कल गांधी जयंती थी.कुल ६१ लोगों की बलि दी गयी-नागालैंड और असम में.शान्ति और अहिंसा के पुजारी का जन्मदिन इससे बेहतर और धमाकेदार तरीके से कैसे मनाया जा सकता है?
बहुत पहले मैंने एक कार्टून देखा था.गांधीजी एक आतंकवादी को अपनी लाठी फेंककर मार रहे हैं कहते हुये--दुष्ट हिंसा करते हो.वह भी विदेशी हथियारों से!
इस अवसर पर एक किताब छपी है-'मीरा और महात्मा'.इसके लेखक ने बडी मेहनत से तथ्य जुटाके बताया है कि मीराबेन गांधीजी को एक तरफा प्यार करतीं थीं.एक बार गांधीजी के तलुओं की मालिश करते हुये मीराबेन ने
आसुओं से गांधीजी के तलुये भिगो दिये थे.इसपर गांधीजी ने मीराबेन को अपने कमरे में जाने को कहा( मीराबेन से प्यार का एक और दावा हुआ है).
मुझे लगता है कि अपने कमरे में जाके मीराबेन ने जिस तौलिये से आंसू पोछे होंगे वह ले खक के हाथ लग गया होगा.उसी को निचोड के'मीरा औरमहात्मा'लिख मारा.
गांधीजी 'सत्य केप्रयोग'में वो सब लिख चुके हैं जो आज भी सनसनीखेज लगता है.उनका तो खैर क्या कुछ बिगडेगा.विदेशी लोग जरूर सोचेंगे अपनी बिटिया ऐसे देश भेजने के पहले 55-60 साल पुरानी घटनाओं के हवाले से इज्जत उछाल दी जाये.
कोई मेरठ-मुजफ्फरपुर का जाट बाप होता तो पंचायत बुला के सरेआम फूंक देता बिटिया को----चाहे जितना मंहगा हो पेट्रोल,मिट्टी का तेल.
लोग कहते हैं कि आखिरी दिनों में गांधीजी की स्थिति उस बुजुर्ग की तरह हो गयी थी जिसके जवान लडके कहते हैं-बप्पा तुम चुपचाप रामनाम जपौ.ई दुनियादारी के चक्कर मां तबियत न खराब करौ.
अक्सर बात उठती--आज के समय गांधी की प्रासंगिकता क्या है?गांधी हर हाल में विकल्प के प्रतीक हैं.यह बात बहुत खूबसूरती से स्व.किशन पटनायक ने अपनी पुस्तक- 'विकल्पहीन नहीं है दुनिया' में कही है.
गांधीजी जन्मना महान नहीं थे.तमाम मानवीय कमजोरियों के साथ उन्होंने अपना उद्दातीकरण किया.आज स्थितियां शायद उतनी जटिल न हों कि किसी को इतनी प्रेरणा दे सकें कि वो विकल्प सुझा सके.मेरी एक कविता है:-
हीरामन,
तुम फडफडाते ही रहोगे-
बाज के चंगुल में
तुम्हें बचाने कोई
परीक्षित न आयेगा.
परीक्षित आता है
इतिहास के निमंत्रण पर
किसी की बेबसी से पसीजकर नहीं.
लगता है कि इतिहास का निमंत्रणपत्र अभी छपा नहीं.
मेरी पसंद
जहां भी खायी है ठोकर निशान छोड आये,
हम अपने दर्द का एक तर्जुमान छोड आये.
हमारी उम्र तो शायद सफर में गुजरेगी,
जमीं के इश्क में हम आसमान छोड आये.
किसी के इश्क में इतना भी तुमको होश नहीं
बला की धूप थी और सायबान छोड आये.
हमारे घर के दरो-बाम रात भर जागे,
अधूरी आप जो वो दास्तान छोड आये.
फजा में जहर हवाओं ने ऐसे घोल दिया,
कई परिन्दे तो अबके उडान छोड आये.
ख्यालों-ख्वाब की दुनिया उजड गयी 'शाहिद'
बुरा हुआ जो उन्हें बदगुमान छोड आये.
--शाहिद रजा
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बहुत खूब!
ReplyDeleteसच है आज के समय मे गांधी जी को लोग सिर्फ २ अक्टूबर को ही याद करते है, वो भी खानापूर्ति के लिये.अब इस नये विवाद से, और कुछ नही बस जगहसाई ही होनी है.
सच है, लोगो ने गांधीजी को परलोक मे भी नही बख्शा,धन्य है यह समाज और लोग.
इस लेख के प्रेरणास्वरूप को,
ReplyDelete" तुमने
अच्छा ही,
किया,
सुबह उठे,
मुँह धोया,
और,
अकेले की यात्रा,
पर,
निकल पड़े।
हमारे चेहरों को,
देखते रहने से,
जो पाप,
लगता आया था,
उससे,
अपने आप ,
को,
मुक्त कर लिया ।"
(रचनाकार :अज्ञात)
(यह कविता,बहुत पहले,श्री जयप्रकाश नारायण के काल में,
धर्मयुग में उन्हें समर्पित की गयी थी।)