Wednesday, April 08, 2020

BC/AC मतलब कोरोना के पहले/कोरोना के बाद

 

आज पूरी दुनिया में कोरोना का हल्ला है। जिस तरह से कोरोना ने दुनिया को हिलाया है उससे लगता है आने वाले समय में इतिहास के AC/BC के मायने बदल जाएंगे। ईशा पूर्व/ईशा बाद की जगह आने वाले समय में दुनिया के सारे किस्से कोरोना पूर्व और कोरोना बाद के रूप में दर्ज होंगे। (AC/BC का आइडिया Niraj Kela की कृपा से )
कोरोना ने आदतों में बदलाव लाना शुरू किया है। लपककर गले लगने की जगह ठिठककर मुस्कराना शुरू हुआ है। आदमी बिजली का बोर्ड हो गया है। बिजली का बोर्ड बिना रबर के दास्ताने और जूते पहने नहीं छुआ जाता है। आने वाले समय में लोगों से मुलाकात के लिए एक मीटर की हवा पहनना जरूरी होगा। दूरी हटी, दुर्घटना घटी।
युद्ध के लिए हथियार बनाने वाली आयुध निर्माणियां आज कोरोना से लड़ने के औजार बना रही हैं। करीब 85 हजार लोगों का संगठन और करीब 12-15 हजार करोड़ के टर्नओवर वाला संस्थान अपने क्षमता से अधिक काम कर रहा है। आयुध निर्माणियां 'वार रिजर्व' के हिसाब से बनी थीं, जब युध्द होगा उसके लिए सामान बनाएंगी। आज युध्द शुरू है। दुश्मन हमारा कोरोना है, इसको निपटाना है।
कोरोना के खतरे का एहसास होते ही हमारी निर्माणियां तैयार हो गयीं। सबसे पहले शुरुआत हुई गोला बारूद बनाने वाली फैक्ट्रियों से। सैनिटाइजर बनाया हमारी निर्माणियों ने। ठीक है दुश्मन है कोरोना लेकिन मिलेंगे तो हाथ साफ करके ही। हमको पता है कि हमारी सफाई से ही निपट जाएगा अगला।
इटारसी , भंडारा, खमरिया, वरनगांव, देहरोड, एचईएफ,खड़की और अन्य फैक्ट्रियां जुट गई सैनिटाइजर बनाने में। बनाया और मुफ्त बांटा।
सैनिटाइजर से शुरू हुआ सिलसिला आगे बढ़ा। कटनी ने मास्क बनाया, भुसावल ने स्ट्रेचर दिया। मतलब जिससे जो सम्भव हुआ उसने वह किया। हर निर्माणी में माखनलाल चतुर्वेदी के 'पुष्प की अभिलाषा' समाहित हो गयी है:
"चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जावें वीर अनेक"
कोरोना से लड़ाई की इस कड़ी में हाल यह हुआ है कि नित नए उत्पाद लांच हो रहा है। ट्रिगर दब गया है तो गोलियां चल रही हैं। परमाणु विखण्डन शुरू होता है न तो चेन रिएक्शन होता है। एक परमाणु के बाद दूसरे में ऊर्जा फूटती है वैसे ही एक की देखा-देखी दूसरे में उत्साह आ रहा है।
ओएफसी ने सुबह टेस्टिंग उपकरण बनाया तो उसे देखकर एस ए एफ ने भी बना लिया। भेज दिया कपड़ा फैक्टियों में। करो टेस्ट कपड़ा, बनाओ कवर आल। वेंटिलेटर मेढक फैक्ट्री में बना तो एच वी एफ में भी बनेगा।
कल पता चला कि एमपीटीएफ फैक्ट्री ने एक वेंटिलेटर बनाया है। आईसीयू के वेंटिलेटर की कमी पूरा करेगा यह वेंटिलेटर। निर्माणी के महाप्रबन्धक राजीव कुमार वही हैं जिनकी गोआ प्रवास के दौरान खींची गई फोटो हमारी किताबों में हैं। जब भी जिक्र होता है, रॉयल्टी के पैसों में हिस्सा मांगते हैं। हिस्सा तो तब दिया जाय जब मिले रॉयल्टी। अभी तो कोरोना से मुकाबला करना है।
