Saturday, October 30, 2010

वर्धा-हिंदी का ब्लॉगर बड़ा शरीफ़ टाइप का जीव होता है

http://web.archive.org/web/20140419215716/http://hindini.com/fursatiya/archives/1748

वर्धा-हिंदी का ब्लॉगर बड़ा शरीफ़ टाइप का जीव होता है

image वर्धा के बारे में लिखने का सिलसिला एक बार टूट गया। बीस दिन पहले हुयी घटना अब लगता है कोई बहुत पहले की बात है।

वर्धा का ब्लॉगर सम्मेलन महात्मा गांधी विश्वविद्यालय वर्धा ने करवाया था। किसी और विश्वविद्यालय ने इस तरह की कोई पहल क्यों नहीं की अब तक क्या यह सोचने की बात है?
यह संयोग ही रहा कि हिंदी के ब्लॉगरों में से एक सिद्धार्थ ने ब्लॉगिंग से जुड़ी बातें विभूति राय जी को बताईं। वे वर्धा विश्वविद्यालाय के कुलपति हैं। हिंदी का प्रचार-प्रसार करना भी विश्वविद्यालय के कार्यक्षेत्र में आता है। ब्लॉगिंग की संभावनाओं को देखते हुये उन्होंने पिछले वर्ष इलाहाबाद में सम्मेलन कराने की सहमति दी। उस सम्मेलन की जमकर तारीफ़ और आलोचनायें हुईं। इसके बाद इस साल फ़िर सम्मेलन कराया जाना इस बात का संकेत का है कि वे इस माध्यम को हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये एक उपयुक्त माध्यम माध्यम मानते हैं। यह सच भी है। पिछले चार-पांच सालों में नेट पर हिन्दी की उपलब्धता बढ़ी है उसमें हिंदी ब्लॉगिंग का बहुत बड़ा योगदान है। ब्लॉगरों ने खुद लिखने के साथ-साथ अपनी पसंद की रचनायें नेट पर डालीं। कविता कोश, कहानी कोश , ई-कविता, विकीपीडिया और इसी तरह के तमाम छुटके-बड़के प्रयासों के चलते हिंदी नेट पर बढ़ी है!
इस मामले में उनकी सोच की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि उन्होंने इस नये माध्यम की उपयोगिता को पहचाना और इससे जुड़े लोगों को बुलाकर सम्मेलन कराया।
ब्लॉगिंग को एक संभावनाशील माध्यम मानते हुये इससे जुड़े लोगों को बुलाना और उनका सम्मेलन कराना अच्छी बात है। अब कौन लोग आये और कौन लोग नहीं आये। क्यों आये और क्यों नहीं आये। क्यों बुलाये गये और क्यों नहीं बुलाये गये। इस बात पर बहस की हमेशा संभावना रहेगी। जो लोग अपने बुलाये जाने और न बुलाये जाने की बात पर पोस्टें लिख रहे हैं उनसे अगर कहा जाये कि वे तीस ब्लॉगरों को बुलाने के लिये कोई सर्वमान्य फ़ार्मूला सुझायें तो शायद वे जो भी फ़ार्मूला सुझायें उससे असहमत न जाने कितने फ़ार्मूले तुरंत टिप्पणी में आ जायेंगे।
