गड़बड़ियां आश्वस्ति का प्रतीक हैं
---------------------------------------
कल नया साल आ गया। आजकल सब लोग आना-जाना मुल्तवी किये हुए हैं लेकिन नया साल बेधड़क आ गया। बिना 'मे आई कम इन सर' कहे घुस आया दुनिया में। हम किसी को रोकते थोड़ी हैं आने से लेकिन पूछना तो चाहिए न। किसी दफ्तर में काम करता होता तो नए साल का अफसर इसी बात पर इसकी चरित्र पंजिका में प्रतिकूल प्रविष्टि कर देता। बहुत बेसउर लगता है नया साल।
नए साल को न कोरोना से डर न फोरोना से दहशत। लगता है वैक्सीन मिल गयी है नए साल को। ठुकवा के आ गया।
वैक्सीन का भी मजेदार मामला। तमाम कम्पनी वाले अपनी-अपनी वैक्सीन निकाल रहे हैं। कम्पनी के हिसाब से वैक्सीन के असर भी होंगे। डिजाइनर लोगों के लिए ब्रांडेड वैक्सीन , आम लोगों के लिए जेनेरिक टीका। क्या पता, सस्ती वाली वैक्सीन सरकारी अस्पतालों में मुफ्त मिलने लगे।
असली वैक्सीन भले अलग-अलग हों लेकिन नकली वैक्सीन एक दाम मिले शायद। हरेक पर लिखा होगा -'नक्कालों से सावधान।'
क्या पता नकली वैक्सीन वाले चेतावनी भी जारी करें-'हमारी नकल करके कुछ लोग मंहगे दामों पर नकली वैक्सीन बेच रहे हैं। कोई कम्पनी मंहगी वैक्सीन बेचता दिखे तो उसकी रिपोर्ट पुलिस में करायें। देश की जनता को नक्कालों से बचाएं।'
इसी चक्कर में कई असली वैक्सीन वाले क्या पता अंदर हो जाएं। नकली वैक्सीन वाले वैक्सीन किंग बन जाएं।
ऐसा होना कोई बड़ी बात नहीं। तमाम डिफॉल्टर लोग जबरियन जनता की जबरियन भलाई करने के काम में लगे हैं। जनता अपनी भलाइयों से हलकान किये हुए हैं।
जनता बेचारी कहती होगी -'भैया हमको बक्श दो। हमारी सेवा न करो। कृपा करो।हमको हमारे हाल पर छोड़ दो।'
लेकिन भला करने वाले जबर डिफाल्टर भला कैसे मान जाये। निरीह जनता से कहते होंगे-'तुम कौन होती हो मुझे अपनी सेवा के अवसर से वंचित करने वाली। हमको तुम्हारी भलाई का ठेका मिला है। तो सेवा तो तुम्हारी हम करके रहेंगे। किसी माई के लाल में हिम्मत हो तो हमको रोक के दिखाए तुम्हारी भलाई करने से।'
अरे हां, बात नए साल की हो रही थी। नए साल से बहककर हम वैक्सीन और जनसेवकों की बात करने लगे। बातचीत में ऐसा होना स्वाभाविक होता है। राजनीति की बात करते हुए आदमी साहित्यिक हो जाता है, साहित्य की बात राजनीति की तरफ मुड़ जाती हैं। सब कुछ ऑटो मोड में गड़बड़ाया हुआ है। हाल ऐसे हो रहे हैं कि किसी जगह पहली नजर में गड़बड़ी नहीं दिखती तो किसी बहुत बड़ी गड़बड़ी की आशंका से दिल दहल जाता है। कहीं गड़बड़ी न दिखना आज के समय की सबसे बड़ी गड़बड़ी है। किसी भी जगह गड़बड़ी का होना सिस्टम के सुचारू रूप से चलने का लिटमस टेस्ट है। गड़बड़िया आश्वस्ति की प्रतीक हैं। गड़बड़ी हटी , दुर्घटना घटी।
नए साल की सुबह कोहरे से ढंकी थी। नया साल लगता है कोहरे का मास्क लगा के आया था। लगता है नए साल को भी कोरोना की खबर लग गयी थी। कोहरे का मास्क लगाए, ओस की बूंदों को सैनिटाइजर की तरह पूरी कायनात पर रगड़ते हुए नया साल आया। सूरज भाई काफी देर तक सेल्फ कवारन्टाइन रहे। देर तक दिखे नहीं। लगता है उनको भी किसी ने समय से दो घण्टे की दूरी बना के रखने के लिए कह दिया है। इसी चक्कर में दो घन्टे देर से आये।
नए साल का शुरुआती हिस्सा तो उसकी अगवानी में बीत गया। गोया नया साल नहीं कोई दुलहिन आयी हो, जिसकी मुंह दिखाई हो रही हो। कुछ लोगों ने नए साल की अगवानी करते हुए पुराने को कोसा, जैसे नए अधिकारी की तारीफ लोग पुराने की पोलपट्टी खोलते हुए करते हैं। पुराना साल अगर कहीं सुन लेता तो ऐसे लोगों पर दांत पीसते हुए सोचता -'इसको शरीफ समझकर छोड़ दिया और अब ये बदमाश हमारी बुराई कर रहा है।' उस बेचारे को क्या पता कि हर शराफत अपने आप में एक हसीन बदमाशी है जिसका पता अक्सर लोगों को देर से लगता है।
नया साल अब आ ही गया तो हमने भी उसका स्वागत किया। आप भी करिये। कहां तक बचेंगे इस बवाल से। आपके लिए और सबके लिए नया साल मुबारक हो, मङ्गलमय हो।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10221441448559107
No comments:
Post a Comment