Tuesday, July 30, 2013

मुफ़्त के माल पर चिंतन

http://web.archive.org/web/20140420082227/http://hindini.com/fursatiya/archives/4539

मुफ़्त के माल पर चिंतन

चुनावचुनाव आने वाले हैं।
पार्टियां चुनाव घोषणापत्र तैयार कर रही हैं। मुफ़्त में बांटे जाने वाला सामान अभी तय नहीं हुआ है। मुफ़्तिया सामान की घोषणा के बिना चुनाव घोषणा पत्र उसी तरह सूना लगता है जैसे बिना घोटाने की कोई इस्कीम। सामान तय करने के लिये पार्टी की शिखर बैठक बुलाई गयी है। गहन चिंतन चल रहा है।
पिछली बार लैपटॉप दिया था। इस बार उसके लिये बिजली का वायदा कर सकते हैं। – एक नेता ने सुझाव दिया।
अरे भाई, लैपटॉप अगले चुनाव तक बचेंगे क्या? जिसको दिया उसने बेंच दिया दूसरे को। जो बचे होंगे वे अगले चुनाव तक खराब हो चुके होंगे। ई लैपटॉप कंपनी बड़ी खच्चर निकली। चंदा भी नहीं दिया पूरा और सामान भी सड़ियल दिया। वो तो कहो जनता को मुफ़्त में बांटा गया वर्ना तोड़-फ़ोड़ होती। कोई फ़ायदा नहीं इस घोषणा से। बल्कि लफ़ड़ा है। बिजली फ़िर सबके लिये लोग मांगेंगे।
फ़िर इस बार बिजली की घोषणा करें क्या? -एक ने सुझाव दिया।
अरे भैया बिजली होती तो फ़िर क्या था। बिजली बनायेगा कौन? जित्ती बनती है सब अपने चुनाव क्षेत्र में ही खप जाती है। बिजली का नाम मत लो, जनता दौड़ा लेगी -भाग नेता भाग कहते हुये।
इनवर्टर कैसा रहेगा नेता जी?
अबे इनवर्टर क्या हवा में चार्ज होगा? उसके लिये भी तो बिजली चाहिये। बिजली से अलग कोई आइटम बताओ।
क्या मोटरसाइकिल की घोषणा कर सकते हैं? दूसरे ने सुझाव दिया।
करने को तो कर सकते हैं। लेकिन लफ़ड़ा ये है कि कोई गारंटी नहीं कि हम चुनाव में हार ही जायें। अगर ये पक्का होता कि हम हार ही जायेंगे तो मोटर साइकिल क्या कार की घोषणा कर देते। लेकिन जनता का कोई भरोसा नहीं। अगर जिता दिया तो लिये कटोरा घूमते रहेंगे मोटरसाइकिल देने के लिये।
साहब आप घोषणा कर दीजिये न। जीत गये तो किस्तों में दे देंगे। पहले साल पहिया देंगे, दूसरे साल इंजन , इसके बाद सीट और फ़िर चैन। पूरी मोटरसाइकिल योजना चार चुनाव में चलेगी। अगर जनता को मोटरसाइकिल चाहिये होगी तो झक मार के जितायेगी चार बार- युवा नेता मोटरसाइकिल पर अड़ा था।
अरे वोटर इत्ता सबर नहीं करता भाई। चार चुनाव तक इंतजार नहीं करेगा। उसको भी हर बार वैरियेशन चाहिये। मोटर साइकिल का झुनझुना बजेगा नहीं। पेट्रोल भी मंहगा है। फ़िर मोटर साइकिल तो लड़कों के लिये हुई। लड़कियों के लिये स्कूटी चाहिये होगी। अलग-अलग आइटम हो जायेंगे।
कोई जरूरी है कोई सामान मुफ़्त में देना? जनता को मुफ़्त का सामान देने की बजाय और कोई भलाई का काम करें। एक युवा नेता ने जिसके चेहरे से क्रांति टपक रही थी सुझाया।
देखने तो समझदार लगते हो लेकिन जनता के बारे में समझ कमजोर है बरुखुरदार की। चुनाव लड़ना लड़की की शादी करने की तरह है। लड़के वाले कुछ नहीं चाहते फ़िर भी टीवी, फ़्रिज, कार देना पड़ता है लड़की वाले को। दस्तूर है। जनता को भी मुफ़्त का सामान देने का दस्तूर बन गया है तो निभाना पड़ेगा चाहे हंस के निभायें या रो के। नेता जी के चेहरे पर बेटी के बाप का दर्द पोस्टर की तरह चिपका दिखा।
आप लोग बताओ जनता की क्या पसंद है? किस चीज को सबसे ज्यादा जरूरत है उसे। आप लोग तो जनता के नुमाइदे हो। उसकी पसंद अच्छे से जानते होंगे- नेता जी सवाल उछाला।
जनता की सिर्फ़ रोटी, कपड़ा और मकान चाहती है। उसका वायदा तो सब लोग कर चुके हैं। लेकिन दे कोई नहीं पाता इसीलिये ये मुफ़्तिया झुनझुने बजाते हैं सब। रही आज की जनता पसंद की बात तो उसके बारे में हम बता नहीं सकते।पिछले चुनाव के बाद से जनता से संपर्क टूटा है। जरूरत ही नहीं पड़ी जनता के पास जाने की। कोई जनता से जुड़ा नेता हो वो बताये।
जनता से जुड़ा नेता के नाम पर सब एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। कोई जनता से सीधे जुड़ा कहकर अपने को हाईकमान की नजरों से गिरने का खतरा नहीं लेना चाहता था।
आखिर में तय हुआ कि जिस कंपनी को नेताजी की इमेज चमकाने का ठेका दिया गया है वही जनता के बीच सर्वे करके बतायेगी कि इस बार किस मुफ़्तिया आइटम की घोषणा करनी चाहिये।
सर्वे टीम वालों को काम मिलते ही वे इंटरनेट पर खंगालने लगे कि अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया के चुनावों में जनता से क्या वायदे हुये थे।
देखिये इस बार पार्टी कौन सा सामान मुफ़्त बांटने की घोषणा करती है।

