Tuesday, August 30, 2005

इस तरह जिया यारों…


http://web.archive.org/web/20110925220423/http://hindini.com/fursatiya/archives/38

सूखे अधरों पर राग मल्हार लिये ,घूमे
टूटे मन में ,मादक संसार लिये घूमे
हमने तो यह जीवन इस तरह जिया यारो
हम खाली जेबों में बाजार लिये घूमे ।
हम शब्द,रूप ,रस,गन्ध, परस के आराधक
जिसकी हर सिद्धि कलंकित है ऐसे साधक
ऊपर वाले ने इतनी मस्ती दी हमको
हो गये स्वयं हम ही अपनी गति में बाधक।
भीगी पलकों पर बाग -बहार लिये घूमे
हम बिना बही-खाता व्यापार लिये घूमे
हमने तो यह जीवन इस तरह जिया यारों
बकवासों में वेदों का सार लिये घूमे।
बचपन से ही हम जिये विरोधाभासों में
भूखे भी सोये, तो -शाही अहसासों में
फुटपाथों पर चलने की अनुमति थी हम पर
पर ध्यान हमारा फिरा सात आकाशों में ।
गाली के बूते पर व्यवहार लिये घूमे
अपमानित हो-होकर आभार लिये घूमे
हमने तो यह जीवन इस तरह जिया यारों
जीवन भर हम-जीवन का भार लिये घूमें।
-कन्हैयालाल बाजपेयी
कानपुर।


फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

6 responses to “इस तरह जिया यारों…”

  1. प्रत्यक्षा
    वाह ! क्या बात है……
    आँखों में सपने चार लिये घूमे
    सपनों में सोने सा संसार लिये घूमे
    हमने तो जीवन इसतरह जिया यारों
    दिल में ही घर बार लिये घूमे..
    प्रत्यक्षा
    .
  2. Laxmi N. Gupta
    बहुत सुन्दर. बाजपेयी जी को बधाई.
    लक्ष्मीनारायण
  3. kali
    wah wah ! yeh kavita to main 4 baar padh chuka hun aur 4 baar aur padhunga. infact is per to main aapne blog se link bhi karunga. saabas fursatiya ekdum fursat main dhoondi hai yeh kavita.
  4. indra awasthi
    बहुत बढिया कविता. लाजवाब
  5. manoj jha
    ईस क
  6. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] 1.संस्कार कैसे छोड़ दिये जायें ? 2.अधूरे कामों का बादशाह 3.हैरी का जादू बनाम हामिद का चिमटा 4.अंधकार की पंचायत में सूरज की पेशी 5.ईदगाह अपराधबोध की नहीं जीवनबोध की कहानी है 6.ऐ मेरे वतन के लोगों 7.उनका डर 8.फुरसतिया:कुछ बेतरतीब यादें 9.आशा का गीत-गोरख पांडेय की कवितायें 10.सुभाषित वचन-ब्लाग,ब्लागर,ब्लागिंग 11.इस तरह जिया यारों… [...]

Friday, August 26, 2005

सुभाषित वचन-ब्लाग,ब्लागर,ब्लागिंग

http://web.archive.org/web/20110925123253/http://hindini.com/fursatiya/archives/36

