Wednesday, December 26, 2007

कुछ टिप्पणी चर्चा

http://web.archive.org/web/20140419214548/http://hindini.com/fursatiya/archives/386

कुछ टिप्पणी चर्चा

कुछ दिन पहले श्रीलाल शुक्लजी के बारे में लिखी एक पोस्ट पर नितेश एस. जी की यह टिप्पणी थी-
हिन्दी मे इतना जबरदस्त माल नेट पर उपलब्ध है, सोचा न था. ज्ञानदत्त जी और आप सभी के ब्लोग्स को कुछ ही दिन पहले नारद द्वारा देखने का मौका मिला.तिस पर शुक्ल जी के रागदरबारी के बारे में पड़ कर, हिन्दी साहित्य का मेरा पुराना सोया हुआ कीडा फिर जाग्रत हो गया है.
रागदरबारी ले आया हूँ. पता नहीं मेरी मेडिकल की बुक्स का क्या होगा :-)
आप देखिये कि हम लोगों (अरे आप भी शामिल हैं हममें) ब्लागिंग से लोगों के साहित्य के कीड़े जाग रहे हैं। मतलब ब्लागिंग को ऐसा-वैसा न समझो ये बड़े काम की चीज है।
शास्त्रीजी की टिप्पणी का कुछ ऐसा होता है कि वह हमेशा स्पैम में पाई जाती है। मामला आचार संहिता का बनता है। ये कुछ ऐसा ही है कि धर्मोपदेशक आचार-सदाचार की बातें करते-सकते अनायास अनाचार करते रहने वालों के मोहल्ले में पाया जाय। आखिर उसको उनका भी उद्धार करना है। वे भी खुदा के बंदे हैं। पहले अतुल की कुछ टिप्पणियां भी स्पैम में मिलीं। ऐसा कैसे होता है? क्या ई-मेल पते में कुछ लफ़ड़ा होता है। शास्त्रीजी ने टिपियाते हुये कहा-

सन 2007 में इतना लिखा कि लगभग सारा मसाला खतम सा हो गया था एवं खाली हुए भेजे को 2008 की फिकर खाये जा रही थी की भईया अब भला क्या लिखोगे!! देवयोग से इस लेख पर नजर पड गई एवं कम से कम साल भर लिखने के लिये तकनीक मिल गई है. बीच बीच में इस तरह का मसाला देते रहें, हम सब का कल्याण हो जायगा!!! – शास्त्री
पुनश्च: गंभीर से गंभीर पाठक/चिंतक के जीवन में भी हास्य का होना जरूरी है. काश कुछ और चिट्ठाकर इस विधा को समझ लें तो रोज कुछ न कुछ “मानसिक ऊर्जा” मिलती रहेगी.
अब आप देखिये शास्त्रीजी ने मेरी पोस्ट के कन्धे पर रख कर बन्दूक चला दी है। अगले साल वे जो कुछ भी लिखेंगे लोग यही समझेंगे कि अगर उनको फ़ुरसतिया तकनीक न पता चलती तो इतना सब न लिख पाते। उन्होंने गंभीर से गंभीर पाठक के लिये हास्य जरूरी बता दिया है। आपको हंसना शुरू कर देना चाहिये।
रविरतलामीजी ने बहुत कठिन मांग रखी है। उन्होंने लिखा-

अब अगले पोस्ट में फुरसतिया टाइप सफल ब्लॉगिंग करने के अतिसुगम उपाय बताएँ तो हमारा भी कुछ फायदा हो. क्योंकि ऊपर बताए सब उपाय हमने आजमा लिए और हमारे लिए अब तक कोई भी मुफीद नहीं बैठा है :)
अब आपै बताओ कि उनकी मांग कैसे पूरी की जाये? वे एक तो फ़ुरसतिया टाइप ब्लागिंग के सूत्र जानना चाहते हैं। उसको सफ़ल भी बनाना चाहते हैं। और इन सब के लिये एकदम्मै सुगम उपाय जानना चाहते हैं। कित्ता मुश्किल है ई सब बताना? हम फ़ुरसतिया टाइप ब्लागिंग के सुगम उपाय बता सकते हैं लेकिन सफ़ल ब्लागिंग के कैसे बता सकते हैं? हम तो असफ़ल ब्लागर हैं जिससे चार दिन में एक ठो पोस्ट नहीं ठेली जाती। :)
जब से राखी सावंत नच बलिये में दूसरी नम्बर पर आयीं आलोक पुराणिक दुखी से हैं। उनको अच्छा नहीं लग रहा है। उनको डर भी लग रहा है कि राखी सावंत भी उनसे जब भी मिलेंगी पूछेगी- आपने भी मुझे एस.एम.एस. नहीं किया! आप बड़े बेवफ़ा हैं। लगता है आप दिल से मेडोना टाइप ग्लोबल सुन्दरियों से जुड़ने लगे हैं। देशी लगाव का केवल बहाना करते हैं सरोकार आपके परदेशी हैं।

