Monday, May 30, 2011

नेकी कर, अखबार में डाल- आलोक पुराणिक

http://web.archive.org/web/20140419214011/http://hindini.com/fursatiya/archives/2082

नेकी कर, अखबार में डाल- आलोक पुराणिक

करीब चार साल पहले आलोक पुराणिक का साक्षात्कार किया। उनका परिचय लिखते हुये लिखा गया था:
आलोक पुराणिक
jag photo
[आलोक पुराणिक हिंदी व्यंग्य के जाने माने युवा लेखक हैं। गत दस वर्षों से व्यंग्य लेखन में सक्रिय आलोक पुराणिक से जब व्यंग्य लेखन के पहले के कामकाज के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला-'इससे पहले जो करते थे,उसे बताने में शर्म आती है, वैसे पत्रकारिता करते थे,अब भी करते हैं।'३० सितम्बर,१९६६ को आगरा में जन्मे आलोक पुराणिक एम काम,पीएच.डी पिछले दस सालों से दिल्ली विश्वविद्यालय में कामर्स के रीडर हैं।आर्थिक विषयों के लिए अमर उजाला, दैनिक हिंदुस्तान समेत देश के तमाम अखबारों में लेखन, बीबीसी लंदन रेडियो और बीबीसीहिंदी आनलाइन के लिए बतौर आर्थिक विशेषज्ञ काम किया है ।फिलहाल आजादी के बाद के हिंदी अखबारों की आर्थिक पत्रकारिता परियोजना पर काम। हिंदी के तमाम पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य लेखन, जिनमें अमर उजाला, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा,जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, लोकमत,दि सेंटिनल, राज एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, कादिम्बिनी आदि प्रमुख हैं। करीब एक हजार व्यंग्य लेख प्रकाशित। एक व्यंग्य संग्रह नेकी कर अखबार में डाल-2004 में प्रकाशित,जिसके तीन संस्करण पेपर बैक समेत प्रकाशित हो चुके हैं। तीन व्यंग्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। आज तक टीवी चैनल के चुनावी कार्यक्रम-चुनावी कव्वालियां और हैरी वोटर बना रिपोर्टर का स्क्रिप्ट लेखन। सहारा समय टीवी चैनल के कार्यक्रम चुनावी चकल्लस, स्टार न्यूज टीवी चैनल और सब टीवी में कई बार व्यंग्य पाठ कर चुके आलोक पुराणिक पुरस्कारों के बारे में बताते हैं- चूंकि अभी तक कोई पुरस्कार या सम्मान नहीं जुगाड़ पाये हैं,इसलिए अभी तक यह बयान देते हैं कि पुरस्कारों या सम्मान के प्रलोभन से मुक्त होकर लिखा है,पुरस्कार मिलने के बाद कहूंगा कि लेखन की स्तरीयता का अंदाज को पुरस्कार से ही हो सकता है ना।कुछ दिन पहले ही आलोक पुराणिक ने अपना चिट्ठा प्रपंचतंत्र भी शुरू किया था। लेकिन प्रपंच बहुत दिन तक जारी न रह सका। मजबूरन आजकल अपने नामआलोक पुराणिक से खुल कर लिखना शुरू किया और आजकल जबरदस्त हिट भी हो रहे हैं। लगभग साल भर पहले शब्दांजलि पत्रिका के लिये आलोक पुराणिक से हुआ साक्षात्कार आज भी प्रासंगिक है ऐसा मानते हुये उसे यहां पेश कर रहा हूं! ]
बीते चार सालों में आलोक पुराणिक की और कई किताबें आईं। ब्लागिंग में वे नये खोमचे पर आये, नियमित लिखते हुये धीरे-धीरे अनियमित और अब ब्लागिंग में ठप्प हो लिये। लेकिन उनका लेखन नियमित है।
आलोक पुराणिक का व्यंग्य लेख नेकी कर अखबार में डाल जब लिखा गया होगा तब वे ब्लागर न रहे होंगे। अगर कोई ब्लागर इस लेख को लिखता तो शायद इसका शीर्षक होता नेकी कर ब्लाग में डाल
आलोक पुराणिक का साक्षात्कार आप यहां बांच सकते हैं। इस इंटरव्यू को पढकर लगता है कि कभी-कभी एक व्यंग्यकार भी काम की (बहुत ऊंची ) बात कह जाता है। :)