Akshargram Anugunj
१.ब्लाग दिमाग की कब्ज़ और गैस से तात्कालिक मुक्ति का मुफीद उपाय है।
२.ब्लाग पर टिप्पणी सुहागन के माथे पर बिंदी के समान होती है।
३.टिप्पणी विहीन ब्लाग विधवा की मांग की तरह सूना दिखता है।
४.अगर आप इस भ्रम का शिकार हैं कि दुनिया का खाना आपका ब्लाग पढ़े बिना हजम नहीं होगा तो आप अपना अगली सांस लेने के पहले ब्लाग लिखना बंद कर दें। दिमाग खराब होने से बचाने का इसके अलावा कोई उपाय नहीं है।
५.अनावश्यक टिप्पणियों से बचने के लिये किये गये सारे उपाय उस सुरक्षा गार्ड को तैनात करने के समान हैं जो शोहदों से किसी सुंदरी की रक्षा करने के लिये तैनात किये जाते हैं तथा बाद में सुरक्षा गार्ड सुंदरी को उसके आशिकों तक से नहीं मिलने देता।
६.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे।
७.किसी पोस्ट पर आत्मविश्वासपूर्वक सटीक टिप्पणी करने का एकमात्र उपाय है कि आप टिप्पणी करने के तुरंत बाद उस पोस्ट को पढ़ना शुरु कर दें। पहले पढ़कर टिप्पणी करने में पढ़ने के साथ आपका आत्मविश्वास कम होता जायेगा।
८.अगर आपके ब्लाग पर लोग टिप्पणियां नहीं करते हैं तो यह मानने में कोई बुराई नहीं है कि जनता की समझ का स्तर अभी आपकी समझ के स्तर तक नहीं पहुंचा है। अक्सर समझ के स्तर को उठने या गिरने में लगने वाला समय स्तर के अंतर के समानुपाती होता है।
९.जब आप किसी लंबी पोस्ट को बाद में इत्मिनान से पढ़ने के लिये सोचते हैं तो उस पोस्ट की हालत उस अखबार जैसी ही होती है जिसे आप कोई अच्छा लेख पढ़ने के लिये रद्दी के अखबारों से अलग रख लेते हैं लेकिन समय के साथ वह अखबार भी रद्दी के अखबारों में मिलकर ही बिक जाता है-अनपढ़ा।
१०.जब आप कोई टिप्पणी करते समय उसे बेवकूफी की बात मानकर ‘करूं न करूं’ की दुविधा जनक हालत में ‘सरल आवर्त गति’ (Simple Hormonic Motion) कर रहेहोते हैं उसी समयावधि में हजारों उससे ज्यादा बेवकूफी की टिप्पणियां दुनिया की तमाम पोस्टों पर चस्पाँ हो जाती हैं।
११.अगर आपके ब्लाग जलवा पूरी दुनिया में फैला हुआ है तथा कोई आपकी आलोचना करने वाला नहीं है तो यह तय है कि या तो आपने अपने जीवनसाथी को अपना लिखा पढ़ाया नहीं या फिर जीवनसाथी को सुरक्षा कारणों से पढ़ने-लिखने से परहेज है।
१२. अगर आप अपने जीवन साथी से तंग आ चुके हैं तथा उससे निपटने का कोई उपाय आपको समझ में नहीं आ रहा तो आप तुरंत ब्लाग लिखना शुरु कर दीजिये।