ज्ञानजी यहां जो कहते हैं सो कहते ही हैं वे वहां चिट्ठाचर्चा में भी मौज लेते रहते हैं। दो दिन पहले की पोस्ट में उन्होंने लिखा-

एक जोरदार फोटोयुग्म हमने भी लगाया था आज – इस चर्चा में छपनीय! आपने सेंसर कर दिया!
अब आप देखिये वे अपनी पोस्ट में लिखते क्या हैं-

वैसे इस पुच्छल्ले पर लगाने के लिये “अनूप शुक्ल” का गूगल इमेज सर्च करने पर दाईं ओर का चित्र भी मिला। अब आप स्वयम अपना मन्तव्य बनायें। हां, सुकुल जी नाराज न हों – यह मात्र जबरी मौज है!Red heart
आप ऊपर वाला का फोटो देखें। अब आप ही बतायें कि हम इत्ते क्यूट लगते हैं जित्ती क्यूट ये फोटो ये है। लेकिन हम सोचते हैं कि अगर इस फोटो को चिठेरा-चिठेरी बताया जाये तो कैसा रहेगा। :)
कुछ दोस्तों ने राय जाहिर की है कि चिठेरा-चिठेरी में हम जो लिखते हैं वह महिलाओं को ‘हर्ट’ करता है। क्या सच में ऐसा है? यही सोचते हुये हमने अभी तक अगली सूटिंग नहीं की इन हीरो-हीरोइन को लेकर। सारा मेकअप का पैसा बरबाद हो गया। इसी लफ़ड़े में न जाने कितने डायलाग बेजार-बेकार हो रहे हैं। कुछ मुलाहिजा फ़र्मायें। यहां चिठेरा-चिठेरी आपस में भन्नाये हुये कि ज्ञानजी के हाथ में उनकी फोटो कैसे पड़ी! एक का मत है कि ज्ञानजी अब नौकरी पर ध्यान कम देते हैं, स्टिंग आपरेशन में ज्यादा
रुचि ले रहे हैं। दूसरा कहता है कि ये फोटो जानबूझकर लीक कराई गयी है ताकि रेटिंग बढ़े। दोनों एक दूसरे को कोस रहे हैं-
चिठेरा- जा ,तू ब्लागरों में इलाकाई हो जा।
चिठेरी- जा, तू बांगलादेश में भाजपाई हो जा।
चिठेरा-जा, तू पब्लिक स्कूलों में हिन्दी की पढ़ाई हो जा।
चिठेरी-जा, तू किसी बंद ब्लाग से विज्ञापन की कमाई हो जा।
हम विचार कर रहे हैं कि ये डायलाग किस तरह से महिलाओं को ‘हर्ट ‘करते हैं। :)
चिट्ठाचर्चा में , पेशे से जर्नलिस्ट ,देवप्रकाश चौधरी ने अपनी टिप्पणी में लिखा है-

टिप्पणियां अच्छी हैं, लेकिन बिना पढ़े टिप्पणी करना रस्म अदायगी की करह लगता है। हर ब्लॉग पर टिप्पणी करने से पहले उसे पढ़ें भी। किस नाम का ब्लॉग है, लेखक कौन है,क्या लिखा है….धन्यवाद
हम बूझ ही न पाये कि किसकी टिप्पणियों के लिये ये बात कही गयी? हमारे वनलाइनर के लिये या पाठक की टिप्पणियों के लिये। वैसे सच तो यह है कि पाठक बादशाह होता है। उससे यह नहीं कहा जा सकता है पहले पढ़े फिर लिखे। उसकी जो मन में आयेगा वह करेगा! :)
इसी बहाने एक सच्ची घटना याद आ गयी। करीब आठ-नौ साल पहले जब हम शाहजहांपुर में थे तो दफ़्तर में हेडक्वार्टर से आया एक पत्र मिला। उसका जबाब तुरन्त जाना था। दोपहर को बास से बात करने गये। बास न जाने किस बात भन्नाये हुये थे। शायद उनको भी पत्र अबूझमाड़ लगा होगा। :) वे छूटते ही बोले- तुमने इसे पढ़ा तो है नहीं इसका जबाब कैसे लिखोगे?
हम भी तुरन्ता जबाब दे दिये- देखिये साहब , आप ये नहीं कह सकते कि हम इसे पढ़े नहीं हैं। आप शायद एक बार भी न पढ़े हों लेकिन हम इसे दो बार पढ़ चुके हैं। अब ये अलग बात है कि हमें इसकी अंग्रेजी समझ में न आयी हो ।या फिर हमारी और आपकी समझ में अलग-अलग आया हो। आखिर अंग्रेजी-अंग्रेजी में फ़रक होता है।
साहब शरीफ़ थे। बेचारे चुपा गये। क्या बोलते। पेंसिल मुंह में लालीपाप की तरह चूसते हुये जबाब सुधारने में जुट गये।
हम भी शरीफ़ बनने के प्रयास हैं। यह पोस्ट इधर ही रोकते हैं। दफ़्तर जाना है जी। :)