10 responses to “मुफ़्त के माल पर चिंतन”

  1. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    “जनता से जुड़ा नेता के नाम पर सब एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। कोई जनता से सीधे जुड़ा कहकर अपने को हाईकमान की नजरों से गिरने का खतरा नहीं लेना चाहता था।”
    यह तो जबरदस्त पंच है। जय हो हाई कमान की।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..वर्धा में फिर होगा महामंथन
  2. sanjay jha
    हम जनता को ‘सरकार’ के नवे मुप्त माल का इंतजार है
    प्रणाम.
  3. देवांशु निगम
    फ्री इन्टरनेट कनेक्शन कैसा रहेगा ?
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..बस ऐसे ही…
  4. सतीश चन्द्र सत्यार्थी
    हमको तो रोटी, कपड़ा, और मकान छोड़कर कुछ भी चलेगा ;)
    सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..धाराप्रवाह हिन्दी बोलने वाला कोरियन छात्र जुन हाक उर्फ़ आमिर
  5. संतोष त्रिवेदी
    जय हो :)
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..धरतीपकड़ फ़िर मैदान में !
  6. प्रवीण पाण्डेय
    याचक के दृष्टिकोण से, का माँगू कुछ थिर न रहाई।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..सोते सोते कहानी सुनाना
  7. Rekha Srivastava
    घोषणा के पीछे काहे पड़े हैं , जनता बहुत ही बेवकूफ है उसके लिए कुछ नहीं चाहिए . बस एक दिन अपने घर पर खाने के लिए बुला लीजिये और उसको खिला दीजिये बढ़िया पकवान . जीत निश्चित है लेकिन नेताजी की समझ क्यों नहीं आता है ? खर्च भी अधिक नहीं आने वाला है . अगर ५ रूपये वाले की बात मान लें तो भी अच्छा और १२ रुपये वाले की बात मान लें तब भी ठीक . गाँठ से कुछ नहीं लगने वाला है क्योंकि अपने चमचों को बाजार में छोड़ दीजिये सारा पका पकाया माल मिल जाएगा . फिर कौन उसमें पड़ी हुई छिपकली , मेंढक और कीड़े मकौडों को देखता है . हमारा प्रस्ताव आगे बढ़ा दीजिये.
  8. देवेन्द्र बेचैन आत्मा
    जनता से जुड़ा नेता के नाम पर सब एक दूसरे की तरफ़ देखने लगे। कोई जनता से सीधे जुड़ा कहकर अपने को हाईकमान की नजरों से गिरने का खतरा नहीं लेना चाहता था।..यह पंक्ति वाकई जोरदार लगी।
  9. ब्लॉग - चिठ्ठा
    आपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर “ब्लॉग – चिठ्ठा” में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
  10. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] मुफ़्त के माल पर चिंतन [...]