नेकी कर अखबार में डाल

जिधर देखो उधर के दरिया सूखे और गन्दे क्यों नजर आते हैं।
क्योंकि लोगों ने नेकी करना छोड़ दिया है। पहले लोग नेकी करके दरिया में डाल जाते थे। अब लोग जो कर रहे हैं, वही दरिया में डाल रहे हैं। इसलिये दरिया में गन्द-ही-गन्द नजर आ रहा है-
छात्र बहुत तार्किक जवाब दे रहा है।
नेकियां इधर दरियाओं में दिखाई नहीं देतीं। नेकियां अब कहीं और दिखाई देती हैं।
प्रख्यात नेकीबाज सोशलाइट ने साउथ एक्स में कमर पतली करने के सेंटर का उद्घाटन किया- अखबार में नेकी की खबर दिखाई दे रही है।
सुविख्यात सुचर्चित सोशलाइटों ने कोमागाटामारू की विशिष्ट प्रजाति की चिड़िया के संरक्षण के लिये पर्यावरण मन्त्रालय से बीस करोड़ का अनुदान लिया- अखबार में नेकी की दूसरी खबर दिखाई दिखाई दे रही है।
प्रख्यात सोशलाइट ने लक्स द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपनी चमकती त्वचा के राज बताये- अखबार में नेकी एक और खबर दिखाई दे रही है।
अखबार देखो, सोशलाइटों के फ़ोटो देखो, तो लगता है कि नेकियां-ही-नेकियां बरस रही हैं। छात्र गलत कह रहा है कि लोगों ने नेकियां करना छोड़ दिया है। बात यह है कि नेकी करके लोगों ने दरिया में डालना छोड़ दिया है। दरियाओं में नेकियां डालकर कुछ नहीं मिलता। अगर दरिया में डालने के लिये ही नेकी करनी हो, तो फ़िर क्यों करना। अब नया फ़ंडा यह है- नेकी कर, अखबार में डाल। पुराने मुहावरों को रिवाइज कर लिया जाना चाहिये। नेकी करके अब सीधे अखबार के दफ़्तरों में जाना चाहिये। एक बार अखबार में नेकी डल जाये, तो रिटर्न देती है।
अखबार की नेकी रिकार्ड के काम आती है। रिकार्ड के ही खेल हैं। जो रिकार्ड पर है, वही मान्यता प्राप्त है। बाकियों की नेकी बगैर रिटर्न के रह जाती है। रिकार्ड रहित नेकी उन फ़ूलों की तरह होती है, जिनमें कोई खुशबू नहीं आती। मामला अब बदल गया है। फ़ूल हों या न हों, खुशबू आनी चाहिये। मामला अब बदल गया है। फ़ूल हों या न हों, खूशबू आनी चाहिये। बेहतर यह है कि प्लास्टिक के फ़ूल लगाकर ऊपरी खूशबू का इन्तजाम कर लिया जाये। ऐसे फ़ूल परमानेंट रहते हैं। अरसे तक महकायमान रह सकते हैं।
फ़िर जो नेकी रिटर्न न दे उस नेकी का मतलब क्या! फ़िर जो नेकी तत्काल रिटर्न न दे उसका क्या मतलब! आज की नेकी कल के अखबार में न निकले तो मामला भंड है। पुराने जमाने में बताया जाता था कि इधर नेकी करो, रिटर्न ऊपर जाकर मिलेगा। अभी लगाओ, बाद में मिलेगा। पुराने लोग सब्र कर लेते थे। दीर्घकालीन निवेश में भरोसा कर लेते थे। अब जमाना दीर्घकालीन निवेश का नहीं है। अब मामला नकद ट्रान्जेक्शन का है। छात्रों को समझाता हूं-बेटा नेकी के काम करो। लड़कियों का पीछा मत करो। दारू मत पियो, सिगरेट मत पियो। वहां ऊपर इसका रिटर्न मिलेगा। एक दिन एक छात्र ने प्रामाणिक ग्रन्थों के हवाले से बताया कि सर स्वर्ग में सोमरस मिलेगा। स्वर्ग में अप्सरायें मिलेंगी। इस रिटर्न का इतना इंतजार क्यों? यहीं जिन लगा ली, सोमरस हो गया। फ़िर यहां का मामला पक्का है। वहां पता नहीं कि ब्रांड की मिले। क्या पता, अब भी वहां पुरानी टेक्नालाजी हो। वहां पुरानी टेक्नालाजी पीनी पड़ी, तो देशी पीनी पड़ेगी। क्यों घचपच में पड़ना। यहीं लगा लेते हैं। इन्तजार नहीं करते, कैश ट्रांसेक्शन।
अपसराओं के मामले में वहां जाने का इतना इन्तजार क्यों! यहां भी पर्याप्त अप्सरायें हैं। यहां की अप्सराओं से विमुख होकर वहां की अप्सराओं का इन्तजार किया जाये, यह तो यहां की अप्सराओं का अपमान है। एक छात्र ने तमाम तर्कों से यह सिद्ध किया कि अभी निवेश करके भविष्य के रिटर्न का इन्तजार करने वाले मूरख हैं। अक्लमन्द हैं वे, जो तुरन्त तत्काल रिटर्न हासिल कर लेते हैं। इन्तजार क्यों करें, कैश ट्रांसेक्शन।
नेकी कर अखबार में डाल, यह भी पुराना फ़ंडा है। नया फ़ंडा यह है कि नेकी कर या न कर, पर अखबार में जरूर डाल। करने वाले बहुत टहल रहे हैं। अखबार में नहीं डाल पा रहे हैं। जिनकी काबिलियत अखबार में डाल पाने की है, उन्हे नेकी करने की जरूरत नहीं है।
इससे ज्यादा सटीक फ़ंडा और कुछ भी हो सकता है क्या!
आलोक पुराणिक