13 responses to “कुछ टिप्पणी चर्चा”

  1. प्रमेन्‍द्र
    आप लोगों का लेखन निश्चित रूप से बहुआयामी जो पाठको को खीचने में सफल होता है। आप लोगों के पास विषय और समय की कमी नही है। अच्‍छा लगा टिप्‍पणी चर्चा
  2. आलोक
    टिप्पणी करने के पहले कुछ पढ़ना भी होता है?
  3. शास्त्री जे सी फिलिप्
    वाह !! सुबह सुबह कुछ अच्छा पढने को मिल गया!
  4. सृजन शिल्पी
    पिछली पोस्ट पढ़कर हमारा भी मन किया था कि अपनी फरमाईश करने का। लेकिन देखा कि कतार लंबी है, हमारी बारी इतनी जल्दी नहीं आएगी।
    हमें भी नियमित और सफल ब्लॉगर बनने के गुर सीखने हैं। हमारे लिए कुछ अलग टाइप के फंडे सोचकर बताइए, पुराने फंडों के लायक हम नहीं हैं।
  5. परमजीत बाली
    बढिया पोस्ट है।अच्छी चर्चा की।
  6. Gyan Dutt Pandey
    “तू ब्लागरों में इलाकाई हो जा।”
    ************************
    येल्लो, चिठ्ठाजगत में इलाकाई होना बद-दुआ का मामला है? अब तो मुझे खोजना पड़ेगा कि मेरी कितनी पोस्टों को उन्होने इलाकाई मॉडरेट किया है। आपने बता दिया, अच्छा किया। अब जबलपुर पर पोस्ट लिखूंगा तो उसमें दो-दो लाइन जकार्ता और जोहानसबर्ग पर भी ठेल दूंगा! :-)
  7. Nitesh S
    कलम ने तो सिंघासन हिला दिए थे . अब लोगों की कुंगिपटल-थाप हमारे कॅरिअर चौपट करने मे लगी है .
    भाई साहब इतना अच्छा लिखकर हमें पड़ने को इतना मजबूर करेंगे तो हमारे बेचारे मरीजों का क्या होगा?
    फिलहाल रागदरबारी को इस तरह पन्ना पन्ना पड़ रहे हैं जैसे कोई महंगी ब्रांडी कड़ाके की ठंड में घूँट घूँट कर पीता है, और डरता है की ख़त्म हो गई तो क्या होगा. अरे भाई कोई श्रीमान श्रीलाल शुक्ल साहब से ये कहे की इतनी छोटी क्यों बनाईं. मेरी मेडिकल की बोरिंग किताबें तो ३-४ हज़ार पन्नों से कम की नहीं होती.
    अमृत इतना थोड़ा क्यों?
  8. अजित वडनेरकर
    बढ़िया माल है साहेब। कभी कभी सोचता था कि सफल ब्लागर बनना है। इसके लिए टिप्पणीपुराण के फेर में भी कुछ दिन रहा और कुछ दिन चिट्ठाजगत की सक्रियता सूची के तिलिस्म में भी मुब्तिला रहा। मगर ये मियादी बुखार था। अब उतर गया है। अब तो एक ही उद्धेश्य है कि रोज़ एक शब्द पर कुछ शोध हो , कुछ लिखने का वक्त निकले ताकि जल्दी ही एक पुस्तक के रूप में इस सामग्री को सहेज लिया जाए । सफर तो चलता रहेगा। फुरसतिया नाम सार्थक होता रहे। बधाई…
  9. डा० अमर कुमार
    शुकुल महाराज,
    आप इतना ठाँस दिहो है,
    कि हमार मुंह खुलै के खुला ही रह गवा ।
    हम मूढ़मति का एक बात श्पष्टै कईं दियें ,महराज ।
    ई बिलागर का कबौ परमोशन हुई तौ उई का बनी ?
    खैर हटाओ जउनो बने, तो आप उहै बन जाओ।
    काहे कि कउनो एग्रीगेटर एहिका प्रावीजन नहीं रक्खिस है
    अउर हमार एक डिजर्विंग कन्डिडेट रहा जा रहा है, ई चक्कर मा !
    और भला दुई हज़ारी सम्मान बरै आप एम०पी० तो जईहो ना !
  10. शास्त्री जे सी फिलिप्
    आपको पता नहीं क्या होता जा रहा है. कुछ नया पढने के लिये आये तो पता चला कि जो आदमी चिट्ठा-चर्चा को अंतरिक्षयान की तेजी से चला रहा था उसका अपना चिट्ठा 26 दिसंबर से खाली पडा है. लगता है कि ‘क्रिसमस’ पर आपने कुछ शरारत की होगी और अब कुछ दिन के लिये पश्चाताप कर रहे हैं.
    ऐसा न करें. जबरिया ही लिखे. आप कहते हैं कोई आपका क्या करेगा. क्यों नहीं करेगा. आपका पढेंगे!!
    – शास्त्री
    पुनश्च: कहीं किसी कारण मेरी टिप्पणीयों को एक अमरीकई स्पेम तंत्र पकड रहा था जो कई चिट्ठों में काम आता है. उम्मीद है जनवरी अंत तक समस्या हल हो जायगी.
  11. anita kumar
    हम को अलग से ब्लोगिंग के गुर सीखने हैं, ये गुर अपन से निभने वाले नहीं
  12. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] कुछ टिप्पणी चर्चा [...]
  13. हिन्दी ब्लॉग लेखन : टिप्पणीकारी : जो मन ने कहा २ | Ramyantar | रम्यांतरRamyantar | रम्यांतर
    [...] जितू जी का यहआलेख , और अनूप शुक्ल जी का यह आलेख पढ़ लें, मैं क्या लिखूँ [...]