Saturday, July 27, 2013

12 रुपये में भरपेट खाना- शर्तें लागू

http://web.archive.org/web/20140420081629/http://hindini.com/fursatiya/archives/4545

12 रुपये में भरपेट खाना- शर्तें लागू

खानाआजकल में मीडिया में खाने वाले बयान का हल्ला है। बमचक मची है। कोई कहता है 12 रुपये में खा सकते हैं, कोई बोलता है 5 रुपये में ही काम चल जायेगा।
बयान का विरोध हुआ। प्रतिक्रिया में बयान आये। मूल बयान सार्थक हुआ। बयानों की सार्थकता उसके चर्चित हो जाने में है। मीडिया बयानों को चर्चित करने वाला बिचौलिया है।
मीडिया दिन भर तमाम तरह के बेवकूफ़ी के बयान की तलाश में छुछुआता रहता है। जहां कोई उलजलूल बयान उसे मिलता है वह उसे दुनिया भर को चीख-चिल्लाकर दिखाने/सुनाने लगता है। बयान देने वाला मीडिया के प्रति आभारी होता है।
खाने के मामले में 12 रुपये वाला वापस लेना पड़ा। 5 रुपये वाला अभी तक टिका है। देखिये कब उसका विकेट गिरता है। हो सकता है अगले किसी चिरकुट बयान की ओट में भूल जायें लोग उसे।
बयानची से इस मामले में तकनीकी चूक हुई। बारह/पांच रुपये थाली वाले बयान में अगर जनप्रतिनिधि (शर्तें लागू) जोड़ देते तो कोई माई का लाल उनको गलत साबित न कर पाता न उनको अपना बयान वापस लेना पड़ता।
विज्ञापन में शर्तें लागू लिखकर लोग कुछ भी बेंच लेते हैं। जहां फ़ंसते हैं कह देते हैं- ये तो शर्तों में था ही नहीं।
खाने वाले बयान में बयानवीर कह सकते थे:
  1. 12 रुपये में खाने वाली थाली में आलू के दाम तब के लागू होंगे जब आलू की बम्पर पैदावार के चलते कोल्ड स्टोरेज वाले उसे अपने यहां रखने से मना कर देते हैं और किसान उसे सड़क किनारे सड़ने के लिये छोड़ के चले जाते हैं।
  2. टमाटर के दाम वे लिये जायेंगे ,जो घरों में सॉस बनाने मे मौसम में, मंडियों में सडनोत्सुक टमाटर के लगाये जाते हैं।
  3. गेहूं, चावल के दाम उस क्वालिटी वाले गेहूं और चावल के लगाये जायें जो गोदामों में सड़ता है और जिसके लिये सुप्रीम कोर्ट कहता है कि सड़ाने से अच्छा है मुफ़्त में बांट दो जनता को।
  4. बयान में रुपये का मतलब सन सैतालिस का रुपया है। सन सैतालिस में रुपये की जो औकात थी वो बारह रुपये अगर मिल जायें तो खाना भरपेट खाया जा सकता है।
इसी तरह के और भी तर्क बयानवीर दे सकते थे अगर वे अपने बयान के साथ शर्तें लागू जोड़ सकते थे। लेकिन जनप्रतिनिधि को इत्ता समय कहां सोचने का। उनको तो हड़बड़ी रहती है। बयान देने का भयंकर दबाब रहता है कि कहीं बयान देने में देरी हुई तो किसी और का बयान आ जायेगा।
वैसे आज भी जनप्रतिनिधि कह सकते हैं- बयान देना आज की राजनीति का फ़ैशन है और फ़ैशन के दौर में गारण्टी की अपेक्षा करके शर्मिन्दा न करें।

