Wednesday, November 11, 2009

चिट्ठाचर्चा –यादों का एक सफ़र

http://web.archive.org/web/20140419214243/http://hindini.com/fursatiya/archives/997

चिट्ठाचर्चा –यादों का एक सफ़र


चिट्ठाचर्चा के चर्चाकार

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imageimage तुषार जोशीअभय तिवारी
imageसंजय बेंगाणी imageराकेश खंडेलवाल
अतुल अरोरा तरुणमनीष कुमाररचना बजाज सपरिवारimage
आशीष श्रीवास्तवसागर चंद्र नाहर कविता वाचक्नवीimage
imageimageमसिजीवी
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विवेक सिंह अनूप शुक्ल
ऊपर से नीचे बायें से दायें पहली पंक्ति जीतेन्द्र चौधरी, समीरलाल,आलोक कुमार ,सृजन शिल्पी,रविरतलामी, विपुल जैन, तुषार जोशी, अभय तिवारी, पंकज बेंगाणी, संजय बेंगाणी, देबाशीष, राकेश खण्डेलवाल, अतुल अरोरा, तरुण, मनीष कुमार, रचना बजाज , आशीष श्रीवास्तव, सागर चन्द नाहर, कविता वाचक्नवी, सुजाता, मीनाक्षी, नीलिमा,मसिजीवीसंजय तिवारी, रमन कौल, शिवकुमार मिश्र, कुश, विवेक सिंह और अनूप शुक्लगिरिराज जोशी की फोटो उपलब्ध होते ही लगाई जायेगी।
कल चिट्ठाचर्चा की एक हजारवीं पोस्ट कविताजी ने पोस्ट की। 9 जनवरी, 2005 को शुरु हुये इस सफ़र में हिन्दी ब्लाग जगत के अपने समय के बेहतरीन और सक्रिय चिट्ठाकारों ने अपना योगदान दिया है। चिट्ठाचर्चा की इन एक हजार पोस्टों से पिछले पांच सालों में हिन्दी ब्लाग जगत की हलचल का कुछ-कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है।
चिट्ठाचर्चा कैसे शुरु हुआ और क्या-क्या घटनायें हुईं इसके संचालन के दौरान इसका संक्षिप्त लेखा-जोखा पिछले साल मैंने दिया था।
अंग्रेजी ब्लागरोंकुछ अंग्रेजी ब्लागरों के हिंदी विरोधी रवैये की प्रतिक्रिया स्वरूप शुरु की गयी चर्चा इतने दिन का सफ़र तय करेगी यह उस समय सोचा भी नहीं गया था। शुरुआती दिनों में हम सब ( देबाशीष, अतुल, जीतू ,रविरतलामी या मैं) अपने-अपने हिस्से की चर्चा एक पोस्ट में जमा कर देते थे और हममें से कोई एक उसे प्रकाशित कर देता था। अतुल उस समय हर चर्चा नये अंदाज में करने का प्रयास करते थे।
जब चर्चा शुरू हुई थी तो हिंदी ब्लागिंग में मेरे ख्याल से तीस के करीब नियमित ब्लाग रहे होंगे। शुरुआती दिनों में हिंदी ब्लाग के साथ अंग्रेजी के और अन्य भाषाओं के ब्लाग की भी चर्चा का प्रयास होता रहा। एक अगस्त, 2005 को हिंदी ब्लाग की संख्या 77 तक पहुंची थी। आठ सितम्बर, 2005 को सौ चिट्ठे पूरे हुये तो चर्चा का शीर्षक था –अस्सी,नब्बे पूरे सौ। तथाकथित सेलेब्रिट्री ब्लागर अमर सिंह का ब्लाग इसके पहले ही बंद हो चुका था।
समीरलाल ने पहली चर्चा की 13 सितम्बर,2006 को। उस समय नारद के बैठ जाने के कारण कोई संकलक काम नहीं कर रहा था। फ़ीड सेवा भी शुरू नहीं हुई थी के बारे में भी मुझे पता नहीं था कि अपने आप पता चल जाये कि किसने क्या लिखा। सब ब्लाग पर टहल-टहल कर देखा जाता था कि किसने नयी पोस्ट ठेली है। समीरलाल की पहली चर्चा पर आठ टिप्पणियां मिलीं।बाद में समीरलाल ने कुंडलिया की तर्ज पर मुंडलियां लिखना शुरू किया और चर्चा में जमकर उसका प्रयोग किया। रचना बजाज और राकेश खंडेलवालजी के साथ मिलकर भी चर्चायें कीं।
रचनाजी का परिचय कराते हुये समीरलाल ने लिखा:

रचना जी को देखिये, लिखती जाती आज
चर्चा कुछ हमहू करें, छोड़ा नहीं यह काज
छोड़ा नहीं यह काज कि अब आराम करेंगे
टिप्पणी बाजी जैसा अब, कुछ काम करेंगे
कहत समीर कविराय, हरदम ऐसे बचना
टिप्पणी करते जायें, बाकी लिखेगी रचना.
रचनाजी के द्वारा समीरलाल जी के साथ की गयी चर्चा का नमूना यहां और यहां देखिये।
पंकज बेंगाणी ने कुछ दिन (10/3/06 से) गुजराती चिट्ठों की चर्चा की। पंकज अब ब्लाग लेखन में कम समय दे पाते हैं। उनको हम लोग मास्टरजी कहते थे यह अभी याद आया। नाम के साथ मजेदार हिसाब रहता है हिंदी ब्लाग जगत में। पंकज नरुला के असक्रिय होने पर यह नाम पंकज बेंगाणी को मिला और अब मेरे ख्याल से पंकज का मतलब पंकज मिश्र हो गया है। ऐसे ही मास्टरजी पहले हम पंकज बेंगाणी को मानते फ़िर ई-पण्डित हुये। अब तो हर कोई मास्टर है। रचना बजाज के सक्रिय रहने तक रचना का मतलब मेरे लिये रचना बजाज ही होता था। अब रचना सिंह जी सक्रिय हैं और रचना बजाज सक्रिय नहीं हैं तो दोनों के पूरे-पूरे नाम लिखने पड़ते हैं। मेहनत बढ़ गयी है। :)
राकेश खण्डेलवालजी अपनी चर्चा और टिप्पणियां दोनों पद्य में करते थे। अपनी पहली चर्चा करते हुये 10/9/06 को उन्होंने लिखा:

चिट्ठा चर्चा कीजिये, मुझे मिला आदेश
फ़ुरसतियाजी ने किया जारी अध्यादेश
जारी अध्यादेश, कुण्डली लें समीर से
और सजायें काव्य-सुधा रस भरी खीर से

संजय बेंगाणी ने 18 अक्टूबर,2006 को चर्चा की शुरुआत करते हुये राजस्थानी चिट्ठों के बारे में बताया:

राजस्थानी चिट्ठो की शुरूआत नई हैं तथा इसे लिखने वाले भी वर्तमान में तीन ही लोग हैं वैसे ये सभी नियमीत हिन्दी में लिखने वाले लोग ही हैं.
बाद में मध्यान्ह चर्चा बजरिये धृतराष्ट्र के जरिये करते रहे। जो साथी शिवकुमार मिसिर जी की दुर्योधन की डायरी से प्रभावित हैं वे देख लें कि उनके बाप से संजय चर्चा करवा चुके हैं।
तुषार जोशी ने बड़े उत्साह से मराठी चिट्ठों की चर्चा की शुरुआत की । शुरुआत शानदार रही लेकिन उसके बाद कुछ न हुआ। तुषार चुप हो गये।
निठल्ले तरुण का आगाज हुआ 21 दिसम्बर 2006 में। बाद में तरुण ने अपनी चर्चाओं में एक-दूजे के लिये और फ़िल्मी चर्चा/गीत का समावेश किया। चर्चा के कई तरीके सुझाने के बाद वे फ़िलहाल आराम से हैं। देखिए कब दुबारा सक्रिय होते हैं।
गिरिराज जोशी ने कविताओं की चर्चा मुख्य रूप से की। पहली चर्चा 12 जनवरी,2007 में की। गिरिराज बाद में कविराज के नाम से मशहूर हुये तथा वे समीरलाल के पहले घोषित चेले थे। आज देखा तो उनका फोटो तक नहीं मिला।
गिरिराज के कभी-कभी अनुपस्थित रहने पर सागर चंद नाहर ने मोर्चा संभाला और अपनी पहली चर्चा में (16 मार्च ,2007) लिखा:


आज कविराज की अनुपस्थिती में चर्चा करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है और मेरा यह पहला प्रयास है। दिनांक १५-३-२००७ गुरुवार को नारद पर दिखे सारे चिट्ठों की सूचि यहाँ मौजूद है। आज की चर्चा में कुछ गलतियाँ हो सकती है जिनके लिये में आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप उन्हें यहाँ टिप्पणी के रूप में बतायें।

सागर भाई बाद में कुछ दिन और चर्चा करने के बाद गीत/संगीत की पोस्टों की चर्चा करने लगे मनीष भाई के साथ। फ़िलहाल अभी दोनों भाई लोग शान्त हैं कुछ दिन से। देखिये कब फ़िर से शुरु होते हैं।
आशीष श्रीवास्तव उन दिनों चेन्नई में थे। उनका खाली-पीली ब्लाग लोगों के बीच सबसे लोकप्रिय ब्लाग्स में से एक था। आशीष ने 18 मार्च,2007 को पहली चर्चा की। अन्दाज देखिये:

अइयो अम चेन्नई से आशीष आज चिठठा चर्चा कर रहा है जे। अमारा हिन्दी वोतना अच्छा नई है जे। वो तो अम अमना मेल देख रहा था जे , फुरसतिया जे अमको बोला कि तुम काल का चिठ्ठा चर्चा करना। अम अब बचके किदर जाता। एक बार पहले बी उनने अमको पकड़ा था जे,अम उस दिन बाम्बे बाग गया था। इस बार अमारे पास कोई चान्स नई था जे और अम ये चिठ्ठा चार्चा कर रहा है जे।
आशीष की भाषा पर कुछ एतराज और उसके जबाब देखियेगा इस पोस्ट में। बाद में आशीष व्यस्त होते चले गये और चर्चा के लिये अनुपलब्ध होकर सिर्फ़ एक चर्चा की चीज बनकर रह गये कि उनकी शादी ब्लाग जगत की एक उल्लेखनीय घटना है।
सृजन शिल्पी अक्सर् चर्चा के बारे में अच्छे-अच्छे सुझाव देते रहते थे। हमने ऐसे ही एक दिन सुझाव के कमजोर क्षणों में उनको चर्चा का सदस्य बनाने की लिंक थमा दी। उसे स्वीकार करते हुये उन्होंने
चर्चा के साथ-साथ अब समीक्षा भी की। इस पोस्ट पर अन्य लोगों के साथ अविनाश की टिप्पणी थी- यह काफी सार्थक चर्चा की शुरुआत है। इस तरह की चर्चा हिंदी ब्‍लॉगिंग को एक नया आयाम देगी। हमारी शुभकामनाएं। लेकिन संयोग कुछ ऐसा हुआ कि सृजन शिल्पी चर्चा में नियमित न रह सके।
सृजन की चर्चा के अगले ही दिन मसिजीवी अपना नए बावर्ची का चिट्ठाचर्चा कोरमा लेकर हाजिर हुये( 3/26/07)। इसके कुछ ही दिन बाद नीलिमा ने महिला चिट्ठाचर्चाकार की शुरुआती पारी का आगाज किया(01/04/2007 को) नीलिमा के जुड़ने के कुछ दिन बाद ही (21/07/2007) सुजाता भी चर्चा से जुड़ीं और पहली चर्चा पेश की जी का जंजाल मोरा बाजरा….जब मैं बैठी बाजरा सुखाने… मसिजीवी परिवार के चिट्ठाचर्चा से जुड़ाव के बारे में कुछ साथियों को एतराज भी हुआ शुरु में लेकिन बाद में गुरुजन परिवार की चर्चा के जुड़ाव के आगे सारी बातें गौड़ होती चली गयीं। सुजाता और नीलिमा ने खासतौर पर उन विषयों पर चर्चा की जो हम लोगों से जाने-अनजाने अनदेखी हो जाती थीं।
मसिजीवी को हम अन्यथा एक खुराफ़ाती ब्लागर ही मानते रहे। मसिजीवी ने भी हमें कभी निराश नहीं किया। लेकिन एक चर्चाकार के तौर पर मसिजीवी ने हमेशा संक्षिप्त और सटीक चर्चा की। पहली इंकब्लागिंग चर्चा भी उन्होंने की। मसिजीवी परिवार, जिन्हें हैं गुरुकुल के चर्चाकार कहते हैं,बड़े अनुशासित चर्चाकार रहा। जब कभी बाहर गये मेल जरूर की चाहे बस में चढ़ने के पहले करें या उतरने के बाद। एक धुरविरोधी चिट्ठे का विदाई गीत में अनाम चिट्ठों के प्रति उनके सरोकार दिखे।
संजय तिवारी ने (10जुलाई, 2007) जब चर्चा शुरू की तो समीरलाल को लगा ही नहीं कि वह उनकी प्रथम चर्चा थी। इसी तरह जब काफ़ी अंतराल के बाद उन्होंने ब्लाग जगत का प्रभाष पाठ लिखा तो यह आभास ही नहीं हुआ कि वे इतने दिन बाद चर्चा कर रहे हैं।
कुश चर्चा मंच से जुड़े 19, 2007 को।उनकी शुरुआती चर्चाओं के शीर्षक इसी तरह रहे- इस बार की चिट्ठा चर्चा ‘कुश’ की कलम से। लोगों को पोस्ट देखते ही पता चल जाता कि इस बार कुश के जलवे हैं। चर्चा के प्रस्तुतिकरण में कुश ने हर बार प्रयास किया कि वे हर बार नये अंदाज में चर्चा करें। और जब भी कुश ने चर्चा की लोगों ने उसे पसंद किया। कुश हमारे सबसे प्रयोगधर्मी चर्चाकार हैं। जिस दिन उन्होंने चर्चा की आमतौर पर चर्चा के पाठक और टिप्पणियां बढ़े। रचना सिंह जी खासतौर पर कुश को कई बार सबसे अच्छा चर्चाकार बता चुकी हैं।
कविता चर्चा मंच से 19 अक्टूबर ,2008 को जुड़ीं। उनकी पहली पोस्ट पर वीनस केसरी ने टिप्पणी की-

आम हिन्दी भाषा से हटकर साहित्यिक भाषा की चिटठा चर्चा अच्छी लगी कही से ऐसा नही लगा की यह आपकी पहली पोस्ट है यहाँ पर!
कविता जी ने चिट्ठाचर्चा को नयी गरिमा प्रदान की। जिस दिन वे चर्चा करतीं आम तौर पर उस दिन पाठकों की संख्या सप्ताह में सर्वाधिक रहती। उन्होंने अभिलेखागार के अंतर्गत चिट्ठाचर्चा की पुरानी पोस्टों का जिक्र शुरू किया। कविताजी की पोस्टों को डा.अमर कुमार अपनी सूक्ष्मदर्शी नजर डालते और यह बताने का हमेशा प्रयास करते कि वह चर्चा कविता जी के की बोर्ड से निकली है कि नहीं। चिट्ठाचर्चा की हजारवीं पोस्ट पेश करने के लिये मुझे कविताजी सर्वाधिक उपयुक्त चर्चाकार लगीं। अपनी बेटी की स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के बावजूद कविताजी बेहतरीन चर्चा की।
इस चर्चा पर अरविन्द मिश्र की टिप्पणियां देखकर उनकी मेहनत और अभिव्यक्ति के प्रति छ्टपटाहट और बेचैनी नजर आई। अरविन्द जी अपनी अपनी समूची प्रतिभा और समझ अपनी टिप्पणियों में उड़ेल देना चाहते हैं। वे पाठक को अपनी समझ और सोच का स्तर एकदम साफ़ कर देना चाहते हैं ताकि किसी बात बात का कोई भ्रम न रहे। वे नहीं चाहते कि उनकी टिप्पणी को कोई गलती से भी चर्चा मंच की तारीफ़ के रूप में ग्रहण करे। उनकी नजर इस मामले में एकदम साफ़ है। वे अवसरानुकूल व्यवहार के बनावटी व्यवहार से अपने आप को बचाते हुये शानदार टिप्पणी करते हैं।


विवेक सिंह चर्चा मंच से 20 अक्टूबर,2008 को जुड़े। आशु कवि विवेक ने अपनी पहली चर्चा में लिखा:

ब्लॉगर भाई और भाभियाँ मम प्रणाम स्वीकारें ।
आप बजाते रहें तालियाँ हम गुरु नाम उचारें ॥
सर्वविदित हो शिव कुमार मिश्रा जी गुरु हमारे ।
धन्यवाद शुक्लाजी का हमको इस योग्य विचारे ॥

मौलिक सूझ-बूझ और कवित्वमयी चर्चा के साथ विवेक की चर्चा के प्रशंसक बढ़े। चर्चा में चलते-चलते का प्रयोग करते हुये अपनी चर्चा के दिन की खास बात कहते। एक चर्चा का चलते-चलते यहां देखिये:

कोई हमको हडकाता है, कोई सिगरेट पिलाता है।
कोई हिटलर का नाम देत, कोई ताऊ बतलाता है ॥
जो हडकाते हैं हमें यहाँ , ये कहते हैं आभार उन्हें
जब इनके जैसे मित्र मिले , दुश्मन की क्या दरकार हमें ॥
पर हम न आएंगे झाँसों में, हम सीधे-सादे ब्लागर हैं ।
हम तो ग्राम के निवासी हैं, पर आप सभी तो नागर हैं ॥
जोफुरसतिया ने चर्चा कीअब डालें उस पर एक नज़र ।
दिन आज आपका शुभ बीते, गारंटी नहीं रात की पर ॥

फ़िलहाल अपनी परीक्षाओं के चलते आजकल विवेक चर्चा नहीं कर रहे। आशा है जल्द ही वे दुबारा लौटेंगे।
अभय तिवारी ने एक चर्चा की। खूबसूरत तरीके से सिगरेट पीती हुई लड़कियाँ दिखाकर ऐसा गये कि फ़िर वापस अभी तक लौटने का इंतजार करा रहे हैं।
चर्चा मंच से चेले के बाद गुरुजी भी जुड़े। शिवकुमार मिश्र ने पहली चर्चा करते हुये लिखा:
अनूप जी ने आज चिट्ठाचर्चा की पब्लिसिटी पोस्ट लिखकर मुझे बड़ा टेंशन में डाल दिया है. ये तो वैसा ही है जी कि सचिन तेंदुलकर बेंच पर बैठे किसी खिलाड़ी को टैलेंटेड बता दें. ऐसे में खिलाड़ी के दो रन बनाकर आउट होने का चांस बढ़ जाता है!
शिवकुमारजी संतोषी चर्चाकार हैं। खूब सारी पोस्टों को समेटकर चर्चा करना उनको नहीं भाता। जामे कुटुम समाय घराने के चर्चाकार हैं। पांच-सात-दस पोस्ट छांटकर उनके बारे में तफ़सील से चर्चिया कर डाल देते। यह लगता कभी-कभी कि उन्होंने चर्चा के बहाने अपनी पोस्ट लिखकर चिट्ठाचर्चा में डाल दी है। आजकल वे भी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं इसलिये बाकी लोगों और चीजों के साथ उनके चर्चा दिन में हमें जूझना पड़ रहा है।
आदि चिट्ठाकार आलोक ने खिचड़ी चर्चा शुरू की बीते साल दिसम्बर 20 को और लिखा:


फुरसतिया देव ने कल आह्वान किया, "आर्यपुत्र! तुम चिट्ठाचर्चा क्यों नहीं करते? कब तक हमीं कलम घिसते रहेंगे? आखिर हमें भी कुछ और काम होते हैं!" आर्यपुत्र जी अपनी जिम्मेदारी स्वीकारते हुए शुक्रवार की रात ऐसे सोए कि शनिवार – यानी आज – तभी उठे जब घर में नाश्ता तैयार हो चुका था। भरत जी ने वही कहा था न – कि मुझे अगर राजगद्दी की इच्छा हो तो वही पाप लगे जो सुबह सूरज उगने के बाद भी सोते रहने वालों को लगता है। आर्यपुत्र अपने पाप से खचाखच लबालब घड़े को फूटने से सँभालते बचाते नाश्ता खा के चिट्ठाजगत बाँचते बाँचते सोच रहे थे कि इस आफ़त से कैसे निपटारा हो। यहाँ बिना पढ़े लिखे इंद्रप्रस्थ के दरबार में मंत्री बन जाते हैं और हमें सुबह सुबह छुट्टी के दिन इत्ता सारा लिखना पड़ेगा।

