Saturday, January 30, 2016

एच डी ऍफ़ सी के एटीएम में न रखेंगे कदम

आज हम अपने एक मित्र से मिलने गए। रास्ते में याद आया कि मुझे पैसे भी निकालने हैं। मेरा खाता स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया में है। जब तक याद आया तब तक स्टेट बैंक का एटीएम पार हो गया था। आगे एच. डी. ऍफ़. सी. का एटीएम दिखा। बगल में बैंक। हम घुस गए एटीएम चैंबर में और अपना एटीएम कार्ड मशीन के हवाले कर दिया। स्क्रीन पर मीनू का इंतजार करने लगे कि अनूप शुक्ल का स्वागत होगा। पिन नम्बर माँगा जाएगा या ऐसा ही कुछ। लेक
िन कोई हलचल न हुई। हमने स्क्रीन पर देखा तो निम्न निर्देश दिए गए थे:

1. अपनी कार्ड डालिये।
2. मशीन आपके कार्ड को पढ़े तब तक प्रतीक्षा करिये।
3. लेनदेन आगे बढ़ाने के लिए कार्ड स्लॉट से अपना कार्ड वापस लीजिये।

हम कार्ड डालकर प्रतीक्षा करते रहे। कार्ड वापस लेने वाली कार्यवाही नहीं हुई। हमें लगा कि मशीन कार्ड पढ़ रही है। पढ़ने दो आराम से। जब दो तीन मिनट हो गए और कोई सूचना नहीं आई स्क्रीन पर तो सोचना शुरू किया कि बहुत धीमा है ये एटीएम। यह भी सोचा कि कहीं मशीन अनपढ़ तो नहीँ जो किसी और से पढ़वाने गयी हो कार्ड।

पांच मिनट से अधिक हो गए तो और कुछ नहीं हुआ तो मैंने कैंसल से शुरू करके सारे बटन दबा डाले मशीन के। मशीन को कोई फर्क नहीं पड़ा। फिर मैं बगल में ही स्थित एच डी ऍफ़ सी बैंक गया। समस्या बताई तो दरबान बोला-'आपका कार्ड अंदर चला गया। सोमवार को मिलेगा।गोलबाजार आफिस से।'

मैंने पूछा-'अंदर कैसे चला गया। सोमवार को क्यों मिलेगा? आज क्यों नहीं?'

उसने बताया कि मशीन ने कार्ड पढ़ने के बाद बाहर किया होगा। आपने कार्ड वापस लिया नहीं होगा इसलिए अंदर चला गया। कल इतवार है इसलिए अब परसों ही मिलेगा।

मुझे याद आया कि कार्ड मशीन के अंदर से बाहर तो आया था लेकिन उसके साथ कोई सूचना नहीँ आई थी कि कार्ड वापस ले लीजिये वरना अंदर चला जाएगा तो अगले दिन मिलेगा। मैं तो स्क्रीन पर सूचना का इंतजार ही करता रहा और उधर कार्ड मशीन ने गिरफ्तार कर लिया। अब जमानत सोमवार को होगी। पहचान पत्र और बैंक की अपडेटेट पासबुक के साथ जाना होगा।

जबसे एटीएम आया करीब 15-20 साल हुए होंगे हमारे साथ इस तरह का पहला हादसा था। इसके पहले पैसे नहीं निकले, कट गए, एटीएम कार्ड नहीं काम किया, पिन गलत होने पर पैसा नहीं निकला, पैसे कम हो गए, मशीन में फंस गए। सब हुआ और सबके समाधान हुए। तार्किक सा लगा वह सब। लेकिन एटीएम कार्ड आप निकालना भूल जाओ वह मशीन अपने में कर ले और कहे -'जाओ कल आना कार्ड लेने।' यह पहली बार हुआ। ग्राहक को उसकी अज्ञानता की जैसे सजा सुनाई हो एटीएम ने एक दिन के लिए।

मैंने बैंक के कर्मचारी से बात की। बोली मैनेजर नहीं है। मैंने कहा-' ये कैसी मशीन है आपकी जो बिना बताये कार्ड जब्त कर लेती है और कहती है कल आना। ऐसा तो मैंने कभी नहीं देखा पहले।'

मन में शायद उसने यही बोला हो कि चलिए इसी बहाने यह भी देख लिया। लेकिन प्रकट में बोली-'सर, हमारे एच डी ऍफ़ सी में तो ऐसा ही होता है।'

हमने पूछा-'आप एच डी ऍफ़ सी की कर्मचारी की तरह नहीं एक आम नागरिक की तरह भी सोचें।मैं तो जबलपुर में हूँ, आ जाऊँगा परसों। लेकिन कोई बाहर का आदमी हो। मुम्बई ,कलकत्ता से आया हो। उसको पैसे की जरूरत हो। ट्रेन हो शाम को। वह क्या करेगा? वह पासबुक भी तो लेकर नहीँ चलेगा न।'

इस पर उसने बड़ी मासूमियत से कहा-' सर, कार्ड तो आजकल बैंक से फौरन बन जाते हैं। कोई प्राब्लम होगी तो दूसरा एटीएम बन जाता है।'

यह सुनकर मुझे जो लगा सो लगा लेकिन मैंने कहा यही कि बैंक में दूसरा एटीएम बनने के पहले भी तो एफआईआर करानी होगी। थाने में मुंशी जरूरी थोड़ी फौरन लिख ले ऍफ़ आई आर।

लेकिन उसकी भी सीमाएं होंगी। वह कुछ बोली नहीं। चुप रही। मैं भी चुपचाप चला आया।

मेरा इस तरह का पहला अनुभव था कि कार्ड वापस न लेने पर मशीन कार्ड जब्त कर ले। ज्यादातर बैंक एटीएम कार्ड स्वैप करने वाली मशीन इस्तेमाल करते हैं। कुछ में ऐसा होता है कि कार्ड मशीन रख लेती है और पूरे ट्रांजैक्शन होने के बाद वापस कर देती है। लेकिन यहां तो बिना किसी कार्यवाही के मशीन ने जब्त कर लिया।

पता नहीं किस तर्क को ध्यान में रखकर इस तरह की मशीन बनाई गयी होगी। हो सकता है यह सोचा गया हो कि अगर कार्ड वापस नहीं लिया तो कहीं चला तो नहीं गया कार्ड धारक। कोई दूसरा इसका गलत इस्तेमाल न कर ले इसलिए धर लो इसे। जब असली मालिक आयेगा , सबूत सहित तो उसे दे देंगे कार्ड।

अगर यही तर्क है तो ठीक नहीं है। कोई भी व्यक्ति एटीएम आता है तो या तो पैसे का लेनदेन करने बैलेंस की जानकारी लेने। वह लिए बिना क्यों जाएगा। खाली कार्ड डालकर भूल जाने के लिए थोड़ी कोई आएगा।

व्यवस्था यह होनी चाहिए कि कार्ड मशीन से बाहर आ जाने के बाद फौरन स्क्रीन पर मीनू आना चाहिए। कार्ड निकलने के बाद ही आगे कोई कार्यवाही होनी चाहिए। न निकाले कार्ड तो आगे कुछ न हो।