Friday, December 21, 2007

नियमित ब्लागिंग करने के कुछ सुगम उपाय

http://web.archive.org/web/20140419220027/http://hindini.com/fursatiya/archives/385

नियमित ब्लागिंग करने के कुछ सुगम उपाय

हमारे कुछ दोस्त बहुत अच्छे ब्लागर हैं। बहुत अच्छा लिखते हैं। लेकिन वे इंसान कहीं ज्यादा अच्छे हैं इसलिये वे नियमित नहीं लिखते। वे एक अच्छे ब्लागर होने का अपना और हमारा हसीन भ्रम बनाये रखना चाहते हैं। जैसे कभी-कभी सितम्बर महीने में लोग हिंदीगिरी करने लगते हैं, होली में सब बुढ़वे देवर लगने लगते हैं, सतर्कता सप्ताह में सब बेइमान लोग ईमानदार बनने के लिये हुड़कने लगते हैं वैसे ही कभी-कभी अच्छे ब्लागर भी नियमित ब्लागर बनने के लिये हुड़कने लगते हैं। अपनी इंसानियत की पारी घोषित करके नियमित ब्लागिंग की शुरू कर देते हैं।
ऐसे ही हमारे एक मित्र बहुत अच्छे ब्लागर हैं। अच्छे इसलिये कि वे बहुत कम लिखते हैं। जब लिखते हैं तो कभी लिंक देकर कमेंट करने की जिद करके कोई पंगा नहीं करते।
ऐसे अच्छे-भले इंसान ने एक दिन हमसे पूछा – यार, नियमित ब्लागिंग करने के कुछ उपाय बताओ।
यार, मैं खुद नियमित नहीं लिख पाता। तुमको कैसे बताऊं?- मैंने रोना रोया।
तुम्हारी तो बात अलग है। तुम तो मूढ़मति हो। सब जानते हैं। तुम्हें कुछ समझ में ही नहीं आता होगा कि क्या लिखो। लेकिन मैं तो इंटेलीजेन्ट हूं। तमाम बातों का ज्ञान रखता हूं। तुम मुझे बताओ कैसे नियमित ब्लाग लिखा जाये? -दोस्त ने पूछा।
जब मैं मूढ़मति हूं। कुछ जानता नहीं। और नियमित ब्लागिंग भी नहीं कर पाता तो तुमको कैसे बताऊं यार! तुम खुद बताऒ? -मैं झल्ला सा गया लेकिन शांत भी। जो झल्लाता है वह अक्सर शांत ही रहता है।
इसलिये कि तुम काफ़ी दिन से ब्लाग जगत के लटके-झटके देखते रहे। अनियमित लिखते हो इसलिये बेहतर तरीके से बता सकते हो कि नियमित कैसे लिखें। (पर उपदेश कुशल बहुतेरे)। मूढमति हो इसलिये काम की बातें कहने से बाज नहीं आओगे। इसलिये मौका दे रहा हूं वर्ना बताने वाले तो बहुतों हैं।- दोस्त से विस्तार से समझाने का प्रयास किया।
इसके बाद चिल्ला-जाड़ा होने के बावजूद हम पानी पर चढ़ गये। हमने अपनी मित्रता का परिचय देते हुये उसको नियमित ब्लागिंग करने के कुछ उपाय बताये। आप भी नजरें
इनायत कर लीजिये। शायद आपके भी काम आये।
१.पुराणिक सिद्धान्त: : जैसे ही स्कूल बंद होने वाले हों वैसे ही आप झोला उठाकर निकल लीजिये। जैसे बंटी और बबली निकल लिये थे। आप घर-घर जाकर सर्वे करिये। कालोनी में जाकर वहां बड़े बच्चों की कापियॊं की रद्दी खरीद लीजिये। केवल हिंदी की लीजिये। इसके बाद उनसे छांट-छांट कर निबन्ध पोस्ट करते जाइये। हर पोस्ट के पहले लिखना न भूलिये कि यह निबन्ध जिस छात्र की कापी से नकल किया गया है उसने परीक्षा में टाप किया था। कौन मार्कशीट लगानी है! ये भी कौन पूछता है कि उसने कहां से टाप किया था? ऊपर से, नीचे से या बीच से? टापर हमेशा टापर ही रहता है चाहे ऊपर से हो नीचे या बीच से। आलोक पुराणिक इस तरकीब का सबसे बेजा इस्तेमाल करते हैं इसलिये यह सिद्धान्त उन्हीं के नाम से बदनाम हो गया। :)
