http://web.archive.org/web/20140420024549/http://hindini.com/fursatiya/archives/2134
हम देख रहे हैं कि देश अपना बड़ी गतिमान स्थिति से गुजर रहा है। हमेशा
की तरह गतिमान। गतिमान माने कि डायनामिक। हर दिन कोई न कोई समस्या देश की
सबसे बड़ी समस्या बन जाती है। चील झपट्टे की तरह आती है समस्या और सबसे आगे
खड़ी हो जाती है समस्या।
कोई कहता है देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। कोई बताता है कि जनसंख्या सबसे बड़ा बोझ है देश का। किसी की नजर में संस्कारहीन शिक्षा सब बबाल की जड़ है। पाकिस्तान भी किसी दिन आगे खड़ा हो जाता है फ़ोटो खिंचाने के लिये कि हम भी शामिल हैं समस्याओं की टीम में। कभी-कभी विश्व पटल पर घटी कोई घटना बताती है कि सब समस्याओं की जड़ ये है कि हम डरपोंक हैं। मन मजबूत नहीं है अपन का। खतरों से खेलने में डरते हैं। अब कोई कैसे कहे कि भाई हम क्रिकेट खेलते हैं जिसमें पैसा है। खतरे से खेलने में क्या मिलेगा?
बाढ़, सूखा, भूस्खलन, ट्रेन दुर्घटनायें, सुनामी-उनामी जैसी समस्यायें भी आती हैं। चर्चित होती हैं फ़िर शरीफ़ बच्चों की तरह अपना पार्ट करके स्टेज के पीछे खड़ी हो जाती हैं। वे ज्यादा जिद नहीं करतीं मंच पर रहने की। सोचती हैं कि ये तो अपना ही घर है। कभी भी आ जायेंगे। औरों को मौका दिया जाये।
एक तरफ़ रोना है कि देश को जातिवाद, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद देश को खोखला कर रहा है। दूसरी तरफ़ लोग गाना गाते हैं कि भाई-भाई में प्रेम नहीं रहा। लोग अपनी जाति के ही लोगों को चूना लगा रहे है। अपने ही क्षेत्र में लूटपाट मचा रहे हैं। यह बात सही ही होगी वर्ना काहे को शायर लोग शायरी करते- घर को आग लगी घर के ही चिराग से।
लब्बो और लुआब यह कि हम इस बारे में एकमत नहीं हो पाते कि हमारी असल समस्या क्या है। बेरोजगारी कि जनसंख्या! भ्रष्टाचार या पाकिस्तान। कट्टरपंथ या नरमपंथ। अमेरिका या रूस। आधुनिकता या कि पोंगापंथी मन। एक बार असल समस्या पता चल जाये तो उसका टेंटुआ दबा के उससे मुक्ति पायी जाये। अगर हिंसा से एतराज हो तो उसको सविनय अवज्ञा वाले आंदोलन में विनम्रतापूर्वक देश से बाहर जाने के लिये बाध्य कर दिया जाये। लेकिन पता तो चले कि समस्या की जड़ क्या है?
बबाल और भी हैं। जिनको समस्या पता है उनको समाधान नहीं पता। जिनको समाधान पता हैं उनको यह नहीं पता कि उनको लागू कैसे करें! जिनको सब पता है उनकी कोई सुनता नहीं है। इसी चक्कर में भतेरे लोग बिलखते रहते हैं कि हम कब से समाधान बता रहे हैं लेकिन हमारी कोई सुनता कहां है?