18 responses to “नेकी कर, अखबार में डाल- आलोक पुराणिक”

  1. भारतीय नागरिक
    अब तो आपको नेकी डालने की भी जरूरत नहीं अखबार वाले अपने आप ही ले लेते हैं.. जाने कितने ब्लागरैयों की नेकियां अखबार में नजर आती हैं…
    ब्लागरैया = ब्लाग रचयिता.
  2. sanjay jha
    टाप्चिक है………….
    पता नहीं……पुराणिकजी को क्षात्रों के निबंध पेपर इरफात में प्रतिदिन कहाँ से मिल जाते हैं……..क्या झक्कास
    लिखते हैं……………बवंडर हैं बवंडर……………..पाठक के लूट ले जाते हैं…………
    घनी प्रणाम.
  3. dr.anurag
    कभी कभी नहीं अक्सर व्यंग्यकार काम की बाते कहते है …..
    dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..वो क्या कहते थे तुम जिसे प्यार !
  4. मानवी मौर्य
    बढ़िया पोस्ट. आलोक जी के लेखन की तो मैं फैन हूँ.
    मानवी मौर्य की हालिया प्रविष्टी..गुदड़ी के लाल- अवधी कविता के सशक्‍त हस्‍ताक्षर
  5. प्रवीण पाण्डेय
    सच कहा, बहुत दिनों से अगड़म बगड़म नहीं पढ़ी है।
  6. Puja Upadhyay
    लगे हाथों कुछ अखबार वालों के नाम और नंबर भी प्रेषित कर दिए जाते तो कितना अच्छा रहता…कहते कि नेकी करने में और अखबार में डालने में ब्लॉग का बहुत बड़ा सहयोग मिला :)
    टनाटन पोस्ट :)
    Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..सो माय लव- यू गेम
  7. देवेन्द्र पाण्डेय
    इसे यहां पोस्ट कर आप ने वाकई नेक काम किया।
    …एक व्यंग्यकार ने दूसरे व्यंग्यकार से परिचय कराया । इस तरह उसने बिरादरी का नाम ऊँचा किया। इसे कहते हैं नेकी का चमत्कार। पोस्ट के लिए स्वीकार करें ..आभार।
  8. राजेंद्र अवस्थी (कांड)
    वाह सर, मस्तिष्क तंतु हिल गए बहुत दिनों के बाद किसी महान हस्ती के दर्शन करने का सौभाग्य आपके द्वारा प्राप्त हुआ, कहने के लिए ज्यादा कुछ नही है क्यों की आपने सब कुछ अपनी पोस्ट में कह दिया है, आदरणीय आलोक जी के बारे में कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान होगा अतः सिर्फ इतना ही कहूँगा, “अद्वितीय”….
    राजेंद्र अवस्थी (कांड) की हालिया प्रविष्टी..राजेंद्र अवस्थी का – हरकांड- आम आदमी
  9. Kajal Kumar
    ़़़़़़अख़बार वाले भी कहां भले …आऱाम से डालने देंगे, आप भल ही लाख नेिकयां कर गुर्र्ाते घूिमये…
  10. shikha varshney
    बड़े सटीक फंडे दे दिए हैं .वैसे अब तो नेकी करके अखबार में डालनी भी नहीं पड़ती अपने आप पड़ जाती है :).