१३.नियमित,हरफनमौला तथा बहुत धाकड़ लिखने वाले ब्लाग पढ़ने के बाद अक्सर यह लगता है कि ‘लिंक लथपथ’ यह ब्लाग पढ़ने से अच्छा है कि कोई अखबार पढ़ते हुये कोई बहुत तेज चैनेल क्यों न देखा जाये।
१४.’कामा-फुलस्टाप’,'शीन-काफ’ तक का लिहाज रखकर लिखने वाला ‘परफेक्शनिस्ट ब्लागर’ गूगल की शरण में पहुंचा वह ब्लागर होता हैं जिसने अपना लिखना तबतक के लिये स्थगित कर रखा होता है जब तक कि ‘कामा-फुलस्टाप’ ,’शीन-काफ’ को ‘यूनीकोड’ में बदलने वाला कोई ‘साफ्टवेयर’ नहीं मिल जाता।
१५.अनजान टिप्पणियां अक्सर खुदा के नूर की तरह होती हैं जो आपको तब भी राह दिखाती हैं जबकि आप चारो तरफ से प्रशंसा के कुहासे में घिरे होते हैं।
१६. अगर आप अपने ब्लाग पर हिट बढ़ाने के लिये बहुत ही ज्यादा परेशान हैं तो तमाम लटके-झटकों का सहारा छोड़कर किसी चैट रूम में जाकर उम्र,लिंग,स्थान की बजाय अपने ब्लाग का लिंक देना शुरु कर दें।
१७.अगर आप अपना ब्लाग बिना किसी अपराध बोध के बंद करना चाहते हैं तो किसी स्वनाम धन्य लेखक को अपने साथ जोड़ लें।
१८. अच्छा लिखने वाले की तारीफ करते रहना आपकी सेहत के लिये भी जरूरी है। तारीफ के अभाव में वह अपना ब्लाग बंद करके अलग पत्रिका निकालने लगता है। तब आप उसकी न तारीफ कर सकते हैं न बुराई।
१९.ऊटपटांग लिखने वाले का अस्तित्व आपके बेहतरीन लिखने का खुशनुमा अहसास बनाये रखने के निहायत जरूरी है। घटिया लिखने वाला वह नींव की ईंट है जिसपर आपका बढ़िया लिखने के अहसास का कगूंरा टिका होता है।
२०. बहुत लिखने वाले ‘ब्लागलती’ को जब कुछ समझ में नहीं आता तो वह एक नया ब्लाग बना लेता है,जब कुछ-कुछ समझ में आता है तो टेम्पलेट बदल लेता है तथा जब सबकुछ समझ में आ जाता है तो पोस्ट लिख देता है। यह बात दीगर है कि पाठक यह समझ नहीं पाता कि इसने यह किसलिये लिखा!
२१. जब आपका कोई नियमित प्रशंसक,पाठक आपकी पोस्ट पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त करता तो निश्चित मानिये कि वो आपकी तारीफ में दो लाइन लिखने की बजाय बीस लाइन की पोस्ट लिखने में जुटा है। उन बीस लाइनों में आपकी तारीफ में केवल लिंक दिया जाता है जो कि अक्सर गलती संख्या ४०४(HTML ERROR-404) का संकेत देता है।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

