Thursday, February 28, 2013

एयरहोस्टेस, खूबसूरत दांत, मोटरसाइकिल, बजट और चांदनी

http://web.archive.org/web/20140420082605/http://hindini.com/fursatiya/archives/4042

एयरहोस्टेस, खूबसूरत दांत, मोटरसाइकिल, बजट और चांदनी


  1. हवाई यात्रा में जेट एयरवेज और इंडिगो में एयरहोस्टेसों को देखकर लगा कि इन एयरलाइनों ने हाईस्कूल करते ही इनको अपने यहां नौकरी में लगा लिया। लगा कि नाबालिग बच्चियों को हवा में उड़ा दिया गया है।
  2. एयर इंडिया में पुरुष एयरहोस्टेस देखकर लगा अब दुनिया स्त्री-पुरुष बराबरी की तरफ़ बढ़ रही हैं।
  3. चालीस पार की एक महिला सहयात्री काफ़ी देर से व्यक्तित्व विकास की किताब अंग्रेजी में पढ़ रही थीं। पता चला कि वो 1988 में जबलपुर इंजीनियरिंग कालेज से इंजीनियरिंग किये हैं। हमने कहा कि व्यक्तित्व जो बनना था बन चुका अब और क्या पर्सनालिटी डेवेलपमेंट होगा इस उमर में? वे हंसने लगी- बोली ऐसे ही पढ़ लेते हैं टाइम पास के लिये।
  4. सहयात्री सिंगापुर की सफ़ाई और अन्य सुविधाओं की तारीफ़ करती रहीं। हमने पूछा -अच्छा बताइये कि वहां क्या मानसिक रूप से इतना निश्चिंत रह पाती होंगी जितना अपने मायके (जबलपुर में ) रह लेती हैं। बोली -नहीं। वहां डर लगा रहता है कि जिस चीनी डाक्टर को दांत दिखा रहे हैं कहीं वो खराब न कर दे। यहां जबलपुर में सब जानते हैं। ध्यान से देखते हैं। सोचा उनके दांतों की खूबसूरती की तारीफ़ कर दें लेकिन तब तक जहाज में बैठने के लिये लाइन लगाने की घोषणा हो गयी। समय पर तारीफ़ न कर पाने की कसक अब तक हो रही है।
  5. कोलकता एयरपोर्ट पर एक आदमी टिकट बनाने वाली बच्ची (बच्चियां सी ही लगती हैं वहां तैनात कर्मचारी) पर झुंझलाते हुये जल्दी टिकट बनाने के लिये कह रहा था। उसकी फ़्लाइट छूटने वाली थी। लगा कि हवाई जहाज का टिकट लेने के साथ ही लोग झंझलाने का इंजेक्शन ठोंक लेते हैं अपने। जरा पहले निकलना था अगले को। अभी तक वो झुंझलाता आदमी दिख रहा है मुझे। उसके चक्कर में मोहतरमा के खूबसूरत दांत कम दिख रहे हैं।
  6. कलकत्ता में दो दिन के बंद के बावजूद शहर चल रहा था। लेकिन दुकाने बंद थीं। सड़क पर भीड़ जरा कम थी लेकिन शटर गिरे होने के चलते चहल-पहल कम दिखी।
  7. दो दिन पहले कानपुर में गलत तरफ़ से आ रही एक मोटरसाइकिल से डिवाइडर से उतरता एक आदमी टकरा गया। मोटर साइकिल में पीछे बैठी युवती कपड़े की गुडिया की तरह उछलकर नीचे जा गिरी। मोटरसाइकिल वाला हेलमेट लगाये-लगाये आदमी को हड़काने लगा -देखकर नहीं चलते। आदमी ने भी हड़काया – रांग साइड क्यों चलते हो। इत्ते में युवती उठकर वापस चुपचाप मोटर साइकिल पर बैठ गयी। लेकिन वे लड़ने में लगे रहे। हेलमेट तब भी नहीं उतारा अगले ने। मुझे लगा कानपुर में सड़क पर गलत साइड चलने वाले तक अपनी सुरक्षा के प्रति कितने जागरूक हैं- बहस करते समय तक हेलमेट पहने रहता है।
  8. आज बजट पेश होगा। सबकी तमन्ना है कि कर में कुछ छूट मिल जाये, सुविधाओं में बढोत्तरी हो जाये। हमें सिर्फ़ यही लग रहा है कि किसी मद में भ्रष्टाचार के लिये भी कुछ राशि का प्रावधान होता होगा क्या?
  9. ये ऊपर तस्वीर में दिख रहे बुजुर्ग कल हमारे मेस के पास की पुलिया पर बैठे दिखे। हमारे फोटो खींचने पर बुजुर्गवार ने बुढिया का मुंह कैमरे की तरफ़ कर दिया। बताया कि बागवानी का काम करते हैं। आज काम नहीं मिला सो बैठे हैं। इनको क्या पता कि आज बजट पेश होने वाला है जिसमें शायद उनके लिये भी कुछ प्रावधान हो। हो सकता बजट पेश हो जाये और उनको पता ही न चले। :)