    अलोक जी से परिचय अच्छा लगा.
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..यूँ ही कभी कभी
  11. पंकज उपाध्याय
    आजकल ये थोडा सा बदला है.. नेकी कर, फ़ेसबुक पर डाल… ब्लॉग पर भी :-)
  12. v
    बढिया है.
  13. वंदना अवस्थी दुबे
    बढ़िया है.
  14. Prashant PD
    मुझे याद है आलोक जी कि यह किताब मुझे आपसे ही उपहार में मिली थी..
    वैसे जमाना बहुत तेजी से बदला है इधर.. अब तो जमाना है “नेकी-अनेकी-पानेकी-सनकी.. जो मन में आये कर, और उसे फेसबुक अथवा ब्लॉग पर डाल..” :)
  15. अल्पना
    ब्लॉग्गिंग के शुरूआती दौर [२००७]से ही आलोक जी को पढ़ती आई हूँ .
    उनके किसी छात्र की उत्तर पुस्तिका से सम्बंधित एक पोस्ट आज भी याद है..
    बहुत प्रभावशाली लिखते हैं .
    आभार
  16. Anonymous
    अच्छा लिखा है. सचिन को भारत रत्न क्यों? कृपया पढ़े और अपने विचार अवश्य व्यक्त करे.
    http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com
  17. Zakir Ali Rajnish
    लेकिन आजकल यह मुहावरा हो गया है नेकी कर और ब्‍लॉग में डाल। :)
    ——
    कसौटी पर शिखा वार्ष्‍णेय..
    फेसबुक पर वक्‍त की बर्बादी से बचने का तरीका।
    Zakir Ali Rajnish की हालिया प्रविष्टी..ब्‍लॉगवाणी: मानवता के ‘स्‍पंदन’ ही इंसान हमें बनाते हैं।
  18. फ़ुरसतिया-पुराने लेख

Tuesday, May 24, 2011

एक सुबह कैमरे के साथ

http://web.archive.org/web/20140419215558/http://hindini.com/fursatiya/archives/2020

एक सुबह कैमरे के साथ


पिछले हफ़्ते सबेरे-सबेरे अनवरगंज रेलवे स्टेशन गये। कैमरा साथ लिये गये। सोचा कुछ खैचा-वैंचा जाये। जित्ती खैंची उनमें कुछ फ़ोटो ऐंची-तानी हो गयीं। लेकिन अब भाई फ़ोटो ही तो हैं कोई हीरोइन तो हैं नहीं कि हमेशा सुन्दर दिखें। सोते-जागते। सो हम कहे कोई नहीं आओ। जैसी हो पोस्ट हो जाओ। वैसे भी सौंन्दर्य तो देखने वाले की आंखों में होता है। है न! :)
ये पहला फोटो अनवरगंज रेलवे स्टेशन का है। गाड़ी जाने के बाद कैसा शान्ति दिखता है स्टेशन पर। लेकिन जाने के जरा पहिले देखिये। भागते-दौड़ते लोग। कुछ लोगों को भागते हुये ट्रेन मिल भी जाती है। दौड़ते हुये गाड़ी पकड़ने का सुख कैसा होता है? क्या कोई कवि इस पर कविता लिखा है आज तलक? अगर हमसे कोई कहे तो हम तो फ़ौरन शुरु हो जायेंगे। अरे अभी नहीं भाई! जब कोई कहेगा।