बहरहाल आज के अनुभव के बाद यह कसम खाई की आइन्दा से एच डी ऍफ़ सी के एटीएम में कदम न रखेंगे। रखना भी पड़ा तो कार्ड डालें भले बाद में लेकिन निकाल पहले लेंगे।

आपके साथ भी कभी हुआ है क्या ऐसा?
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Thursday, January 28, 2016

गन्ने से गुड़ तक


गन्ना पेरा जा रहा है। छिलका बाहर गिर रहा है।

दो कोल्हू आमने-सामने चल रहे हैं।

एक और सीन कोल्हू का।

गन्ने का रस गरम किया जा रहा है। नालियां
 ऊपर आई गन्दगी को निकालने के लिए हैं।
रस गाढ़ा होकर गुड़ बनने के लिए तैयार है।
खोये की तरह औंटकर गाढ़ा किया जा रहा है।
और गाढ़ा होने पर बगल में रखे साँचे में डाला जाएगा इसको।
 इस स्थिति तक आये हुए रस को बचपन में राब के रूप में खाया है हमने।

 
गन्ने के छिलके सुखाते मजदूर
घूमघूम कर सुखाते है ईंधन को उलट-पलटकर
गन्ने का खेत और बगल में पेरे गए गन्ने से निकले छिलकों का ढेर।
ओमप्रकाश उम्र 19 साल। 3 भाई।
मजूरी के 170 रुपया। मिस्त्री को 250 रूपया।
कोई नशा नहीं करते। शादी करके मरना है क्या।
 सब मजूर 170 रूपया पाते हैं।
लखनऊ में 250 रुपया मिलता है।
6 महीने सीजन चलता है। उसके बाद बंद।
 
भट्टी में ईंधन झोंकता बालक



रंजीत मिल मालिक कुछ खेत खुद के कुछ किराए के।
 दिन भर में 18 से 20 कुंतल गुड बनता है।
7 साल पुराना कोल्हू है। थोक दाम 23 से 24 रुपया प्रति किलो।
 व्यापारी खुद ले जाते हैं। फुटकर 30 रुपया प्रति किलो।
 
पिछले दिनों लखीमपुर से सीतापुर के रास्ते में कोल्हू देखा। गन्ने के खेत के पास ही लगे थे दो कोल्हू। खेत से कटा हुआ गन्ना कोल्हू के पास ही जमा था। उठाकर कोल्हू में पेरा जा रहा था। धूल, मिट्टी समेत। कोल्हू से निकलकर गन्ने का रस अलग-अलग सीमेंट की बनी एक हौद से दूसरे में जा रहा था। इस प्रक्रिया में गन्ने का रस गाढ़ा होता जा रहा था।

रस के एक हौद से दूसरे में जाने के दौरान उसको गरम भी किया जा रहा था। खौलते रस से ऊपर जो मैल उतरा रहा था उसको बाहर निकालते जा रहे थे। रस जो शुरू में कालिमा युक्त था वह मैल निकालने की प्रक्रिया में गोरा होता जा रहा था। आखिरी वाली हौद में कोई पाउडर सा मिलाया गया जिससे रस और उजला हो गया। गन्ने का रस काले लाल/गुलाबी करने के लिए एक केमिकल मिलाया गया। शक्कर जो भक्क सफेद और दानेदार दिखती है उसके बनने में क्या-क्या मिलता होगा इसकी कल्पना करिये।
सबसे आखिर की हौद से निकलने के बाद रस गाढ़ा हो गया तो उसको एक आयताकार हौद में खोये की तरह औंटाया गया। और गाढ़ा हो जाने पर कटे हुए शंकु के आकार के लोहे के साँचे में भर दिया गया । कुछ देर में यह गुड़ बन गया।

गन्ने के पेरने के दौरान उसके छिलके का उपयोग वहीं उसको सुखाकर ईंधन के रूप में किया जा रहा था। कोल्हू से निकले छिलके के चट्टे खेत में लगे थे। उनको धूप में छितराने के लिए कई मजदूर लगे थे। सूख जाने पर वही ईंधन सुलगाकर उससे रस खौलाया जा रहा था। 1 से 2 घण्टे में गन्ने के छिलके ईंधन के रूप में जलने के लिए तैयार हो जाते हैं।

गन्ना चूसे हुये छिलके को चिफुरी कहते हैं। एक बार मेरे पिताजी किसी को खेत में गन्ना चूसने के किस्से सुना रहे थे। एक सुनने वाले ने मासूमियत से पूछा-'काहे दादा, जब गन्ना चूसत हुइहौ तौ चिफुरी तौ बहुत हुई जाती हुईहै।' :)

गन्ने के रस से गुड़ बनने के दौरान जो गन्दगी निकलती है (माई कहते हैं उसे) उसका उपयोग ईंट बनाने वाले भट्टे ईंधन के रूप में और खेतों में खाद के रूप में होता है। इस तरह गन्ने का कोई भी अंश बेकार नहीं जाता। हरेक का उपयोग होता है।

वहां काम करने वाले लोग आसपास के गाँव के ही लोग हैं। एक मजदूर ने बताया कि उनको रोज के 170 रूपये और मिस्त्री को 250 रूपये मिलते हैं। आठ घण्टे की ड्यूटी के लिए। गन्ने पेराई का सीजन छह महीने रहता है। उतने दिन ये यहां काम करते हैं इसके बाद लखनऊ/कानपुर निकल जाते हैं रोजगार के लिए। वहां मजूरी 250/- रूपये रोज मिल जाती है।

गन्ने की किस्में गिनाई COG70, 038, लख़नौआ, आरती। लख़नौआ में रस कम निकलता है। लेकिन मिल में बहुत चलता है। शराब बनाने के लिए वह गन्ना प्रयोग होता है जिसमें रस पतला निकलता है। गन्ना 260 रूपये कुंतल है आजकल।

दिन भर में 18 से 20 कुंतल गुड़ बनता है कोल्हू में। थोक में 23 से 24 रूपये में व्यापारी ले जाते हैं। मतलब गन्ना से गुड़ बनने के पर कीमत में 100 गुना बढ़ जाती है। खुद जाकर बाजार में बेंचने पर 30 रूपये किलो बिकता है गुड़। बाजार में ग्राहक को 40 से 50 रूपये प्रति किलो मिलता है। मतलब गन्ने के दाम का 200 गुना करीब।

गन्ने के कोल्हू छह महीने ही चलते हैं। इसके बाद बन्द। शुरुआत करते हैं तो कोल्हू की ग्राइंडिंग वगैरह कराते हैं।

हम लोग गन्ने का रस लेकर आये प्लास्टिक की बोतल में। घर में चावल और गन्ने के गठबंधन से रसाएर बना। गुड़ की भेली इतनी नरम थी कि हाथ से मोड़ते ही शराफत से दो टुकड़े हो गयी।
गन्ना खेत में अकड़ा खड़ा रहता है। पेरे जाने पर अकड़ खत्म हो जाती और मिलकर मीठा हो जाता है। इस बात को ध्यान करते हुए एक तुकबन्दी कभी की थी:

