1. हत्या के अपराध में जो राज्य अपराधी को प्राणदण्ड देता है, वही युद्ध में लाखों मनुष्यों को मरवा डालता है।
2. जनवरी में हर समझदार आदमी कैलेण्डर बटोरने में इतना व्यस्त रहता है कि उसे दम मारने की फ़ुरसत नहीं मिलती।
3. आज पुरुषार्थ का लक्षण कैलेण्डर बटोरने के सिवा और कुछ नहीं है। आज हुस्नबानो होती , तो सात सवालों के जबाब न मांगती। वह कहती, ’ए लोगों , जो मुझे अमुक सात कम्पनियों के कैलेण्डर ला देगा, मैं उसी के साथ शादी कर लूंगी।’
4. विशेषज्ञ की बात में कोई दखल नहीं दे सकता। हमने अपनी जिन्दगी ही विशेषज्ञों को सौंप रखी है। विशेषज्ञ पुल बनवा देता है और रेलगाड़ी हमें लेकर गिर पड़ती है। बरसात के पहले विशेषज्ञ इमारत पास कराता है और बरसात के बाद उसका मलबा उठाने का टेण्डर मंगाता है। अस्पताल में जाकर हम अपने को विशेषज्ञ को सौंप देते हैं और फ़िर अपने शरीर पर अपना हक नहीं रहता। राजनीति के विशेषज्ञों के हाथ सारी दुनिया ने अपने प्राण सौंप दिये हैं और वे किसी भी दिन सबके प्राण सहर्ष ले लेंगे। विशेषज्ञ के सामने किसकी चलती है।
5. कभी बादल जोर से गरजते हैं, जैसे खाद्य मन्त्री मुनाफ़ाखोरों को धमकी दे रहे हों। पर पानी न बरसने से गर्मी और बढ जाती है, जैसे खाद्यमन्त्री की हर धमकी के बाद भाव और बढ जाते हैं।
6. अन्धकार में कभी-कभी बिजली चमक उठती है, जैसे किसी रद्दी कविता में एक अच्छी पंक्ति आ गयी हो।
7. हवा के झोंके से वृक्ष इस तरह झुक-झुक पड़ते हैं , जैसे सेक्रेट्री की लड़की की शादी में अफ़सर लोग झुक-झुककर बरातियों को पान दे रहे हों।
8. कटे हुये पेड़ की ठूंठ पर फ़िर एक हरी फ़ुनगी फ़ूट आयी है, जैसे संसद के चुनाव का हारा, म्युनिसिपल चुनाव में खड़ा हो गया हो।
9. स्वेच्छा से विषपान करने में ’नील-कण्ठता’ एक बड़ा आकर्षण है। अपनी कोशिश यह होती है कि जहर कम-से-कम पियें, पर कण्ठ अधिक-से-अधिक नीला हो। और कोई तो गले पर नीली स्याही पोतकर ’नीलकण्ठ’ बने फ़िरते हैं।
10. स्वतंत्रता संग्राम ने कुछ लोगों को निठल्लेपन के संस्कार भी दिये थे। वे मजे में बैठे-बैठे कष्ट भुगतने लगे। लोग कहते,’ वह बेचारा बड़ी तकलीफ़ उठा रहा है।’ वे सुनते; बड़े प्रसन्न होते। ऐसा आनन्द और गर्व अनुभव होने लगा कि यदि कहीं कोई काम-धन्धा मिलता तो भी वे नहीं करते। स्वातन्त्र्य-शूर नौकरी कैसे करे? ’विक्टोरिया क्रास’ वाला किसी सेठ के फ़ाटक पर पुरानी वर्दी में चौकीदारी कैसे करे? कुछ दिनों में घाव भर गये और उन्हें देखने वाले कम हो गये। तब उन्होंने अच्छी नौकरी कर ली।
11. आत्मीय की मृत्यु पर सिर मुंड़ाने के और चाहे जो कारण हों, एक यह तो है ही कि दुख स्पष्ट दिखे और उसे समाज में मान्यता मिले।
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