आलोक की चर्चा से यह भ्रम टूटा कि वे सिर्फ़ टेलीग्राम की भाषा में ही लिख पाते हैं। मुझे नहीं लगता कि आलोक ने इतनी लम्बी पोस्टें और कहीं लिखीं होंगी जितनी चर्चा में लिखीं। चर्चा में अनियमित आलोक हमेशा मुझसे शनिवार को चर्चा करने का वायदे की सफ़लतपूर्वक खिलाफ़त करते आ रहे हैं पिछले कुछ दिनों से।
विपुल जैन ने भी एक चर्चा की आलोक के आदेश पर:यह चर्चा आलोक कुमार ने मुझे डाक से भेज आदेश दिया की एक फरवरी को छापा जाए, वजह उन का "चौडाबाजा" (ब्राडबैंड) बज नहीं रहा!
चिट्ठा चर्चा पर चलिए मेरे साथ इस साप्ताहिक संगीत यात्रा पर… के साथ मनीष संगीत चर्चा करते रहे। नियमित रूप से अनियमित रहते वे शनिवार को संगीत चर्चा करते रहे। मनीष जी शनिवार को ही और दूसरे.चौथे शनिवार को ही चर्चा के लिये उपलब्ध हो पाते रहे। आशा है जो क्रम उनका छूट गया उसमें वे फ़िर से चर्चा करना जारी रखेंगे।
मीनाक्षीजी ब्लॉगजगत की हवेली के अनगिनत दरवाज़े से होते हुये चर्चा तक आयीं। रविरतलामी जी के कहने पर उनको चर्चा मंच का निमंत्रण भेजा गया। अपनी पहली चर्चा में उन्होंने लिखा:
पहली बार अनायास ही हमारे द्वारा की गई चिट्ठाचर्चा आप सबके सामने आ गई या यूँ कहिए कि रविरतलामीजी का कहा टाल न सके और अनूप शुक्ल जी ने झट से मंच पर धकेल दिया… लेकिन मंच पर आकर कुछ पल दिल धड़का फिर आप सब के प्रोत्साहन ने सामान्य कर दिया!
सहज-सरल अंदाज में उनकी चर्चा का साथियों ने स्वागत किया। वे  वुधवार को चर्चा करतीं रहीं। फ़िलहाल कुछ घरेलू समस्याओं के चलते वे नियमित नहीं हैं लेकिन मुझे भरोसा है कि पुन: दुबारा चर्चा करना शुरू करेंगी।
रमन कौल की चर्चा का लिंक खोजने में अभी सफ़ल नहीं हो पाये हैं। दरअसल चिट्ठाचर्चा ब्लाग कुछ दिन के लिये गायब हो गया था। जब वापस लौटा तो उसकी शुरुआती पोस्टें देबू ने खोजबीन कर इकट्ठा कीं तो सारी शुरुआती पोस्टें देबू के ही नाम से हैं।
तो यह रहा सफ़र अभी तक की यात्रा का। चिट्ठाचर्चा अंग्रेजी ब्लागरों के झगड़े के बाद शुरू हुआ था। मजाक –मजाक में शुरु हुआ सफ़र 1000 पोस्टों की यात्रा कर चुका है। अब हम झगड़ने के लिये अंग्रेजी ब्लागर के मोहताज नहीं रहे। स्वा्बलम्बी  हो गये हैं। झगड़ने के लिये अंग्रेजी नहीं लिखनी पड़ती जैसा चर्चा के पहले हुआ। आराम रहता है।
इतने साथियों के सहयोग से कल चिट्ठाचर्चा ने 1000 वीं पोस्ट का आंकड़ा छुआ। शुरु से रुकते-रुकाते, नियमित-अनियमित तरीके से लगभग पांच वर्ष चर्चा का काम होता रहा। हिन्दी ब्लाग की सब नहीं तो कुछ –कुछ झलक दिखलाने के लिये तो चर्चा में पोस्टें मौजूद हैं। शुरुआती दौर से लेकर हिन्दी ब्लाग जगत के मिजाज को जानना हो तो चिट्ठाचर्चा में उपलब्ध पोस्टें एक जरूरी दस्तावेज हैं।
हमने प्रयास किया कि ब्लाग जगत में जो हो रहा है उसकी एक झलक चिट्ठाचर्चा में दिखाते रहें। इसकी क्या उपलब्धि रही यह आने वाला समय बतायेगा। आगे कोई इसका नाम लेवा नहीं रहेगा इसके हमें कोई चिंता नहीं है। इस मामले में मुझे परसाई जी की बात हमेशा याद रहती है कि जो आज सार्थक नहीं है वह कालजयी कैसे होगा।
फ़िलहाल हम तो इसी में खुश हैं कि मजाक-मजाक में अंग्रेजी ब्लाग जगत के कुछ ब्लागरों के झगड़े के चलते हमने चिट्ठाचर्चा शुरू की और आज इसकी हजार पोस्टें हो गयीं। आज स्थितियां बहुत बदल गयीं हैं। ब्लाग तीस से बढ़कर बीस हजार तक पहुंचने वाले हैं। चर्चा मंच कई हो गये हैं और सबसे अलग लड़ाई के लिये अब हम अंग्रेजी ब्लागरों के मोहताज नहीं रहे।
मुझे इस बात की खुशी है कि चर्चा मंच से अपने समय के सबसे बेहतरीन ब्लागर जुड़े रहे।लोगों से जितना बन सका लोगों ने इसे अपना मंच समझकर दिया। जो लोग मंच छोड़कर गये हैं उनके नाम चर्चा मंच पर मौजूद हैं। मुझे भरोसा है कि वे फ़िर लौटकर आयेंगे।
चिट्ठाचर्चा के बारे में आपकी प्रतिक्रिया, सलाह,सुझाव, आलोचनायें आमंत्रित हैं। अगली पोस्ट में मैं कुछ सवाल जो पहले उठाये गये हैं उनके बारे में चर्चा करूंगा।

55 responses to “चिट्ठाचर्चा –यादों का एक सफ़र”

47 responses to “चिट्ठाचर्चा –यादों का एक सफ़र”