२.अगड़म-बगड़म सिद्धान्त: आपको कोई भी ऊलजलूल बात ध्यान में आये आप उसको टाइप कर लें। फिर उसके बीच में और किनारे तथा इधर-उधर, अगल-बगल में राखी, मीखा, शाकीरा वगैरह के नाम डाल दें। जगह बची हो तो बुशजी और मुशर्रफ़जी आदि को भी आदर सहित स्थान दें ताकि बात का ऊलजलूल पन बढ़ सके। जैसे किसी खाली पड़े प्लाट पर बाहुबली अपनी बाहों के प्रयोग से अपने नाम की प्लेट लगा लेते हैं वैसे ही इस सर्वहारा तरीके पर भी आलोक पुराणिक नाम के ब्लागबली का कब्जा है। यह उनकी ईमानदारी ही कही जायेगी कि वे न अपने को आरकुटिये कहने में हिचकते हैं न चिरकुटिये। लेकिन उनका लगाव अगड़म-बगड़म टाइप की हरकतों से ही ज्यादा है। इसीलिये यह तरीका भी इसी नाम से प्रचलित हुआ। :)
३. ज्ञानदत्त का नियमित ब्लागिंग का सिद्धान्त: ये थोड़ा मंहगा सिद्धान्त हैं लेकिन सफ़लता की शर्तिया गारन्टी है इसमें। आप एक कैमरा खरीद लीजिये। फिर जहां मन आये वहां क्लिक करिये। इसमें आपको फोटो खींचना जानने की भी जरूरत नहीं है। जो फोटो आ जाये उसे अपने कम्प्यूटर पर उतार लें। फिर जिसकी फोटो आई है उसके बारे में अपने मन से या नेट से खोज कर लिख मारें। नेट पर न मिले तो भरतलाल से पूछ लीजिये। आप काफ़ी हाउस भी जा सकते हैं। अपने किसी साथी अधिकारी के बारे में लिख सकते हैं। मतलब आप को जो मन में आये वो लिख सकते हैं। जो मन में न आये वो तो पहले लिख सकते हैं। फिलवक्त इस तरीके पर ज्ञानजी का एकाधिकार है।
४.पुरनका ब्लागर सिद्धान्त: इस तकनीक (दुर)उपयोग वे ब्लागर करते हैं जो पहले बहुत लिखते थे। लेकिन अब वे इसी बारे में लिखते हैं कि वे कित्ता लिखते थे। जीतेंद्र और फ़ुरसतिया इस तकनीक का सर्वाधिक दुरुपयोग करते हैं। संजय बेंगाणी भी कभी-कभी ये वाला स्ट्रोक खेल जाते हैं। इस तकनीक का उपयोग करते समय बतायें कि अभी जो हो रहा है पहले उससे भी ज्यादा हो चुका है। एक बार किसी ब्लागर ने कमेंट किया -आजकल भैया बहुत बेफिजूल की और कूड़ा -पोस्ट लिखी जाती हैं। जीतेंन्द्र तुरन्त बोले- यार, इससे बेफ़िजूल की और कूड़ा पोस्टें तो हम लिखते थे। अभी का कूड़ा तो हमारे कूड़े के सामने कुच्छ नहीं। :)
५.कविता-सविता सिद्धान्त: नियमित कविता लेखन करते हुये आप नियमित ब्लाग लेखन कर सकते हैं। कविता लिखने का एक फ़ायदा यह भी है कि न उसका मतलब न लिखने वाले को समझने की जरूरत जरूरत होती है न पड़ने वाले की। आप कुछ भी लिखिये उसे कविता कहकर पोस्ट कर दीजिये। अगर आप कविता लिखने में बिल्कुल अपाहिज हैं जैसे की फ़ुरसतिया कोई भी कायदे की बात नहीं कर सकते तो आप अपने गद्य को ही खूबसूरत कविता का रूप दे सकते हैं। इसके तरीके यहां बताये गये हैं। इस तरह की पोस्ट आजकल प्रख्यात हिंदी ब्लागर दिलीप भारतीय दीपक भारतदीप इस तकनीक का बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं।
६.जिंदाबाद-मुर्दाबाद सिद्धान्त: आप अगर विचारों से प्रगतिशील हैं और आपके सीने में आग भी भड़कती है तो आपको नियमित ब्लाग लेखन के लिये कुछ अधिक करने की जरूरत नहीं है। आप किसी भी बात का जिक्र करके बस माफ़ियाराज खतम करो, गुंडागर्दी नहीं चलेगी, अलाने जिंदाबाद- फ़लाने मुर्दाबाद जैसे नारे लगाने लगिये। याद रहिये कि यह टाइप करते समय आपकी मुट्ठी बंधी रहे और मुंह बिचका रहे। आप अपने तेवर ऐसे रखें जिससे लोगों को लगे कि अगर उन्होंने जरा सी भी हंसी-मजाक की मतलब हलकी-फ़ुलकी बात कर दी तो हंसने वाले जबड़ों का हुलिया टाइट कर दिया जायेगा। हर प्रचलित और पापुलर होती चीज को आप प्रतिगामी बताते हुये आप शान से अपनी बात सालों तक लिखते रह सकते हैं।