मेरी पसन्द

स्वपन हो या सत्य हो ,तुम चांदनी हो ,
या ह्रदय तल पर उतरती रागिनी हो ।
है अधर या दीपमालाये सजी है
या नदी तट पर खड़ी सम्भावनाये ,
ये नयन संदेश उर का वांचते क्या
वेणियाँ है या कि उर की अर्गलाये ।।
खोल दो सच छाँव युग युग की मिलेगी
तुम सघन संघर्ष युग में चंदनी हो ।
स्वपन हो या सत्य हो ,तुम चांदनी हो ,
या ह्रदय तल पर उतरती रागिनी हो ।
हाथ मे अंगुली छुई ,स्पर्श हे यह ,
या की सम्मोहन दर्गो मे कांपता हे
यह मेरा मन यंत्र मापन का बना हे
कंबु ग्रीवा तक तुम्हे जो मापता हे ।।
प्रीति के इतिहास की अन्धी गली मे
तुम प्रिये शाश्वत सरलतम रोशनी हो ।
स्वपन हो या सत्य हो ,तुम चांदनी हो ,
या ह्रदय तल पर उतरती रागिनी हो ।
फिर वही विश्वास अधरों आंसुओ मे
जागकर चितवन तुम्हारी मांगता है
दूरियाँ पल की लगे ज्यो सीपिया हे
रिक्तता मे अश्रु मोती लापता हें ।।
तुम रेत पर बिखरी गुलाबी आस्था हो
या की फिर अभिसार की आशा बनी हो
स्वपन हो या सत्य हो ,तुम चांदनी हो ,
या ह्रदय तल पर उतरती रागिनी हो ।
-सरोज मिश्र शाहजहांपुर

12 responses to “एयरहोस्टेस, खूबसूरत दांत, मोटरसाइकिल, बजट और चांदनी”

  1. arvind mishra
    फेसबुक का बासी माल :-(
    पचास पार हो गए हैं कम से कम अब तो गगन (परिचारिका ) और सहयात्री विहार से तोबा कीजिये :-) बाल बच्चों का कुछ तो लिहाज करिए :-)
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..एक अजूबा यह भी-दास्तान एक विषखोर पक्षी की …..
  2. दीपक बाबा
    वैसे डॉ मिश्र सही कह रहे हैं :) :) :)
  3. aradhana
    हम्म, आजकल आप भी अंत तक आते-आते दार्शनिक हो जाते हैं. वृद्ध युगल के माध्यम से बड़ी बात कह गए आप. कहाँ चिन्ता है किसी वित्त मंत्री को बागवानी का काम करने वाले जैसों की?
    वैसे बजट में उनके लिए प्रावधान हों या न हों, दोनों बूढ़ा-बूढ़ी साथ लग बहुत खुश रहे हैं. इनकी खुशी किसी वित्त मंत्री के बजट की मुहताज नहीं. आमीन :)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..Two Cities, Two Launches: A Pair of Sites Built on WordPress.com Enterprise
  4. PN Subramanian
    रोचक.
  5. shikha varshney
    टूटी थीं आशाएं अब टूट जायेगी कमर
    बजट में आम लोग ही करते हैं सफ़र (अंग्रेजी वाला :)).
    बढ़िया गगन से लेकर सड़क तक की रिपोर्ट रही.
  6. भारतीय नागरिक
    ज़ीरो बजट… दाँतों की तारीफ को जिप फाइल में सहेज कर रखें दुबारा मुलाकात होने पर झट से तारीफ को निकाल कर पेश कर दें…
  7. रवि
    चालीस पार की एक महिला सहयात्री काफ़ी देर से व्यक्तित्व विकास की किताब अंग्रेजी में पढ़ रही थीं >> कहीं कोई दूसरी प्रति मिले तो आप ले लीजिएगा और बांचने के बाद हमें दे दीजियेगा :)
    रवि की हालिया प्रविष्टी..फ्लिपकार्ट से 1000 शानदार म्यूजिक एलबम डाउनलोड करें एकदम मुफ़्त!
  8. manuprakashtyagi
    हम्म् , क्या आपके ब्लाग ​लेखन का पता घर में है ?
  9. Anonymous
    हां तो जो मन में आये, उसे तुरन्तै कर डाला कीजिये, ताकि कोई कसक न रह जाये :( अब टीस सहते रहिये अगले खूबसूरत दांत दिखने तक :) पोस्ट का क्या? अच्छी ही है.
  10. प्रवीण पाण्डेय
    अवलोकन व्यर्थ न जायें, सहेज तो लिये ही जायें।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..टा डा डा डिग्डिगा
  11. Abhishek
    :) मजेदार. रांग साइड वाला मस्त :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..नए जमाने के विद्वान (पटना १६)
  12. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] एयरहोस्टेस, खूबसूरत दांत, मोटरसाइकिल, … [...]