कुछ लोगों के द्वारा सुझाये समाधान इत्ते जटिल होते हैं लगता है इससे तो समस्या भली। ज्ञान की जटिलता कुछ लोगों के लिये उसकी पहली अनिवार्यता होती है। जानकारी सीधी हुई तो समझ में आ जायेगी। उसका सौंन्दर्य खतम हो जायेगा।
बहुत सरल भाषा में लोग कहते हैं कि आप खुद अपने को सुधार लें । आप की देखा-देखी दस और लोग हो सकता हैं संवर जायें। उनके दस के झांसे में हो सकता है सौ लोगों को दिशा मिले।
लेकिन ज्यादातर लोगों को इतनी सरल बात समझ में नहीं आती। उनका मानना है कि हमारे अकेले सुधरने से क्या होता है। हमें तो देश की चिंता है। जब देश को सुधार लेंगे तो हम तो तड़ से सुधर जायेंगे।
देश बेचारा समझ नहीं पाता कि उसका क्या कुसूर है जो लोग उसको सुधारने में जुटे पड़े हैं।
आगे कभी विस्तार से उनके बारे में और लिखा जायेगा।
ऊपर की फ़ोटो पिछली दिल्ली यात्रा के दौरान खींची गयी थी। हुमायूं का मकबरा देखने गये थे। दो बच्चे हाथों में फ़ूल लिये भागते दिखे। उनकी तस्वीर खैंच ली हमने। सामने से खैंचने के चक्कर में बहुत देर कैमरा साधे रहे लेकिन वो पोज न मिला।
हुमायूं का मकबरा एक खूबसूरत कब्रगाह है। हर कमरे में एक कब्र आरामफ़र्मा है। जिसके वंशज को दो गज जमीन न मिली अंत समय वे अपने तमाम लावलश्कर के साथ यहां आराम से सो रहे हैं। इसी कब्रगाह के बगीचे में आरामफ़र्मा मुद्रा में हमारी फ़ोटॊ भी खैंच ली गयी। देखिये कैसी है!
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए!
मगध है, तो शांति है!
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए!
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए!
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रूकता हस्तक्षेप-
वैसे तो मगध निवासिओं
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से-
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है-
मनुष्य क्यों मरता है?
श्रीकांतवर्मा
हमें तो देश की चिंता हैं
By फ़ुरसतिया on July 19, 2011
कोई कहता है देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। कोई बताता है कि जनसंख्या सबसे बड़ा बोझ है देश का। किसी की नजर में संस्कारहीन शिक्षा सब बबाल की जड़ है। पाकिस्तान भी किसी दिन आगे खड़ा हो जाता है फ़ोटो खिंचाने के लिये कि हम भी शामिल हैं समस्याओं की टीम में। कभी-कभी विश्व पटल पर घटी कोई घटना बताती है कि सब समस्याओं की जड़ ये है कि हम डरपोंक हैं। मन मजबूत नहीं है अपन का। खतरों से खेलने में डरते हैं। अब कोई कैसे कहे कि भाई हम क्रिकेट खेलते हैं जिसमें पैसा है। खतरे से खेलने में क्या मिलेगा?
बाढ़, सूखा, भूस्खलन, ट्रेन दुर्घटनायें, सुनामी-उनामी जैसी समस्यायें भी आती हैं। चर्चित होती हैं फ़िर शरीफ़ बच्चों की तरह अपना पार्ट करके स्टेज के पीछे खड़ी हो जाती हैं। वे ज्यादा जिद नहीं करतीं मंच पर रहने की। सोचती हैं कि ये तो अपना ही घर है। कभी भी आ जायेंगे। औरों को मौका दिया जाये।
एक तरफ़ रोना है कि देश को जातिवाद, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद देश को खोखला कर रहा है। दूसरी तरफ़ लोग गाना गाते हैं कि भाई-भाई में प्रेम नहीं रहा। लोग अपनी जाति के ही लोगों को चूना लगा रहे है। अपने ही क्षेत्र में लूटपाट मचा रहे हैं। यह बात सही ही होगी वर्ना काहे को शायर लोग शायरी करते- घर को आग लगी घर के ही चिराग से।
लब्बो और लुआब यह कि हम इस बारे में एकमत नहीं हो पाते कि हमारी असल समस्या क्या है। बेरोजगारी कि जनसंख्या! भ्रष्टाचार या पाकिस्तान। कट्टरपंथ या नरमपंथ। अमेरिका या रूस। आधुनिकता या कि पोंगापंथी मन। एक बार असल समस्या पता चल जाये तो उसका टेंटुआ दबा के उससे मुक्ति पायी जाये। अगर हिंसा से एतराज हो तो उसको सविनय अवज्ञा वाले आंदोलन में विनम्रतापूर्वक देश से बाहर जाने के लिये बाध्य कर दिया जाये। लेकिन पता तो चले कि समस्या की जड़ क्या है?
बबाल और भी हैं। जिनको समस्या पता है उनको समाधान नहीं पता। जिनको समाधान पता हैं उनको यह नहीं पता कि उनको लागू कैसे करें! जिनको सब पता है उनकी कोई सुनता नहीं है। इसी चक्कर में भतेरे लोग बिलखते रहते हैं कि हम कब से समाधान बता रहे हैं लेकिन हमारी कोई सुनता कहां है?