उई बने रहत, उई बनी रहति
पर दोनों गन्ना अस तने रहत
औ मिलि 36 की सृष्टि करत।
अल्ला से यही प्रार्थना है
ईश्वर से यही गुजारिश है
यो गन्ना बदले गुड़ भेली माँ
और 36 उलटैं 63 माँ।
सबजन मिलजुल कर बने रहें
हंस-हंस, खिल-खिल करे रहें।

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शाबास सुलेंद्र

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=10207214242447846&set=a.3154374571759.141820.1037033614&type=3&theater

Sunday, January 24, 2016

लीसा और जॉन से मुलाकात


डेनमार्क निवासी लीसा और जॉन
कल गोवा प्रवास का आखिरी दिन था।

सुबह बीच पर गए तो देखा कि खूब सारे सफेद पक्षी समुद्र की सतह के ऊपर मंडरा रहे थे। इसके पहले नहीं दिखे थे इतने पक्षी। कुछ पक्षी समुद्र की लहरों के ऊपर गोल घेरे में ऐसे बैठे थे मानों समुद्र पर गोल मेज सम्मेलन कर रहे हों।

कन्नौज के शाहनवाज खान बीच पर चाय बेंचते दिखे। इसके पहले शानू मिले थे वो भी कन्नौज के ही थे। लगता है पूरा कन्नौज इत्र बेंचना छोड़कर गोवा में चाय बेंचने निकल पड़ा।

वहीँ डेनमार्क निवासी जॉन और लीसा मिले। जॉन अपने कैमरे से समुद्र तट की फोटोग्राफी कर रहे थे। लीसा अपने 'नयन कैमरों' का उपयोग करते हुए दृश्य देख रहीं थीं।

लीसा गेंदे की फूल की माला पहने हुयीं थीँ। अच्छी लग रहीं थीं। उनसे बात करते हुए डेनमार्क के बारे में काफी जानकारी हासिल हुई।


कन्नौज के शाहनवाज कलंगूट पर चाय बेंचते हुए
लीसा और जॉन अक्सर भारत आते रहते हैं।यह उनका दसवां दौरा है गोवा का। गोवा के अलावा दिल्ली और मुम्बई भी घूमा है उन्होंने। दिल्ली और मुम्बई के मुकाबले गोवा अच्छा और साफ़-सुधरा लगता है।

डेनमार्क में आजकल तापमान शून्य से दस डिग्री नीचे है। हम यहां 4 /5 डिग्री में कंपकपाये जा रहे हैं। 15 डिग्री और नीचे क्या हाल होंगे, सोचकर ही कँपकँपी छूट रही।

जॉन 69 साल के और लीसा 71 की हैं। रितायर्ड हैं दोनों। पेंसनर। लीसा अपराधियों की काउंसलिंग करके उनको सुधारने का काम करती थीँ। मैंने पूछा कि कितने लोग सुधरे काउंसलिंग से तो बोलीं- ' ज्यादा नहीं। कम लोग ही सुधर पाये। बहुत मुश्किल और समय खपाऊ काम है।'

उन्होंने हमसे पूछा कि क्या भारत में भी इस तरह की अपराधियों को सुधारने की व्यवस्था है। हमने बताया किशोर अपराधियों के लिए सुधार गृह (जहां से निकलने के बाद बच्चा पक्का अपराधी बनकर निकलता है) की व्यवस्था है। बड़ी उम्र के लोगों के लिए कोई इंतजाम नहीं है।

शायद डेनमार्क की आबादी कम है इसलिए ऐसी व्यवस्था वहां सम्भव है--लीसा ने कहा।

लीसा की बेटी पत्रकार है और दामाद कार बेचने का धंधा करता है। लीसा को चित्रकारी का शौक है। जॉन को फोटोग्राफी का।

डेनमार्क छोटा देश है। आमतौर पर खुशहाल। लोग आर्थिक रूप से सम्पन्न से हैं। सामाजिक सम्बन्ध भी ठीक-ठाक हैं। समस्याएं पूछने पर बोलीं-'समस्याएं तो हर समाज में होती हैं, हमारे यहां भी हैं, पर ऐसी कोई बड़ी समस्या नहीं हमारे यहां।'


कलंगूट बीच पर चाय की चुस्की
दिल्ली में देखी गरीबी का जिक्र किया लीसा ने। हमने सोचा अच्छा हुआ कि बस्तर, विदर्भ, बुन्देलखण्ड, उड़ीसा नहीं गयीं वरना क्या हाल होता इनका।

70 पार के डेनमार्क दम्पति एकदम चुस्त-दुरस्त दिख रहे थे। अपनी उम्र नहीं बताती तो यह अंदाज लगाना मुश्किल था कि लीसा की उम्र 71 साल होगी।

उनका फोटो खींचा। देखकर खुश हुए तो हमने उनका ईमेल आई डी माँगा ताकि उनको फोटो भेज दें। लीसा ने अपना कार्ड दिया। उसमें उनका ईमेल पता, साइट का यु आर एल (www.lisejuhl.dk) दिया है। कमरे पर आकर फोटो भेजने के बाद हम लीसा की साइट देखते हैं। उसमें गोवा के कुछ किस्से भी हैं। लेकिन समझ नहीं आये। कुछ चित्र भी हैं लीसा के बनाये हुए।


ज्वॉयसिल (दांये) अपनी साथिन के साथ
होटल से विदा लेते हुए काउंटर पर काम करने वाले ज्वॉयसिल का फोटो लेते हैं। काउंटर के पास में ही कमरा होने के कारण चाबी काउंटर में जमा करते हुये दिन में कई बार बात होती रही ज्वॉयसिल से। 31 साल की है वो। 7 साल से होटल में काम कर रही है। पति अबूधाबी गया है कमाने के लिए। साल में एकाध महीने के लिए आता है।

यह कमाने का चक्कर भी मजेदार है। कमाई के लिए कन्नौज का लड़का गोवा में चाय बेंचता है। गोवा का लड़का परिवार छोड़कर अबूधाबी में खटता है जाकर। अबूधाबी वाले शायद कहीं और जाकर पसीना बहाते हों। वहां के लोग कहीं और.....।

गोवा से टी शर्ट और घुटन्ना वाले मौसम का हफ्ता भर आनंद उठाने के बाद अब फिर रजाई कम्बल वाले मौसम की शरण में आ गए--जैसे उड़ि जहाज को पंछी, फिरि जहाज पर आवै।

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Saturday, January 23, 2016

बर्टिल (bertil) से मुलाकात


कल सुबह बीच पर बर्टिल (bertil) से मुलाकात हुई। स्वीडन के रहने वाले , 63 साल के बर्टिल बालू पर आलथी-पालथी मारे बैठे , समुद्र दर्शन कर रहे थे। हम भी बगल में धसककर बैठ गये और बतियाने लगे।
बात की शुरुआत नाम के मतलब से हुई। बर्टिल मतलब -प्रकाश। मेरा नाम भी पूछा। मैंने बताया-'अनूप मतलब जिसकी उपमा न हो। मतलब यूनीक।'

इस पर हंसते हुए बर्टिल ने कहा-'एवरीबडी इस यूनीक। यू टू।' सब अनोखे होते हैं। तुम भी हो।

