1. प्रेम की तरह चुनाव लड़ने की भावना हृदय में अपने-आप पैदा होती है और फिर जैसे प्रेमी को समझाना असम्भव है, वैसे ही उम्मीदवार को भी। दोनों कफ़न का पेशगी इंतजाम कर लेते हैं।
2. एक 'स्टेज' के बाद लेखक साहित्य की जमीन से उड़कर राजनीति, व्यवसाय या नौकरी के पेड़ पर बैठ जाता है।
3. लोभ से कोई अछूता नहीं है। नकारने का कारण हमेशा निर्लोभ ही नहीं होता।
4. देश के इस दौर में हृदय को सही-सलामत रखकर कोई तरक्की नहीं कर सकता। ठेकेदारी सभ्यता की यह बड़ी वैज्ञानिक देन है कि सफल आदमी बन्द हुए हृदय को लेकर भी जिंदा रहता है।
5. डरा हुआ देशभक्त 'बेडरूम' में नहीं पाखाने में छिपता है। 'बेडरूम' में छिपने वाले वीर 18 वी शताब्दी तक होते थे। रनिवास उनका इंतजार करता रहता था कि वीर भागकर अब आये, अब आये।
6. क्रांति करने की तरह ही जरूरी है, क्रांति के शील की रक्षा। असावधानी के कारण दुनिया की कई क्रांतियों का शीलभंग हो चुका है।
7. आंदोलनों की यही 'ट्रेजडी' कभी-कभी हो जाती है। इनके झंडे मुर्दों के हाथ में यह सोचकर दे दिए जाते हैं कि जब चाहेंगे छीन लेंगे -आखिर मुर्दा ही तो है। पर मुर्दा झंडे को जकड़ लेता है और अपने साथ चिता पर ले जाता है। कितने ही झंडे मुर्दो के साथ चिता पर चले गए हैं।
8. इस महान देश में हर पवित्र और पूजनीय चीज दंगे के काम आती है।
9. सुखद यात्रा का एक नुस्खा यह है कि बगलवाले से बातचीत का सम्बंध मत जोड़ो। सम्बन्ध जोड़ा कि वह तुम्हारा चैन हराम कर देगा।
9. चौकन्नापन का टैक्स हर एक को चुकाना पड़ता है। कोई शरीर के स्तर पर चुकाता है, कोई चेतना के स्तर पर। जो इस टैक्स की चोरी कर लेते हैं , वे बड़े सुखी होते हैं।
10. हम छोटी-छोटी चीजों से मरते-जीते हैं। मध्यमवर्गीय आदमी शक्कर के अभाव में गुड़ की चाय पीता है, तो सोचता है, इसके आगे भगतसिंह का बलिदान कुछ नहीं है। अगर भारतवासी 1920 से 1930 तक गुड़ की चाय पीते , तो 1931 में ही देश आजाद हो जाता।
11.इस देश का आम आदमी अपनी ही जमीन से बेदखल कर दिया गया है। वह अपने ही मकान में किराए से रहता है।
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