19 responses to “सुभाषित वचन-ब्लाग,ब्लागर,ब्लागिंग”

  1. जीतू
    कुछ हमारी तरफ से भी जोड़ लीजिये….
    ब्लागिंग का सिद्दान्त “टिप्पणी दो टिप्पणी पाओ” के पारस्परिक विनिमय पर चलता है.
    यदि शुक्ला जी बहुत बार भी चैट पर आपके मैसेज का जवाब ना दे, तो यकीन मानिये वे नयी पोस्ट के ड्राफ्ट लिख लिख कर मिटा रहे होंगे.
    यदि आप ये सोचते है कि आप तभी लिखेंगे जब कोई विषय आपके सामने आयेगा, तो जनाब आपमे साहित्यकार वाले गुण है, ये ब्लागिंग व्लागिंग आपके बस की नही.
    ब्लाग की टिप्पणिया कई तरह की होती है, इस पर काफी शोध किया जा चुका है, लिंक ये रहा.
    http://www.jitu.info/merapanna/?p=113
  2. विनय
    हा हा हा..
    हा हा हा हा….
  3. विनय
    मेरी पिछली (और इस) टिप्पणी के बारे में स्पष्टीकरण चाहें तो सुभाषित सं. १० देखें।
    उफ़्फ़.. हा हा..
  4. देबाशीष
    Anup bhai bahut badhiya :) Bindu kramank: 14 aur 18 ka ishaara samajh gaya hoon, jaldi hi phir likhna shuru karta hoon. Kasam se ;)
  5. अनुनाद
    इनको सुभाषिते की श्रेणी में रखा जाय या भौंकाच की ?
    अनुनाद
  6. अनुनाद
    ..जरा ठीक करके पढा जाय ..
    १) उपर की गयी टिप्पणी में “सुभाषिते ” की जगह “सुभाषित” पढा जाय |
    २) ब्लाग पर की गयी टिप्पणी और धनुष से निकला हुआ वाण वापस नहीं लिये जा सकते |
  7. पंकज नरुला
    मिंया जी यह तो ब्लॉगिंग के नियम हो गए जैसे आइसेक एसीमोव के रोबिटिक्स के नियम हैं। भई इस की तो प्रतियोगिता होनी चाहिए कि कौन सा नम्बर वन है और कौन नम्बर दो।
    पंकज
  8. Sunil
    अनूप जी, यह सुभाषित अभी तक के सभी सुभाषितों से अच्छे लगे. ६ नम्बर से मैं पूरी तरह सहमत हूँ. सुनील
  9. Laxmi N. Gupta
    फुरसतिया जी,
    पोस्ट पढ़ने के बा टिप्पणी लिख रहा हूँ इसलिये आत्मविश्वास कुछ कम है नियम ७ के मुताबिक। थोड़ा सा ज़ुकाम हो रहा था। पोस्ट पढ़ने के बाद ऐसा हँसी का दौर आया कि हमारे कनपुरिया मुहावरे में तबीयत झक्क होगयी। आप भी तो शायद कनपुरिया हैं। ऐसे ही लिखतेउ रहौ, ऐसे ही बतियाव।
    लक्ष्मीनारायण
  10. रवि
    यह तो वाक़ई झन्नाट (मालवा में, तेज मिर्च युक्त, गर्म कचोरी (कचौड़ी?, समोसा जैसा) पर ऊपर से छेद कर उसमें कड़ाही का गर्म तेल डालने के बाद, उसे हरीमिर्च-हरीधनिया की उतनी ही तेज चटनी के साथ जब परोसा जाता है, तो उसे झन्नाट कचोरी कहते हैं) है!
    मज़ा आ गया. सी… सी…
  11. छींटे और बौछारें » क्या आपने खाया है गब्बर सिंह का झन्नाटे दार…
    [...] ��ो रही हैं. मालवी-झन्नाट की परिभाषा यहाँ देखें, और इस चित्र को देखते हुए का� [...]
  12. अक्षरग्राम  » Blog Archive   » नारद जी व्यस्त हैं