कुछ लोगों के द्वारा सुझाये समाधान इत्ते जटिल होते हैं लगता है इससे तो समस्या भली। ज्ञान की जटिलता कुछ लोगों के लिये उसकी पहली अनिवार्यता होती है। जानकारी सीधी हुई तो समझ में आ जायेगी। उसका सौंन्दर्य खतम हो जायेगा।
बहुत सरल भाषा में लोग कहते हैं कि आप खुद अपने को सुधार लें । आप की देखा-देखी दस और लोग हो सकता हैं संवर जायें। उनके दस के झांसे में हो सकता है सौ लोगों को दिशा मिले।
लेकिन ज्यादातर लोगों को इतनी सरल बात समझ में नहीं आती। उनका मानना है कि हमारे अकेले सुधरने से क्या होता है। हमें तो देश की चिंता है। जब देश को सुधार लेंगे तो हम तो तड़ से सुधर जायेंगे।
देश बेचारा समझ नहीं पाता कि उसका क्या कुसूर है जो लोग उसको सुधारने में जुटे पड़े हैं।
और अंत में
पिछली पोस्ट में भगवती प्रसाद दीक्षित’ घोड़ेवाला’ के बारे में लिखा। कई साथियों ने उस पोस्ट पर अपने विचार व्यक्त किये। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि उन्होंने चर्चित होने के अलावा और कोई काम नहीं किया। ’ दीक्षितजी’ का और कोई योगदान भले न हो लेकिन उन्होंने हलचल तो मचाये रखी। अकेला आदमी कभी सफ़ल नहीं हो सकता। लोगों को साथ जोड़ना पड़ता है। लेकिन उन जैसे सिरफ़िरे भी कितने हैं दुनिया में जो निश्चित असफ़लता के बावजूद लगे रहे अपनी जिंदगी भर अपनी जिद पूरी करने में।आगे कभी विस्तार से उनके बारे में और लिखा जायेगा।
ऊपर की फ़ोटो पिछली दिल्ली यात्रा के दौरान खींची गयी थी। हुमायूं का मकबरा देखने गये थे। दो बच्चे हाथों में फ़ूल लिये भागते दिखे। उनकी तस्वीर खैंच ली हमने। सामने से खैंचने के चक्कर में बहुत देर कैमरा साधे रहे लेकिन वो पोज न मिला।
हुमायूं का मकबरा एक खूबसूरत कब्रगाह है। हर कमरे में एक कब्र आरामफ़र्मा है। जिसके वंशज को दो गज जमीन न मिली अंत समय वे अपने तमाम लावलश्कर के साथ यहां आराम से सो रहे हैं। इसी कब्रगाह के बगीचे में आरामफ़र्मा मुद्रा में हमारी फ़ोटॊ भी खैंच ली गयी। देखिये कैसी है!
मेरी पसंद
कोई छींकता तक नहींइस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए!
मगध है, तो शांति है!
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए!
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए!
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रूकता हस्तक्षेप-
वैसे तो मगध निवासिओं
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से-
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है-
मनुष्य क्यों मरता है?
श्रीकांतवर्मा
Posted in बस यूं ही | 57 Responses
सही है। अपनी मनपसंद समस्या चुनिये। यही है राइट च्वाइस बेबी कहते हुते उसके विरोध में आवाज उठा दी जाये।
शीर्षक पढ़ कर चौंक गया था कि अब आपका क्या होगा मगर अन्दर जाने पर पता चला कि हमेशा की तरह फोटू खींचने में लगे हुए हो …
लगे रहो गुरु !
शुभकामनायें
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..टूटे घोंसले -सतीश सक्सेना
काहे के लिये चौंके भाई! फ़ोटो क्या ज्यादा अच्छी और ज्यादा नेचुरल आई हैं?