इलाहाबाद में हुये सम्मेलन में अपने को प्रगतिशील मानने वाले ब्लॉगर बहुतायत में थे। तब सुरेश चिपलूनकर ने विरोध किया था कि वहां हिंदूवादी ब्लॉगर क्यों नहीं बुलाये गये। शायद वर्धा में इस बात की कमी पूरी हुई। शायद इस बार जो लोग नहीं आये वे अगली बार बुलायें जायें। बहुत से ब्लॉगर साथी समय और साधन की कमी के चलते न आ पाये। कुछ लोगों के न आने के कारण सैद्धांतिक भी रहे शायद।
imageवर्धा सम्मेलन मेरे लिये अपने उन साथियों से मिलने का बहाना रहा जिनको मैं पढ़ता आया था, बात की थी लेकिन मिलना-जुलना बाकी था। लोगों के बारे में जो धारणायें बनायी थीं कुछ लोग उनसे धुर उलट थे और कुछ लोग एकदम वैसे ही। सारे आयोजन से एक बात समझ में आयी कि हिंदी का ब्लॉगर बड़ा शरीफ़ टाइप का जीव होता है। अनुशासित। अल्प संतोषी। मिलन-जुलन से संतुष्ट हो जाने वाले लोग, सब लोग बड़े भले लगे।
वर्धा में आलोक धन्वा और राजकिशोर जी मिलना बड़ा अनुभव जन्य रहा। आलोक जी ने तो प्रियंकर जी और कविता जी को सर्टिफ़ाइड कवि बताया लेकिन इन दोनों सर्टिफ़ाइड कवियों ने अपनी कवितायें किताब से देखकर पढ़ी। लगा कि ये सर्टिफ़ाइड कवि –कविता लिख किताब में डाल घराने के कवि हैं। मेरी समझ में एक कवि को अपनी अच्छी रचनायें तो याद करके रखनी ही चाहिये।
राजकिशोर जी की भाषा और उनके लेखों पर भी काफ़ी बात हुई। उनकी सहज-सरल भाषा के बहुत मुरी हैं लोग। नियमित ब्लॉगिंग में आने की बात को सही मानते हुये भी राजकिशोर जी ने अपनी राय बताते हुये कहा कि यहां मैं का बोलबाला है। ब्लाग लेखन में मै हावी है।
आलोक धन्वाजी की कविता के साथ मैंने उनका एक वक्तव्य भी टेप किया। इसमें उन्होंने आज  के बारे में अपनी राय जाहिर करते हुये बताया था कि हम बहुत कठिन समय से गुजर रहे हैं। एक वाक्य में गुजरात पर अपनी बात कहते हुये कुछ बुराई की। सुनते ही संजय बेंगाणी संवेदित हो गये और कहा- आप इसको डालियेगा ब्लॉग पर फ़िर मैं अपनी बात लिखूंगा।
जब आलोक धन्वा जी यह बात कह रहे थे तब मुझे लग रहा था कि क्या सच में हम इतने कठिन समय से गुजर रहे हैं कि सारी चीजें नकारात्मक नजर आयें। इस बारे में फ़िर कभी।