Wednesday, February 27, 2013

पुलिया पर बुजुर्ग



ये बुजुर्ग हमारे मेस के पास की पुलिया पर बैठे दिखे। हमारे फोटो खींचने पर बुजुर्गवार ने बुढिया का मुंह कैमरे की तरफ़ कर दिया। बताया कि बागवानी का काम करते हैं। आज काम नहीं मिला सो बैठे हैं। 

Monday, February 25, 2013

ब्लॉगजगत के बहाने इधर-उधर की

http://web.archive.org/web/20140420081937/http://hindini.com/fursatiya/archives/4031

ब्लॉगजगत के बहाने इधर-उधर की

परसों कलकत्ता से कानपुर लौटे तो देखा कि मिसिरजी के हाल बेहाल हो चुके थे। अब अच्छा हो गया है। मिसिरजी की कुछ हसीन अदाओं में से एक ये है कि वे गाहे-बगाहे अपने साथ जुड़े लोगों को याद करते रहते हैं। जिनसे जैसे संबंध हैं उस हिसाब से। हम तो उनसे मौज लेते ही रहते हैं। सो वे भी मौका निकाल के हमारी खिंचाई करने की कोशिश करते हैं- नाम लेकर। लेकिन तमाम लोगों से उनके कसकन वाले संबंध भी रहे उसे वे कसकते हुये याद करते हैं (जो कभी दिन रात चौबीसों प्रहर समय असमय कुशल क्षेम पूछते थे अब बिल्कुल ही बेगाने हैं)।

मिसिरजी मजेदार जीव हैं। उनसे अपन की कहा-सुनी चलती रहती है। उनकी पोस्टों में नाटकीय तत्व बहुत रहता है। ज्ञान छलकता रहता है अक्सर। लोगों से लड़ने-झगड़ने, रूठ जाने और फ़िर मान जाने/मना लेने का उनका कौशल अद्भुत है। गुस्से में तो वे खोया पानी के मिर्जा हो जाते हैं जिनके लिये युसुफ़ी साहब लिखते हैं- मिज़ाज, ज़बान और हाथ, किसी पर काबू न था, हमेशा गुस्से से कांपते रहते। इसलिए ईंट,पत्थर, लाठी, गोली, गाली किसी का भी निशाना ठीक नहीं लगता था। प्रेम/यौन संबंधी उनकी अधिकतर पोस्टें/टिप्पणियां -”हिन्दी पट्टी के किसी अदबदाकर जवान हो गये शख्स की अभिव्यक्तियां” लगती हैं।