देश के प्रति ‘चिंतन सिण्ड्रोम’ बड़े व्यापक तौर पर पसरा है…..पसर रहा है और आगे भी बड़ी तेजी से पसरने वाला है
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..राजनीति के ‘क़ोतल’ घोड़े
हां लोग-बाग देश के लिये चिंतित तो होते ही हैं। अकबर इलाहाबादी एक ठो शेर कहे थे जिसकी दूसरी लाइन है:
रंज लीडर को बहुत है लेकिन आराम के साथ।
हम सब आराम -आराम से देश के बारे में चिंतित हो लेते हैं।
सबसे बड़ी समस्या तो खुद ई ब्लॉगर हैं जो खाते-पीते,सुस्ताते लोगों को कोड़े मारकर जगाते हैं.आराम से देश ‘चल’ रहा है,फिर भी इनको खुजली हो रही है.जल्द ही इनके लिए कटघरे का इंतजाम भी होने जा रहा है.
श्रीकांत वर्मा की कविता ऊपर की पोस्ट का ज़वाब है…बेहतरीन रचना !
फोटू में हमेशा की तरह आप गंभीर हैं…लेखन शैली के बिलकुल विरुद्ध !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..मेरा गाँव !
आप तो मास्टर साहब हैं। जैसे वहां छात्र-अध्यापक अनुपात होता है वैसे ही लीडर-जनता अनुपात भी कुछ होता होगा। अब बताइये साढ़े पांच सौ लोग सवा करोड़ की आबादी का कित्ता ख्याल रखेंगे? फ़ोटो में गंभीर मुद्रा में पकड़ गये। अब बताइये क्या किया जाये। क्या यह बयान जारी किया जाये कि मूलत: मैं गंभीर प्रकृति का हूं।
क्योंकि बड़े पैमाने पर जब चिंतन सिण्ड्रोम पसरेगा तो उनकी हालिया जताई चिंताओं का महत्व खो जाने की आशंका है
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..राजनीति के ‘क़ोतल’ घोड़े
हम इसई लिये लेख लिख दिये और अपनी चिंता का कोटा हो गया। अब और न चिंतित होंगे।
Ghanshyam Maurya की हालिया प्रविष्टी..जुगाड़
शुक्रिया। और फ़ोटू लगाये जायेंगे अगली पोस्टों में ।
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..विकिरण(Radiation) क्या होता है?
ये एक और चिंता की बात बता दी आपने!
उससे त्रिवेदी जी इतना भड़क गए की उन्होने मुझे कवियत्री तो छोडिये ब्लॉगर मानने से भी इनकार कर दिया .
और ये जो वहाँ आपने मर्द ब्लोगर वाली बात की हैं उस से भड़क कर वाराणसी वाले दिल्ली आगये
उनके आने से आप इतना डर गए की वापस हो लिये
देश की चिंता हैं किसे
अपनी अपनी तस्वीर का दूसरा रुख कौन कब देखता हैं
Rachna की हालिया प्रविष्टी.."आप किस मिटटी की बनी हैं ? "
खूब मौज ले रही हैं आजकल आप! हमें भी पूछना पड़ेगा किस मिट्टी की बनी हैं आप?
त्रिवेदी जी ने आपको ब्लागर माना है। कवियत्री मानने में कुछ संकोच होगा अभी। शायद आगे कम हो संकोच। हम जे एन यू से मर्द ब्लागर के डर से नहीं भागे। ऐसे ही चले आये वहां चाय पीकर। मिसिरजी पता नहीं किससे-किससे मिलते हैं। आपसे मुलाकात हुई क्या उनकी?
मौज क्या कोई वस्तु हैं की उसका लेनदेन हो सके
बाकी यहाँ देख ले http://praveenshah.blogspot.com/2011/07/blog-post_13.html?showComment=1310653956391#c2375862340566053296
Rachna की हालिया प्रविष्टी..कुछ ऐतिहासिक गलतियां
फिर भी,यदि मेरी किसी टीप से रचनाजी आहत हुई हों तो बहुत खेद है !
