मोबाइल का कैमरा खराब हो गया है। मोबाइल बेकार लगने लगा। बातचीत के लिए इस्तेमाल होने वाला उपकरण बातचीत के अलावा होने वालों काम के लिए उपयोग इतना अधिक आने लगा है कि जीवन के तमाम कामकाज इस मोबाइल पर निर्भर हो गए हैं। मोबाइल पर निर्भरता इतनी बढ़ गयी है कि इसके बिना काम चलना मुश्किल लगने लगा है।
सर्विस सेंटर में दिखाया। उन्होंने कहा -'कैमरा अभी है नहीं। दस दिन में आने के चांस हैं। तब तक मोबाइल जमा करना होगा।'
वो नहीं माने। बोले-'हमारी कम्पनी की पॉलिसी के हिसाब से मोबाइल जमा करना होगा।'
अब बताओ भला अपने प्यारे मोबाइल को दस दिन के लिए अकेले कैसे छोड़ दें। बिना नेट कनेक्शन के, किसी अंधेरे कोने में पड़े-पड़े मोबाइल बेचारे का तो दम घुट जाएगा। इतना इंतजार तो मोहब्बत के मारे भी आजकल नहीं करते। इंतजार बड़ा बवालिया काम है।
हमने यह भी पूछा कि मोबाइल के पार्ट मंगाने में इतना समय क्यों? आप रखते क्यों नहीं साथ में।
वो बोले-'पुराना हो गया मोबाइल। इसकी रिपेयरिंग के पार्ट मुश्किल से मिलते हैं।'
हमको लगा कि इस मामले में मोबाइल और समाज एक जैसे हो गए। जैसे-जैसे पुराने होते जाते हैं उनकी मरम्मत मुश्किल होती जाती है। मरम्मत के पुर्जे बनने बन्द हो जाते हैं। बिना मरम्मत के टूटे-फूटे ही काम चलता रहता है।
हम मोबाइल लिए-लिए बाहर आ गए। सागर मार्केट बगल में है। सागर मार्केट कानपुर में मोबाइल रिपेयर का महासागर है। सैकड़ों दुकानें हैं मोबाइल रिपेयरिंग की, सामान की, एसेसरीज की। हर दुकान का दावा ऐसा कि बस वही सही दुकान है। कानपुर की सबसे सस्ती होलसेल और रिटेल की इलेक्ट्रॉनिक मार्केट है सागर मार्केट।
रास्ते में जगह-जगह मोबाइल रिपेयरिंग और लैपटॉप रिपेयरिंग सिखाने के इश्तहार वाली दुकानें, गुमटियां भी दिखीं। कुल मिलाकर लगा किसी मोबाइल रिपेयरिंग विश्वविद्यालय में टहल रहे हैं। मन किया कि रिपेयरिंग का काम सीखकर यहीं कहीं गुमटी डाल लें और मोबाइल रिपेयरिंग का काम शुरू कर दें। गुमटी को चर्चा में लाने के लिए ऑफर लगा दें -'मोहब्बत करने वालों के मोबाइल की रिपेयरिंग मुफ्त में।' पता चला दुकान में सारा काम मुफ्त का ही आएगा। हर मोबाइल धारी आएगा कहेगा -'मोहब्बत है लेकिन एकतरफा।' कोई कहेगा -'तुम मोबाइल बनाओ यार, हम रिपेयरिंग तक मोह्हबत करके सबूत दिखाएंगे।'
बहरहाल सागर मार्केट में दिखाया फोन तो एक ने दूसरे के पास, दूसरे ने तीसरे के पास भेजा।इस तरह पांचवे तक पहुंचते हुए ज्यादा समय नहीं लगा। अगले ने बताया कि कैमरा रिपेयर हजार रुपये और बदलने के पंद्रह सौ लगेंगे। हमने कहा -'बदल ही दो।'
उसने मोबाइल को गरम किया। खोला। बताया कि इसकी पट्टी भी खराब हो सकती है। कोशिश करते हैं। ठीक होनी चाहिए। अगर ठीक हुई तो चलेगा नहीं तो नहीं। बता दिया पहले इसलिए कि बाद में आप बहस न करें।