विश्वविद्यालय की साइट का उद्घाटन भी हुआ था। इसके संचालन का काम  प्रीति सागर कर रही हैं। आप देखिये साइट में कैसी उपयोगी सामग्री है।

और तमाम यादें वर्धा के बारे में फ़िर कभी। फ़िलहाल इतना ही। :)
यहां देखिये/सुनिये आलोक धन्वा जी का वक्तव्य। वर्धा सम्मेलन से जुड़ी फोटो देखने के लिये यहां जायें।

31 responses to “वर्धा-हिंदी का ब्लॉगर बड़ा शरीफ़ टाइप का जीव होता है”

  1. ajit gupta
    कविता लिखना और कविता को पढना दोनों अलग बात हैं। जो मंच के कवि हैं वे अभ्‍यास के कारण बिना देखे ही पढते हैं। इसलिए आपकी व्‍याख्‍या कुछ समझ नहीं आयी।
  2. sanjay
    सारे आयोजन से एक बात समझ में आयी कि हिंदी का ब्लॉगर बड़ा शरीफ़ टाइप का जीव होता है।
    और पाठक उठा-पटक करने वाला…….
    बाकी हर एक की अपनी पसंद अपनी चाहत होती है। सीमायें भीं।
    सच्ची-मुच्ची बात.
    प्रणाम.
  3. Nishant Mishra
    जी. आयोजकों की विवशताएँ और समस्याएं समझ में आती हैं.
    ब्लौगिंग ही क्या, हर क्षेत्र में सभी को साथ ले सकना और लेकर चलना लगभग असंभव ही है.
    और एक पोस्ट लोगों के नहीं आ सकने के सैद्धांतिक कारणों पर भी आ जाये तो बात बने.
    Nishant Mishra की हालिया प्रविष्टी..अपनी कथा कहो…
  4. satish saxena
    भाई जी ,
    लगता है हड़बड़ी में ठेल दी यह पोस्ट ! नीरस गंभीर सी ….लग ही नहीं रहा अनूप दद्दा ने लिखी है !
    :-(
    satish saxena की हालिया प्रविष्टी..घर में जहरीले वृक्ष लिए क्यों लोग मानते दीवाली -सतीश सक्सेना
  5. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    सच- मुच
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..अच्छाई को सजोना पड़ता है जबकि बुराई अपने आप फैलती है…।
  6. shahid mirza shahid
    अच्छी रिपोर्ट है.
  7. इस्मत ज़ैदी
    अनूप जी ,
    आप इसी तरह लिखते रहें और हम लोग सम्मेलन का मज़ा लेते रहें
    मैं अजित जी की बात से सहमत हूं कि कविता लिखना और उन्हें याद रखना २ अलग चीज़ें हैं एक तो सब की याददाश्त इतनी अच्छी नहीं होती ,दूसरे हम लोग जो कवि सम्मेलनों और मुशायरों में नहीं जा पाते उन का अभ्यास तो होता नहीं तीसरी बात कुछ लोग अपनी भावनाएं जितनी अच्छी तरह लेखन में व्यक्त कर सकते हैं बोल कर नहीं कर पाते इसलिए कवि हमेशा अपनी कविता ज़बानी याद रख सके ये ज़रूरी नही,
  8. jai kumar jha
    ब्लॉगिंग को एक संभावनाशील माध्यम मानते हुये इससे जुड़े लोगों को बुलाना और उनका सम्मेलन कराना अच्छी बात है। अब कौन लोग आये और कौन लोग नहीं आये। क्यों आये और क्यों नहीं आये। क्यों बुलाये गये और क्यों नहीं बुलाये गये। इस बात पर बहस की हमेशा संभावना रहेगी। जो लोग अपने बुलाये जाने और न बुलाये जाने की बात पर पोस्टें लिख रहे हैं उनसे अगर कहा जाये कि वे तीस ब्लॉगरों को बुलाने के लिये कोई सर्वमान्य फ़ार्मूला सुझायें तो शायद वे जो भी फ़ार्मूला सुझायें उससे असहमत न जाने कितने फ़ार्मूले तुरंत टिप्पणी में आ जायेंगे….
    इस पर मेरी राय यह है की विश्वविध्यालय हर साल एक ही ब्लोगर को ना बुलाये बल्कि उन ब्लोगरों को मौका दें जो नए तो हैं लेकिन ब्लोगिंग की पूरी मर्यादा को साथ रखते हुए ब्लोगिंग कर रहें हैं…खासकर ग्रामीण क्षेत्र के उन ब्लोगरों को प्राथमिकता दिया जाना चाहिए जो सामाजिक सरोकार और ब्लोगिंग को जोरकर देश और समाजहित में ब्लॉग लिख रहें हैं ….
    साथ ही विश्वविध्यालय उन ब्लोगरों को कभी ना बुलाये जो दो चार ब्लॉग सही ID से चालातें हैं और फर्जी ID के सहारे रोज नए ब्लॉग बनाते हैं तथा अपनी पोस्टों पर फर्जी ID के सहारे टिप्पणियां भी करतें हैं …ऐसे लोगों की पहचान कर उनको दरकिनार किया जाना चाहिए क्योकि ब्लोगिंग के लिए सबसे शर्मनाक स्थिति ऐसे लोगों की वजह से पैदा होता है …ऐसे लोगों की पूरी प्रमाणिकता के साथ मैंने लिस्ट बनायीं है जिसे मैं विश्वविध्यालय को भेजूंगा …