बात केवल बना के थमा देने तक ही नहीं है। बनेगा तो क्वालिटी वाला। फौरन गुणता के मानक तय होने हैं। मानक कब तक तय होंगे ? पूछा चेयरमैन साहब Hari Mohan जी ने।
कल शाम तक हो जाएंगे सर । -बोले रजत पाल।
कल तक नहीं। आज सोने से पहले इसे करना है। साहब को लगता है कहीं हमारी देरी से कोरोना की लड़ाई में सहयोग में कमी न रह जाये।
नतीजा क्या। हुआ। बना। क्वालिटी स्टैंडर्ड। अब जब क्वालिटी स्टैंडर्ड बना तो निरीक्षण भी होगा कि निर्माणियां मानक स्तर के हिसाब से सामान बना रहीं हैं कि नहीं। फिर क्या हो गए शुरू दौरे निरीक्षण टीमों के। जब पूरा देश लाकडाउन में है, लोग अपने घरों में आरामफर्मा हैं तब हमारे अफसर अपनी निर्माणियों के दौरे के लिए सूनी पड़ी सड़कें नापते हुए निकल रहे हैं। कोई गुनगुना भी रहा होगा -
"हम हैं आयुध निर्माणी के कर्णधार।"
कुछ निर्णानियाँ के सहयोग सामने से दिखते नहीं। लेकिन उनके कारण ही दूसरे लोग दिखने लायक काम कर पा रहे हैं। चंडीगढ़ फैक्ट्री के महाप्रबंधक बीपी मिश्रा ओईएफ ग्रुप की फैक्ट्रियों के लिए फर्मों से सामान का इंतजाम कर रहे हैं शादी-व्याह में भंडारे की चाभी जिम्मेदार आदमी को सौंपी जाती है। मिश्र जी हमारी निर्णानियों का भंडारा सम्भाले हैं । सप्लायर से सामान के लिए तकादा करो तो कहता है -मिश्रा जी जिसको कहेंगे उसको देंगे हम सामान।
मुरादनगर फैक्ट्री के महाप्रबंधक दिल्ली के आसपास की कमान संभाले हुए हैं। दिल्ली , गाजियाबाद और आसपास कोई भी काम हो, मोहंती जी हाजिर हैं अपनी टीम के साथ। मशीन का कोटेशन हो, रहने का इंतजाम हो या कुछ भी। किसी के लिए न नहीं।
हमको कुछ सामान चंडीगढ़ से मंगवाना था। ट्रक नहीं मिला कहीं। हर सप्लायर दाम बढ़ाने और उसको मानने के बाद भी मुकर जाता। हम मोहंती जी की शरण में गए। रात 11 बजे चिट्ठी लिखी। वहाट्सएप पर भेजी। सुबह मुरादनगर के ड्रॉइवर की तैनाती की सूचना मिल गयी मोहंती जी से।
इस बीच सप्लायर ने आश्वासन दिया कि वो सामान भेज देगा अपने ट्रक से। पैसा नकद चाहिए। हम खुश। रोक दिया मोहंती जी को। उन्होंने शुभकामनाएं दी।
लेकिन घण्टे भर में सप्लायर फिर पलट गया। बोला ट्रांसपोर्टर नहीं मान रहा। इन प्राइवेट कंपनियों की असलियत खुल रही है आपात समय में। भरोसे लायक नहीं।
बहरहाल रात को शर्माते हुए फिर कहा मोहंती जी को। उन्होंने फौरन फिर व्यवस्था की। रात में ही चलकर ट्रक अम्बाला पहुंच गए। अब वे निकलेंगे सामान लेने के लिए। यहां शाहजहांपुर तक लाएंगे।
मिसिरजी-मोहंती जी के सहयोग के बिना हम कुछ न कर पाते।
सभी के सहयोग से हम सब बचेंगे। आगे बढ़ेंगे।

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