ये दूसरकी फोटो में देखिये ये भाई जी आसमान ताक रहे हैं। क्या सोच रहे होंगे? कोई बता सकता है भला? नयी सुबह इनके लिये क्या लायी होगी! हमने अपनी एक तथाकथित कविता में लिखा था:

सबेरा अभी हुआ नहीं है
लेकिन यह दिन भी सरक गया हाथ से
हथेली में जकड़ी बालू की तरह। अब सारा दिन
फ़िर इसी एहसास से जुझना होगा।

दो साधु जी लोग रेलवे स्टेशन के बाहर सो रहे थे। सुबह हुई तो दरी-चादर तहाकर उठ गये। हम कई कोने से उनकी फोटो लिये लेकिन वह तस्वीर धुंधली ही रही। कविताई मुहावरे में कहा जाये तो इनकी किस्मत की तरह।

आगे देखा तो तमाम लोग सड़क किनारे सोये दिखे। कोई बेंच पर, कोई खटिया पर , कोई गुमटी पर। एक गुमटी पर लिखा था-
लस्सी भतीजे की
गारंटी चाचा की।
ये मामला आजकल की कंपनियों की गारंटी की तरह का है। जिसमें महीन अक्षरों में लिखा रहता है-कंडीशन लागू।

आजकल शहर की सड़कें सीवर लाइनें बिछने के लिये जगह-जगह खुद रही हैं। पूरा शहर राणा सांगा बना हुआ है। खुदाई के पहले सड़क पर सीवर पाइप लाकर रखे हुये हैं। लाइन से रखी सीवर लाइने देखिये। कितनी अनुशासित दिख रही हैं।

सुबह-सुबह मजूर लोग ठेले पर लोहा लादे चले जा रहे हैं। दोपहर में गर्मी बहुत होती है। इसलिये शायद सुबह का समय चुना गया होगा। अब तो कोलतार सड़कों पर उतना पिघलता नहीं। पहले कोलतार दोपहर में पिघलता था। मजूर लोग पैरों में बोरे बांधकर ठेला खींचते थे।

आगे एक मकान में देखा भैंसे मजे से रह रही हैं। खूब पानी का इंतजाम। जगह। शेड। बगल में कार। क्या जलवे हैं भैंसों के भी। :)

जगह-जगह फ़ुटपाथ पर/सड़क पर लोग ईंटों के चूल्हे बनाकर खाना बना रहे थे। रिक्शेवाल जगह-जगह अपने रिक्शों पर सो रहे थे। यह तस्वीर गुमटी के पास की है। गुमटी शहर का मुख्य व्यापारिक/दुकान वाला इलाका है। आसपास के गांवों से रोजी-रोटी के जुगाड़ में लोग कानपुर आते हैं। इसी तरह छोटे-मोटे काम पकड़कर पेट पालते हैं। जिस समय हम बेड टी भी नहीं लेते होंगे उस समय इनका अस्थाई किचन शुरु हो जाता होगा।

एक दम्पति ठेलिया पर कई छोटे-बड़े प्लास्टिक के डब्बों में पानी भरकर अपने घर ले जा रहे थे। पीने के पानी की किल्लत शहरों का भयावह कटु सच है। पीने को पानी उपलब्ध नहीं है और हम विकसित देश कहलाने के आसपास हैं।

आगे सड़क पर तमाम सीवर लाइनों का झमाझम उपयोग देखा। किसी की टिफ़िन सर्विस चालू है। क्या रचनात्मक उपयोग है सड़क के किनारे सीवर लाइन में परिवर्तित होने के लिये प्रतीक्षारत पाइपों का।

लोगों ने अपने-अपने विज्ञापन लगा रखे थे। कोई वोट मांग रहा था । कोई समोसा बेच रहा है।

कैमरे से फोटो खैंचकर साटने का मन अक्सर करता है। लेकिन बड़ा बवाली काम है। जिसकी फोटो खैंचो वो सवाल पूछ लेता है- काहे के लिये खैंच रये हौ? कुछ न कुछ तो करोगे। चचा-भतीजे वाली चाय की गुमटी पर सोते लोगों के आराम में खलल पड़ा तो उन्ने न जाने कित्ते सवाल पूंछ डाले। सारे सवाल-जबाब वहीं पड़ेगे होंगे दुकान के पास। हम केवल फ़ोटू लै आये सो आप देखिये।
एक बुजुर्ग दिखे साइकिल पर। वे कैरियर पर बैठे साइकिल हांक रहे थे। जब तक हम कैमरा फ़ोकस किये तब तक वे सड़क पर आ गये। पदयात्री हो गये। अपने यहां मिनट-मिनट पर तो आदमी स्टैंड बदलता है। अब उनसे कहते कि आप फ़िर से कैरियर वाला पोज दे दीजिये तो उनकी निजता का उल्लंघन होता न। इसई लिये नहिऐ कहा फ़िर। ठीक किया न! :)