  9. सुरेश चिपलूनकर
    अब आपने हमें नाम लेकर गौरवान्वित किया है तो, मैं संजय बेंगाणी जी का इंतज़ार कर रहा हूं कि वे आयें और अपनी सौम्य भाषा में टिप्पणी करें… उसके बाद मैं कुछ कहूंगा… :) :)
    रूस और हिटलर से लेकर कम्युनिज़्म तक… धन्वा जी की हर बात का जवाब है, और दिया भी जा सकता है, लेकिन उमर का फ़ासला बहुत ज्यादा होने के कारण “समुचित जवाब” देने में थोड़ा संकोच होता है… । फ़िर धन्वा जी, एमएफ़ हुसैन जितने “महान” भी नहीं हैं कि हम “समुचित जवाब” दें… :)
    =======
    नोट – इलाहाबाद ब्लॉगर सम्मेलन के बाद हुए विवाद की शुरुआत “हिन्दूवादी” शब्द (अथवा बुलाने या नहीं बुलाने) को लेकर हुई ही नहीं थी, बल्कि प्रमेन्द्र प्रताप सिंह के साथ हुए व्यवहार को लेकर हुई थी, और मुख्यतः नामवर सिंह की उपस्थिति को लेकर हुई थी… जो बाद में “हिन्दूवादी” और “प्रगतिशील”(?) की तरफ़ मुड़ गई…(या मोड़ दी गई)।
    सुरेश चिपलूनकर की हालिया प्रविष्टी..सर्वोच्च न्यायालय के कुछ भ्रष्ट जजों की संदिग्ध करतूतें… भाग-1 Corruption in Indian Judiciary System Part-1
  10. संजय बेंगाणी
    आपने अपना वादा निभाया है और मैं अपना निभाऊँगा. समस्या समय को लेकर है. देखते है….
  11. shefali pande
    अपनी कविता तो मुझे भी याद नहीं होती…..या करने की कोशिश नहीं होती है …बहरहाल आलोक जी को सुनकर अच्छा लगा |
  12. वन्दना अवस्थी दुबे
    “लगा कि ये सर्टिफ़ाइड कवि –कविता लिख किताब में डाल घराने के कवि हैं। ”
    :) हम्मम्मम्म………………होता है, अक्सर ऐसा होता है. वैसे खुद की कुछ अच्छी रचनाएं याद होनी ही चाहिए. आलोक जी को सुनना अच्छा लगा.
    वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..सब जानती है शैव्या
  13. विवेक सिंह
    वर्धा की पोस्टों के बीच बीच में कुछ फ़ुरसतिया पोस्ट भी तो हों ।
    विवेक सिंह की हालिया प्रविष्टी..जली तो जली पर सिकी भी खूब
  14. rishabha deo sharma
    मनुष्यता के खिलाफ चल रही साज़िश का सामना करने के लिए एकजुट होने का आलोकधन्वा का आह्वान प्रेरक है.
    rishabha deo sharma की हालिया प्रविष्टी..कविता वाचक्नवी के साक्षात्कार का पुनर्प्रसारण ३१ अक्टूबर को
  15. अविनाश वाचस्‍पति
    कविता याद तो तब रखी जाए, जब सुनाने के दाम मिलें, तब याद करने में दम लगाया जाये अन्‍यथा तो यूं ही फुरसत में किताब से पढ़कर कर कविताया जाये।
    अविनाश वाचस्‍पति की हालिया प्रविष्टी..दीवाली निकाल रही है दिवाला – कैसे दूं शुभकामना
  16. अविनाश वाचस्‍पति
    और हां जिसमें जीवन है। जो जिये और जीने दो में यकीन रखता है, वो तो शरीफ ही होगा। चाहे वो ब्‍लॉगर हो या बेब्‍लॉगर हो
    अविनाश वाचस्‍पति की हालिया प्रविष्टी..अमिताभ बच्‍चन का अंगूठा
  17. रंजना.
    अपनी लिखी हुई कोई भी रचना मुझे कभी याद नहीं रहती….
    लिक्खाड़ बनने का अपना सपना तो सपना ही रह गया…ओह !!!!
    रंजना. की हालिया प्रविष्टी..अमरबेल
  18. रंजना.
    सिद्धार्थ जी के प्रयास ने मुझे अभिभूत किया है….
    ब्लोगिंग को मंच और मान्यता मिलनी ही चाहिए,क्योंकि बहुत कुछ है इसमें जो साहित्य को समृद्धि दे रहा है…
    रंजना. की हालिया प्रविष्टी..अमरबेल
  19. Abhishek
    … संजयजी को फुर्सत मिलने का इंतज़ार करते हैं.
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..दास्तान-ए-चौपट वीकेंड
  20. जी.के. अवधिया
    दीपावली के इस शुभ बेला में माता महालक्ष्मी आप पर कृपा करें और आपके सुख-समृद्धि-धन-धान्य-मान-सम्मान में वृद्धि प्रदान करें!
  21. Gyan Dutt Pandey
    हिन्दी ब्लॉगर का साटिकफीटिक क्या लगायें। हम तो शरीफै हैं। :)