हफ़्ते भर पहले ही आये हैं बर्टिल गोवा। इसके पहले भी कई बार आ चुके हैं। जहां ठहरे हैं वहां की साफ़-सफ़ाई की तारीफ़ करते हुये बताते हैं - ’वे लोग बर्तन मिनरल वाटर से धोते हैं।’ शायद पूड़ी बहुत अच्छी लगी सो कई बार जिक्र किया उसका।

’प्लम्बर’ का काम करते हैं बर्टिल स्वीडन में। इस समय स्वीडन में ठंड बहुत है। तापमान बर्फ़ के तापमान से 15 डिग्री नीचे है। अपने घर का फ़ोटो दिखाते हैं बर्टिल। बर्फ़ से ढकी हुई छत और मैदान। इतनी सर्दी से बचने के लिये ही भागकर गोवा आये हैं बर्टिल।

प्लम्बर मतलब ’पाइप फ़िटर’ मतलब नलसाज। पाइप का काम करने वाला आदमी। सहज रूप से तुलना करने लगता हूं। भारत में नलसाज का काम करने वाला भला कोई ऐसे किसी दूसरे देश जाकर छुट्टियां मना सकता है क्या? सामान्यत: तो कत्तई नहीं। 200 -300 रुपया दिहाड़ी मिलती है भारत में नलसाज को। महीने भर की कमाई मिलाकर एक दिन सिर्फ़ ठहरने के किराये के बराबर होगी कहीं।

भारत और स्वीडन की बातें करते हुये बर्टिल ने बताया कि यहां की सबसे अच्छी बात वैवाहिक और पारिवारिक संबंधों का स्थायित्व बहुत अच्छी बात है। स्वीडन में तलाक की दर 50% से ऊपर है। खुद के परिवार के बारे में बताते हुये बर्टिल ने बताया कि उनका 25 की पारिवारिक जिंदगी जीने के बाद तलाक हुआ। दो लड़के ( जुड़वा) और एक लड़की हैं। लड़के 43 साल के हैं। लड़कों और लड़की को मिलाकर कुल सात नाती-नातिन हैं। सबके फ़ोटो दिखाये खुश-खुश दिखते हुये।

तलाक का कारण पूछने पर बताया -’ पता नहीं। लेकिन लगता है कि हम लोगों के पास एक-दूसरे के लिये समय नहीं था। हम दोनों की अपने काम और कमाई इतना व्यस्त हो गये कि एक दूसरे के लिये समय ही नहीं निकाल पाते थे। तलाक हो गया।

तलाक के बाद पिछले दस सालों से अपनी मंगेतर के साथ रह रहे हैं बर्टिल। 59 साल की अपनी मंगेतर का फ़ोटो दिखाते हुए बर्टिल ने कहा- ’ वह फ़ोटो में जितनी सुन्दर दिखती है, वास्तव में उससे ज्यादा सुन्दर है।’ प्रेमिका भी तलाक शुदा है। उसके भी बच्चे हैं। बच्चों के साथ रहना उसको अच्छा लगता है।

’प्रेमिका आपको खूब प्यार करती है? - इस सवाल का जबाब देते हुये बर्टिल कहते हैं- ’आई थिंक सो। मुझे ऐसा लगता है। रोज मुझे फ़ोन करती है-’जल्दी, आ जाओ। कम सून। ’

उसको साथ क्यों नहीं लाये ? पूछने पर बताते हैं कि लम्बी यात्रा करना उसको पसंद नहीं है इसलिये नहीं लाये। लेकिन शायद अगली बार उसको साथ लाने के लिये राजी कर सकूं।

तलाक के पहले पत्नी के साथ घर साझा था। तलाक के बाद पत्नी ने घर छोड़ा तो उसका आधा पैसा उनको देना जिसे लोन लेकर चुकाया बर्टिल ने। लेकिन खुश हैं इस बात से कि अब उनका लोन चुकता होने के बाद घर उनका अपना हो गया। दोनों अब भी मित्र हैं। लेकिन मिलना-जुलना नहीं होता।

बर्फ़ से ढंके घर को दिखाते हुये बर्टिल ने बताया कि वे जिस गांव में रहते हैं वहां कुल तीन घर हैं। तीन घर वाले गांव में रहने की व्यवस्था कैसे होती होगी यह सोचकर हम ताज्जुब करते हैं।

स्वीडन के बारे में हम भी जानते हैं यह बताने के लिये हमने अलोफ़ पाल्मे और बाफ़ोर्स तोप के बारे में बताया। उन्होंने अल्फ़्रेड नोबल का किस्सा सुनाया।

स्वीडिश होने के बावजूद अंग्रेजी अच्छे से बोल रहे थे बर्टिल। इसका कारण स्वीडिश का इन्ग्लिसाइज्ड होते जाना बताया बर्टिल ने।

हमने पूछा फ़ेसबुक खाता है क्या उनका? इस पर बताया- ’ हां है पर उसमें ज्यादा इंटरेस्ट नहीं उनको। लोगों से आमने-सामने मिलना ज्यादा अच्छा लगता है उनको।

चलते समय गले मिलने की कोशिश की। लेकिन पेट पहले मिले। इसके बाद हम कमरे पर लौट आये। दिन में घूमने गये। उसके किस्से फ़िर कभी। अभी तो जा रहे हैं समुद्र बीच पर टहलने। चलिये आप भी मेरे साथ।
‪#‎गोवारोजनामचा‬
 
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Friday, January 22, 2016

समुद्र तट पर सैलानी

बी.पी.मिश्र, राजीव कुमार, सुरजीत दास, अनूप शुक्ल
सुबह उठते ही हम लोग बीच की तरफ़ भागते हैं। हफ़्ते भर के लिये आये हैं। जी भरकर देख लें। कुछ छूट न जाये। कल गये सुबह तो एक आदमी डब्बे में पेंट लिये लकड़ी के पटरों को रंग रहा था। एंथोनी नाम था। रंगकर नाव की तरफ़ जाने लगा तो हमने दुबारा पटरे रंगवाकर उसका फ़ोटो लिया।  :)
 
समुद्र से कुछ लोग नाव बाहर ला रहे थे। रस्सी से घसीटते हुए पटरे के ऊपर रखते हुए। पीछे का पटरा निकालकर आगे रखते हुए। नाव आगे खींचते हुए जो बोल रहे हैं उसका मतलब हईसा, जोर लगा के हइसा जैसा ही कुछ होगा।

एंथोनी लकड़ी के पटरों को रंगते हुये साथ में Rajeev Kumar
एक लड़की बीच पर कैमरा माला की तरह पहने हुये अकेले टहल रही थी। रात को घर वालों के साथ क्लब गयी थी। घर वाले थककर सो रहे हैं। उसको बीच देखने का मन है तो यहां आ गयी। पास की ठहरे हुये हैं सब लोग। डाक्टर है वह। उसके कहने पर उसकी फ़ोटो उसके ही कैमरे से खींचते हैं हमारे साथी। मैं भी अपने मोबाइल से उसके फ़ोटो कई फ़ोटो खींचता हूं। मेरा दोस्त भी उसके साथ खड़े होकर फ़ोटो खिंचाता है। उसको फ़ोटो दिखाता हूं। फ़ोटो अच्छे आये हैं। सारे फ़ोटो मेरे मोबाइल से अपने मोबाइल में ’ब्लू टूथ’ से ट्रान्सफ़र कर लेती है। 