    [...] �� देना न भूलें आखिर इस प्रविष्टि की सूनी माँग(नियम २,३) भी तो भरनी है। साथ ही आज� [...]
  13. श्रीश । ई-पंडित
    यह तो मरफी के टिप्पणी के नियम लगते हैं।
    एक नियम हमारी तरफ से भी:
    अगर आपने फुरसतिया जी की पोस्ट पढ़कर भी टिप्पणी नहीं की तो या तो पोस्ट फुरसतिया जी ने नहीं लिखी या आप को टिप्पणी करना नहीं आता। :)
  14. फुरसतिया » मोहल्ले की प्रकृति और नारद
    [...] जब उपरोक्त बात को बेवकूफी की बात मानकर मैंने लिखना स्थगित किया तो मुझे ब्लाग,ब्लागर,ब्लागिंग के अपनेसुभाषित याद आ गये। इसमें मैंने लिखा था- जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे। [...]
  15. फुरसतिया » हर सफल ब्लागर एक मुग्धा नायिका होता है
    [...] बहरहाल, इतना लिखते-लिखते हमारे अंदर की मुग्धा नायिका अलसाती अंगड़ाई लेती हुयी उठ खड़ी हुयी। हम अपनी एक पोस्ट को दुबारा देखने लगे। इसमें मैंने ब्लाग, ब्लागर, ब्लागिंग पर कुछ सुभाषित लिखे थे। इनको रविरतलामीजी ने झन्नाट कहा था। मुग्धा नायिका जितनी बार दर्पण में अपना सौन्दर्य देखकर रीझती है उतनी बार थोड़ी क्रीम, पाउडर और पोत लेती है। इसी तरह हमने इसमें कुछ सुभाषित और जोड़े हैं। आप इनको देखें- [...]
  16. टिप्पणी एवं टिप्पणीशास्त्र | सारथी
    [...] पहली दौर के कुछ लेख: ब्लाग पर टिप्पणी का महत्व किलकाती टिप्पणियाँ… अपना ब्लॉग बेचो रे भाई अपने ब्लाग की टी आर पी कैसे बढ़ायें सुभाषित वचन-ब्लाग, ब्लागर, ब्लागिंग पुनि पुनि बोले संत समीरा तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाऊँ टिप्पणी-निपटान की जल्दी चिठ्ठे का टी आर पी रेडीमेड टिप्पणियाँ हिंदी में चिट्ठाकारी के कारण पर विचार पीठ खुजाना: पारस्परिक टिप्पणी टिप्पणियों के जुगाड़ कभी कभी अनहिट, निर्लिंक व टिप्‍पणीशून्‍य भी लिखें [...]
  17. टिप्पणी: एक सेमीफायनल चर्चा 001 | सारथी
    [...] पहली दौर के कुछ लेख: कवि: क्यूँ, कैसे और आप ब्लाग पर टिप्पणी का महत्व किलकाती टिप्पणियाँ… अपना ब्लॉग बेचो रे भाई अपने ब्लाग की टी आर पी कैसे बढ़ायें सुभाषित वचन-ब्लाग, ब्लागर, ब्लागिंग पुनि पुनि बोले संत समीरा तू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी पीठ खुजाऊँ टिप्पणी-निपटान की जल्दी चिठ्ठे का टी आर पी रेडीमेड टिप्पणियाँ हिंदी में चिट्ठाकारी के कारण पर विचार पीठ खुजाना: पारस्परिक टिप्पणी टिप्पणियों के जुगाड़ कभी कभी अनहिट, निर्लिंक व टिप्‍पणीशून्‍य भी लिखें [...]
  18. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] 9.आशा का गीत-गोरख पांडेय की कवितायें 10.सुभाषित वचन-ब्लाग,ब्लागर,ब्लागिंग 11.इस तरह जिया [...]

