सुबह सड़क चमकदार दिखी। धूप खूब खिली-खिली। गर्म होने की तैयारी करती सी।
बच्चे स्कूल की तरफ बढ़ रहे। कुछ के माता-पिता-भाई छोड़ने आये हैं। एक बच्ची स्कूटी पर जाती दिखी। सामने कोई आ गया। बच्ची ने पहले स्कूटी के ब्रेक लगाए। स्कूटी धीमी हुई। इसके बाद उसने पैर से ब्रेक लगाकर स्कूटी रोकी। फिर आगे बढ़ी।
एक महिला अपने एक बच्चे को स्कूल छोड़ने जा रही है। बच्चा स्कूल ड्रेस में तैयार है। साथ में दूसरा बच्चा है। वह एकदम घरेलू ड्रेस में है। चड्ढी - बनियाइन में। 'चड्ढी पहन के फूल खिला है' याद आ गया।
एक ठिलिया में लोहे के एंगल लादे दो लोग चले जा रहे हैं। एक आगे से खींच रहा है। दूसरा पीछे से धक्का लगा रहा है। पीछे वाले का शरीर पसीना-पसीना हो रहा है। सूरज की किरणें उस पसीने को चमका रहीं हैं। हवा उसको ठंडा करने का प्रयास कर रही हैं।
चढ़ाई पर पसीने से लथपथ मजदूर और जोर लगाता है। हमारा मन किया कि हम भी थोड़ा जोर लगा दें हैइस्सा करते हुए। लेकिन जब तक मन की बात अमल में लाएं तब तक वह आगे बढ़ जाता है।
याद आया कि आज मजदूर दिवस है। आज की सुबह मई दिवस की चमकीली सुबह है।
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