8 responses to “12 रुपये में भरपेट खाना- शर्तें लागू”

  1. देवांशु निगम
    १ रुपये में एयरलाइन का टिकेट मिलता है ( उसके साथ ४५९९ का फ्यूल चार्ज जोड़ दिया जाता है बस) |
    बस ऐसे ही १२ रूपये की थाली है , १५० रूपये सर्विस चार्ज, २०० रूपये इंटरटेनमेंट टैक्स ( खाना खाना मनोरंजन की बात है ) , और पूरे ८८ रूपये टिप !!!!
    बस १२ रूपये की थाली के आपको ४५० रूपये देने होंगे !!!!
    ( वही शर्ते लागू वाली कंडीशन ) !!!!
  2. Gyandutt Pandey
    शर्तें जो हों, खाने की पतरी शानदार है। ह्रमारा पेट भर ही जायेगा।
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..मन्दाकिनी नदी पर रोप-वे बनाने में सफल रही शैलेश की टीम
  3. Kajal Kumar
    :)
  4. arvind mishra
    टंच माल पर की तलाश में आया था -
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कुछ छुट्टा तूफानी विचार -फेसबुक से संकलन!
  5. प्रवीण पाण्डेय
    सच ही है, बेस ईयर तो बताया नहीं, ४७ का ही ठीक है, १२ डॉलर अर्थात ७२० रु, ३ स्टार होटल में मिल जायेगा।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..सोते सोते कहानी सुनाना
  6. हितेन्द्र अनंत
    “सडनोत्सुक टमाटर” :D
    हितेन्द्र अनंत की हालिया प्रविष्टी..पुस्तक समीक्षा – दीवार में एक खिड़की रहती थी (विनोद कुमार शुक्ल)
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    I’m in search of blog pages that have already really great tips on what’s in vogue and just what the leading cosmetics is..
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    why some blogs within a blogroll do not have their most recent post named as well as others do? Ways to alteration that?

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Sunday, July 21, 2013

डेट्रॉएट को तो दीवालिया होने की हड़बड़ी है

http://web.archive.org/web/20140420081832/http://hindini.com/fursatiya/archives/4525