Tuesday, August 23, 2005

आशा का गीत-गोरख पांडेय की कवितायें


http://web.archive.org/web/20110925123200/http://hindini.com/fursatiya/archives/35
गोरख पांडेय
गोरख पांडेय
पिछली पोस्ट में गोरख पांडेय के बारे में पूछा था-अनामजी ने। गोरख पांडेय संवेदनशील ,जनता के कवि माने जाते हैं। आम जनता की आवाज उनकी कविता का मूल स्वर है।

उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में १९४५ को जन्मे गोरख पांडेय ने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से साहित्याचार्य हुये। वहां के छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे। १९७३ में काशी हिंदू विशश्वविद्यालय से एम.ए.(दर्शन शास्त्र) । ‘धर्म की मार्क्सवादी धारणा’ शीर्षक लघु शोध प्रबंध।
१९६९ से ही नक्सलबाड़ी आंदोलन के प्रभाव में हिंदी कविता की अराजक धारा से अलगाव,किसान आंदोलन से प्रत्यक्ष जुड़ाव,ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यकर्ता के बतौर कामकाज। इलाहाबाद,बनारस ,लखनऊ मुख्य गतिविधि के क्षेत्र ।आंदोलन के लिये अनेक गीत,कवितायें लिखीं।नये चेहरों को जोड़ा।
१९७० के बाद वाले दशक में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘ज्याँ पाल सात्र के अस्तित्वबाद में अलगाव के तत्व ‘ पर शोध-प्रबंध प्रस्तुत किया।१९८३ में ‘जागते रहो सोने वालों’ शीर्षक काव्य -संग्रह प्रकाशित।१९८५ में ‘जन संस्कृति मंच ‘के संस्थापक महासचिव ।
दिमागी बीमारी सिजोफ्रेनिया से परेशान होकर२९ जनवरी,१९८९ को जवाहरलाल विश्वविद्यालय,दिल्ली में आत्महत्या कर ली।उस समय वे विश्वविद्यालय में रिसर्च एसोसियेट थे।
मृत्यु के बाद कविता संग्रह ‘स्वर्ग से विदाई’(१९८९) कविता व गद्य चयन ‘लोहा गरम हो गया है’ (१९९०) जन संस्कृति मंच द्वारा प्रकाशित।
गोरख पांडेय की कुछ कवितायें यहां दी जा रही हैं।
१.आशा का गीत
आयेंगे ,अच्छे दिन आयेंगे
गर्दिश के दिन कट जायेंगे
सूरज झोपड़ियों में चमकेगा
बच्चे सब दूध में नहायेंगे
सपनों की सतरंगी डोरी पर
मुक्ति के फरहरे लहरायेंगे।
२. तुम्हें डर है
हज़ार साल पुराना है उनका गुस्सा
हज़ार साल पुरानी है उनकी नफरत
मैं तो सिर्फ़
उनके बिखरे हुये शब्दों को
लय और तुक के साथ
लौटा रहा हूं
तुम्हें डर है कि मैं
आग़ भड़का रहा हूं।
३. आंखें देखकर
ये आंखें तुम्हारी
तक़लीफ का उमड़ता हुआ समंदर
इस दुनिया को
जितनी जल्दी हो
बदल देना चाहिये।
४.बंद खिड़कियों से टकराकर
घर-घर दीवारे हैं
दीवारों में बंद खिड़कियां हैं
बंद खिड़कियों से टकराकर
अपना सिर
लहूलुहान गिर पड़ी वह
नई बहू है, घर की लक्ष्मी है
इनके सपनों की रानी है
कुल की इज्ज़त है
आधी दुनिया है
जहां अर्चना होती उसकी
वहां देवता रमते हैं
वह सीता है सावित्री है
वह जननी है
स्वर्गादपि गरीयसी है
लेकिन बंद खिड़कियों से टकराकर
अपना सिर
लहूलुहान गिर पड़ी वह।
क़ानून समान है
वह स्वतंत्र भी है
बड़े बड़ों की नज़रों में तो
धन का एक यंत्र भी है वह
भूल रहे वे
सबके ऊपर वह मनुष्य है
उसे चाहिये प्यार
चाहिये खुली हवा
लेकिन बंद खिड़कियों से टकराकर
अपना सिर
लहूलुहान गिर पड़ी वह।
चाह रही है वह जीना
लेकिन घुट-घुटकर मरना भी
क्या जीना?
घर-घर में श्मशान घाट हैं
घर-घर में फांसी- घर हैं
घर-घर में दीवारें हैं
दीवारों से टकराकर
गिरती है वह
गिरती है आधी दुनिया
सारी मनुष्यता गिरती है
हम जो ज़िंदा हैं
हम सब अपराधी हैं
हम दंडित हैं।
५.सच्चाई
मेहनत से मिलती है
छिपाई जाती है स्वार्थ से
फिर,मेहनत से मिलती है।
६.समकालीन
कहीं चीख़ उठी है अभी
कहीं नाच शुरु हुआ है अभी
कहीं बच्चा पैदा हुआ है अभी
कहीं फौजें चल पड़ीं हैं अभी।
७ .भेड़िया
i)पानी पिये
नदी के उस पार या इस पार
आगे-नीचे की ओर
या पीछे और ऊपर
पिये या न पिये
जूठा हो ही जाता है पानी