  1. Isht Deo Sankrityaayan
    मैं देख रहा हूं कि इतिहास पर सिर्फ़ सुकुल जी लोगों का क़ब्ज़ा होता जा रहा है. हिन्दी सहित्य का इतिहास भी सुकुल जी (आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जी) ने ही लिखा था और चिट्ठई का इतिहास का जिम्मा भी सुकुल जी (आचार्य अनूप शुक्ल फुरसतिया जी) उठा रहे हैं. वैसे इतिहास ज़ोरदार है.
  2. nirmla.kapila
    बहुत अच्छी लगी चिठा चर्चा बधाई
  3. abha
    यादों के सफर को जाना , बहुत अच्छा लगा, ……..
  4. Gagan Sharma
    अनूपजी,
    अद्भुत! चिट्ठाचर्चा का शोधग्रंथ।
  5. संजय बेंगाणी
    याद आ गया मुझको गुजरा जमाना…यादें समेटने के लिए आभार आपका.
  6. Lovely
    सुन्दर है यादों का सफ़र ..किसी को विज्ञान चर्चा में भी लगाइए .. यह प् क्ष कई बार अछूता रह जाता है.
  7. ताऊ रामपुरिया
    हम भी इतिहास से परिचित हुये, शुभकामनाएं.
    रामराम.
  8. Saagar
    बहुत रिसर्च कर के लिखा है सर जी… याद… बस एक अंतहीन सिलसिला…
  9. Prashant(PD)
    क्या कहें? इतना पढ़ कर बस एक ही बात दिमाग में आता है.. शानदार….. :)
  10. प्रियंकर
    दस्तावेजी महत्व की पोस्ट . बधाई ! बहुत-बहुत बधाई ! और अशेष शुभकामनाएं भी !
  11. masijeevi
    इतिहास में दर्ज होने की गरज से नहीं पर ब्‍लॉगिंग के शुरूआती सामुदायिक प्रयासों की बची हुई परंपरा के लिहाज से चिट्ठाचर्चा अहम है।
    चिट्ठाचर्चा पर हमारी राय देखें
    http://masijeevi.blogspot.com/2009/11/blog-post_11.html
  12. वन्दना अवस्थी दुबे
    कमाल की मेहनत की है अनूप जी, इस चर्चा को तैयार करने में. किसी शोध के समान….बधाई.
  13. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    इस लम्बे और शानदार इतिहास को पढ़कर बहुत प्रभावित हुआ। लेकिन एक बात खटक रही है।
    आपने अनेक ऐसे पुराने चर्चाकारों का नाम गिनाया जो आजकल अस्वस्थ चल रहे हैं और इनमें से कुछ को मैं जानता हूँ जिन्हें कमर या गर्दन में दर्द की शिकायत है। इससे क्या यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि चिठ्ठाचर्चा का कार्य बहुत श्रम साध्य और थकाऊ है? :)
    कविता जी तो आठ-दस घण्टॆ लगातार बैठती हैं तब उनकी चर्चा पूरी होती है।
    एक बात और गौर करने लायक है कि अनूप जी जो लम्बी-लम्बी चर्चाएं करते रहते हैं उसके लिए कितना श्रम और समय खर्च करते हैं? इसका अन्दाजा भी लगाया जाना चाहिए। इस महनीय कार्य की जितनी भी प्रशंसा की जाय वह कम है।
    पूरी टीम को एक बार फिर कोटिशः बधाई।
  14. हिमांशु
    हम बाद वालों के लिये तो बहुत ही उपयोगी है यह प्रविष्टि । आभार ।
  15. shyamalsuman
    आपको काफी मेहनत करना पड़ा होगा इसके संकलन के लिए। मैं आपके इस प्रयास की हृदय से सराहना करता हूँ। मेरा मानना है कि खुद चिट्टाकार भी अपनी रचनाओं को इतने दिनों तक शायद ठीक से याद नहीं रखते होंगे, वहाँ इतने पुराने चिट्ठों का एक साथ संकलन और पाठ बहुत मायने रखता है।
    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
  16. shefali pande
    बहुत सारी नई बातों का पता चला ….
  17. dr anurag
    सबसे पहले इष्ट देव की टिपण्णी लाज़वाब …….
    आपका ये पोस्ट एक कचहरी के कीमती दतावेज की माफिक है .या स्कूल की अलमारी में बंद पुराने कई रिकार्डो का लेखा जोखा .इसे एकत्र करने में आपने कितनी मेहनत लगायी होगी ….पूर्व के चिट्ठाकारो को पढ़ के लगता है …तब भले ही चिट्ठाकारी संख्या में सम्रद्ध न हो पर क्वालिटी लेखन में आज से बीस थी……..ऐसा लगता है गुजरे ज़माने की कई खिड़किया आप अकेले अवैतनिक रोज खोल रहे है …..
    फ़िलहाल कल रोज तक कई चीजे पढने का जुगाड़ हो गया है
  18. Ashish
    अनुप जी, आप यह तो बताना भूल ही गये कि यह इकलौता मन्च है जहा ससूर(मामा ससूर ही सही) और दामाद दोनो मौजूद है :-D
  19. दिनेशराय द्विवेदी
    चर्चा का अपना ऐतिहासिक महत्व है। हिन्दी ब्लागिंग के लिए इस ने फेवीकोल का काम किया है। सभी चर्चाकारों और हिन्दी ब्लागरों को इस के हजारवीं पायदान तक पहुँचने पर बधाई। अभी इस ने और ऊँचाइयाँ छूनी हैं।
  20. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    बहुत अच्‍छा लग रहा है, चिट्ठा चर्चा की कहानी सुन कर, अच्‍छा लगना भी स्‍वाभाविक है।
    जब गिर‍िराज जी, चिट्ठाचर्चा से जुड़े थे तो हमारा भी मन हुआ था कि इसे जुड़े, क्‍योकि गिरराज जी और हमारी उस समय खूब चलती थी और इसीलिये अपनी अभिव्‍यक्ति भी व्‍य‍क्‍त की थी किन्‍तु नादान बालक की अबोध माँग समझा गया। :)
    चिट्ठा चर्चा तो चलती रहे तीव्रगति से चले यही कामना है। :)
    आपको बधाई
  21. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    यह चिठ्ठचर्चा की चर्चा भी बहुत रोचक और महत्वपूर्ण रही।
    धन्यवाद।
  22. dhiru singh
    अनूप जी के द्वारा चिठठा चर्चा और उन मे लिखने वाले नियमित लेखको की मेहनत ही इस चिठठा को चर्चा का कारण वनाती है . हम जैसे कम अकल तथाकथित लेखको की जब कभी चर्चा होती है तो एसा लगता है जैसे कोई पुरुस्कार मिल गया हो
    [पहले मसिजीवी के यंहा भी यही टिप्पणी की है ]
  23. हर्षवर्धन
    संग्रहणीय चिट्ठा चर्चा
  24. albela khatri
    एक गौरवपूर्ण इतिहास की गरिमामयी अभिव्यक्ति -
    बहुत श्रम और समय दिया है आप सबने इस बिरवे को सींच सींच कर वृक्ष बनाने में।