शाम को सैलानियों के विदा होने के बाद तखत पर लेटकर आराम करती हुई कामगार महिला
सुबह मौसम ठंडा था। सूरज निकलने के साथ गरमी बढती गयी। सैलानी अभी आये नहीं थे। धूप सेंकने वाले तख्त खाली पड़े थे सुबह। हम लोग उन खाली पड़े तख्तों पर लेटकर फ़ोटो खिंचाते हैं और घूमघामकर चले आते हैं।

दोपहर को लंच के समय और शाम को क्लास खत्म होने के बाद हम लोग फ़िर बीच पर जाते हैं। सैलानी से लबालब भरा है बीच। धूप सेंकते ज्यादतर सैलानी विदेशी ही हैं। लोग धूप में अलसाये से लेटे हैं। कोई पीठ के बल और कोई पेट के बल। कुछ लोग पढने का काम भी कर रहे हैं। एक आदमी तख्त पर पेट के बल लेटा हुआ एक फ़ुट ऊंचे नीचे टेबलेट रेत पर रखेे पढाई में जुटा हुआ है।


धूप स्नान मुद्रा में लेटे हुये अनूप शुक्ल
धूप में लोग ज्यादातर सैलानी पीके पिक्चर के आमिर खान की तरह, ट्रान्जिस्टर की जगह अंडरवियर धारण किये लेटे हुये हैं । कुछ लोग तेल से मालिश करा रहे हैं। मालिश करने वाली अधिकतर बीच पर काम करने वाली महिलायें हैं। महिलायें जो कर्नाटक, उड़ीसा और दीगर जगहों से रोजी रोटी के चक्कर में आयी हैं धूप सेंकते सैलानियों के हाथ-पैर, पीठ पर नारियल का तेल मल रही हैं। सैलानी आराम से धूप में पसरे हुये हैं।
इस बीच देखा कोई गाय भी बीच पर आ गयी। कुछ सैलानी उस गाय को अपने पास से ब्रेड निकालकर खिलाने लगे। उसके साथ के लोग इस घटना का वीडियो बनाने लगे। उन लोगों में से एक आदमी अपने जूतों को फ़ीते से बांधे हुये कन्धे के दोनों ओर माला की तरह धारण किये हुये यह सब कौतूहल से देख रहा है। उन लोगों के लिये बीच पर गाय कौतुक का विषय है। हमारे लिये वे लोग कौतुक का विषय हैं। दोनों लोग अपने-अपने कौतुक के विषय को देखते हुये बीच पर मौजूद हैं।


समुद्र से नाव घसीटकर ले जाते हुये लोग !
शाम तक सब सैलानी धूप उतरने के साथ ही विदा होते गये। हम भी विदा हुये रात में फ़िर आने के लिये। लौटते हुये देखा कि जिन तख्तों पर सैलानी लेटे हुये थे उनमें से ही एक पर एक महिला गुड़ी-मुडी हुई लेटी थी। शायद दिन भर की मेहनत से थकी हुई।



डूबते सूरज को देखकर अजय गुप्त की कविता अनायास याद आ गयी:
सूर्य जब जब थका हारा ताल के तट पर मिला
सच कहूँ मुझे वह बेटियों के बाप सा लगा।
यहां समुद्र ताल पर नहीं समुद्र में डूब रहा था लेकिन डूब तो रहा ही था।

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Thursday, January 21, 2016

हर जगह अच्छे-बुरे लोग होते हैं

अग्वाद का क़िला का वर्णन
कल शाम को क्लास के बाद हम लोग पास में ही स्थित अग्वाद का किला देखने गये। अग्वाद शब्द का अर्थ पुर्तगाली भाषा में पानी का स्थल होता है। किला दो हिस्सों में है। नीचे का हिस्सा पानी जमा करने के लिये और ऊपर का हिस्सा सुरक्षा के लिहाज से किले के रूप में।

यह किला 1612 में बनाया गया। जहाजों को पानी देने के लिये बनाये इस किलें में 23.76 गैलन पानी जमा किया जा सकता थी। जहाजों के प्रकाश स्तम्भ के रूप में इसका उपयोग होता था। वहां दी गयी सूचना के अनुसार पहले प्रकाश का उत्सर्जन 7 मिनट में एक बार होता था। 1964 में 30 सेकेंड में एक बार होने लगा और फ़िर 1976 में बंद कर दिया गया।

किले पर पहुंचते ही अलग-अलग जगह खड़े होकर लोग धड़ाधड़ फ़ोटोबाजी में जुट गये। मोबाइल में कैमरे के साइड इफ़ेक्ट हैं यह कि अब हम लोग किसी चीज को देखते बाद में हैं, उसका फ़ोटो पहले खींचते हैं। फ़ोटो भी खींचते ही घर वालों, दोस्तों को फ़ार्वर्ड करते हैं और फ़िर मोबाइल में मेमोरी की समस्या होने पर डिलीट कर देते हैं।

राजीव कुमार के साथ अनूप शुक्ल
किले के बाहर तरह-तरह की दुकानें लगी हुई थीं। हमारे कुछ साथियों ने गोवा के हैट खरीदे , कुछ ने गोवा लिखी हुई टी शर्ट। खरीदारी में संकोच करने वालों के लिये यह काम उनकी सहधर्मिणियों ने किया। पत्नी के लिये पति भी एक आइटम होता है। (http://fursatiya.blogspot.in/2009/08/blog-post.html) उसकोअच्छे से पहना-ओढ़ा कर अच्छे से रखना उनके जरूरी कामों में से मुख्य काम होता है।

अग्वाद के किले से निकलकर हम लोग अंजना बीच देखने गये। वहां पहुंचने तक शाम हो चली थी। लेकिन काम भर का उजाला बाकी था।

अंजना बीच पथरीली चट्टानों वाला बीच है। यहां रेत नहीं है। चट्टाने हैं बस। उनपर बैठकर, खड़े होकर फ़ोटो खिंचाकर चल देने वाला बीच। हमारे साथ के लोग नीचे बीच की चट्टानों पर उतरकर अपने साथियों के साथ कैमरा चमकाने लगे। हम ऊपर से ही नजारे देखने लगे। सूरज भाई अपनी दुकान समेटकर वापस जाने की तैयारी कर चुके थे। क्षितिज पर समुद का काला पानी और सूरज की लालिमा अलग-अलग नजर आ रही थी।


इलेनार (22) और आरोन (28)
वहीं बीच किनारे पुलिया पर एक बहुत प्यारा जोड़े से मुलाकात, बातचीत हुई। आरोन(aaron), उम्र 28 साल और इलेनार (eleanor), उम्र 22 साल इंग्लैंड से भारत घूमने आये हैं। 6 महीने के लिये भारत भ्रमण में 1 महीना गोवा घूमने के लिये रखा है। आरोन फ़िल्म निर्माण के काम से जुड़ा है। इंतजामकर्ता टाइप। सूटिंग होने से पहले सब इंतजाम पक्का है कि नहीं यह सब देखने का काम करता है। इलेनार ट्रेनी हाउस वाइफ़ है पिछले छह महीने से ऐसा बताया इलेनार ने।