    Gyan Dutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..भाग ७ – कैलीफोर्निया में श्री विश्वनाथ
  22. aprna
    मै खुश हूँ कि ब्लागर सरीफ टाईप का होता है , कभी फुर्सत हो तो कृपया पाठकों के बारे मै भी कुछ लिखियेगा ।
  23. Pramendra Pratap Singh
    वर्धा की बाते पढ़ कर काफी अच्छा लगा, आज काफी दिनों बाद आया, कई नै बाते जानने को मिल रही है.
    Pramendra Pratap Singh की हालिया प्रविष्टी..एक कुत्ते की बात
  24. Priti Krishna
    Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…
  25. Priti
    Praveen Pandey has made a comment on the blog of Mahatma Gandhi Hindi University , Wardha on quality control in education…He has correctly said that a lot is to be done in education khas taur per MGAHV, Wardha Jaisi University mein Jahan ka Publication Incharge Devnagri mein ‘Web site’ tak sahi nahin likh sakta hai..jahan University ke Teachers non exhisting employees ke fake ICard banwa kar us per sim khareed kar use karte hain aur CBI aur Vigilance mein case jaane ke baad us SIM ko apne naam per transfer karwa lete hain…Jahan ke teachers bina kisi literary work ke University ki web site per literary Writer declare kar diye jaate hain..Jahan ke blog ki moderator English padh aur likh na paane ke bawzood english ke post per comment kar deti hain…jahan ki moderator ko basic technical samajh tak nahi hai aur wo University ke blog per jo post bhejti hain wo fonts ki compatibility na hone ke kaaran readable hi nain hai aur sabse bada Ttamasha Siddharth Shankar Tripathi Jaise log karte hain jo aisi non readable posts per apne comment tak post kar dete hain…sach mein Sudhar to Mahatma Handhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha mein hona hai jahan ke teachers ko ayyashi chod kar bhavishya mein aisa kaam na karne ka sankalp lena hai jisse university per CBI aur Vigilance enquiry ka future mein koi dhabba na lage…Sach mein Praveen Pandey ji..U R Correct…. बहुत कुछ कर देने की आवश्यकता है।
  26. Priti
    महोदय/महोदया
    आपकी प्रतिक्रया से सिद्धार्थ जी को अवगत करा दिया गया है, जिसपर उनकी प्रतिक्रया आई है वह इसप्रकार है -
    प्रभात जी,
    मेरे कंप्यूटर पर तो पोस्ट साफ -साफ़ पढ़ने में आयी है। आप खुद चेक कीजिए।
    बल्कि मैंने उस पोस्ट के अधूरेपन को लेकर टिप्पणी की है।
    ये प्रीति कृष्ण कोई छद्मनामी है जिसे वर्धा से काफी शिकायतें हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस ब्लॉग के संचालन के बारे में उन्होंने जो बातें लिखी हैं वह आंशिक रूप से सही भी कही जा सकती हैं। मैं खुद ही दुविधा में हूँ।:(
    सादर!
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
    वर्धा, महाराष्ट्र-442001
    ब्लॉग: सत्यार्थमित्र
    वेबसाइट:हिंदीसमय
    इसपर मैंने अपनी प्रतिक्रया दे दी है -
    सिद्धार्थ जी,
    मैंने इसे चेक किया, सचमुच यह यूनिकोड में नहीं है शायद कृतिदेव में है इसीलिए पढ़ा नही जा सका है , संभव हो तो इसे दुरुस्त करा दें, विवाद से बचा जा सकता है !
    सादर-
    रवीन्द्र प्रभात
  27. sanjay
    संजय जी के साथ साथ अब आपका भी इंतजार कर रहे हैं……..
    पाठकों से कोई खतावार होता है क्या ……..
    इधर उधर की खाते खाते पेट में गैस हो गया …… अपना रापचिक पाचक भिजवायें…….
    प्रणाम.
  28. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] वर्धा-हिंदी का ब्लॉगर बड़ा शरीफ़ टाइप का… [...]
  29. Diablo 3 Rmah
    About time someone has worked…. Gold farming ruins it for all those….