आप मनोज के ब्लॉग पर क्या बोले , फिर मेरे ब्लॉग पर क्या बोले इसका कोई औचित्य ना था ना हैं ना होगा . हाँ ये जरुर पता चलगया की लोग बिना जाने केवल इस लिये रुष्ट होजाते हैं क्युकी सोचते हैं केवल उनकी कविता को ही समीक्षित होने का कानूनी अधिकार हैं
Rachna की हालिया प्रविष्टी..कुछ ऐतिहासिक गलतियां
आपको वहाँ पाकर, मौज लिये जाने से आशंकित, हड़बड़ाकर जागा हुआ हुमायूं भी सोच रहा होगा कि हमारे टाइम पे काहे नहीं था ई ससुर कैमरा…
Suresh Chiplunkar की हालिया प्रविष्टी..दयानिधि मारन का “निजी टेलीफ़ोन एक्सचेंज” और मनमोहन का धृत “राष्ट्रवाद…” Personal Telephone Exchange, Dayanidhi Maran, 2G Scam, Manmohan Singh
हुमायूं बेचारा पता नहीं क्या सोचता होगा लेकिन हम सोच रहे हैं कि हुमायूं एक लड़ाई में हारा, टहलता रहा बहुत दिन ईरान-तूरान और आते ही फ़िर पूरा हिन्दुस्तान जीत लिया। लगता है यहां के राजा-महाराजा इंतजार कर रहे थे कि हुमायू आयें और उसकी अधीनता स्वीकार कर लें।
आशीष की हालिया प्रविष्टी..Research in IITs
सही कह रहे हैं आप। लोग अपने को देख नहीं पाते अक्सर!
Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..गुज़र जायें करार आते आते
देश की चिंता में साथ देने के लिये शुक्रिया। लेकिन शायद देश कह रहा हो कि हमारी चिंता मती करो ताकि हम सुकून से रह सकें।
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..क्या यही डांस है…हाँ हाँ यही डांस है ….
देश के कर्णधार भी तो बेचारे देश के बारे में सोच-सोचकर और बयान जारी कर-करके हलकान हैं।
कुछ लोगों के द्वारा सुझाये समाधान इत्ते जटिल होते हैं लगता है इससे तो समस्या भली।…………….ऐसे बहुतेरे
समस्याएं इस ब्लॉग-जगत में भी ………. मिलते ………जिसके समाधान की जटिलता, समस्याओं को बने रहने
में ही भली लगती है……………बकिया आपकी पसंद हमारी पसंद है ही……………….
प्रणाम.
ऐसा नहीं है कि १००/५० ग्राम चिंता करने वालों की पूछ नहीं है। चिंता करने में सबका बराबर महत्व है।
अब तो बस यह चिंता है कि देश की चिंता करने वालों की स्थिति चिंतनीय क्यों होती जा रही है। आजकल रामदेव जी कहाँ है?
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..मई के मजे, जून की जन्नत और जुलाई की जुदाई
आपने तो राहत इंदौरी के शेर का अनुवाद पेश कर दिया। वे कहते हैं न:
अपने तवारूफ़ के लिये इतना काफ़ी है,
हम उस रस्ते नहीं जाते जो आम हो जाये।
रामदेव जी अभी कपाल भाती करते हुये काला धन देश में लाने के उपाय सोच रहे होंगे।
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..वो क्या कहते थे तुम जिसे …..प्यार !
अरे भाई देश के लिये चिंतित होना कम बड़ा काम है। चिंतित भी हो और कुछ काम भी करे। यह तो डबल मेहनत हो गई। कौन करेगा इत्ता झमेला?
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..इस्लाम तो शांति का उपदेश देता है लेकिन उसके ये तथाकथित अनुयायी!
सही में चिंतन मंत्रालय खुलेगा तो इस लेख को बायोडाटा में सटाकर कुछ दिन का डेपुटेशन जुगाड़ने की कोशिश करेंगे।
शुक्रिया। आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर हम भी धन्य हो लिये।
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..तुमने जो देखा-सुना…
आपने चुन चुन कर इतनी समस्याये गिनवा दीं, कि हम भूल ही गये कि हमारी समस्या खुदपरस्ती है.. और कुछ नहीं !
अपने को ही देखिये.. समस्यायों के बोझ से हम्मैं लाद कर आप साहब छाँव में सुस्ता रहे हैं….रंज फुरसतिया को बहुत है लेकिन आराम के साथ
फोटो में आप कुछ काले लग रहे हैं, जबकि हमारा अनुमान है कि आप इत्ते काले भी नहीं हो सकते । कृपया स्पष्टीकरण दें !
निट्ठल्ला की हालिया प्रविष्टी..श्री गधे जी का महत्व – वैशाखी अमावस्या पर
आपके ब्लॉग की खूबी है “मेरी पसंद”
कविता पढ़ने को मिली…आभार
–बहुत बड़ी बातें आपने बहुत सरल तरीके से कह दी.
