रसीद नाम है इनका। खेत खलिहान बाग़ बगीचे में मजदूरी का काम करते हैं। जान पहचान के लोग बुलाते रहते हैं। आज भी एक ने बुलाया था। वहीं जा रहे थे। रस्ते में पुलिया पड़ी तो बीड़ी फूंकते हुए आरामफर्मा हो लिए। मजदूरी के 150 से 200 रूपये तक मिल जाते हैं रोज।
3 लड़के और 2 लड़कियों के बाप रसीद शुरूआती पढ़ाई के बाद नहीं पढ़े। 2 या 3 तक पढ़े हैं। सरकण्डे की कलम और होल्डर से लिखना याद है। पुलिया पर लिखकर भी बताया। बोले -समय की पढ़ाई बढ़िया होती थी। अख़बार वगैरह बांच लेते हैं।
बीड़ी, पान और चाय के शौक़ीन रसीद इसीलिये रोजा भी नहीं रहते क्योंकि भूख तो सध जाती पर बीड़ी की तलब पर वश नहीं। लड़के रहते हैं रोजा। 2 बण्डल बीड़ी पी जाते हैं रोज। हमने कहा सेहत को नुकसान होगा। देखो साँस फूल रही तुम्हारी तो बोले-अब आदत पड़ गयी। बाकी इस उमर में बीमारियां तो पकड़ने को दौड़ती ही हैं।
कभी-कभी दोस्तों के साथ दारू भी पी लेते हैं। बढ़िया कच्ची मिल गयी तो।
बीबी टोकती नही दारू और बीड़ी के लिए यह पूछने पर बोले-अब क्या ठोकेगी? वो अपनी बहु बच्चों में मस्त रहती है। हम बाहर पड़े रहते हैं अपने में मस्त।
बीबी का नाम अफ़साना बेगम बताया रसीद ने। हमने पूछा-अलग पड़े रहते हो मतलब बीबी से बातचीत मोहब्बत ख़त्म हो गयी क्या? इस पर रसीद मुस्कराते गए बोले-अरे अब बहू बेटों के सामने उसके बगल में साथ में थोड़ी बैठते हैं। बाकी तो आदमी बन्दर की औलाद होता है। कित्ता भी बुढ्ढा हो जाये लेकिन कुलाटी मारना थोड़ी भूलता है।
सुबह चार बजे उठकर चाय की दुकान पर चाय पीने चले जाते हैं। सब्जी भाजी ले आते हैं। गैस फैस का काम कर देते हैं। फिर जहां काम मिलता है निकल लेते हैं। कभी-कभी एकाध रोज बाहर ही रह जाते हैं। घर में सबको पता है कोई परेशान नहीं होता।
150 से 200 से रूपये रोज कमाने वाले 45 साल के रसीद को जिंदगी से कोई शिकायत नहीं। खुशहाल हैं। मजे में हैं।
मैं यह सोचते हुए दफ्तर चला गया कि क्या खुशहाली का इनकम से कोई सम्बन्ध होता है?