७. टिप्पणी आयी है स्कूल आफ़ थाट: ब्लागिंग के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अभी हाल में ही हुआ है। इसमें एक पोस्ट पर आयी टिप्पणियां बारी-बारी से आप अगली पोस्टों में दिखा सकते हैं। मान लीजिये कि किसी पोस्ट आपको तीन अलग-अलग लोगों ने टिप्पणियां लिखीं और चार टिप्पणियों का अचार आपने खुद डाला (दो अपने फ़र्जी ब्लागनाम से और दो अनाम नाम से) इस तरह आपके पास सात पोस्टों का जुगाड़ हो गया। आप प्रायोजित लेख भी लिख-लिखवा कर नियमित ब्लागिंग करते रह सकते हैं।
८.लिंकन-किंकन-ब्लागिंग-रुन-झुन: आप भाषा में ब्लाग लिखते हैं उस भाषा के किसी भी अखबार को नेट पर देखें। किसी भी खबर का लिंक लगाइये और उसके बारे में दो-तीन लाइने लिखकर पोस्ट कर दें। अगर अखबार यूनीकोड में है तो उस समाचार को भी टीप दें और अपना एक्स्पर्ट कमेंट दे दीजिये। अंग्रेजी के तमाम ब्लागर इसी तरकीब की टिप्पणी खाते हैं। आप देख लीजिये। हिंदी के आदि-चिट्ठाकार इसी तरकीब से अपनी बातें कहते हैं। उनकी टेलीग्राफ़िया पोस्ट का यही राज है।
९.साहित्य सेवा ब्लागिंग सिद्धान्त: आप नेट पर उपलब्ध साहित्यिक सामग्री को उठा-उठाकर अपने ब्लाग पर उड़ेलते रहें और इसी बहाने साहित्य सेवा करते रहें। अगर आपको टाइपिंग आती है तो किसी धांसू च फ़ांसू साहित्यिक सामग्री को नेट पर लाने के लिये उसके अंश पोस्ट करते लगें। यह तरीका अपनाने वाले लोग अक्सर एटीबायटिक दवाओं की तरह अपने डोज पूरे नहीं करते। इससे बीमारी बार-बार उभरती रहती है। बार-बार नियमित ब्लागिंग करने के लिये जी हुड़कने लगता है।
१०. फोटो-शोटो ,लटके-झटके डाट काम : इस तरकीब में लोग ऊटपटांग या मस्त-मस्त फोटो लगाते रहते हैं। पहले प्रतीक पांडेय इस काम को करते थे और मस्त सौंदर्य के फोटो अपने ब्लाग पर लगाते थे। अब लेकिन उनको अपनी इमेज की चिंता होने लगी और उन्होंने यह काम प्रमेन्द्र को दे दिया। प्रमेन्द्र इस काम को बखूबी कर रहे हैं। उनको इमेज की कौनौ चिंता नहीं है। वे कहते भी हैं -जो हमसे टकरायेगा, चूर-चूर हो जायेगा।
११. मुलाकात, संस्मरण ब्लागर -स्लागर मीट : लोगों से मिलते रहिये। मंडलजी की परवाह किये बिना। उनसे अभय तिवारी फ़रिया लेंगे। जब हेल-मेल होगा तो संस्मरण की रेल चलेगी पम-पम-पम। आप एक पोस्ट लिखी मुलाकात का परिचय देने के लिये। दूसरी पोस्ट में लिखिये फोटो लगाकर -(फोटो रह गये थे ) तीसरी पोस्ट लिखिये -अरे, ये बात तो रह ही गयी । यह कारनामा अभी कुछ दिन एक हिंदुस्तानी ने किया। :)
हमें पता है कि आप अच्छे इंसान हैं और आपमें से कोई नियमित लिखने का काम करना नहीं चाहता। इसके बावजूद हमने यहां लिख मारे। सम्भव है आपका हृदय परिवर्तन हो जाये और आप भी सही-सही इज्जत लुटाकर नियमित ब्लागर बन जायें। तरीके और बहुत हैं लेकिन वे फिर कभी।
तब तक आप बताइये कोई तरीका नियमित ब्लागिंग करने का । लेकिन इसके पहले आप ब्लागिंग के सार्वभौमिक सिद्धान्त दोहराना न भूलें। :)