मिसिरजी हमारे लिखे पर टिपियाते लगभग हमेशा रहते हैं। शुरुआती दौर की अतितारीफ़ाना टिप्पणियों से लेकर हालिया ’अब चुक गये हैं अनूप शुक्ल’ तक उनकी रेंज रहती है। न हुआ तो वर्तनी पर ही टोंकते रहते हैं- श्रोत नहीं स्रोत :) । हम भी अब उनके लिखे को छिद्रान्वेषी नजरों से ही देखते हैं। उनके “पोस्ट-गुब्बारे” में सुई चुभाने की फ़िराक में रहते हैं। :)

बहरहाल मिसिरजी के बारे में कभी विस्तार से लिखा जायेगा। अभी वे फ़ुल ठीक हो लें जरा। हड़बड़ी में जितना लिखेंगे उससे ज्यादा छूट जायेगा। फ़िलहाल कुछ बातें ब्लॉगजगत के बारे में।

ब्लॉगजगत से जुड़े अपन को जुड़े आठ साल से ज्यादा होने को आये। इस दौरान तमाम बदलाव देखे। शुरुआती दौर में लोग एक दूसरे के बारे में खूब लिखते थे। एक-दूसरे की पोस्टों का जिक्र करते थे। जबाबी पोस्टें लिखते थे। पोस्ट की जबाब में पोस्ट और फ़िर प्रतिपोस्ट। धीरे-धीरे यह सिलसिला कम हुआ। कई कारण होंगे। उनमें से एक यह भी रहा कि लोग अपनी आलोचना सहन नहीं कर पाते थे। जिसकी खिंचाई हो गयी उसका मुंह फ़ूल गया। अपवाद कम ही मिले मुझे इतने दिनों के अनुभव में। कुछ ने तो कोर्ट-कचहरी की भी धमकी दी। ऐसे लोगों से (और उनसे जुड़े लोगों से भी) संबंध-संपर्क भले ही बना रहा लेकिन वे निगाह से हमेशा के लिये उतर गये। कभी सहज नहीं हो पाये उनसे। शायद न आगे हो पायेंगें। हमारे बारे में भी लोगों के कुछ विचार होंगे।

शुरुआती दिनों में यहां मामला संयुक्त परिवार सरीखा था। धीरे-धीरे एकल परिवार बने। लड़ाई-झगड़े तक कम हो गये। लोगों ने एक-दूसरे की पोस्टों का लिंक देना कम कर दिया। एक-दूसरे का जिक्र भी कम कर दिया। अभी भी शुरु में ब्लॉगर आपस में जिक्र करते हैं एक-दूसरे का। लेकिन फ़िर धीरे-धीरे समझदार लोग समझदार हो जाते हैं।

ब्लॉगिंग की शुरुआत में दो बातों का जिक्र होता था। एक तो अभिव्यक्ति की आजादी और दूसरे ब्लॉगिंग से कमाई। कमाई के किस्से तो बहुत चले। किसी ने बताया कि उसके खाते में पचास रुपये आये किसी ने बताया सत्तर। अभिव्यक्ति की आजादी तो खूब मिली। इसके साथ ही जिन अखबारों और पत्रिकाओं में न छप पाने के चलते ब्लॉग लिखने शुरु हुये होंगे उनमें ही ब्लॉगरों के लेख छपने लगे। ब्लॉगर भी खुश हो गये। मजाक-मजाक में वे लेखक बन गये। अखबार में छपने लगे।

अखबार में छपने का और लगातार छपने का साइड इफ़ेक्ट यह हुआ कि लोग अब ज्यादा से ज्यादा अखबार में छपने के लिये लालायित होने लगे। पहले जहां बात यह थी कि अच्छा लिखेंगे तो लोग ब्लॉग पर आयेंगे तो हिट्स बढ़ेंगी तो कमाई के अवसर बढेंगे। अब ब्लॉगर के दिमाग में अखबार में छपना भी दस्तक देता है। लेख का हुलिया ऐसा हो कि अखबार वाले उसे हमारे यहां से उठाकर छाप लें।

फ़ेसबुक ने और बवाल किया है। कहीं जरा सा आइडिया आया नहीं कि उसे चेंप दिया वहां पर। उसके बाद दूसरा आइडिया भी। खूब सारे आइडिया ठेल दिये जाते हैं दिन भर में। अगले दिन या उसी दिन शाम को उनको लेकर एक ठो पोस्ट तैयार हो जाती है।

