Saturday, October 03, 2020

परसाई के पंच-59

1. बड़ी मुसीबत है व्यंग्यकार की। वह अपने पैसे मांगे, तो भी उसे भी व्यंग्य-विनोद में शामिल कर लिया जाता है।
2. तरह-तरह के संघर्ष में तरह-तरह के दुख हैं। एक जीवित रहने का संघर्ष है और एक सम्पन्नता का संघर्ष है। एक न्यूनतम जीवन-स्तर न कर पाने का दुख है, एक पर्याप्त सम्पन्नता न होने का दुख है।
3. जब हम जवान थे, तब यह मान्यता थी कि बड़ों से दबो। अब यह हो गया कि लड़कों से दबो। तो अब हम बुढापे में लड़कों से दब रहे हैं। हमारी जिन्दगी तो दबते हुये गुजर गयी।
4. रिटायर्ड आदमी की बड़ी ट्रेजडी होती है। व्यस्त आदमी को अपना काम करने में जितनी अक्ल की जरूरत पड़ती है, उससे ज्यादा अक्ल बेकार आदमी को समय काटने में लगती है।
5. रिटायर्ड वृद्ध को समय काटना होता है। वह देखता है कि जिन्दगी भर मेरे कारण बहुत कुछ होता रहा है, पर अब मेरे कारण कुछ नहीं होता। वह जीवित संदर्भों से अपने को जोड़ना चाहता है, पर जोड़ नहीं पाता। वह देखता है कि मैं कोई हलचल पैदा नहीं कर पा रहा हूं। छोटी सी तरंग भी मेरे कारण जीवन के इस समुद्र में नहीं उठ रही है।
6. गणित के अध्यापक की यह कमजोरी है। वह दुनिया में किसी को गणित में कमजोर नहीं देख सकता।
7. समाज का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि वह अपने रिटायर्ड लोगों का क्या करता है। अगर कुछ नहीं करता तो रिटायर्ड वृद्ध काम करते हुये युवा के काम में दखल देगा और समाज की कर्म-शक्ति घटेगी।
8. हमारे सम्पूर्ण हिताहित को , सहज ही सोत्साह हमारी बिना मर्जी के हथिया लेने वाले शुभचिन्तक से बड़ा दुश्मन और कोई नहीं।
9. शुभचिन्तक यदि केवल ’शुभ’ की ’चिन्ता’ की मर्यादा में रहे, तो हम उसे बर्दाश्त कर सकते हैं जैसे हम उस दुश्मन को सह लेते हैं, जो मन में हमें गाली देता है। मगर ’शुभचिन्तक’, ’उपदेशक’ हुये बिना नहीं मानता, क्योंकि वह मानने को कतई तैयार नहीं कि तुम ठीक राह पर चल रहे हो। तुम हिमालय के शिखर पर भी बैठ जाओ, तो भी लगेगा कि तुम किसी गढे में पड़े हो; और यहीं से उसका काम शुरु होता है कि नसीहत की रस्सी डाल-डालकर तुम्हें उस गढे से बाहर खींचे या रस्सी की फ़ांसी लगा दे!
10. विधाता जब मनुष्य को बनाकर दुनिया में भेजने लगता है, तो उसके कान के पास मुंह लगाकर धीरे से कह देता है कि देश , दुनिया में सबसे अधिक अक्ल मैंने तुझी को दी है। हर एक से विधाता यही कह देता है और इसीलिये हर आदमी जन्म से ही उपदेशक हो जाता है।
11. अक्षमता नैतिक उपदेश की जननी होती है।

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