Friday, October 09, 2020

परसाई के पंच-65

 

1. न्याय देवता है। हर देवता भेंट लेता है। अगर भक्त से सीधे भेंट ले तो कोई बात नहीं, पर हर देवता का एक मध्यस्थ होता है- ’मिडिलमैन से कहीं छुटकारा नहीं। न्याय देवता का मिडिलमैन वकील होता है। दुश्मन से छुटकारा मिल सकता है, पर अपने ही वकील से छुटकारा मुश्किल है।
2. एक बार कचहरी चढ जाने के बाद सबसे बड़ा काम है, अपने ही वकील से अपनी रक्षा करना। प्रतिपक्षी से उतना डर नहीं रहता, जितना अपने ही वकील से।
3. सफ़ल डाक्टर वह है जो जो मरीज को न मरने दे, पर इलाज चलता रहे। सफ़ल वकील वह है, जो मुवक्किल को न जीतने दे, न हारने दे, बस मुकदमे चलते रहें। इसीलिये सफ़ल डॉक्टर और सफ़ल वकील के हाथों अपने को सौंपना खतरे से खाली नहीं है।
4. पैसे में बड़ा विटामिन होता है।
5. कुछ लोग स्नेह और सहानुभूति का घड़ा भरकर रखे रहते हैं और आदमी के मरने की राह देखते रहते हैं। इनका हृदय आग बुझाने के लिये पानी से भरी रखी हुई बाल्टी की तरह होता है, जिसका उपयोग तभी होता है, जब आग लगती है। इनका स्नेह और सहानुभूति पाने के लिये आदमी को मरना पड़ता है।
6. सच्चा संवेदन भी जब रूढ हो जाता है, तब वह भावहीन, रिक्त, थोथा रिफ़्लेक्स हो जाता है। बिन बोले का दुख बड़ा कहा गया है, पर अब कोलाहल से दुख की मात्रा नापी जाती है।
7. शवयात्रा में जो तफ़रीहन भी जाय उसका दुख बड़ा गिना जायेगा और जो दुख से टूटकर घर बैठा रहे , उसे निष्ठुर माना जायेगा।
8. नीरो रोता भी समारोह में था। हम सभी छोटे-मोटे नीरो बने जा रहे हैं। जो समारोह में न रोये, उसका रोना, रोना नहीं गिना जायेगा। पहले ’मदनोत्सव’ होते थे, अब ’रुदनोत्सव’ होते हैं। इन रुदनोत्सवों में सच्चा रोने वाला तो रह जाता है, झूठा रोने वाला रंग जमा लेता है।
9. चन्दा खाने वाले के सुभीते के लिये ही गुप्तदान की परम्परा को महत्व मिला है।
10. मांगना तीन प्रकार का होता है –अपने लिये मांगना, अपने समेत दूसरों के लिये मांगना और केवल दूसरों के लिये मांगना। अपने लिये मांगने में लज्जा है, अपने समेत दूसरे के लिये मांगने में एक गर्व है। गांधीजी तीसरे प्रकार के मांगने वाले थे और उन्हें देनेवाला स्वयं गर्वित होता था।
11. आमतौर पर चन्देवाले का स्वागत उसी प्रकार किया जाता है, जिस तरह एक चोर का। यह सामान्य विचार बन गया है कि चन्दा मांगनेवाला बेईमान होता है, वह रकम खा जाता है और काम नहीं करता।

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