डेट्रॉएट को तो दीवालिया होने की हड़बड़ी है

Detroitकल खबर सुनी कि अमेरिका में गाडियों के लिये मशहूर शहर डे्ट्रॉएट ने कर्ज में डूबे होने के चलते दीवालिया होने के लिये अर्जी दी है। जब से सुना तब से डेट्रॉएट के बारे में ही सोच रहे हैं। ससुर एक पूरा का पूरा शहर कैसे दीवालिया हो गया? दुनिया के सबसे रुतबे वाले देश का एक शहर दीवालिया हो गया। सुनते हैं कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार देश है। क्या उसकी भी दीवालिया अर्जी आयेगी?
सोचते हैं कि डेट्रॉएट के मेयर को फ़ोनिया के पूछे कि हजार-दो हजार में दीवालिया होना बचता हो बताना, भेज देंगे पहली तारीख को। ये भी कि अगर डालर जरा नीचा कर लें तो उनको ही सहूलियत होगी।
डेट्रॉएट कभी अमेरिका का चौथा सबसे बड़ा शहर था। दुनिया की आटोमोबाइल इंडस्ट्री की धुरी। न जाने कित्ते तीसमार खां मैनेजर, अर्थशास्त्री इसके अच्छे दिनों में यहां थे। आज बचा है केवल कर्जा। वीरान इमारतें और 80% काले लोग। बेहतरीन दिमाग वाले हुशियार लोग खा पीकर, पैसा पीटकर शहर को दीवालिया करके फ़ूट लिये।
लोग बताते हैं दुनिया के बेहतरीन मैनेजर, अर्थशास्त्री अमेरिका में बसते हैं। लेकिन वे कैसे खलीफ़ा हैं जो अपने शहर और बैंको को दीवालिया होने से नहीं बचा सकते। कैसे वे मैनेजर हैं जो जब डेट्रॉएट का आटोमोबाइल सेक्टर अपनी गजल का मक्ता पढ़ रहा था तब कुछ अलग काम करने के लिये नहीं सोच पाये। खाली कारों में अपनी ऊर्जा बेकार में काहे खपाते रहे? कार न बिक रही तो कुछ और बनाते। साइकिल, रेल के डिब्बे, पापड़, कचरी, अचार, मैगी, दवाई, कपड़े, बैट-बल्ला, गहने, जहाज, मशीन
किसी एक चीज के उत्पादन में ही फ़न्ने खां बने रहने का यही नुकसान है। डेट्रॉएट खाली कार के उत्पादन में ही महारत हासिल किये रहा। पूरा शहर कार उत्पादन की धुरी बना रहा। अब जब सबके पास कारें हो गयीं और दूसरे और सस्ती कारें बनाने लगे तो जलवा कम हुआ। लेकिन उनको कार बनाने के अलावा और कुछ आता ही नहीं। हो गयी हालत पतली। सच्ची में समझदार होते तो कार के धंधे में मंदी देखते ही किसी और धन्धे का फ़ीता काट लिये होते।
कानपुर भी कभी अपनी मिलों के चलते मैनचेस्टर ऑफ़ इंडिया कहलाता था। मिलें न जाने कब की बंद हो गयीं। मजदूर बेरोजगार हो गये। कोई रिक्शा चलाने लगा, किसी ने ने चाय की दुकान खोली किसी ने पान की। मिलों में उल्लू बोलते हैं। लेकिन शहर दीवालिया नहीं हुआ। झाड़े रहो कलट्टरगंज कहते हुये शहर आज भी बिंदास है। ई ससुर डेट्रोइट कैसे इत्ती जल्दी दीवालिया हो गया? अमेरिका को बुरा नहीं लगता अपने शहर को दीवालिया बताते?
टूंडला में हमारी एक फ़ैक्ट्री थी वहां फ़ौज के लिये मीट बनता था। मीट का काम बन्द हो गया तो वहां कपड़े बनने लगे। जहां हवाई जहाज रिपेयर होते थे वहां राइफ़ल बनाने लगे, जहां तोप पीटते थे वहां गोले छीलने लगे, जहां लोहा गलता था वहां डब्बे बनाने लगे। जब काम नहीं मिला तो बाजार में काम टटोलने लगे। सब किया लेकिन खाली नहीं रहे। दीवालिया नहीं हुये। जब सरकार के अनुभाग इतनी पटरियां बदल सकतें तो वे प्राइवेट फ़ैक्ट्रियां ऐसा क्यों नहीं कर पायीं? कार का उत्पादन से किसी और तरफ़ क्यों नहीं लग सकीं?
