1. लेखक होने का यही बड़ा फ़ायदा है। जो बात आम आदमी को बुरी लगती है, लेखक के लिये वह ’दिलचस्प’ होती है। मुझे ऐसे बहुत मौके मिलते हैं। मैं फ़ौरन खायी चोट में से मानवी सम्बन्धों के निष्कर्ष निकालकर खुश हो जाता हूं।
2. जो लोग बीमारियों से लड़ने के बजाय उन्हें मा-बाप बना लें, उनका भला भगवान ही कर सकता है।
3. अगर (हम) बीमारियों का निर्यात करने लगें तो पंचवर्षीय योजनाओं की सारी विदेशी मुद्रा का इंतजाम हो जाये।
4. नशे के मामले में हम हम बहुत ऊंचे हैं। कई नशे हैं। धर्म का, जाति का, नस्ल का, आध्यात्म का। दो नशे खास हैं –हीनता का नशा और उच्चता का नशा।
5. हीनता का ऐसा नशा पिछड़े-से-पिछड़े देश में भी नहीं मिलेगा। इस नशे की दो-चार फ़ूंक लेने से ऐसे सामूहिक उद्गार निकलते हैं –हाय, हम बड़े दुखी, बड़े पतित लोग हैं। हाय,हम पर अत्याचार होते हैं। हम इतने भले लोग हैं, पर हाय, हम पर जुल्म होते हैं। हम बड़े पिछड़े हुये लोग हैं। इस नशे का कमाल यह है कि इसकी पिनक में यह बात अच्छी लगती है कि हम मारे जाते हैं। कोई कहे कि तुमने भी मारा, तो बुरा लगता है।
6. उच्चता का नशा चढने पर हम बड़बड़ाने हैं- भारत विश्वगुरु है। सारा ज्ञान-विज्ञान हमारे पुरखे प्राप्त कर चुके। अब आगे कुछ है ही नहीं। हीनता और उच्चता के ये नशे बारी-बारी से चढे रहते हैं। हमारा नशा कभी उतरा ही नहीं।
7. सिम्पटम का इलाज सुविधा की बात है। रोग की जड़ पकड़ सकने और उसे नष्ट करने में जब असमर्थ हो, तो सिम्पटम का इलाज तो करना ही चाहिये। छात्र आन्दोलन हो, तो विश्वविध्यालय बन्द कर दो। खाद्य के लिये आन्दोलन हो, तो दफ़ा 144 लगा दो। दंगा हो तो राष्ट्रीय एकता परिषद की मीटिंग बुला लो। लक्षणों का ही तो इलाज चल रहा है, बीमारी का निदान करने की जरूरत नहीं।
8. एक ’ब्राड स्पेक्ट्रम एण्टीबायटिक’ कहलाता है। इस बात की झंझट बिना उठाये कि बीमारी क्या है, डॉक्टर इसे मरीज को खिलाते जाते हैं। यह कई तरह के इन्फ़ेक्शन मार देता है। इसमें बड़ा सुभीता यह होता है जाता है कि डॉक्टर को यह पता ही नहीं चलता कि बीमारी क्या है,पर इलाज बराबर होता जाता है। कई ब्राड स्पेक्ट्रम बायोटिक्स है – प्रस्ताव है, परिषद है, आश्वासन है, न्यायिक जांच है, कमीशन है – ये सब फ़ेल हो जायें तो भारतीय दण्ड संहिता है।
9. विशेषज्ञ ’राजनाम’ की बरबारी का होता है। पुरखों का विश्वास था , अन्त समय ’राजनाम’ से मुक्ति मिलती है। अब विशेषज्ञ से मुक्ति मिलती है –यानी मरने से पहले विशेषज्ञ बतला दे कि इस बीमारी से मरे, तो जीवन-मरण के बन्धन से मुक्ति मिल गयी।
10. कराहते सब हैं, मगर कराहने की आदत नहीं पड़नी चाहिये, जैसी हमारी पड़ गयी। इस्पात का उत्पादन तो भी कराहेंगे और सूखा पड़ जायेगा तो भी कराहेंगे।
11. कई तरकीबें है आदमी को फ़ोन पर पकड़ने की। कई तरकीबें हैं आदमी को फ़ोन पर नहीं मिलने की। अपनी-अपनी प्रतिभा के मुताबिक सब अपने को बचाते हैं और दूसरों को फ़ंसाते हैं।
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