26 responses to “नियमित ब्लागिंग करने के कुछ सुगम उपाय”

  1. RC Mishra
    बढ़िया सिद्धान्त हैं, मेरे लिये भी क्रमांक ३, १० और ११ उपयोगी साबित हो रहे हैं।
  2. प्रतीक पाण्डे
    वाह! क्या ज़ोरदार तरीक़े बताए हैं आपने नियमित ब्लॉगिंग के लिए। अब तो हर मैथड का इस्तेमाल करके लिखने पर कम-से-कम 11 पोस्ट तो लिखी ही जा सकती हैं। बहुत-बहुत शुक्रिया :)
  3. Shiv Kumar Mishra
    बहुत ज़बरदस्त सुझाव हैं….पढ़ तो लिए थे आधा घंटा पाहिले ही…लेकिन याद कर रहे थे…हम भी तो नियमित नहीं लिख पाते…लेकिन लगता है कल से नियमित लिखेंगे…आपने रास्ता दिखाया……:-)
  4. Sanjeet Tripathi
    फ़िर एक बार धांसू च फांसू!!
    पहले, चौथे और छठवें को छोड़कर अपन सब आजमा सकते हैं [ क्या पता आपकी नज़र में हम आजमा भी चुके हों ;) ]
  5. anita kumar
    हा हा हा हा धन्य है अनूप जी आप मजा आ गया हम किधर फ़िट हुए या कहीं नहीं …कहीं वो दोस्त जो गुर पूछ रहा था हमीं तो नहीं थे
  6. दिनेशराय द्विवेदी
    आप का बहुत बहुत शुक्रिया। मेरे जैसे नए चिट्ठाकार को इतनी सारी टिप्स एक साथ मिल गईं। एक एक कर सभी को आजमाता हूँ। कोई तो सिद्ध हो ही जाएगी।
  7. Gyan Dutt Pandey
    हमें पता है कि आप अच्छे इंसान हैं और आपमें से कोई नियमित लिखने का काम करना नहीं चाहता। इसके बावजूद हमने यहां लिख मारे। सम्भव है आपका हृदय परिवर्तन हो जाये और आप भी सही-सही इज्जत लुटाकर नियमित ब्लागर बन जायें।
    *********************************************
    यह तो सरे आम “स्माइली” की पिस्तौल चला कर इज्जत लूटना हो गया। :-)
  8. प्रभात
    इस तरकीब में लोग ऊटपटांग या मस्त-मस्त फोटो लगाते रहते हैं। पहले प्रतीक पांडेय इस काम को करते थे और मस्त सौंदर्य के फोटो अपने ब्लाग पर लगाते थे। अब लेकिन उनको अपनी इमेज की चिंता होने लगी और उन्होंने यह काम प्रमेन्द्र को दे दिया।
    बहुत तीखी और पैनी नजर है ,गुरुजी :) ( पता नही किस पर फ़ोटूऒ पर या प्रतीक और प्रमेन्द्र पर :) )
  9. अभय तिवारी
    बढ़िया उपाय हैं.. और एक उपाय ये भी तो गिनाइये जिसका इस्तेमाल आप ने इस पोस्ट में किया है.. ये कैसे करें औए वो कैसे करें के उपाय बताने वाली ब्लॉगिंग.. आप तो उसके चैम्पियन हैं!
  10. pramod singh
    इंक ब्‍लॉगिंग, पिंक ब्‍लॉगिंग? झुलने का गाना, उनका बुलाना?
    फिर अभय ने आपको चैंपियनत्‍व दिया है ही कि ये ऐसा करो वो ऐसा? इनने ऐसा किया उनने वैसा? एक पगडंडी कनपुरिया, बिलासपुरिया, जयपुरिया टाइप पोस्‍टों की भी हो सकती है कि हमारे लड्डू, हमारे छुहाड़े, हमारे किशमिश, हमारे भंटे? गुड़, जामुन, तरकारी?
    ओह, मन में कैसा उद्वेलन, आलोड़न जगा दिया..
  11. आलोक
    फ़ुरसतिया जी ९ २ ११ की कड़ी ठीक कर लीजिए।
  12. आलोक पुराणिक
    कुछ और तरीके हैं-
    प्राकृत और पाली सिद्धांत
    रोज सुबह उठकर कुछ इस किस्म का ठेलिये
    रतरतकचा दगहदहै3 यररं,.ल मनचतैह
    तकरता जा तलकमलच
    रतकरमता हगहा-ही-38 रयचरतओट न
    कम से कम पचास कमेंट यही पूछते हुई आयेंगे, क्या लिखा है।
    तब बताइए कि ये पाली और प्राकृत में लिखा गया ब्लाग है। सबकी समझ में नहीं आयेगा।
    यही तो मैंने कहा था
    रोज सबसे पहले दूसरे ब्लागों को देखिये।
    फिर पोस्ट चढाइये कि ये बात तो मैंने अनूप शुक्लजी को कही थी, उन्होने अपने नाम से ठेल दी। जैसे ये सारे सिद्धांत मैंने आपको बताये थे, आप ने अपने नाम से ठेल दिये।