भेड़ गुनहगार ठहरती है
यकीनन भेड़िया होता है
ख़ून के स्वाद का तर्क।
ii)शेर जंगल का राजा है
भेड़िया क़ानून -मंत्री
ताक़तवर और कमज़ोर के बीच
दंगल है
जगह-जगह बिखरे पड़े हैं
खून के छींटे
और हड्डियां
जंगल में मंगल है।
iii)भेड़िया गुर्राता है
ध्यान से सुनकर
आत्मा की आवाज़
भेड़ को खा जाता है।
iv)शिकार पर निकला है भेड़िया
भूगोल के अंधेरे हिस्सों में
भेड़ की खाल ओढ़े
जागते रहो, सोने वालों
भेड़िये से बच्चों को बचाओ।
८.समाजवाद
समाजवाद बबुआ,धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
हाथी से आई
घोड़ा से आई
अगरेजी बाजा बजाई समाजवाद…
नोटवा से आई
वोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई,समाजवाद…
गांधी से आई
आंधी से आई
टुटही मड़इयो उड़ाई, समाजवाद…
कांग्रेस से आई
जनता से आई
झंडा के बदली हो जाई, समाजवाद…
डालर से आई
रूबल से आई
देसवा के बान्हे धराई, समाजवाद…
वादा से आई
लबादा से आई
जनता के कुरसी बनाई, समाजवाद…
लाठी से आई
गोली से आई
लेकिन अहिंसा कहाई, समाजवाद…
महंगी ले आई
ग़रीबी ले आई
केतनो मजूरा कमाई, समाजवाद…
छोटका के छोटहन
बड़का के बड़हन
बखरा बराबर लगाई, समाजवाद…
परसों ले आई
बरसों ले आई
हरदम अकासे तकाई, समाजवाद…
धीरे -धीरे आई
चुपे-चुपे आई
अंखियन पर परदा लगाई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई।
९.मेहनतकशों का गीत
किसकी मेहनत और मशक्कत
किसके मीठे-मीठे फल हैं?
अपनी मेहनत और मशक्कत
उनके मीठे-मीठ फल हैं।
किसने ईंट-ईंट जोड़ी है
किसके आलीशान महल हैं?
हमने ईंट-ईंट जोड़ी है
उनके आलीशान महल हैं।
आज़ादी हमने पैदा की
क्यों गुलाम हैं ,क्यों निर्बल हैं?
धन-दौलत का मालिक कैसे
हुआ निकम्मों का दल है?
कैसी है यह दुनिया उनकी
कैसा यह उनका विधान है?
उलटी है यह दुनिया उनकी
उलटा ही उनका विधान है।
हम मेहनत करने वालों के
ही ये सारे मीठे फल हैं
ले लेंगे हम दुनिया सारी
जान गये एका में बल है।
१०.समझदारों का गीत
हवा का रुख कैसा है,हम समझते हैं
हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं,हम समझते हैं
हम समझते हैं ख़ून का मतलब
पैसे की कीमत हम समझते हैं
क्या है पक्ष में विपक्ष में क्या है,हम समझते हैं
हम इतना समझते हैं
कि समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं।
चुप्पी का मतलब भी हम समझते हैं
बोलते हैं तो सोच-समझकर बोलते हैं हम
हम बोलने की आजादी का
मतलब समझते हैं
टुटपुंजिया नौकरी के लिये
आज़ादी बेचने का मतलब हम समझते हैं
मगर हम क्या कर सकते हैं
अगर बेरोज़गारी अन्याय से
तेज़ दर से बढ़ रही है
हम आज़ादी और बेरोज़गारी दोनों के
ख़तरे समझते हैं
हम ख़तरों से बाल-बाल बच जाते हैं
हम समझते हैं
हम क्योंबच जाते हैं,यह भी हम समझते हैं।
हम ईश्वर से दुखी रहते हैं अगर वह
सिर्फ़ कल्पना नहीं है
हम सरकार से दुखी रहते हैं
कि समझती क्यों नहीं
हम जनता से दुखी रहते हैं
कि भेड़ियाधसान होती है।
हम सारी दुनिया के दुख से दुखी रहते हैं
हम समझते हैं
मगर हम कितना दुखी रहते हैं यह भी
हम समझते हैं
यहां विरोध ही बाजिब क़दम है
हम समझते हैं
हम क़दम-क़दम पर समझौते करते हैं
हम समझते हैं
हम समझौते के लिये तर्क गढ़ते हैं
हर तर्क गोल-मटोल भाषा में
पेश करते हैं,हम समझते हैं
हम इस गोल-मटोल भाषा का तर्क भी
समझते हैं।
वैसे हम अपने को किसी से कम
नहीं समझते हैं
हर स्याह को सफे़द और
सफ़ेद को स्याह कर सकते हैं
हम चाय की प्यालियों में
तूफ़ान खड़ा कर सकते हैं
करने को तो हम क्रांति भी कर सकते हैं
अगर सरकार कमज़ोर हो
और जनता समझदार
लेकिन हम समझते हैं
कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं
हम क्यों कुछ नहीं कर सकते हैं
यह भी हम समझते हैं।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