किसी शहर के बने रहने के लिये उसको फ़ुल्लमफ़ुल आधुनिक नहीं बनना चाहिये। एक ही धंधे के भरोसे नहीं रहना चाहिये। परम्परागत काम भी चलते रहते चाहिये। रोजी रोटी के लिये एक ही धन्धे पर शहर नहीं टिका रहना चाहिये। उद्योग भी हों, दुकानें भी हों, खेती से भी जुड़ा हो, कोचिंग , गुटखा, गुंडागिरी, उगाही, पान, हलवाई, स्कूल, गुटखा, राजनीति, लाटरी, सट्टा, क्लब, बैंक, पुलिस, पंडा, पुजारी, नेता, जनता सब तरह के लोग होने चाहिये। ये नहीं कि एक धंधा गया तो शहर मंदा हो गया। भारत में आजतक कोई शहर डेट्रॉएट की तरह किसी एक ही धंधे पर निर्भर नहीं रहा इसीलिये दीवालिया भी नहीं हुआ। हाल भले ही खस्ता रहे हों।
अब डेट्रॉएट का जो हाल है उसमें फ़िलहाल हम कुछ करने की स्थिति में हैं नहीं। पहले बताते तो कुछ सोचते भी। अब तो लगता है उनका दीवालिया होना तय सा है। लेकिन वे कुछ और तरकीबें अपना सकते थे कमाई की। जैसे कि:
  1. डेट्रॉएट में मकान तमाम खाली हैं। अमेरिका वाले दुनिया भर में काली कमाई करने वालों को झांसे में डालकर वे मकान बेंच लेते।
  2. भारत सरकार से बात करते कि भाई ये अपना खुल्ले में सड़ता अनाज हमारे खाली मकानों में धर लो। बदलें में थोड़ा कर्जा लाओ ताकि कुछ दिन और मजे से रहें फ़िर कायदे से दीवालिया हों।
  3. ऊंचे-ऊंचे मकान किसी खड़खड़े में लादे लाते भारत और किराये पर उठा देते यहां। बेंच देते। न जाने कित्ते लोग यहां मकान की तलाश में हैं।
  4. कारों की असेम्बली लाइन उखाड़ के ले आते यहां और जहां जगह मिलती वहां जमाकर कारपार्किंग बना लेते और पैसा पीटते।
  5. पार्क जिनका रखरखाव नहीं कर पा रहे हैं वो भी लाकर पटक देते यहां। सबमें मंदिर बन जाते, तबेले चलने लगते। सबसे थोड़ा-थोड़ा पैसा मिलता। कुछ तो काम चलता।
  6. भारत की कई जेलों में कैदियों के रहने की जगह नहीं है। कैदी कांजी हाउस में जानवरों की तरह ठुसे रहते हैं। डेट्रॉएट अपनी इमारतों को जेलों में बदल भारत को किराये में देने का प्रस्ताव दे सकता था। वहां वी.आई.पी. कैदी रखे जा सकते थे।
  7. भारत के तमाम मेट्रोपॉलिटन शहरों में इंटरनेशनल स्कूल हैं लेकिन उनमें खेल के मैदान नहीं हैं। डेट्रॉएट अपनी तमाम फ़ालतू इमारतों को गिराकर समतल करके मैदान ऐसे अंतर्राष्ट्रीय स्कूलों को बेंच सकता है। इंटरनेशनल स्कूल वाले वीकेंड में अपने बच्चों को अमेरिका के डेटॉएट के मैदान में ले जाकर खिलाते। हवाई किराये के पैसे बच्चों के अभिभावकों से ऐंठते।
  8. हर दीवालिया कंपनी का मालिक ’कैसे बरबाद हुये हम’ टाइप की किताबें लिखता। किताबें बेस्ट सेलर साबित होतीं। बाद में जुगाड़ लगाकर नोबल-ऑस्कर झटक लेते। कुछ दिन रोजी-रोटी चलती।
  9. करने को तो डेट्रॉएट यह भी कर सकता था कि अपने को स्विटजरलैंड में शामिल कर लेता। उसके बाद दुनिया भर के अपराधियों को अपने यहां रहने की सुविधा मुहैया कराता। खूब किराया मिलता। काले धन को रखने की अपनी अच्छी इमेज के चलते दुनिया भर के अपराधी टूट पड़ते अपना कमरा बुक कराने के लिये।
  10. निर्मल बाबा के यहां जाना चाहिये थे मेयर को। वो कोई उपाय बताते कि किस रंग की गाय को कित्ती पूड़ी खिलाने से किरपा होगी। शहर के दिन बहुर जाते।
उपाय तो और बहुत से हैं। लेकिन किसको बतायें। डेट्रॉएट वालों को तो दीवालिया होने की हड़बड़ी है। :)