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Monday, October 25, 2010

वर्धा –कुछ और बातें

http://web.archive.org/web/20140419215409/http://hindini.com/fursatiya/archives/1745

वर्धा –कुछ और बातें

image आलोक धन्वा जी के बाद बोलने का हमारा नम्बर था। हमने मंच पर पहुंचकर सबसे पहले ब्लॉग जगत से जुड़े अपने पुराने साथियों को याद किया। रविरतलामी, देबाशीष चक्रवर्ती, आलोक कुमार, जीतेन्द्र चौधरी और पंकज नरूला। इसके बाद मैंने सिद्धार्थ त्रिपाठी की जमकर तारीफ़ की। सिद्धार्थ ने ब्लॉगिंग से जुड़े तीन सम्मेलन कराये हैं। तीनो सम्मेलन के लिहाज से सफ़ल रहे हैं। कमियां तो लोगों ने बताई ही लेकिन यह भी सच है वैसे सम्मेलन और किसी ने कराये नहीं।
सिद्धार्थ की तारीफ़ करके मुझे आत्मिक सुख मिला। मेरी समझ में सिद्धार्थ का  मन बड़ा है। उनकी दर्शन शास्त्र की पढ़ाई भी काफ़ी कुछ काम आती होती होगी और वे अपनी आलोचनाओं , जिनमें तमाम बेसिरपैर की होती हैं, सहज भाव से ग्रहण कर लेते हैं। यह बड़ी बात है।
अपनी बात कहते हुये मैंने जो कहा वह यहां बता चुके हैं। मेरी समझ में चिट्ठाकारी की आचारसंहिता की अलग से बात करना खामख्याली की बात है। ब्लॉगिंग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों पर जो नियम लागू होंगे वही ब्लॉगिंग पर भी लागू होंगे।  समय, समाज के कानून ब्लॉगिंग पर भी लागू होंगे। अलग से इनके लिये आचार संहिंता की बात मेरी समझ में गैरजरूरी है। मैंने यह भी कहा कि जैसा व्यक्ति होगा वैसी ही उसकी अभिव्यक्ति होगी। अपने व्यक्तित्व से अलग लेखन कोई बहुत दिनों तक नहीं कर सकेगा।
image मैंने यह भी कहा कि ब्लॉगिंग आज की तारीख में अभिव्यक्ति का सबसे तेज दुतरफ़ा माध्यम है। और कोई माध्यम ऐसी नहीं है जिसमें अभिव्यक्ति और उसपर प्रतिक्रिया की इतनी व्यापक संभावनायें हों। ब्लॉगिंग नयी विधा है। इसके प्रति मीडिया, साहित्यकार, पत्रकार और अन्य वर्ग के स्थापित लोग उपेक्षा भाव रखकर शायद अपना ही नुकसान कर रहे हैं।
आगे मैंने कहा कि ब्लॉग पर पहली पोस्ट लिखने में ब्लॉगर को वही सुख मिलता है जो शायद एक कवि को अपनी पहली रचना में मिलता है। एक स्थापित कवि के कविता संकलन की पांच-सौ हजार प्रतियां छपती हैं। उनमें ने ज्यादातर थोक में कहीं खरीदी जाकर पड़ी रहती हैं। लेकिन ब्लॉगिंग में यह सुविधा है कि आप अगर अच्छा लिखते हैं तो अनगिनत लोगों तक आपकी पहुंच हो सकती है।
ब्लॉगिंग को साहित्य तक सीमित करके देखना सही नहीं है। यह तो रसोई गैस की तरह है जिसमें आप हर तरह का सामान बना सकते हैं।
मेरे बाद बोलने आये ऋषभ देव शर्मा जी सभी वक्ताओं के भाषण का सार प्रस्तुत करते हुये अपनी बात कही। उन्होंने इस बात पर चिंता जाहिर की आजकल के बच्चे सोशल नेटवर्किंग साइट्स के छलावों के शिकार हो रहे हैं। झूठी आई डी बनाकर ऐसी हरकतें कर रहे हैं जिससे उनका व्यक्तित्व ऋषभ देव जी की चिंता एक अविभावक की चिंता थी। बेनामी  ब्लॉगरों के बारे में अपनी बात कहते हुये उन्होंने कहा:
image बेनामी बड़े-बड़े काम करते होंगे मैं उनका अभिनंदन करता हूं। लेकिन इसको नियम नहीं बनाया चाहिये। मेरे परिचय क्षेत्र में कई लोग हैं जिन्होंने अपने सूचनायें झूठी दी हैं। पाखंड हर जगह निंदनीय है। ब्लॉगिंग कोई खिलवाड़ नहीं है। यह नैतिक कर्म है(नित्य कर्म नहीं  ) बच्चों बताते हैं कि उनसे कोई पूछता नहीं है। वरिष्ठ और कनिष्ठ न भी माने तो अनुभवी और कम अनुभवी का अन्तर तो रहेगा ही। मेरी चिंता का कारण बच्चे हैं जो झूठी पहचान बनाकर गलत हरकतें कर रहे हैं।
जिस बात को सार्वजनिक रूप से नहीं कह सकते वह ब्लॉग पर भी कहने का हक हमें नहीं है। हममें यह हिम्मत होनी चाहिये कि जिसे हम सही समझते हैं वह कह सकें।
इसके बाद दोपहर को कार्यशाला हुयी। फ़िर शाम को ग्रुप डिस्कसन। इसके बाद खाने के पहले कवि सम्मेलन। लोगों ने अपनी-अपनी कवितायें पढ़ीं। ज्यादातर लोगों ने अपनी कवितायें पढ़कर पढ़ीं। मुझे लगता है कि कवि को कवि से कम अपनी कवितायें तो याद होनी ही चाहियें।
नीचे आलोक धन्वा जी की दो कवितायें उनकी ही आवाज में सुनिये।