    आपको धन्यवाद हमें इस से परिचित कराने के लिए
  25. चंद्र मौलेश्वर
    चिट्ठाचर्चा का इतिहास यहां पर उडेल कर इसे एक ऐतिहासिक प्रपत्र बना दिया है। इस में उस दिवाने आदमी का भी ज़िक्र आ जाता जिसके हम आभारी है, ऐसे कि उस के कारण ही तो यह ऐतिहासिक घटना घटी जिसने हिंदी बिलागरान को अपना स्तम्भ खडा करने को उकसाया। चिट्ठाचर्चा का भविष्य उज्जवल है और उसने और ब्लागरों को अपने तौर पर चर्चा के लिए प्रोत्साहित किया, यही क्या कम उपलब्धि है!! लोग चाहे लाख तोहमत लगाते रहे कि चिट्ठाचर्चा अपना गुट बना रहा है, पर यह सर्वविदित है कि यहाँ कोई भेदभाव नहीं रखा जाता और चर्चा खुले दिल से, मौज मस्ती लेकर होती है। अब यदि किसी को हँसना नहीं आता तो कोई क्या करें:)
  26. कविता वाचक्नवी
    सब से पहले तो मैं पहली टिप्पणी की जबरदस्त बात का जबरदस्त समर्थन करती हूँ, और यह भी मन ही मन सोच रही हूँ कि क्या खूब बात कही है| अजब !
    और आप के लिखने के तो क्या कहें, हर बार कुछ चीजें ऐसी लिख देते हैं कि एक एक कर उठा कर तारीफ करें तो एक लेख ही न लिख दिया करें इत्ती देर में | सो हम तारीफ का टोकरा उठाने से बचते रहते हैं, वैसे भी अपने राम को स्पोंडेलाईटस के कारण भार उठाने की मनाही है|
    सिद्धार्थ की टिप्पणी के अनुमोदन से तो “इति सिद्धं “|
    यह पेज हमारे द्वारा ४ बार पढ़ा गया |
  27. समीर लाल 'उड़न तश्तरी वाले'
    अच्छा लगा पढ़कर…कल टिपियाये थे जब आधा छापा गया था,,,वो पोंछ दिया गया..साथ ही हमारी टिप्पणी के…यही विडंबना है इतिहस की..सुविधानुसार समय देख रचा जाता है सब कुछ झाड़ फूंक कर…अच्छा सा!!
  28. anil pusadkar
    चिट्ठाचर्चा-समृद्ध परिवार,सशक्त कलम,स्वर्णीम इतिहास्।भरा-पूरा रहे ये परिवार,नज़र न लगे किसी की।जारी रहे ये सुहाना सफ़र अनवरत।पूरे परिवार को बहुत-बहुत बधाई।
  29. Khushdeep Sehgal
    ओल्ड इज़ गोल्ड…पर ये दिल मांगे मोर….
    जय हिंद…
  30. रंजना.
    सबसे पहले तो बहुत बहुत बधाई !!!
    एक हजार पोस्ट और इतने बड़े पैनल को इस एक पोस्ट में समेट आपने जिस खूबसूरती से प्रस्तुत किया है,उसके लिए एक हजार वाह !!!
    एक पाठक के रूप में चिट्ठाचर्चा मंच से मेरी यही अपेक्षा है कि यह एक प्रकार से स्तरीय चिट्ठों का रेफरल प्वाइंट बने. यह एक ऐसा मंच बने जहाँ अपने स्तरीय पोस्टों के द्वारा पहुँचने को लोग प्रयत्नशील और जागरूक हों…..
    और इसके चर्चाकारों को भी चर्चा काल में राग द्वेष,व्यक्तिगत रूचि अरुचि से पूर्णतः बाहर आ विसुद्ध समीक्षक बन अधिकाधिक चिठ्ठों की चर्चा करनी चाहिए…निश्चित ही यह श्रमसाध्य होगा,परन्तु इसीसे हिंदी तथा हिंदी चिठ्ठाकारी का स्तर ऊपर उठेगा…
    आप सभी चर्चाकारों को इस श्रमसाध्य उत्कृष्ट कार्य हेतु साधुवाद और शुभकामनायें…
  31. मनोज कुमार
    बहुत जानकारी मिली। पुराने दौर आंखों के सामने तैरते रहे। हम तो नए-नए आए हैं। इस तरह का आलेख पढ़ आपलोगों द्वारा किया गया तप और त्याग के बारे में पता चलता है। बिल्कुल इस गाने की तरह – हम लाएं हैं तूफान से क़िस्ती निकाल कर ,,,। यह सफर जारी रहे। शुभकामनाएं, बधाइयां।
  32. amit
    आपको और पूरी चर्चा मंडली को चिट्ठाचर्चा के 1000 चर्चाओं के मील के पत्थर को पार करने पर बहुत-२ बधाई और आगे कई हज़ार चर्चाओं के लिए शुभकामनाएँ। साथ ही बधाई हम सभी पाठकों को भी जो चर्चाओं का आनंद लेते हैं। :)
    अंग्रेजी ब्लागरों के हिंदी विरोधी रवैये की प्रतिक्रिया स्वरूप शुरु की गयी चर्चा इतने दिन का सफ़र तय करेगी यह उस समय सोचा भी नहीं गया था।
    मुझे इस कथन से आपत्ति है, इसको – कुछ अंग्रेजी ब्लागरों के हिंदी विरोधी रवैये – लिखिए। मौजूदा उपरोक्त कथन से ऐसा भाव जाता है कि मानो सभी अंग्रेज़ी ब्लॉगर हिन्दी विरोधी हों!!
    फ़ीड सेवा भी शुरू नहीं हुई थी कि अपने आप पता चल जाये कि किसने क्या लिखा।
    क्या बात कर रहे हैं अनूप जी, ब्लॉगों पर फीड तो 2006 से भी कई वर्ष पहले से उपलब्ध है! ब्लॉग पढ़ने के लिए फीड संकलक का प्रयोग कोई 2002-03 से तो मैं कर रहा हूँ। :)
  33. eswami
    @amit – Perhaps by feed-seva he meant online aggregation!
  34. गौतम राजरिशी
    एक संग्रहणीय पोस्ट है ये देव….दुबारा फिर..तिबारा चौबारा आना पड़ेगा पढ़ने..आना ही पड़ेगा!
  35. काजल कुमार
    मेरे जैसे लेट-लतीफ़ ब्लागरों के लिए यह समुचित जानकारी बहुत महत्व रखती है कि 1000वीं पोस्ट तक का रास्ता कैसे तय हुआ है. आभार.
  36. अजित वडनेरकर
    जोरदार पोस्ट है। हम ई पोस्ट लिखने का सुझाव देने वाले थे।
  37. शिवकुमार मिश्र
    आपकी पोस्ट पर कमेंट करने के लिये मैं सिद्धूजी महाराज का अमृत वचन पोस्ट करना चाहूंगा। महाराज कहते हैं–” ओये गुरु, मेढकों के टर्राने से सावन नहीं आ सकता। गुलाब जामुन कितनी भी फ़ेयरनेस क्रीम लगा ले, कभी रसगुल्ला नहीं बन सकता। प्रेसर में चाहे लाख सीटियां बजवा लो लेकिन पत्थर कभी गल नहीं सकता और शेफ़ चाहे संजीव कपूर ही क्यों न हो , वो पानी में पूड़ियां तल नहीं सकता। हा हा हा हा।
  38. neelima
    अनूप जी , बहुत ज़रूरी और बेहतरीन पोस्ट लिखी आपने ! प्रबंधकाव्य की शैली में ! पढकर आनंद आया !
  39. रौशन
    चिट्ठाचर्चा का उपयोग हम ब्लॉग एग्रेगेटर की तरह करते हैं
    ये ट्रेलर की तरह जिज्ञासा जगा देता है आगे के ब्लोग्स को पढने के लिए
  40. ब्लॉगर कीबोर्डाभिभूत

