि व्यंग्य में बहुत बवाल, कन्फ्यूजन है, अफरा-तफरी है। धड़ल्ले से लिखा जा रहा है, पढा जा रहा है। किताबें आ रही हैं, विमोचन हो रहे हैं, समीक्षाएं हो रही हैं। खूब बयान बाजी हो रही है। मतलब व्यंग्य बाजार में मामला गुलजार है। चहल-पहल है। हलचल है। व्यंग्य का हलका एकदम बाजार की तरह गुलजार है। दीवाली में सरार्फा बाजार की तरह चमकदार है।
इतना हसीन मंजर है फिर क्या बवाल? बवाल जैसी कोई बात नहीं, वो तो ऐसे ही लिखे जरा बात में वजन लाने के लिए। हुआ यह कि हम पिछले दिनों मोबाइल से पुरानी फोटो, कूड़ा साफ कर रहे थे कि व्यंग्य के अखाड़े के दो खलीफाओं के परस्पर विरोधी बयान दिखे। 2015 में लालित्य ललित Lalitya Lalit जी कहते पाए गए :
'हम लोगों को व्यंग्य लिखना सिखाते हैं।'
उस समय के व्यंग्य लेखकों की जनगणना करते हुए लालित्य जी ने यह बताया था कि 30 लोग व्यंग्य लिख रहे हैं। उनके बयान को प्रेम जनमेजय जी का बाहर से समर्थन रहा होगा क्योंकि उन्होंने उसके बाद बोलते हुए भी इसका खंडन नहीं किया।
सनद रहे कि लालित्य ललित जी ने यह बयान व्यंग्य के शीर्ष पुरोधा माने जाने वाले परसाई जी के शहर में जारी किया था। जिस शहर की हर गली में व्यंग्यकार मिलते हों, ऐसी जगह व्यंग्य सिखाने की बात कहना व्यंग्य के क्षेत्र में सर्जिकल स्ट्राइक सरीखा था। लेकिन किसी जबलपुरिये ने इस बात का कोई नोटिस न लेते हुए यह बताया कि जबलपुर को संस्कारधानी क्यों कहा जाता है।
लालित्य ललित जी ने 2015 में जो व्यंग्य लिखना सिखाया तो अभी पिछले हफ्ते व्यंग्य लेखक की संख्या 30 से बढ़ाकर 135 कर ली। व्यंग्य लेखकों का संग्रह भी छपा दिया। 2015 में 30 से शुरू करके 2020 तक 135 तक ले आये व्यंग्यकारों को। मतलब 5 साल में 105 लोगों को व्यंग्य लिखना सिखा दिया। मतलब हर साल 21 लेखक औसतन बनाये। बहुत बड़ा योगदान है यह साहित्य की किसी भी विधा (या स्पिरिट) के लिए।
हम लालित्य ललित जी की तारीफ करने की सोच ही रहे थे कि प्रख्यात व्यंग्यकार और आलोचक Subhash Chander जी का बयान दिख गया। उनका कहना है:
'व्यंग्य लिखना कोई नहीं सिखा सकता।'
अब यह बयान तो लालित्य ललित जी के बयान के एकदम उलट है। ललित जी कहते हैं हम व्यंग्य लिखना सिखा रहे हैं, उधर आलोचक श्रेष्ठ कहते हैं व्यंग्य लिखना कोई सिखा नहीं सकता। हमें समझ नहींआता किसकी बात सही माने। अगर कोई सिखा नहीं सकता तो ये जो 30 व्यंग्य लेखकों से 75 होते हुए 135 तक पहुंची संख्या उनकी व्यंग्य की डिग्री फर्जी है क्या ?
दोनों लोग व्यंग्य के बड़े उस्ताद हैं। एक तरफ लालित्य ललित जी धुंआधार लिखते हैं और हर महीने एक नई किताब आ जाती है उनकी। उनकी नेशनल बुक ट्रस्ट के जरिये साहित्य के प्रसार की जबर्दस्त मेहनत है। दूसरी तरफ सुभाष जी हैं जो व्यंग्य की डिग्री देने वाले एकमात्र विश्वविद्यालय है। उनकी व्यंग्य लेखन के इतिहास में दर्ज हुए बिना कोई व्यंग्यकार कैसे कहला सकता है। उनकी बात का समर्थन न करना मतलब अगले 'व्यंग्य के इतिहास में' के अगले संस्करण में नाम गायब होने का खतरा।
हमारी हालत कवि भूषण की तरह हो गयी है जो अपने दोनों आश्रयदाता राजाओं की तारीफ करते हुए कहते हैं -'शिवा को सराहूं कि सराहूं क्षत्रसाल को।' सवाल पूछते ही उन्होंने दोनों की मिजाजपुर्सी कर ली। हम भी करना चाहते हैं लेकिन करने से बच रहे हैं क्योंकि अभी समय कम है। फिर कभी।
फिलहाल तो अभी आप बताओ कि किसकी बात सही लगती है आपको लालित्य ललित जी की व्यंग्य लिखना सिखाने वाली बात कि सुभाष चन्दर जी की व्यंग्य लिखना कोई सिखा नहीं सकता वाली बात।
आप अपनी राय बताइए तब तक हम दफ्तर होकर आते हैं। ठीक ?

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10220895881920282

No comments:

Post a Comment