37 responses to “एक सुबह कैमरे के साथ”

  1. पंकज उपाध्याय
    - एक बुजुर्ग दिखे साइकिल पर। वे कैरियर पर बैठे साइकिल हांक रहे थे। जब तक हम कैमरा फ़ोकस किये तब तक वे सड़क पर आ गये। पदयात्री हो गये। अपने यहां मिनट-मिनट पर तो आदमी स्टैंड बदलता है।
    - लस्सी भतीजे की, गारंटी चाचा की
    अच्छी तस्वीरें.. वो अंग्रेजी में कहते हैं न कि Kanpur Rejuvenated…
  2. Anonymous
    ये सीवर पाइप तो विज्ञापन के लिए बढ़िया हैं … भगवान करें यही पड़े रहें और बनियों के विज्ञापन के काम तो आयेंगें … भला सीवर वालों का कम से कम बनियों का भला तो कर रहे हैं … इनकी वजह से शहर को महाराणा सांगा की तरह घाव खाना पड़ रहे हैं … फोटो बढ़िया हैं खुली कहानी कह रहे हैं …
  3. सतीश सक्सेना
    फोटू बढ़िया है :-(
    काहे को हर जगह हाथ डाल देते हो गुरु …
  4. देवेन्द्र पाण्डेय
    पहले झटके में तो बेकार लगती है फोटू । राह चलते रोजत दिख जाने वाली। मगर ध्यान से देखे तो हर फोटू में जिंदगी का अलग ही रंग है। हम ठहर कर देखते भी तो नहीं कि जिंदगी कहां ठहरी हुई है, कहां सिसक रही है और कहां बिलख-बिलख कर दम तोड़ना चाहती है ! इतनी फुर्सत किसके पास है ? हर कोई फुरसतिया तो हो नहीं सकता।
  5. विवेक रस्तोगी
    जब फ़ोटो हैंचे तो आपके काँच में से आपकी कार के भी दर्शन हो लिये हैं, ऐसी फ़ोटूबाजी मजा आ गया.. .
    विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..क्या बच्चों को होस्टल में नहीं डालना चाहिये Should not put children in Hostel
  6. Poonam
    पहली बार आई आपके ब्लॉग पर . काफी रोचक लगा.
    ठेठ “कनपुरिया” अंदाज के दर्शन हुए.
    :)
    Poonam की हालिया प्रविष्टी..The Drama Continues !
  7. arvind mishra
    बढियां फिलर आईटम है -मुला असली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा !
    और ऊ मनई दऊवाअ क निहार रहा है -वही कुछ देदे शायद !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..मेरे पति मेरे कामों में बिलकुल भी हाथ नहीं बटाते!
  8. Amit Srivastava
    जिसकी फोटो खींच लेते है ,फिर उसके पास बचता क्या है ,ये आज तक समझ में नहीं आया ????
    पर फोटू खींची कस के है …जबरदस्त ..
    Amit Srivastava की हालिया प्रविष्टी..लॉयल्टी टेस्ट से नार्को टेस्ट तक
  9. राजेंद्र अवस्थी (कांड)
    आदरणीय नमस्कार, फोटो देख कर मजा आ गया, आप तो हरफन मौला है, अभी और ना जाने कितने फन आप के देखने को मिलेंगे..बहुत बढ़िया…
  10. pandey deep
    ये तो आपकी जबरिया सुबह की सैर थी जिसका आपने रचनात्मक उपयोग कर डाला ठीक उसी तरह जैसे सड़क के किनारे पड़े पाइपों का हो रहा है. कुछ तस्वीरें साफ़ नहीं हैं. लगता है की आपके कैमरे को भी सुबह उठाने और सैर पर जाने की आदत नहीं है. बेचारे की आंख ढंग से खुली नहीं होगी :-)))
  11. आशीष 'झालिया नरेश' विज्ञान विश्व वाले
    फोटो धुंधली नहीं आयी है! आपका कैमरा लोगो की निजता का सम्मान कर रहा है!
    दूसरी फोटो में ग्लास उल्टा है अन्यथा पोज का अर्थ कुछ और भी हो सकता था …..
    आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..प्रति पदार्थAnti matter-ब्रह्माण्ड की संरचना भाग ९
  12. ashish rai
    अनवरगंज से अर्मापुर तक अनूप जी के कमरे से जीवन की अनवरत अनावृति . इ देखो कनपुरिया इस्टाईल .एकदम झमाझम फोटू.
  13. प्रवीण पाण्डेय
    एक कैमरे सुबह के साथ।
  14. सतीश चन्द्र सत्यार्थी
    एक शहर की सुबह…..
    चित्र अच्छे हैं.. पर या तो कैमरे की गुणवत्ता खराब थी या फिर प्रदूषण :)
  15. सलिल वर्मा
    तीसरी आँख!!
  16. Anonymous
    लस्सी भतीजे की
    गारंटी चाचा की।
    पोस्ट फुरसतिया की ……… टिपण्णी हरबरिया की……………..
    प्रणाम.
  17. sanjay jha
    लस्सी भतीजे की
    गारंटी चाचा की।
    पोस्ट फुरसतिया की ……… टिपण्णी हरबरिया की……………..
    प्रणाम.
  18. कुआलिटी गुरु
    ई रँग ढँग ठीक नईं यैं, लल्ला !
    लागत है, इलाहाबाद की हवा खा गयै ह्यो !
    काम धाम सबई छोड़ कै सुबह सुवेरे फोटों हींचत घूमत ह्वैं लला ।
    कोऊ पकरौ इननै, कछु खाय वाय के जनौ लाँघि आयें कउनौ बला !