हमें लगा कि क्या हो गया है अपने देश को। हर आदमी बहस से कतराने लगा है। बिना बहस कैसे काम चलेगा।
मजबूरी में हमने बात मान ली उसकी। यह सोचते हुए कि बहस करने का मन बनेगा तो करेंगे ही। कौन एस्टेम्प पेपर पर लिख कर दे रहे हैं कि बहस नहीं करेंगे।
मोबाइल खुलने के बाद पता चला कि घन्टा भर लगेगा। हमने कहा -'कोई बात नहीं हम इंतजार करेंगे।'
इंतजार करने में कौन हमारी जेब से कुछ जाता है। इंतजार हमारे खून में है। बेमियादी इंतजार। भले ही लोहिया जी 60 साल पहले कहें हो कि जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करती। लेकिन दुनिया की तमाम कौमें न जाने कब से इंतजार कर रहीं हैं। इंतजार करते-करते न जाने कितनी पीढियां गुजर गयीं। इंतजार जारी है। हम भी करेंगे। डरते थोड़ी हैं इंतजार करने से।
मोबाइल खुला तो उसके अनगिनत पार्ट इधर-उधर जुड़े दिखे। किसके तार किससे जुड़े हैं और उसका काम क्या है , समझना मुश्किल। हमारे लिए तो नामुमकिन। देखते रहे मोबाइल पर चिमटियां चलते।
रिपेयर करने वाले परवेज सागर मार्केट के पहले गुमटी धारकों में से एक हैं। सोलह-सत्रह साल पहले आये थे यहां। तब कुछेक दुकानें ही थीं। अब सैकड़ों दुकानें हो गयीं। शुरआत में मोबाइल मंहगे होते थे। रिपेयर का काम खूब चलता था। अब मोबाइल सस्ते हो गए। काम कम हो गया।
क्राइस्टचर्च से ग्रेजुएट परवेज मोबाइल संभालते हुए बता रहे थे गुमटी का किराया 22 हजार महीना है। कुल जमा दो आदमियों के बैठने की जगह। हर साल किराया बढ़ जाता है। मुश्किल है लेकिन मजबूरी और ज्यादा है। मजबूरी मुश्किल पर हावी है।
घण्टे भर की मेहनत के बाद परवेज ने बोला -'सॉरी, ठीक नहीं हो पाया। पट्टा खराब है।' पट्टा मतलब मोबाइल के कैमरे को सिग्नल देने वाला पट्टा। मोबाइल बांध के हमको थमा दिया। इतनी देर की मजदूरी की भी बात नहीं की।
हमने कहा -'पट्टा मंगवा लो। लगा दो। ठीक करो।'
परवेज ने बात की। दिल्ली। बोले -'मगंल को आएगा पट्टा।' हमने कहा -'कोई बात नहीं। मंगल को आएंगे।'
परवेज ने कहा -'कुछ पैसे एडवान्स जमा करने होंगे।' हमने कर दिए। परवेज ने हमारा नम्बर लेकर हमको व्हाट्सअप पर मेसेज भेजा। इतने रुपये एडवान्स लिए । विजिटिंग कार्ड पर अलग से लिखकर दिया।
हम लौटते हुए सोच रहे थे कि यार हिंदुस्तान में सैकड़ों दुकानें दिखीं रिपेयर की। अमेरिका में एक्को दुकान न दिखी मोबाइल रिपेयर की। वो लोग सिर्फ नया बेंच पाते हैं। पुराना सुधार नहीं पाते।
सुधारने में मेहनत लगती है। अमेरिका में मेहनत की कीमत ज्यादा है। इसीलिए वो लोग मरम्मत पर ज्यादा भरोसा नहीं करते। खराब हुआ बदल डालो।
बहरहाल, अब मंगलवार का इंतजार है।
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