Thursday, January 14, 2010

बसन्त राजा फ़ूलइ तोरी फ़ुलवारी!

http://web.archive.org/web/20140419214911/http://hindini.com/fursatiya/archives/1236

30 responses to “बसन्त राजा फ़ूलइ तोरी फ़ुलवारी!”

  1. shefali pande
    bahut badhiya basant….aisa basant to vakai kab se nahi aaya…
  2. Lovely kumari
    अब लगा बसंत सच में आ गया है … :-)
    विशुद्ध फुरसतिया मार्का पोस्ट….
  3. Dr.Manoj Mishra
    बसन्त राजा फ़ूलइ तोरी फ़ुलवारी!….
    लोक गीत मनभावन है..
  4. रंजन
    लो आपने बताया तो पता चला.. बसंत आ गया क्या….
  5. Alpana
    basant par bahut hi badhiya kavita!
    tukbandi bahut khoob ban padi hai…do naye shbd mile.
    ———
    Luvkush ji ka yah behad khubsurat lokgeet unki awaaz mein suna..
    waah! waah!!waah!!
    podcast sunNe ka apna hi anand hai.
    —————————
    **Bin maange sujhaav-:D
    [Recording karte samay mic bolne wale ke thoda close rakha kareeye..
    **mobile phone ke signals beech beech mein [2 jagah]diturb kar rahe hain]..dhyan rakhen :)….
    **Recording software mein bhi option hota hai final recording se pahle awaaz tez karne ka—-check kareeyega–abhi full volume kar ke hi ‘samany ‘sun pa rahe hain]:)
    –abhaar..
  6. amrendra nath tripathi
    सर जी !
    मजा आ गया … जितना भी पढ़ा , पूर – पूर (पोर-पोर भी ) महसूसा ! … और क्या
    चाहिए बसंत में !
    आपके लेखन में इस दुर्योग की ओर सही संकेत है कि पहले जहाँ बसंत
    बयार ( प्राकृतिक-उपादानों से ) जाहिर होता था वहीं आज यांत्रिक ( खबर-ए-टीबी.सेआदि से )
    ढंग से चढ़ता है हमारी चेतना पर !
    @ ” ……..मोर खेत में रैंप पर माडलिंग करते माडल सा टहल रहा है। हमको
    पास आते देखकर दूर सरक जाता है-गोया कह रहा हो कि एक खेत
    में एक ही रहेगा।”
    — यहाँ तो अभिनव हास्य-सृष्टि है … सुन्दर !
    .
    लवकुश जी का परिचय आज के दिन की एक उपलब्धि जैसा है मेरे लिए …
    पॉडकास्ट को सुनकर अच्छा लगा … अन्य लिंक पर अभी जा रहा हूँ …
    ………….. आभार ,,,
  7. anil pusadkar
    अबकी लगता है बसंत को लाना ही पड़ेगा।हा हा हा अनूप भैया अब लग रहा है बसंत आ ही गया।
  8. Pankaj Shukla
    रंग बसंती छा गया..हरियाला मौसम आ गया। झाड़े रहौ कलेक्टरगंज, बहुत बढ़िया बसंतियाया है।
  9. काजल कुमार
    अह! अब आया है बसंत.
  10. anil kant
    waah kya baat hai !
  11. वन्दना अवस्थी दुबे
    आमों-बेरों का तो पता नहीं
    मॉलों में पसरा छलिया बसन्त
    सब तरफ़ सेल की रेल मची
    लुट रहे गृहस्थ, फ़ंस रहे संत
    सही है. आम के पेड अब शहरों में रहे नहीं, बेर की झाडियां पता नहीं कहां काट के फेंक दी गईं. तरस गये बेर खाने को. लेकिन इस पोस्ट ने खूब बासन्ती रंग बिखेर दिया. टेसू सी चटखीली पोस्ट.
  12. हिमांशु
    पूरी लिखावट में अभिनव-प्रयुक्तियाँ दिखती हैं । कहीं हास, तो कहीं चातुरी, कहीं वाग्विदग्धता !
    अमरेन्द्र भाई ने एक ही इशारा कैसे किया ?
    गहगहा गये हम भी पोस्ट पढ़कर ! ऐसे हुलस रहे हैं जैसे हम ही समझ रहे हैं इस पोस्ट की सारी रस-भंगिमायें । वसन्त-बिद्ध तो थे ही, प्रविष्टि-बिद्ध भी हो गये ।
    अवधी के वसन्त-गीत ने तो मंत्रमुग्ध कर दिया । आपके लिंक पर गया ’टुकुर टुकुर देवरा निहारै बेइमनवाँ’, टुकुर-टुकुर निहारा, पर गीत सुनने का उपक्रम न ढूँढ़ पाया । उसे फिर से पोस्ट करिये न प्लेयर के साथ । जोहूँगा ।
  13. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    मैं तो अलसाया सा बसन्त को भूले बैठा था। पिछले दिनों बसन्त पञ्चमी की सरकारी छुट्टी हुई तो उसका ख़्याल आया। फिर इधर उधर उसे ढूँढने की कोशिश करता रहा लेकिन भेंट नहीं हो सकी थी। आज यहाँ मिल गया है तो थोड़ा बटोर कर ले जा रहा हूँ।
    एक बड़ी सी पॉलीथिन में भरकर फ्रिज में डाल दूंगा फिर रोज थोड़ा-थोड़ा इसका आनन्द लूंगा चाय के साथ। देखता हूँ कितने दिन चलता है यह बसन्त…:)
  14. anitakumar
    ‘तितली ने भौंरे को छेड़ दिया
    भौंरा लड़कों सा शरमाय गया
    दोंनो एक दूजे को रहे निहार’