23 responses to “वर्धा –कुछ और बातें”

  1. jai kumar jha
    सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती….
  2. Abhishek
    बड़ा संक्षेप में लिख रहे हैं आप. फुरसतिया के हिसाब से बहुत छोटी पोस्ट लगी :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..दास्तान-ए-चौपट वीकेंड
  3. Shiv Kumar Mishra
    एक और सुन्दर पोस्ट!
    सिद्धार्थ जी ने तीन अच्छे सम्मेलन करवाया. सचमुच बहुत मेहनत का काम है. यह सिलसिला चलता रहे तो बढ़िया रहेगा. आलोक धन्वा जी की कविता अभी तक नहीं सुनी है. सुनूंगा.
    Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..टैलेंट की नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है
  4. मनोज कुमार
    अगले अंक में यह भी बताइए कि कार्यशाला में क्या हुआ, क्या सीखा?
    यह वर्णन रोचक रहा।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..कविता – पता पूछते हैं लोग
  5. शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
    आदरणीय अनूप जी, बहुत अच्छी रिपोर्ट पेश की जा रही है…बधाई.
    वैसे ब्लॉगिंग के लिए आचार संहिता और नियंत्रण का होना ज़रूरी है, ताकि मर्यादा और गरिमा कायम रह सके.
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद की हालिया प्रविष्टी..जज़्बात – एक साल का सफ़र
  6. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    यह एक सजोने लायक दस्तावेज तैयार हो रहा है। शुक्रिया।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..अच्छाई को सजोना पड़ता है जबकि बुराई अपने आप फैलती है…।
  7. रंजना.
    आपलोगों ने जिस तरह से वहां का विवरण प्रस्तुत किया है,सशरीर उपस्थित न होते हुए भी वहां उपस्थित रहने का सुख मिल गया…
    आभार आपका !!!
    रंजना. की हालिया प्रविष्टी..अँधा प्रेम !!!
  8. प्रवीण पाण्डेय
    बार बार वर्धा के बारे में पढ़कर भी नयापन बना रहता है। पता नहीं क्यों?
  9. satish saxena
    संक्षिप्त मगर बढ़िया रही अनूप भाई !धन्यवाद !
    satish saxena की हालिया प्रविष्टी..इन फूलों को अपमानित कर- क्यों लोग मनाते दीवाली -सतीश सक्सेना
  10. प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
    सिद्धार्थ जी के बारे में आपकी राय से सबको इत्तेफाक रखना ही चाहिए !
    बकिया इत्ते संक्षेप में क्यूं?….कम से कम फ़ुरसतिया की तो लाज राखी होती? :-)
    प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI की हालिया प्रविष्टी..यह किस्सा भी बेशर्म भारतीय राजनीति में निर्लज्जता का ही अध्याय है
  11. वन्दना अवस्थी दुबे
    सुन्दर वृतांत, बढिया सारगर्भित भाषण था आपका, बहुत सी सच्ची बातों को समेटे हुए. धन्वा जी की कविताएं सुनवाने के लिये आभार.
    वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..इस्मत से शेफ़ा तक का सफ़र
  12. अभय तिवारी
    अजीब बात है, ऐसा क्यों लगा कि अपनी नहीं किसी और की ही कविता सुना रहे हों जैसे आलोक धन्वा?
    अभय तिवारी की हालिया प्रविष्टी..अमन के लिए फ़ैसला इंसाफ़ नहीं है!
  13. sanjay
    बार बार वर्धा के बारे में पढ़कर भी नयापन बना रहता है। पता नहीं क्यों?
    सही बात.
    प्रणाम
  14. कुश
    आँखे चौंधिया गयी पोस्ट पढ़ते पढ़ते..
    दिपावली की अग्रिम शुभकामनाये..
  15. jyotisingh