इलेनार के पीठ पर रखे बैग की तरफ़ इशारा करते हुये आरोन ने बताया कि यह बैग भी बना लेती है और यह बैग इसने ही बनाया है।

इसके पहले भी भारत आ चुका है आरोन, कुछ दिन पहले थाईलैंड भी गया था लेकिन इलेनार के साथ घूमने का यह पहला मौका है।


इलेनार और आरोन -प्यारा जोड़ा
भारत के अनुभवों के बारे में बताते हुये आरोन ने कहा- ’अभी तक कोई समस्या नहीं हुई। लोग अच्छे हैं। हेल्पफ़ुल हैं। अच्छा लग रहा है भारत में। मौसम बहुत अच्छा है। इंगलैंड में इस समय जाड़े का मौसम है। यहां का मौसम खूबसूरत है।’

इसके बाद उसने कहा-’ हर जगह अच्छे-बुरे लोग होते हैं। यह अच्छी बात है कि हमको अभी तक सब लोग अच्छे ही मिले।’

हम लोगों के बारे में भी उसने तमाम सारे सवाल पूछे। रोजमर्रा के सामान कहां मिल सकते हैं इसके बार में जानकारी मांगी। हमको जैसा समझ आया हमने बताया। इसके बाद वे बाय-बाय करके चले गये। हम भी अपने साथियों की टोली में शामिल हो गये। वे सब बीच नीचे से ऊपर की ओर वापस आ रहे थे।

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Wednesday, January 20, 2016

अग्वाद का किला , कुछ फोटुएं



आज शाम को अग्वाद का किला देखने गए। वहां खींची गयी कुछ अपनी फोटुएं। फोटो खिंचवैया -Rajeev Kumar


चार सौ साल पुराने किले की दीवार के साथ


कहने को भले फ़ोटो हमारा खींचा जा रहा हो लेकिन फ़ोटोग्राफ़र का ध्यान कहीं और है ।  


फ़ोटो खिंचाते हुये ध्यान आया कि मुस्कराने स फ़ोटो अच्छा आता है।


फ़ोटो खींचने में कोई पैसा तो पड़ता नहीं इसलिये क्या चिंता लिया जाये एक और स्नैप !


एक पोज यह भी देखिये जरा। बताइये कैसा है।



एक फ़ोटो खींचने से ही बच्चे का गुस्सा शांत नहीं हुआ। उसने कहा- ’अंकल , एक और लेते हैं फ़ोटो।’ साथ के बच्चे-बच्चियां हंसते हुये हमारी फ़ोटो खींची जाते देख रहे थे।

हमारे साथ Rajeev Kumar राजीव ने वहां घूम रहे बच्चों के ग्रुप फ़ोटो खींचा जब बच्चे कह रहे थे कि वे फ़ोटो खिंचवाने के लिये किसी खूबसूरत लड़की को खोज रहे थे। बच्चों ने राजीव द्वारा फ़ोटो खींचने के अपराध की सजा हमारे फ़ोटो खींचकर दी।
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विदेशी सैलानी रेत पर


बिना कैमरे के वीडियोग्राफी से करती हुई महिला सैलानी
आज सुबह आराम से गए समुद्र दर्शन के लिए। कल शाम को क्रूज पर गए थे। एक घण्टे के लिए जहाज पर यात्रा के 300/- रूपये। 400 यात्री थे जहाज पर। मतलब एक लाख रूपये कमा लिए जहाज वालों ने। एक घण्टे के दौरान 3 लोकनृत्य प्रस्तुत किये। इसके अलावा अलग-अलग ग्रुप में यात्रियों को स्टेज पर बुलाकर डांस कराता रहा एंकर। लौटते हुए थक से गए तो आराम से उठे आज।

बीच पर एक महिला समुद्र के सामने घुटने, हथेलियाँ आँखों के सामने किये चेहरा दांये-बाएं घुमा रही थी। उसकी तल्लीनता से लगा कि शायद समुद्र की वीडियोग्राफी कर रही हो। सामने से गुजरने पर पर देखा कि उसके हाथ में कोई कैमरा नहीं था। वह खाली हाथ थी। शायद कोई कसरत कर रही हो।


समुद्र स्नान और सूर्य स्नान  एक साथ करते हुए सैलानी
चाय वाला आज जो मिला वह कर्नाटक का रहने वाला था। केन में चाय रखे था। सुबह 7 से 10 बजे तक बीच पर चाय बेचता है। फिर शाम को। बाकी समय में कुछ नहीं करता।

बीच पर एक महिला कुछ आयताकार लकड़ियाँ खींचकर पास-पास एक दूसरे के समांतर रख रही थी। रेत पर रखी गयी इन लकड़ियों के ऊपर नाव रखी जानी थी। दूर से देखने पर लगा कि लकड़ियाँ काली हैं मतलब जली हुई हैं। लेकिन पास से देखने पर पता चला कि लकड़ियों का कालापन उनके जलने के चलते नहीं बल्कि उन पर चढ़ी हुई रबर के कारण हैं। रबर से लकड़ी और नाव दोनों की उम्र बढ़ती होगी।

बीच पर एक लड़की हमारी ही तरह इधर-उधर घूमती फोटो ले रही थी। पूछा तो बताया रूस से आई है। इसके आगे की बातचीत के हम लोगों के बीच भाषा की दीवार खड़ी हो गयी। वह बीच के किनारे बने ढाबे की तरफ चली गयी।


सूरज भाई भी लगता है हमारे साथ ही आ गए हैं बीच पर।
हमारे साथ के कुछ लोग आज डॉल्फ़िन दर्शन के लिये जाने के लिए बोट का इंतजाम करने में लग गए। हम बीच दर्शन और फोटोग्राफी में व्यस्त हो गए। एक जोड़ा समुद्र पर फोटोग्राफी कर रहा था। पुरुष समुद्र में तैरते हुए इधर-उधर हो रहा था। महिला उसकी फोटो ले रही थी।

समुद्र के किनारे खड़े हुए हम लहरों का तेजी से तट की तरफ आना और तट पर पहुंचकर आराम से बालू को धोते और समतल करते देखते रहे। लहरें एक के पीछे एक करके आतीं। एक दूसरे को धकियाते हुए तट तक पहुंचती। तट पर पहुंचते हुए अचानक कोई नई लहर सब लहरों के ऊपर चढ़कर सबसे पहले तट पर पहुंचकर शांत हो जाती। कुछ ऐसे ही जैसे जब कोई आंदोलन शुरू से लेकर आगे बढ़ने और खत्म होने तक आंदोलन के नेतृत्वकर्ता बदलते रहते हैं।


बीच पर योगासन करते हुये सैलानी

सूरज भाई शायद इन सैलानियों की सुविधा के लिये ही उत्तर भारत छोड़कर यहां डटे हुए हैं

समुद्र में लोगों को नहाते देख हम भी उतर गए पानी में। आती हुई लहर तट की तरफ फेकती हमको।वही लहर जब वापस लौटती तो कहती -चलो हमारे साथ। लौटते समय पांव के नीचे की बालू सरकती तो लगता लुढ़क जाएंगे पानी में। तैरना आता नहीं सो हम बैठ गये पानी में और लहरों के साथ किनारे के पास-दूर लुढ़कते-पुढकते रहे। हमारे बगल में एक परिवार , जो महाराष्ट्र से आया था, के लोग समुद्र स्नान कर रहे थे। वे एक दूसरे के ऊपर बालू फेंक रहे थे। इस बीच एक लहर आई और ढेर सारा नमक मेरे खुले हुए मुंह में फेंककर तट की तरफ खिलखिलाती हुई चली गयी।