    हमारे जमाने में तो भौंरे तितलियों को छेड़ते थे और तितलियाँ लाज से लाल हुई जाती थीं , अब लगता है रिवाज उल्टा हो गया है, सच में पुरात्त्व विभाग के सेम्पल हो लिए हम्…बकिया कविता फ़ुल्टूस फ़ुरसतिया इश्टाइल है मजेदार्…। बसंत आगमन पर आप सभी को शुभकामनाएं
  15. amit
    और अपन इधर सोच रहे हैं कि पहाड़ों आदि में तो बसंत की औकात भी है क्योंकि सर्दी की सफ़ेदी के बाद हरियाली दिखे है पर हम जैसे तलहटी में रहने वालों को तो सर्दी में भी हरियाली दिखाई ही दे जाती है, रिन सी सफ़ेदी न दिखे है तो बसंत का क्या कहें, पंचांग देख के ही पता चले है कि बसंत आ गया है।
  16. समीर लाल
    लवकुश दीक्षित जी को सुबह से ६ बार सुन चुका हूँ..मन मोह लिया.
    पोस्ट तो खैर धांसू है ही.
  17. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    वाह, वाह! हेरान रहा। देखत देखत इहां पावा ओके!
    उहई, ऋतुराज बसन्त के!
  18. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    हमारा कमेण्ट क्यों गायब हो रहा है बार बार!
    हम तो यही कह रहे थे कि हेरान रहा बसन्त। ईंही पावा ओके हेरत हेरत।
  19. Saagar
    सुन्दर अभिव्यक्ति… बधाई स्वीकारें … आभार ! .).).)
    हा हा
    हिमांशु जी से सहमत… चातुर्य … वाह … सुन्दर पोस्ट और यह जरुरी भी था यहाँ
  20. Ranjana
    वाह…लाजवाब ….बसंतमय इस अद्भुद पोस्ट ने सचमुच मन मह मह महका दिया…
  21. Shiv Kumar Mishra
    बहुत गजब पोस्ट है. बिम्ब तो ऐसे-ऐसे कि का कहें. और कविता तो पूरा बवाल है. सबसे गजब ई लाइन लगी…(कविता, गजल वगैरह पर कमेन्ट करते हुए वहां से लाइन टीपने का फैशन है सो टीप……)
    आमों-बेरों का तो पता नहीं
    मॉलों में पसरा छलिया बसन्त
    सब तरफ़ सेल की रेल मची
    लुट रहे गृहस्थ, फ़ंस रहे संत
    आओ भैया आओ बसन्त!
  22. लावण्या
    अरे …वहां पर बसंत बसंत हो रहा है और
    हमारे यहां तो बस बर्फ ही बर्फ छायी हुई है
    चलिए बढ़िया रहा , बसंत पर्व का आगमन हुई गवा ऊंहा
    क्या गज़ब गीत सुनवाया जी ..मन प्रसन्न हो गया है
    और
    गीत के रचियता , गायक लवकुश दीक्षित जी को हमारी बधाईयाँ
    मंगल कामनाएं सहित
    स स्नेह,
    - लावण्या
  23. vinay kumar awasthi
    Continuity & compilation excellent. No doubt, rituals are left only to remind. Feelings are missing. May b because of change of environment – so called impact of technology on coming generation. “Anand Annubhuti” taste is lacking.
  24. kanchan
    aaj sun ye geet… devara vala sunane ke baada
    shuddh desi geet
  25. Anonymous
    अर्रर राजा, यहाँ मिला काम भर का बसन्त..
    अब बड़े भाई लोग टिपियाय गये हैं, तो समझ में नहीं आ रहा, कि कौन सी वाली लाइन की तारीफ हम करें..
    वइसे आपपर फागुन की खुमारी चढ़ी नहीं दिखती है.. खाली हास्य रस में चहेड़ कर पोस्टिया दिये, इसमें श्रृंगार का कोटा किधर है? फागुन भर ये सब नहीं चलेगा… एक ठांसिये नायक-नायिका टाइप!!
    :)
    सब ठीक तो है ना… (स्माइली चेंप देते हैं, कोई रिक्स नहीं)
  26. कार्तिकेय मिश्र
    अर्रर राजा, यहाँ मिला काम भर का बसन्त..
    अब बड़े भाई लोग टिपियाय गये हैं, तो समझ में नहीं आ रहा, कि कौन सी वाली लाइन की तारीफ हम करें..
    वइसे आपपर फागुन की खुमारी चढ़ी नहीं दिखती है.. खाली हास्य रस में चहेड़ कर पोस्टिया दिये, इसमें श्रृंगार का कोटा किधर है? फागुन भर ये सब नहीं चलेगा… एक ठांसिये नायक-नायिका टाइप!!
    :)
    सब ठीक तो है ना… (स्माइली चेंप देते हैं, कोई रिक्स नहीं)
  27. बवाल
    पौधे पौधे पर चढ़ा खुमार
    कलियों-कलियों के प्रेम बुखार
    सब एक दूजे के बने यार
    इस मौज मजे का न कोई अंत।
    इसको तुकबंदी कहते हो सर ? हा हा क्या बात कही है जी।
    लवकुश जी का बसंत राजा सुना भी पढ़ा भी सहेजा भी। बहुत आनंद आ गया जी। बाक़ी तो चैट पर मिल ही चुके हैं। बहुत बहुत आभार इस सुन्दर पोस्ट का।
  28. गौतम राजरिशी
    आह! बिम्बों के बादशाह हैं आप देव!
  29. टुकुर-टुकुर देउरा निहारै बेईमनवा
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