ब्लॉग से कमाई का एक नया पहलू इधर सामने आया है। ब्लॉगरों की अपनी पोस्टों को छपाने की मासूम इच्छा का फ़ायदा कुछ प्रकाशकों ने उठाया। ब्लॉगरों की ब्लॉग पोस्टों के संकलन छापे। उनसे छपाई के लिये अर्थ सहयोग लिया और उनके रचनायें प्रकाशित कीं। कविताओं पर सबसे ज्यादा कृपा रही प्रकाशकों की। पता चला कि तीस-चालीस ब्लॉगर कवियों को इकट्ठा करके उनकी कवितायें छाप दीं। हरेक से दो-तीन हजार रुपये लेकर उनकी चार-पांच कवितायें संकलन में प्रकाशित की। चार-पांच प्रतियां दे दीं। विमोचन हो गया। ब्लॉगर खुश कि उसका भी संकलन छप गया। प्रकाशक खुश कि उसकी तीस-चालीस हजार की कमाई हो गयी-बिना एक भी किताब बेंचे हुये। ब्लॉगिंग अंतत: कमाई का साधन तो बन ही गया।

हमने अपने मित्र से कहा कि जो कवितायें संकलन में छपी हैं उनका जिक्र अपने ब्लॉग में कर दें ताकि हमको उनको दुबारा पढ़ सकें। ब्लॉग पर पोस्ट होने में मात्र दो रुपये लगे होंगे लेकिन कविता संकलन में छपने में उसका खर्चा पांच सौ आया। :)

हमको जब यह पता चला तो हमें इस बात की बहुत खुशी हुई कि हम कविता नहीं लिखते। यह भी लगा कि अच्छी आदतें कभी न कभी सुकून देती ही हैं।

इस बीच कलकत्ता जाना हुआ। शिवकुमार जी और प्रियंकर जी से मुलाकात हुई। चर्चा हुई कि ज्ञानजी ने लिखना कम कर दिया है। ब्लॉग छोड़ फ़ेसबुक पर टहलते रहते हैं। जब यह बताया गया ज्ञानजी को तो उन्होंने राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता की तरह उलट सवाल किया – वे ही लोग कौन तीर मार रहे हैं ब्लॉगिंग में?
अब यह चर्चा तो हुई नहीं थी वहां सो इस बात का क्या जबाब दिया जाये। :)

वैसे ज्ञानजी ने हमारे एक फ़ेसबुक स्टेटस पर यह उलाहना दिया था कि कभी हम सुबह-सुबह चिट्ठाचर्चा करते थे। (अब खाली स्टेटस ठेलते हैं)। अब उनकी इस बात का क्या जबाब दिया जाये बताइये भला। :)
नोट: ऊपर की पहली फोटो कलकत्ता एयरपोर्ट के बाहर की। दूसरी फोटो हमारे बगीचे की।

18 responses to “ब्लॉगजगत के बहाने इधर-उधर की”

