Friday, August 27, 2004

फुरसतिया बनाम फोकटिया

जब मैनें देखादेखी ब्लाग बनाने की बात सोची तो सवाल उठा नाम का.सोचा

फुरसत से तय किया जायेगा.इसी से नाम हुआ फुरसतिया.अब जब नाम हो

गया तो पूछा गया भाई फुरसतिया की जगह फोकटिया काहे नही रखा नाम.

हम क्या बतायें?अक्सर ऐसा होता है कि काम करने के बाद बहाना तलाशा

जाता है.यहाँ भीयही हुआ.तो बहाना यह है कि ब्लाग फुरसत में तो बन

सकता है पर फोकट में नहीं.इसलिये नाम को लेकर हम निशाखातिर हो गये.

अब बची बात काम की.तो वो भी शुरुहुआ ही समझा जाये.आगे के अंकों में

और बात आगे बढाई जायेगी.फिलहाल मेरे हालिया पसंदीदा शेर से बात

खतम करता हूं:-

१.मैं कतरा सही मेरा अलग वजूद तो है,
हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश मे है.

२.मुमकिन है मेरी आवाज दबा दी जाये
मेरा लहजा कभी फरियाद नहीं हो सकता.

फिलहाल इतना ही .जल्दी ही बात आगे बढेगी.



Friday, August 20, 2004

अब कबतक ई होगा ई कौन जानता है