    गुरु कुआलिटी सँवार लियो, पूरी फोटुँआ रघु रॉय किलास की ह्वैं !

    कुआलिटी गुरु की हालिया प्रविष्टी..श्री गधे जी का महत्व – वैशाखी अमावस्या पर
  19. Shikha Varshney
    पूरा हिन्दुस्तान दिखा दिया कैमरे की आँख से.आभार रहेगा.
    Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..खाते पीते घर का
  20. Rekha Srivastava
    अब कुछ दिनों तक कानपुर के हर कोने पर सुबह गुजर ली जाय तो और लोगों को भी कानपुर दर्शन के साथ पूरा विवरण मिल जाय. और भी नायब चीजें हैं जिन्हें कोई नहीं जानता, कानपुर वालों के आलावा. .
  21. Anonymous
    वाह…बढ़िया सैर हो गयी हमारी भी…
    धन्यवाद !!!
  22. मानवी मौर्य
    बहुत अच्‍छी पोस्‍ट। मेरा भी कई बार मन करता है कि कैमरा लेकर निकल पड़ूँ और तरह-तरह की फोटो खींचूँ। मुझे मेजर ए; रैडक्लिफ डगमोर का लेख ‘हन्टिंग बिग गेम विद कैमरा’ याद आ गया। वेसे अपने लखनऊ में पहले ही एक कोई ‘शम्‍सी’ भाई ‘कैमरे वाले लड़के’ के नाम से मशहूर हैं क्‍योंकि वह गले में कैमरा टांगे घूमते रहते हैं और जगह जगह टूटी सड़क पुलिया वगैरह की फोटों खींचकर आरटीआई एप्‍लीकेशन फाइल करते रहते हैं और अधिकारियों की नाक में दम किये हुए हैं। कैमरेबाजी का भी अपना अलग ही आनन्‍द है।
    मानवी मौर्य की हालिया प्रविष्टी..गुदड़ी के लाल- अवधी भाषा के सशक्‍त हस्‍ताक्षर
  23. संतोष त्रिवेदी
    बहुतै नीक लाग कानपुर का सकारे-सकारे घूमना.
    चित्र और शब्द का अद्भुत तालमेल !
  24. ashish
    “क्या कोई कवि इस पर कविता लिखा है आज तलक? अगर हमसे कोई कहे तो हम तो फ़ौरन शुरु हो जायेंगे। अरे अभी नहीं भाई! जब कोई कहेगा।”
    लापतागंज वाले लल्लन जी की बात याद आ गयी , “हमसे किसी ने कहाई नई”
    अरे हम कह रहे है लिखिए ना …………………
    बाकि फोटू सब चकाचक है ,अपने देश के सारे शहरों में सुबह सुबह लगभग एक से नज़ारे होते है स्टेशन जाते या आते समय …… पर फोटू खीचने के विचार आपको ही आ सकते है …….
    –आशीष
  25. अभय तिवारी
    बढि़या है! लगे रहिये!!
    अभय तिवारी की हालिया प्रविष्टी..एक पुरानी गाँठ
  26. Gyan Pandey
    बहुत नगद फोटू हैंचे हय पण्डिज्जी! अऊर लिखे भी, जौन बा, तौन बढ़िँया बा! :)
    Gyan Pandey की हालिया प्रविष्टी..आंधी के बीच – भय और सौन्दर्य
  27. Gyan Pandey
    अरे हमार कमेण्टवा केहर गवा?
    Gyan Pandey की हालिया प्रविष्टी..आंधी के बीच – भय और सौन्दर्य