हमारे साथ के लोग डॉल्फ़िन देखने के लिये चले गए। हम लौट लिये।कपड़े सब भीग गए थे। समुद्र ने विदा करते हुए एक-एक मुट्ठी रेत मेरे बरमूडा की दोनों जेबों में उपहार के रूप में डाल दी थी। लहरों ने भी अपने साथ लाई रेत कपड़ों और शरीर में लपेटकर विदा किया।

लौटते हुए देखा एक लड़की समुद्र में बहुत आगे जाकर नहा रही थी। उसको लहरों के साथ ऊपर नीचे होते, तैरते देखकर लगा काश हमको भी तैरना आता तो हम भी समुद्र में तैरते। लेकिन कन्धे का जोड़ उतर जाने के डर के चलते ऐसे कई काम नहीं कर पाते जिनको करने का मन होता है।


निधीश रहवासी खजुराहो
आगे धूप में कुछ विदेशी सैलानी रेत पर योग जैसा कुछ कर रहे थे। तरह-तरह के आसन। एक व्यक्ति उनको सिखा रहा था। वे उसके निर्देश पर योगासन करते हुए अंतत: शवासन मुद्रा में लेटे रहे धूप में। सूरज भाई को फुल वाल्यूम में चमकता देखकर उनसे पूछने का मन किया कि क्या इन्हीं लोगों को धूप मुहैया करवाने के लिए वे कानपुर, जबलपुर, जयपुर, लखनऊ की धूप की सप्लाई काटकर यहां चमक रहे हैं। लेकिन फिर पूछा नहीं क्या पता कहीं गुस्सा होकर और जोर से चमकने लगेंगे तो लफ़ड़ा होगा।

वहीं ढाबे पर तख्त जमाते, गद्दे लगाते, छाता सटाते निधीश से मुलाकात हुई। खजुराहो के रहने वाले निधीश छह महीने गोवा के होटलों में नौकरी करते हैं। इसके बाद मुम्बई चले जाते हैं काम की तलाश में। यहां 15000 रूपये मिलते हैं। रहने और खाने की सुविधा अलग से। 30 साल उमर है हरीश की। अभी तक कुंवारे हैं।

निधीश ने बताया कि विदेशी सैलानी शाम तक धूप में सुस्ताते हैं। 800 से 1000 रूपये तक का खाना खाते हैं। शाम को चले जाते हैं। फिर शाम को ड्रिंक करते हैं, मस्ती मारते हैं।


हम भी समुद्र स्नान के लिए कूद पड़े समुद्र में  
धूप में योगासन करते हुए लोगों के बारे में अपनी राय बताते हुए निधीश ने कहा-'इनको खाने-पीने की समस्या नहीं इसीलिए इतना मन लगाकर योग कर रहे। भूखे होते तो थोड़ी मन लगता इन सब कसरत में।'

जितना तुम्हारी महीने भर की तनख्वाह है उतना तो ये सैलानी एक दिन में खर्च कर देते होंगे। इस पर निधीश ने कहा-' अपने यहां सब करप्शन बहुत है।हर जगह तो करप्शन है। इसीलिये सब समस्याएं हैं।'

बात करते हुए हम लोगों का क्लास का समय हो गया। हम लोग वापस आ गए। समुद्र तट को सूरज भाई और सैलानियों के हवाले करके।

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Tuesday, January 19, 2016

समुद्र में डॉल्फ़िन की पूँछ

सुबह का समुद्र। तट की तरफ आती लहरें।
आज सबेरे-सबेरे उठकर चले आये समुद्र तट पर। सुबह 630 बजे तक अँधेरा सा ही था। बहुत कम लोग थे।

धूप सेंकने वाली बेंच पर बालू और पानी का महीन गठबंधन पसरा हुआ था। हम उसी के ऊपर साथ लाया हुआ झोला धरकर झोले के ऊपर बैठ गए। बगल के बेंचों पर और रेत पर तमाम कौवे बैठे थे। हल्ला मचा रहे थे।पता नहीं मेरे स्वागत में या विरोध में।


तख्त सुबह से खाली पड़े इन्तजार कर रहे हैं सैलानियों का
तट के किनारे सनबाथ के लिए पड़े तख्तों पर गद्दे अभी नहीं हैं। सब तख़्त नंगे बदन रात के अँधेरे में चन्द्रमा की चांदनी के सहारे पड़े रहे। सुबह की रोशनी में नहाने के बाद अब इंतजार कर रहे हैं कि उनके ऊपर गद्दे डाले जाएंगे।

अँधेरे में समुद्र के पास से गुजरते लोग स्पिकमैके आर्ट की आकृतियों से लग रहे थे।


समुद्र तट पर टहलते, भागते लोग।
लहरें तेजी से दहाड़ती हई आतीं और तट पर पहुंचकर ढेर हो जाती। समुद्र से हल्ला मचाती आती और फिर किनारे आकर पस्त होती लहरों को देखकर ऐसा लग रहा था कि चुनाव सभा में कोई जननेता दहाड़ते हुए अनगिनत वादे करे और फिर किनारे आते ही पस्त होकर कहे--होबे न।

समुद्र की लहरें किनारे को धोकर चली जाती हैं वापस। मानों सैलानियों के लिए फुटपाथ बना रही हों चलने के लिए।

सुबह मार्निंग वाक करने वाले लोग निकल चुके हैं। कोई तेज चल रहा है कोई धीमे। एक बुजुर्ग चलते हुए दम लगाकर ऐसे हाथ आगे पीछे कर रहे हैं मानो हवा में लगी रेलिंग पकड़कर आगे बढ़ रहे हों।

एक आदमी हांफता हुआ सा भागता चला गया सामने से। एक बुजुर्ग टहलता हुआ सा गया। उसने बताया कि फिसिंग करता है वह। लेकिन आज नहीं गया। एक महिला, शायद यूरोपियन, तेजी से रनिंग करती हुई सामने से गयी और फिर कुछ देर बाद वापस लौटी उसी गति से भागते हुए।


शानू कन्नौज के रहने वाले हैं। सुबह चाय बेचते हुए।
एक महिला बड़ा सा प्लास्टिक का बोरा लिए तट पर बिखरी प्लास्टिक की बोतल बटोर रही है।

हम अकेले टहल रहे थे समुद तट पर तब तक हमारे साथी भी आ गए। तय हुआ कि समुद्र में डॉल्फ़िन देखने जायेंगे। जब तक मोटरबोट वाले को खोजते साथी लोग तब तक हम समुद्र तट पर साइकिल पर चाय का केन लादे चाय शानू की चाय पीने लगे। पता चला कन्नौज के हैं शानू। दस रूपये की चाय। कैन में 100 चाय लेकर चलते हैं। चाय पिलाकर कागज के कप वापस लेकर अपने पास रखे बैग में रखते जाते थे। समुद्र तट गन्दा न इसके लिए यह जरूरी है।

