1. जो दिखाया न जा सके, वह घाव बेकार चला जाता है। जिस दर्द को भुना न सकें , वह खोटा सिक्का है ।
2. पवित्रता ऐसी कायर चीज है कि सबसे डरती है और सबसे अपनी रक्षा के लिये सचेत रहती है । अपने पवित्र होने का अहसास आदमी को ऐसा मदमाता बनाता है कि वह उठे हुये सांड की तरह लोगों को सींग मारता है, ठेले उलटाला है, बच्चों को रगेदता है । पवित्रता की भावना से भरा लेखक उस मोर जैसा होता है जिसके पांव में घुंघरू बांध दिये जाते हैं। वह इत्र की ऐसी शीशी है जो गन्दी नाली के किनारे की दुकान पर रखी है । यह इत्र गन्दगी के डर से शीशी में ही बन्द रहता है।
3. शाश्वत साहित्य लिखने का संकल्प लेकर बैठने वाले मैंने तुरन्त मरते देखे हैं ।
4. हममें से अधिकांश ने अपनी लेखनी को रण्डी बना दिया है, जो पैसे के लिये किसी के भी साथ सो जाती है । सत्ता इस लेखनी से बलात्कार कर लेती है और हम रिपोर्ट तक नहीं करते।
5.पवित्रता का यह हाल है कि जब किसी मन्दिर के पास से शराब की दूकान हटाने की मांग लोग करते हैं, तब पुजारी बहुत दुखी होता है, उसे लेने के लिये दूर जाना पड़ेगा । यहां तो ठेकेदार भक्ति-भाव में कभी-कभी मुफ़्त भी पिला देता था ।
6. सम्पादकों की बात मैंने कभी नहीं टाली । वे कहें कि रो दो, तो मैं रो पड़ूंगा । वे कहें कि नंगे हो जाओ, तो नंगा हो जाऊंगा । साहित्य में नंगेपन का पेमेण्ट अच्छा होता है ।
7. लेखकों को मेरी सलाह है कि ऐसा सोचकर कभी मत लिखो कि मैं शाश्वत लिख रहा हूं । शाश्वत लिखने वाले तुरन्त मृत्यु को प्राप्त होते हैं। अपना लिखा जो रोज मरते देखते हैं, वही अमर होते हैं।
8. जो अपने युग के प्रति ईमानदार नहीं हैं, वह अनन्त काल के प्रति क्या ईमानदार होगा !
9. गालिब की याद में जो गालिब अकादमी बनी है, उसका बाथरूम भी अगर उसे रहने को मिला होता तो वह निहाल हो जाता ।
10. कुछ लेखक तो सहज ही निष्प्रयास नीच हो लेते हैं । मुझे उनसे ईर्ष्या होती है।
11. कोर्स का लेखक वह पक्षी है , जिसके पांवों में घुंघरू बांध दिये गये हैं। उसे ठुमककर चलना पड़ता है। ये आभूषण भी हैं और बेडियां भी । रायल्टी मिलने लगी है तो लगता है कि ’सत्साहित्य’ ही लिखो, जिससे लड़के-लड़कियों का चरित्र बने । उसे आचार्यगण तुरन्त गले लगा लेंगे । परेशानी यही है कि ’सत्साहित्य’ कुल आठ-दस वाक्यों में आ जाता है, जैसे सत्य बोलो, किसी को कष्ट मत दो, ब्रह्मचर्य से रहो, परायी स्त्री को माता समझो, आदि।
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