    इस पोस्ट में दिये गये सभी लिंक्स को पढ़े बिना मैं टिप्पणी करने वाला नहीं ।
    पठन की शुरुआत हो चुकी है, इस चर्चा इतिहास में मेरा सँदर्भित नाम दर्ज़ करने के लिये धन्यवाद ।
    इतने सारे चर्चाकारों में मुझे कविता जी किसी मँत्रसिद्ध चमत्कारी कीबोर्ड से चर्चा करती हुई सी लगा करती हैं ।
    सो, लिख दिया.. मन में क्यों रखना ? अभिव्यक्त करना कउनो गुनाह थोड़ेई है, मालिक !

  41. नुक्ताचीनी ~ Hindi Blog » ताज़ातरीन पोस्ट ब्लॉगिस्म » 1000वीं चिट्ठा चर्चा पर एक लेटलतीफी पोस्ट
    [...] छोड़ने के बावजूद।) चिट्ठा चर्चा की शुरुवात के किस्से आप पढ़ चुके हैं पर इसे शुरु करने का कारण [...]
  42. कार्तिकेय मिश्र
    कुछ दिन पहले जीतू भाई का एक लेख पढ़ा। कह रहे थे, कि बहुतों ने तो संन्यास ले लिया लेकिन सुकुल आज भी लट्ठ लिये तगादा करता है..कोई अपनी बारी पे चर्चा करने नहीं आया, तो हुआ बवाल समझो।
    बहुत-बहुत बधाई..और प्रकारांतर से धन्यवाद भी- हिन्दी चिट्ठाकारिता को इस उँचे मुक़ाम तक पहुँचाने के लिये।
  43. चिट्ठाचर्चा के बहाने कुछ और बातें
    [...] साथी:चिट्ठाचर्चा से संबंधित पिछली पोस्ट में मैंने लिखा था–“चिट्ठाचर्चा के [...]
  44. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    पहले हम इस पर टिप्‍पणी कर चुके है किन्‍तु गिरिराज जी की फोटो हम आपको भेज रहे है। :)
  45. गिरीश पंकज
    इस ब्लॉग का नाम बहुत दिनों से सुन रहा था. आज देखा. अच्छा लगा .
  46. चिट्ठाचर्चा के सातवें साल की शुरुआत | चिठ्ठा चर्चा
    [...] 49.चिट्ठाचर्चा –यादों का एक सफ़र: इस पोस्ट में मैंने चि्ट्ठाचर्चा की शुरुआत से इसकी हजारवीं पोस्ट तक का संक्षिप्त विवरण लिखा था। [...]
  47. Chitthacharcha Turns 1000 | हिन्दी ब्लॉग
    [...] routine but did mention the milestone. By and large the blogger appreciated the effort. In his post Anup recalled how some English bloggers during the Bharat Blog Mela (BBM) days tride to humiliate the then very [...]

 

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