मोटरबोट से चलने के पहले लाइफ जैकेट बाँध लिए हम लोग। बोट चली समुद्र में। समुद्र की लहरें बोट को झूले की तरह ऊपर नीचे झूला झुला रहीं थीं। ऊपर-नीचे होती बोट चढ़ाई पर चढ़ती और ढलान पर उतरती हुई आगे चली।


नन्दकिशोर गुप्ता, बी. पी मिश्र और सुरजीत दास अपने जोड़ीदारों के साथ। सबसे पीछे राजीव कुमार और अनूप शुक्ल। 
काफी देर बाद समुद्र में डॉल्फ़िन की पूँछ दिखी। डॉल्फ़िन समूह में चलती हैं। पानी में चलती चकर घिन्नी की तरह कुछ हिस्सा ही दिख रहा था उनका।

डॉल्फ़िन देखने के बाद हम वापस लौटे। रास्ते में गवर्नर हाउस, ताज होटल, विजय माल्या का रकबा दिखाया बोट वाले ने।


धूप में नहाते हुए विदेशी सैलानी

मोटरबोट पर तट के पास जाते हुए हमने लहरों को किनारे जाते और किनारे पहुंचकर सर पटककर रुक जाते हुए देखा। हो सकता है कि लहरें किनारे पर जाते हुए किसी बेहतर तट से मिलने की इच्छा के साथ जाती हों। लेकिन उसी पुराने तट को देखकर सर पीट कर किनारे बैठ जाती होंगी।

शायद ये इस दुविधा में हैं कि समुद्र में स्नान करें या धूप में नहाएं पहले।

बीच पर सैलानियों की भीड़ बढ़ गयी थी। विदेशी सैलानी धूप सेंकने की तैयारी में तख्त और छाते की व्यवस्था करने में लगे हुए थे। जो व्यवस्था कर चुके थे वे धूप स्नान करने लगे थे।

हम लोगों की क्लास का समय हो गया था इसलिए बीच की सारी ख़ूबसूरती को बीच पर आनेवाले लोगों के देखने के लिए छोड़कर वापस चले आये।





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गोवा का पहला दिन

समुद्र तट पर उछलते कूदते मस्ती करते देशी सैलानी

हम लोग जहां ठहरे हुये हैं हम लोगों की ट्रेनिंग भी वहीं हो रही है। समुद्र तट उस जगह से लगा ही हुआ है। सो ट्रेनिंग के बीच में जैसे ही थीडी देर का ब्रेक हुआ हम फ़ौरन समुद्र तट पहुंच गये जैसे स्कूल के बच्चे जरा सा मौका मिलते ही खेल के मैदान की ओर दौड़ पड़ते हैं।

सूरज भाई पूरे जलवे के साथ चमक रहे थे। शायद सुबह देर से निकलने की भरपाई कर रहे थे। समुद्र तट पर देशी सैलानी उछलते-कूदते हुये लहरों के साथ मस्ती कर रहे थे। कोई-कोई ऐसे उछलता दिखाई दे रहा था मानों सूरज को छूना चाहता है। सूरज भाई और उनके साथ की किरणें यह सब मुस्कराते हुये देख रही थीं।
बीच के किनारे ही तमाम विदेशी, शायद फ़िरंगी, धूप स्नान कर रहे थे। लगभग सभी के हाथ में मोटी-मोटी अंग्रेजी की किताबें थीं, उपन्यास नुमा। जिस तल्लीनता से वे उपन्यास पढते हुये धूप सेंक रहे थे उससे लग रहा थी मानों वे धूप में किताबें पढ़ने के लिये ही शायद भारत आये हैं। उनमें से अधिकतर लोग अधेड़ से बुढापे की उमर की तरफ़ अग्रसर लोग थे। हम लोगों ने कुछ देर में धूप, समुद्रतट, लहरों और धूप में नहाते हुये लोगों जितना निहार सकते थे उतना निहारा। इसके बाद सारा सौंदर्य बाकी लोगों के देखने के लिये छोड़कर अच्छे बच्चों की तरह वापस लौट लिये।


समुद्र तट पर धूप स्नान करते विदेशी सैलानी
लौटते हुये हमारे रास्ते में ही एक बुजुर्ग महिला अपने साथी के साथ धूप सेंकते हुयी मिलीं। हमने उनसे पूछा कि वे कहां से आये हैं तो उन्होंने बताया कि मिडल इंगलैंड से आये हैं। उन्होंने हमसे पूछा - हम कहां से आये हैं तो हमने बता दिया कि हम भारत (इंडिया से ही हैं) इसके बाद उन्होंने पूछा इंडिया में कहां से तो हमने सब दोस्तों के बारे में बता दिया कि वे लोग कहां से हैं। इस तरह हम लोग ने कई सवालों के जबाब बिना पूछे दे दिये और उनसे कई सवाल पूछने के अधिकारी हो गये।

हमने पुरुष से उसकी उमर पूछी तो उसने कहा - यू गेस। हमने अनुमान लगाकर बताया - 50 से अधिक लगते हैं। उसने उमर नहीं बताई पर यह कहा -तुम्हारा अनुमान सही है। इसके बाद महिला ने कहा- अच्छा मेरी उमर का अन्दाजा लगाओ ( गेस माई एज) हमने कहा - 16 प्लस। महिला बड़ी तेजी से हंसी और उसने बताया कि उसकी उमर 87 साल की है। हमने ताज्जुब करते हुये कहा- "आप लगती तो नहीं इतनी उमर की।" इस पर उन्होंने धन्यवाद दिया।

कैथरीन उम्र 87 साल रहवासी इंग्लैंड गोवा के बीच पर धूप सेंकती हुई।
इसके बाद तो ऐसे बातें होंने लगी जैसे पुलिया पर बैठे किसी जबलपुरिये से बतिया रहे हों। बस हम दोनों की अंग्रेजी के उच्चारण के चलते कुछ अर्थभेद हो रहा था। कह कुछ रहे थे समझा कुछ और जा रहा था।

महिला ने बताया कि उनका नाम कैथरीन है और उनके साथी का नाम पीटर है। वे दोनों पिछले करीब बीस दिन से गोवा में रुके हुये हैं। पास में अपार्टमेंट लेकर रह रहे हैं। घूमने के लिये आये हैं भारत। पूछकर खींचा हुआ फ़ोटो कैथरीन को दिखाया तो उत्सुकता से देखा और फ़ोटो की तारीफ़ की।

हम लोगों ने बताया कि हम लोग यहां ट्रेनिंग के लिये आये हैं और क्लास का समय हो गया इसलिये विदा लेते हुये वापस चल दिये। उन्होने मुस्कराते और यह कहते हुये विदा किया - इन्ज्वाय द क्लास।  :)

 
लौटते हुये हम सोच रहे थे कि 87 साल की उमर में अपने यहां अधिकतर लोग अपनी अंतिम विदा का इंतजार करते हुये दिन गिनने लगते हैं उस उमर में ये लोग घूमने निकले हैं। इसमें दोनों देशों के सामाजिक ताने-बाने और लोगों की व्यक्तिगत आर्थिक हैसियत की भी महत्वपूर्ण भूमिका भी अवश्य रहती होगी।


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