  1. aradhana
    आप भी न. कुरेदने से बाज नहीं आयेंगे. अब झेलियेगा अरविन्द जी को. बहुत दिनों से वैसे भी लड़ाई नहीं हुयी. ब्लॉगजगत सूना-सूना लग रहा है :)
    “यह भी लगा कि अच्छी आदतें कभी न कभी सुकून देती ही हैं।” कविता न करना अच्छी आदत हैं- हैं. कवियों से भी निपटिए. हम खिसकते हैं. जब थोड़ा तमाशा हो जाएगा, तब आयेंगे :)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..New Themes: Blocco, Crafty, and Hustle Express
  2. eswam
    चिट्ठाकारी तो क्या गुरुदेव अब तो फेसबुक से भी लोग ऊब चुके हैं – पेंडुलम की तरह होते हैं शगल एक अति से दूसरी अति तक जाते हैं – इन्टरनेट का जादू ये है की एक चीज़ उबाए उस से पहले दूसरी हाज़िर हो जाती है – और इस नयेपन के नशे का ज़माना लती हो गया है.. अज्ञानीलोग “परिवर्तन ही एक शाश्वत है” और “ये विकल्पों का दौर है” जैसी बातें करते रहते हैं .. अरे यार स्वीकार लो ना की नेट लती हो – कहीं ना कहीं टाईम तो खोटी करना ही है. :)
    eswam की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
    1. Gyandutt Pandey
      अरे, फेसबुक से भी कोई ज्यादा ताजा-टटका नशा आ गया है क्या? हमें पता ही न चला! फुरसतियऊ नहीं बताये – जब तब फोन पर बात तो हो लेती है!
      Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..बिसखोपड़ा
  3. shikha varshney
    @ संयुक्त परिवार एकल सा हो गया है . यह खूब रही :). इसलिए नोक झोंक , उठा पटक कम हो गई है. परन्तु आप- हम जैसे काफी लोग अभी भी ब्लॉग्गिंग में लगे ही हुए हैं.
    ब्लॉग जगत के बहाने गुब्बारे में सूई चुभा ही दी है आपने. हम भी अराधना की तरह आते हैं बाद में धमाका देखने हा हा हा .
  4. प्रवीण पाण्डेय
    यह राह अभी बड़ी दूर तक जायेगी, एक दशक में इतना दिखा दिया है, अगले दशक में आश्चर्य से आँखें मूँद लेंगे।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..अनिश्चितता का सिद्धान्त
  5. दयानिधि
    बड़ा ही आनंद आया और आइडिया भी जोरदार है. मैं भी लग जाता हूँ संकलन में और प्रकाशन में. धन्यवाद.
    दयानिधि की हालिया प्रविष्टी..जूता चल गया
  6. गिरीश बिल्लोरे
    सुकुल जी महाराज की जै हो
    आगे सब खैरियत है
    आलेख ग़ज़ब धार का लिक्खे हो मनीजर सा’ब
    एक बात कहे चाहता हूं
    मज़े तो सबके लेते हौ आप :)
    गिरीश बिल्लोरे की हालिया प्रविष्टी..आतंकवाद क्या ब्लैकहोल है सरकार के लिये
  7. संतोष त्रिवेदी
    हमारे मतलब का इत्ता ही निकला ‘कुछ ब्लॉगर अब लेखक बन गए हैं ‘
    .
    .हम तो बहुत मजे में हैं, तब भी थे !
  8. shefali
    ऐसी बात तो नहीं है ….कविता अच्छे खासी कर लेते हैं आप ….
  9. arvind mishra
    आखिर झेल न सके आप:-) मुझे तो लगता है कि मेरे लेखो को देख आप अदबदा कर जवान हुये! जाकी रही भावना जैसी.।।।
  10. सतीश सक्सेना
    मिश्र जी के बिना आपको भी नींद नहीं आती :)
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..मैं अब खुश हूँ … – सतीश सक्सेना
  11. संजय @ मो सम कौन
    आपकी पोस्ट्स का संकलन का कब आ रहा है? :)
    संजय @ मो सम कौन की हालिया प्रविष्टी..धुंधली सी धुंध…..कहानी.(समापन)
  12. Abhishek
    :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..नए जमाने के विद्वान (पटना १६)
  13. arvind mishra
    हिन्दी ब्लॉग जगत में वे भी साहित्यकार -व्यंगकार होने का मुगालता पाल बैठे हैं जिन्हें श्रोत और स्रोत शब्द में फर्क नहीं दिखता :-( बेहतर हो वे पताका “क” और “ख” तक की बाबूगीरि तक ही सीमित रहें -हिन्दी साहित्य लेखन में दाल नहीं गलने वाली है बच्चू!
    अंगरेजी में भाग्य आजमा सकते हैं!
    1. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
      ऊड़ीबाबा… :D
      सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..फरवरी यूँ बीती…
  14. देवांशु निगम
    ज्ञान जी की बात को हलके में ना लिया जाए | एक बार फिर से चिट्ठाचर्चा की जोरदार फरमाइश हमारी तरफ से भी है |
    वैसे जवाबी पोस्टें पढ़ने में मज़ा बड़ा आता है , मामला थोड़ा कम हो गया है | खिंचाई के लिए भी फेसबुक ज्यादा बढ़िया प्लेटफोर्म दिख रहा है , टैगिया दिए सबको, इन्टीमेशन पहुँच गया | लेओ जवाब दे दनादन | :) :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..वो दिन कैसा होगा !!!!
  15. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] ब्लॉगजगत के बहाने इधर-उधर की [...]

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