  28. चंद्र मौलेश्वर
    `ये भाई जी आसमान ताक रहे हैं। क्या सोच रहे होंगे? कोई बता सकता है भला? ‘
    सोच रहे है कि अभी प्रातः का कार्यक्रम निबटना है, इसीलिए तो उकडू बैठे हैं :) बढिया फोटू. सच कहा – ब्यूटी लाइज़ इन द आइज़ ऑफ़ बिहोल्डर ॥
    चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..बयाने-दर्दे-दाँत
  29. मीनाक्षी
    यही तो मेरा देश है….आपने तो जैसे वहीं पहुँचा दिया हो …. बहुत बहुत शुक्रिया
  30. Atul Arora
    कछु साल पहिले हमने भी एक सरकारी दफ्तर में यह ध्रष्टता करके देश विदेश की सुरक्षा व्यवस्था पर लंबा व्याख्यान सुना था , पिछले साल लाल इमली के पास खाकी वर्दी वाले मामू से हडकाए गए फिर से
  31. Abhishek
    कानपुर दर्शन. वाह ! बिठूर होके आइये ना एक दिन भोरे-भोर.
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..तुम नहीं समझोगी !
  32. surendra shukl Bhramar5
    आदरणीय अनूप शुक्ल फुरसतिया जी आप की छवियाँ बहुत कुछ कह गयीं सारा दृश्य सुबह का आपने दिखाया लोगों ने सीवर पाईप में विज्ञापन लिखे जानते हैं न की ये महारानी यहीं सड़क पर रहेंगी भूमिगत तो होने वाली नहीं
    लिखते रहिये भ्राता श्री जब सस्त्र की फैक्ट्री में ही हैं तो आप का कोऊ का करिहैं और फोटू दिखावें रोज रोज
    सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
    भ्रमर का दर्द और दर्पण
    surendra shukl Bhramar5 की हालिया प्रविष्टी..दुःख ही दुःख का कारण है
  33. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    आनंद आ गया जी। ऐसे ही सैर करते जाइए। गंगा किनारे रहने वाले ब्लॉग पोस्ट का जुगाड़ भी घूम-टहलकर कर लेते हैं। जय हो।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..कोलकाता यात्रा का फल
  34. shefali
    ये हुआ न ओरिजनल कानपूर ….हम हैं की रेव में ही अटक जाते हैं …
  35. Manish
    ऐसी फ़ोटुअन से ऐसी मस्त रचना. :) कैमरा तान दो तो सब पूछ लेते हैं कि काहे खींच रहे हो? ;) इतने में रचनात्मकता की खिंच जाती है. :)
    हिम्मत और् सहनशीलता भरा काम है. :)
    Manish की हालिया प्रविष्टी..प्रेम : “आओ जी”
  36. Devanshu Nigam
    लस्सी भतीजे की
    गारंटी चाचा की।
    बहुत अलग है कानपूर …..
    Devanshu Nigam की हालिया प्रविष्टी..मोड़ पे बसा प्यार…
  37. फ़ुरसतिया-पुराने लेख