Monday, March 20, 2023

बनारसी टी स्टॉल



'बनारसी टी स्टाल' पर चाय पी गयी कल। कानपुर के 80 फ़ीट रोड पर स्थित है यह टी स्टाल। सड़क का नाम '80 फ़ीट रोड' सड़क की चौड़ाई के हिसाब से प्रचलित है। पता नहीं और किसी सड़क का नाम उसकी चौड़ाई के हिसाब से है या नहीं।
पहले 'बनारसी टी स्टॉल' मोतीझील के पास स्थित थी। शहर में शायद एकमात्र दुकान थी। उस दुकान का कुछ लफड़ा हुआ तो बन्द हो गयी। कई किस्से चलन में हैं उसके बारे में।
एक दुकान बंद हुई तो कई खुल गईं उसी नाम से। एक अस्सी फ़ीट रोड पर, दूसरी माल रोड पर। और भी कहीं होंगी मुझे पता नहीं।
माल रोड वाली दुकान भी खूब चलती थी। लेकिन फिलहाल मेट्रो परियोजना के चलते सिकुड़ सी गयी है। एक दिन संकरी जगह से गुजरते हुए दिखी वो दुकान। अनायास अंदर जाकर बैठ गए और चाय आर्डर कर दी।
चाय आने तक दीवारों में लगे चाय से सम्बंधित सूक्त वाक्य देखते रहे। सबमें चाय की महिमा का बखान था। किसी दिन सबके फोटो लगाएंगे। एक सूक्त वाक्य याद आ रहा -'गर्मी बढ़ने पर जो लोग चाय पीना छोड़ देते हैं, वे किसी भरोसे लायक नहीं होते।'
आशा है सिकुड़ी दुकान फिर पसरेगी और फिर चाय के आशिकों का अड्डा बनेगी।
बात 80 फ़ीट रोड पर स्थित बनारसी टी स्टाल की हो रही थी। रात करीब दस बजे आसपास की सब दुकानें बंद हो चुकीं थी। वैसे भी साप्ताहिक बंदी होती है इतवार की इस इलाके में। केवल बनारसी टी स्टॉल गुलजार था। सड़क चाय की दुकान के घर के आंगन की तरह गुलजार थी। कुछ लोग गाड़ियों में बैठकर चाय का इंतजार कर रहे थे।
चाय वाला हरेक की पसंद के हिसाब से चाय बना रहा था। किसी को बिना चीनी की चाहिए थी, किसी को कम चीनी की, किसी को कम दूध की। सबके लिए अलग कुल्हड़ लगाए जा रहे थे। बिना चीनी वालों को पूछकर सुगर फ्री भी टेबलेट भी डाल दिये गए कुल्हड़ में। करीब बीस पच्चीस कुल्हड़ अलग, अलग तरह की चाय के लिए सज गए।
चाय बनाने की प्रक्रिया में कुल्हड़ में चीनी डाली गई। फिर दूध। दूध और चीनी छटककर चौकोर ट्रे में गिरकर चिपचिपा रहे थे। इसके बाद कोई मसाला छिड़क दिया गया हर कुल्हड़ में। एक लड़का दूध में चीनी मिलाते हुये थोड़ी चिपचिपहट और बढ़ा रहा था। इसके बाद हर कप में चाय डाली गई। हर तरह की चाय अलग-अलग लोगों को दी गयी। कोई चूक नहीं हुई।
चाय के साथ बन मक्खन खाते हुए एक भाई साहब ने बताया कि बहुत दूर आते हैं चाय पीने। जरा सा भी चीनी ज्यादा-कम हो जाती है तो चाय का मजा किरकिरा हो जाता है। कुछ परिवार भी सड़क पर पड़ी कुर्सियों पर बैठे चाय पी रहे थे।
चाय पीने के बाद फोन पे से भुगतान किया गया। एक चाय के 25 रुपये के हिसाब से। भुगतान प्रक्रिया से निर्लिप्त चाय वाले भाई कुल्हड़ सजाते हुए चाय बनाते रहे। भुगतान करने के बाद मोबाइल दिखाया गया यह बताने के लिए देखो भुगतान कर दिए। मोबाइल बिना देखे कुल्हड़ में चीनी डालते हुए भाई साहब बोले-' इसमें हम क्या देखें। हम मोबाइल नहीं देखते। चेहरा देखते हैं।'
मोबाइल बेचारा अपनी बेइज्जती से सुलग गया होगा। लेकिन उसको बुरा नहीं मानना चाहिए। 'बनारसी' नाम जिसके साथ जुड़ा हो उसका ऐसा कहना सहज है। कभी किसी नामचीन बनारसी की कही बात याद आ गई -'Varanasi is a city which have refused to modernize itself' बनारस ऐसा शहर है जिसने खुद आधुनिक बनने से इंकार कर दिया।

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