16 responses to “डेट्रॉएट को तो दीवालिया होने की हड़बड़ी है”

  1. हितेन्द्र अनंत
    हा! हा!
    मजा आ गया! सझाव जबर्दस्त हैं! लेकिन ईश्वर करे ये सुझाव उन तक ना पहुंचें, और ये शहर खंडहर होकर रहे!!
    क्यों? क्योंकि हमारे यहाँ तो इतिहास ही ऐसे खंडहर बन चुके शहरों से भरा पड़ा है! आई मीन, वर्तमान खंडहरों से और इतिहास उन रौनक भर डेट्रायट के भारतीय संस्करणों से!
    मजा आ रहा है, ह्मारे साथ तो हजारों सालों से हुआ, अब गुरू तुम भी लो मजा!
    हितेन्द्र अनंत की हालिया प्रविष्टी..चुनावी पैरोडी: हम समर्थन करने वाले!
  2. आशीष
    अकी मारीतो सोनी के संस्थापक ने अपनी पुस्तक ‘मेड इन जापान’ मे यह भविष्य वाणी पहले ही कर दी थी। उन्होंने फ़ोर्ड के एक कारख़ाने की यात्रा की और एक क्रम मे असेंबली लाइन देख काफ़ी प्रभावित हुये। १० वर्ष बाद वे उसी कारख़ाने मे दोबारा गये और देख के हैरान हो गये कि कुछ भी नहीं बदला था। तब उन्होंने कहा था विकास , उन्नती के लिये परिवर्तन आवश्यक है, अमरीकी कंपनी परिवर्तन को नहीं अपनायेंगी तो उनका बरबाद होना निश्चित है। ठहरा पानी सड़ है।
    आशीष की हालिया प्रविष्टी..सौर मंडल की सीमा पर वायेजर 1? शायद हां शायद ना !
  3. Dr. Monica Sharrma
    बढ़िया सुझाव हैं :) आर्थिक स्तर पर तो सचमुच यह एक विचारणीय विषय है ….
  4. Gyandutt Pandey
    बड़ी मुश्किल से दिवालिया भये। भारत में तो कारोबार खड़ा ही दिवालिया होने के लिये करते हैं कर्मवीर!
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..मन्दाकिनी नदी पर रोप-वे बनाने में सफल रही शैलेश की टीम
  5. देवांशु निगम
    फ्रॉम जबलपुर टू कानपुर वाया डेट्रोएट !!!! वंडरफुल !!!!कानपुर की बात अलग ही है :) :)
    वैसे जो सुझाव आपने दिए हैं सारे के सारे बहुत शानदार हैं , कोई बस मान ले | वो बात ये भी है कि लोग हड़बड़ी में रहते हैं “फुरसतिएया” जी के पास आयें , तो फुरसत से सुझाव पायें | ये भागता-दौड़ता अमरीका नहीं समझेगा , सो इम्मेच्योर यू नो :) :)
    वैसे देखने वाली बात ये भी होगी कि अमरीका इससे कैसे निकलता है !!!!
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..यूँ ही, ऐसे ही !!!
  6. प्रवीण पाण्डेय
    अच्छा हम तो दीवाली मना कर ही खुश हो लेते हैं, धँुआ निकलने के ये लोग दीवाला कहते हैं क्या?
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..स्वयं से भागते, हम लोग
  7. shefali pande
    किसी का दीवाला निकल गया और आप हैं की दीवाली मना रहे हैं …इत्ता भयंकर बम फोड़कर ……
  8. कट्टा कानपुरी असली वाले
    निर्मल बाबा वाला आईडिया धाँसू रहा है …
    कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..मिसरा,मतला,मक्ता,रदीफ़,काफिया,ने खुद्दारी की थी -सतीश सक्सेना
  9. विवेक रस्तोगी
    ऊ मेयर को सुझाव दिया जाये कि कंगाल घोषित करने की कंसलटेंसी खोल ले, जबरदस्त चलेगी ।
    विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..बात करने का बहाना चाहिये तो प्रकृति सबसे अच्छा विषय है
  10. कट्टा कानपुरी असली वाले
    मुझे अमेरिका का सिस्टम अच्छा लगता है , हमारे देश में भी शहरों की नगर पालिकाओं को स्वायत्तता देनी चाहिए !
    वे अपने फंडिंग अपने आप करें , लोन लें अथवा किन सोर्से से पैसा कमायें और कहाँ खर्च करे वे खुद निर्णय लें , और संपन्न हों या दीवालिया उसे खुद भुगतें तो शायद आर्थिक उन्नयन के लिए भला ही होगा !
    डेट्रॉइट की दीवालिया अवस्था, अमेरिका के अन्य राज्यों की ऑंखें खोलने के लिए काफी होगा !
    कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..मिसरा,मतला,मक्ता,रदीफ़,काफिया,ने खुद्दारी की थी -सतीश सक्सेना
  11. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    डेट्रॉएट दिवालिया क्या हुआ आप तो ब‍उरा गये हैं। कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं। इतना इलाज एक साथ बता देंगे तो भारत सरकार के एजेन्ट आपको अगवा करके ले जाएंगे। मौनमोहन सिंह आजकल दिवालियत की कगार पर खड़े हैं, बस आदत के मुताबिक बता नहीं रहे हैं।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..खो गया बटुआ मिल गयी चिठ्ठी : कितनी मिठ्ठी
  12. eswami
    ये कमीनेपन और नाकरेपन की कहानी है.
    planned obsolescence, overconfidence, incompetence, protectionism जैसे शब्द दिमाग में आते हैं. वैसे डेट्रॉइट शहर और बंगाल में ज्यादा फरक नहीं है – एक पार्टी राज और यूनियंस ने शहर को बरबाद कर दिया.
    eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
  13. समीर लाल "टिप्पणीकार"
    ओबामा आपको बुलावा भेजने वाला है सलाहकार बन कर चले आईये …कुछ मंच वंच भी कर लेंगे उस दौरान :)
    समीर लाल “टिप्पणीकार” की हालिया प्रविष्टी..पहाड़ के उस पार….इस बार मेरी आवाज़ में
  14. Swapna Manjusha
    कम से कम उनकी आँखों का पानी मरा नहीं है, कबूल लेते हैं सच्चाई को और कर देते हैं घोषित।
    इस नज़र से देखें तो भारत का कौन सा ऐसा प्रान्त है तो दीवालिया नहीं है। भारत आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक रूप से बहुत पहले दीवालिया हो चुका है, फर्क सिर्फ इतना है हमलोग कोढ़ पर मेकप लगाए बैठे हैं.… एक बात और हाथी मरे भी तो सवा लाख का होता है,
    आपका सजेसन मान कर किराए पर दे तो दें भारत को वो अपने मकान-दूकान लेकिन किराया देवेगा कौन ???? क्योंकि हम तो कब्ज़ाने में माहिर हैं किराया देने में नहीं :)
    Swapna Manjusha की हालिया प्रविष्टी..इक सानिहा…..!
  15. Abhishek
    शानदार सुझाव हैं :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..इंजीनियर साहेब ‘भुट्टावाले’ (पटना १७)
  16. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] डेट्रॉएट को तो दीवालिया होने की हड़बड़ी … [...]