    आपको दीप पर्व के पावन अवसर पर ढेरो बधाइयाँ .
  16. Pramendra Pratap Singh
    कुछ बाते हमेशा याद के रूप में बन जाती है, आप सबने कार्यक्रम को बहुत अच्छी तरह से संपन्न किया इसके लिए सभी बधाई के पात्र है, जहा तक मेरा मानना है की आचरण की आचार सहित से ब्लॉग्गिंग की आचार संहिता का निर्माण किया जा सकता है.
    Pramendra Pratap Singh की हालिया प्रविष्टी..एक कुत्ते की बात
  17. Priti Krishna
    Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…
  18. Priti
    Praveen Pandey has made a comment on the blog of Mahatma Gandhi Hindi University , Wardha on quality control in education…He has correctly said that a lot is to be done in education khas taur per MGAHV, Wardha Jaisi University mein Jahan ka Publication Incharge Devnagri mein ‘Web site’ tak sahi nahin likh sakta hai..jahan University ke Teachers non exhisting employees ke fake ICard banwa kar us per sim khareed kar use karte hain aur CBI aur Vigilance mein case jaane ke baad us SIM ko apne naam per transfer karwa lete hain…Jahan ke teachers bina kisi literary work ke University ki web site per literary Writer declare kar diye jaate hain..Jahan ke blog ki moderator English padh aur likh na paane ke bawzood english ke post per comment kar deti hain…jahan ki moderator ko basic technical samajh tak nahi hai aur wo University ke blog per jo post bhejti hain wo fonts ki compatibility na hone ke kaaran readable hi nain hai aur sabse bada Ttamasha Siddharth Shankar Tripathi Jaise log karte hain jo aisi non readable posts per apne comment tak post kar dete hain…sach mein Sudhar to Mahatma Handhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha mein hona hai jahan ke teachers ko ayyashi chod kar bhavishya mein aisa kaam na karne ka sankalp lena hai jisse university per CBI aur Vigilance enquiry ka future mein koi dhabba na lage…Sach mein Praveen Pandey ji..U R Correct…. बहुत कुछ कर देने की आवश्यकता है।
  19. Priti
    महोदय/महोदया
    आपकी प्रतिक्रया से सिद्धार्थ जी को अवगत करा दिया गया है, जिसपर उनकी प्रतिक्रया आई है वह इसप्रकार है -
    प्रभात जी,
    मेरे कंप्यूटर पर तो पोस्ट साफ -साफ़ पढ़ने में आयी है। आप खुद चेक कीजिए।
    बल्कि मैंने उस पोस्ट के अधूरेपन को लेकर टिप्पणी की है।
    ये प्रीति कृष्ण कोई छद्मनामी है जिसे वर्धा से काफी शिकायतें हैं। लेकिन दुर्भाग्य से इस ब्लॉग के संचालन के बारे में उन्होंने जो बातें लिखी हैं वह आंशिक रूप से सही भी कही जा सकती हैं। मैं खुद ही दुविधा में हूँ।:(
    सादर!
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय
    वर्धा, महाराष्ट्र-442001
    ब्लॉग: सत्यार्थमित्र
    वेबसाइट:हिंदीसमय
    इसपर मैंने अपनी प्रतिक्रया दे दी है -
    सिद्धार्थ जी,
    मैंने इसे चेक किया, सचमुच यह यूनिकोड में नहीं है शायद कृतिदेव में है इसीलिए पढ़ा नही जा सका है , संभव हो तो इसे दुरुस्त करा दें, विवाद से बचा जा सकता है !
    सादर-
    रवीन्द्र प्रभात
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