16 responses to “आशा का गीत-गोरख पांडेय की कवितायें”

  1. अनाम
    बहुत मार्मिक कविताएं हैं। यहाँ प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद! सारी तो नहीं पढ़ पाया आज, पर जो भी पढ़ीं बहुत ही अच्छी हैं। समाजवाद वाली कविता पहले भी कहीं पढ़ी है, बाक़ी सब ताज़ी थीं।
    यह सब संकलन आया कहां से आपके पास?
  2. रवि कामदार
    मुझे हिन्दी कवियो के बारे मे बहुत पता नहि हे क्योकि स्कूल मे बहुत हिन्दी पढ्ने मे नहि आयी. मै गुजराती माध्यम मे पढा हु शायद इसी लिये. किन्तु मुझे प्रेमचन्द जी के लेख अछ्हे लगते थे. कोइ वह सारे लेख लाकर दे तो अछ्हा है.
  3. प्रत्यक्षा
    “तुम्हे डर है” बहुत बहुत अच्छी लगी….
    प्रत्यक्षा
  4. Rajesh Kumar Singh
    प्रियवर,
    कविता नम्बर दस (शीर्षकः समझदारों का गीत) , अंतिम सात पंक्तियों की प्रारम्भिक तीन पंक्तियाँ दोहरायी जा रही हैं। वो ऐसे , कि ,इन्हीं पंक्तियों से मिलती-जुलती पंक्तियों के बारे में वर्णन करते हुए , ठेलुहई के पीठाध्यक्ष श्री इन्द्र अवस्थी अपने चिठ्ठे “सौ में नब्बे बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान ” में लिखते हैं , कि , ” गोपाल सिंह कहते हैं ;
    करने को तो हम भी कर सकते हैं क्रांति
    अगर सरकार हो कमज़ोर
    और जनता समझदार”
    तो, सवाल और बवाल यह है , कि इन पंक्तियों की कापीराइट किस के पास है ?
    मेरे ख्याल से , नाम को ले कर , श्रीयुक्त इन्द्र जी को गलतफहमी हुई है । पढ़ने वालों को , हालाँकि , नाम से बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है , फिर भी , किसी एक स्थान पर , संशोधन आवश्यक है (चाहे यहाँ या वहाँ)।
    -राजेश
    (सुमात्रा)
  5. indra awasthi
    शुकुल को हम अथारिटी मानते हैँ कापीराइट को टोपने मेँ, इसलिये मानते हैँ कि कविता गोरख जी की ही होगी
    ठाकुर को धन्यवाद सजगता के लिये
  6. अनाम
    कामदार जी, प्रेमचन्द जी की कुछ रचनायें यहाँ उपलब्ध हैं (इस पृष्ठ के बिल्कुल अंत में कड़ियाँ हैं): http://webdunia.com/literature/story/
  7. रवि कामदार
    धन्यवाद अनाम जी.अब मजे लून्गा.
  8. Sunil
    अनूप जी, गौरख पाँडे जी की कविता “उनका डर” का इतालवी अनुवाद मैंने अपने इतालवी के चिट्ठे http://www.kalpana.it/ita/blog/ पर २१ अगस्त को दिया. सुनील
  9. Neearj Sharma
    Hallo! To all of you.
    Today i have seen first time this site, but it is really interesting. Following poem are true picture of real india And it is really a picture of mass .
  10. Shrey tulsian
    bekaar kavitain. padhkar bor ho gaye
  11. अईसी कान्फ़िडेंट डेमोक्रेसी और कहां?
    [...] गोरख पांडेय [...]
  12. arthmedianetwork.com
    arthmedianetwork.com
  13. helloraipur
    helloraipur