हम भी आज तक नहीं समझे की लोग दूसरों को क्यों सुधारना चाहते है खुद क्यों नहीं सुधर जाते, चिंता तो फुरसतिया पोस्ट की थी वो तो आ गयी
और ये JNU वाला क्या मामला है ,इसकी पोस्ट कब आ रही है ??
आशीष श्रीवास्तव
लेकिन ज्यादातर लोगों को इतनी सरल बात समझ में नहीं आती। उनका मानना है कि हमारे अकेले सुधरने से क्या होता है। हमें तो देश की चिंता है। जब देश को सुधार लेंगे तो हम तो तड़ से सुधर जायेंगे………..
…………………आपसे सहमत,सटीक चिंतन,कर भला तो हो भला…..
-फ़ोटो खिंचाने के लिये कि हम भी शामिल हैं समस्याओं की टीम में।
-ज्ञान की जटिलता कुछ लोगों के लिये उसकी पहली अनिवार्यता होती है।
बाकि आप के अनुसार अब तो देश ही चिंतित हो गया की सारे उसे सुधरने में लगे हैं!:)))
……………….
दिल्ली में खींची गयी यह फोटो अच्छी है .
सामने बिछी हरी -हरी घास मुख्य आकर्षण है.मकबरा भी खूबसूरत दिख रहा है.खींचने वाले को बधाई ,अच्छा एंगल ले कर खींची है.
-फ़ोटो खिंचाने के लिये कि हम भी शामिल हैं समस्याओं की टीम में।
-ज्ञान की जटिलता कुछ लोगों के लिये उसकी पहली अनिवार्यता होती है।
बाकि आप के अनुसार अब तो देश ही चिंतित हो गया की सारे उसे सुधरने में लगे हैं!:)))
……………….
दिल्ली में खींची गयी यह फोटो अच्छी है .
सामने बिछी हरी -हरी घास मुख्य आकर्षण है.मकबरा भी खूबसूरत दिख रहा है.खींचने वाले को बधाई ,अच्छा एंगल ले कर खींची है.
[बताईये टिप्पणी पोस्ट करने के चक्कर में नाम- पते का फॉर्म भरना ही भूल गयी!]
अल्पना की हालिया प्रविष्टी..मुझे जाँ न कहो
बहुत सही .
लब्बो और लुआब यह कि हम इस बारे में एकमत नहीं हो पाते कि हमारी असल समस्या क्या है।
लो जी. अगर असल समस्या पर सहमति हो गयी, तो फिर चर्चा किस बात पर की जायेगी? असहमति बहुत ज़रूरी है, ताकि नेतागण, आम आदमी बहस एन मुब्तिला रह सके
हुमायूं का मकबरा तो एकदम आगरे के जहाँगीरी महल जैसा है
बढ़िया चिंताग्रस्त पोस्ट. कविता बढ़िया है.
समस्या क्या है सभी जानते हैं तुम जानते हो हम जानते हैं
देश हमसे पहल चाहता है मगर हम तो सिर्फ हल चाहते हैं।
Eswami की हालिया प्रविष्टी..नया iPhone 4 पाने की होड! एप्पल स्टोर्स के बाहर बडे जमघट
उम्दा लेख
१- खाने के बाद भूख nhi लगती
२- सोने के बाद नीद नही लगती
एटक
सत्ता स्व उपकार के लिए ही होती आई है सदा से, परोपकार के लिए नहीं…तो जब यह जिसके हाथ रही, उसने ज़िंदा रहते भर के ही लिए नहीं मुर्दा होने के बाद के लिए भी जीतती चाही जगह घेर ली..
कविता लाजवाब स्टेपल किया है..
वैसे भी ब्लॉग पर मोट्टो तो यूं हो लिया है – हम तो (जबरिया) न लिखिबै, यार हमार कोई का करिहै!
Gyan Pandey की हालिया प्रविष्टी..गंगा तीरे बयानी
बवाल पंक्तियाँ हैं ये तो
पाकिस्तान भी किसी दिन आगे खड़ा हो जाता है फ़ोटो खिंचाने के लिये कि हम भी शामिल हैं समस्याओं की टीम में। मजा आया पढ़कर !
श्रीकांत वर्मा जी की कविता बहुत अच्छी लगी !