  13. Tushar Verma
    to aapka yah blog in gyaarah upaayon mein se kis shrayni mein aata hai?
    yah line ” जो झल्लाता है वह अक्सर शांत ही रहता है।” bahut acchi lagi.
  14. Isht Deo Sankrityaayan
    ठीक बात है. हम भी कोशिश करके देखते हैं.
  15. प्रमेन्‍द्र पताप सिंह
    अपना उल्‍लेख देख कर अच्‍छा लगा, बिना लाग लपेट के फोटों से पोस्‍ट तैयार हो जाती है और लोगों को पढ़ने से उबन भी नही लगती है। मेरी इस पोस्‍ट के लिये पाठक‍ होना नही दर्शक होना अनिवर्य होता है। कमेन्‍ट भी मिल जाते है।
    रही बात प्रतीक भाई की तो वे भी दुकान बन्‍द नही किये है, चल रही धन्‍धा मन्‍दा है ढेर सारे शपिग माल आने से। :)
    उनमें और मुझमें एक अन्‍तर है मेरे चित्रों में 51% से ज्‍यादा कपडे वाले चित्र होते है जबकि उनके में 49% से कम :)
    रही बात ईमेज की तो ईमेल पोस्‍ट करने से ईमेल बननेगी भी और बिगडेगी भी :)
    पंच लाईन का उल्‍लेख अच्‍छा लगा :)
  16. रवि
    अब अगले पोस्ट में फुरसतिया टाइप सफल ब्लॉगिंग करने के अतिसुगम उपाय बताएँ तो हमारा भी कुछ फायदा हो. क्योंकि ऊपर बताए सब उपाय हमने आजमा लिए और हमारे लिए अब तक कोई भी मुफीद नहीं बैठा है :)
  17. भुवनेश
    वाह धन्‍य हैं आप शुक्‍लाजी आपके कारण आज दो-दो अगड़म-बगड़म सिद्धांत मालूम चले. एक तो दो नंबर वाला, दूसरा आलोकजी की टिप्‍पणी वाला. :)
  18. जीतू
    ह्म्म! सही है, लेकिन इ सब कुछ नही…इससे बढिए तो हम………हीहीही..
    झकास पोस्ट। भाया ब्लॉगिंग टैक्नोलॉजी (ब्लॉगोलॉजी) की सारी पोस्ट एक जगह जुगाड कर लो, बहुत सही रहेगा।
  19. दीपक भारतदीप
    आपने मेरा नाम गलत लिख दिया है. दिलीप भारतीय नहीं दीपक भारतदीप होना चाहिए. कृपया इसे सही करें तो अच्छा रहेगा.
    दीपक भारतदीप
    दीपकजी, नाम में सुधार कर दिया। बताने के लिये शुक्रिया।
  20. शास्त्री जे सी फिलिप्
    सन 2007 में इतना लिखा कि लगभग सारा मसाला खतम सा हो गया था एवं खाली हुए भेजे को 2008 की फिकर खाये जा रही थी की भईया अब भला क्या लिखोगे!! देवयोग से इस लेख पर नजर पड गई एवं कम से कम साल भर लिखने के लिये तकनीक मिल गई है. बीच बीच में इस तरह का मसाला देते रहें, हम सब का कल्याण हो जायगा!!!
    – शास्त्री
    पुनश्च: गंभीर से गंभीर पाठक/चिंतक के जीवन में भी हास्य का होना जरूरी है. काश कुछ और चिट्ठाकर इस विधा को समझ लें तो रोज कुछ न कुछ “मानसिक ऊर्जा” मिलती रहेगी.
  21. अजित वडनेरकर
    आनंद आया साब। हम जैसे ब्लागरों को तो आपने धोबी का कुत्ता या धोबी का गधा साबित करने में कोई कसर नही छोड़ी:)
    नए साल की अशेष शुभकामनाएं । ईश्वर सारे मनोरथ पूरे करे। यह खुद पर हंसने का भाव बना रहे।
  22. alok singh
    wah bhai wah
    !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
  23. Debashish
    मुझे क्यों ऐसा लग रहा है कि कोई भी तकनीक लगाकार मैं फिर भी नियमिता नहीं पाउंगा ;)
  24. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] नियमित ब्लागिंग करने के कुछ सुगम उपाय [...]
  25. : पर स्टेटस कुशल बहुतेरे
    [...] जो होगा देखा जायेगा। पहले भी अपन नियमित ब्लॉगिंग के उपाय सुझा चुके हैं। इधर के अनुभवों ने कुछ [...]
  26. shefali
    इत्ते लिंक ठेल दिए हैं एक पोस्ट में …..इस विधा पर तो आपका ही एकाधिकार है |
    shefali की हालिया प्रविष्टी..मामा – मामा भूख लगी……….