"क्या देह ही है सब कुछ?"
इस सवाल का जवाब पाने के लिये मैं कई बार अपनी देह को घूर निहार चुका हूं-दर्पण में.बेदर्दी आईना हर बार बोला निष्ठुरता से-नहीं,कुछ नहीं है(तुम्हारी)देह.मुझे लगा शायद यह दर्पण पसीजेगा नहीं.मुझे याद आया
वासिफ मियां का शेर:-
साफ आईनों में चेहरे भी नजर आते हैं साफ,
धुंधला चेहरा हो तो धुंधला आईना भी चाहिये.
तो साहब,हम आईना-बदल किये .अधेङ गृहस्थ आईने की शरण ली.यह कुछ दयावान था.पसीज गया.बोला-सब कुछ तो नहीं पर बहुत कुछ है देह.
मुझे लगा कि कमी देह में नहीं ,देह-दर्शन की तरकीब तरीके में है.और बेहतर तरीका अपनाता तो शायद जवाब पूरा हां में मिलता-हां,देह ही सब कुछ है.
दुनिया में पांच अरब देहें विचरती हैं.नखशिख-आवृता से लेकर दिगंबरा तक.मजबूरन नंगी देह से लेकर शौकिया नंगई तक पसरा है देह का साम्राज्य.इन दो पाटों के बीच ब्रिटेनिका(5०:5०)बिस्कुट की तरह बिचरती हैं-मध्यमार्गी देह.यथास्थिति बनाये रखने में अक्षम होने पर ये मध्यमार्गियां शौकिया या मजबूरन नंगई की तरफ अग्रसर होती हैं.कभी-कभी भावुकता का दौरा पङने पर पूंछती हैं-क्या देह ही सब कुछ है!
जैसा कि बताया गया कि युवावर्ग में बढते शारीरिक आकर्षण और सेक्स के सहारे चुनाव जीतने के प्रयासों से आजिज आकर विषय रखा गया.तो भाई इसमें अनहोनी क्या है?युवाओं में शारीरिक आकर्षण तो स्वाभाविक पृवत्ति है.सेक्स का सहारा लेकर चुनाव जीतने का तरीका नौसिखिया अमेरिका हमें क्या सिखायेगा?
जो वहां आज हो रहा है वह हम युगों-युगों से करते आये है.मेनकाओं अप्सराओं की पूरी ब्रिगेड इसी काम में तैनात रहती थी.जहां इन्द्र का सिंहासन हिला नहीं ,दौङ पङती अप्सरायें काबू पाने के लिये खतरे पर.
राजाओं,गृहस्थों की कौन कहे बङे-बङे ऋषि-मुनियों के लंगोट ढीले करते रही हैं ये सुन्दरियां.इनके सामने ये अमेरिकी क्या ठहरेंगे जिनका लंगोट से "हाऊ डु यू डू तक "नहीं हुआ.
सत्ता नियंत्रण का यह अहिंसक तरीका अगर दरोगा जी आतंकवादियों पर अपनाते तो सारे आतंकवादी अमेरिका में बेरोजगारी भत्ते की लाइन में लगे होते और समय पाने पर ब्लागिंग करते.
असम के तमाम आतंकवादी जिनका पुलिस की गोलियां कुछ नहीं बिगा।ङ पायी वो नजरों के तीर से घायल होकर आजीवान कारावास(कुछ दिन जेल,बाकी दिन गृहस्थी) की सजा भुगतने को स्वेच्छा से समर्पणकर चुके हैं.
देह प्रदर्शन की बढती पृवत्ति का कारण वैज्ञानिक है.दुनिया तमाम कारणों से गर्मी (ग्लोबल वार्मिंग)बढ रही है.गर्मी बढेगी तो कपङे उतरेंगे ही.कहां तक झेलेंगे गर्मी?यह प्रदूषण तो बढना ही है.जब शरीर के तत्वों (क्षिति,जल,पावक,गगन,समीरा)में प्रदूषण बढ रहा है तो शरीर बिना प्रदूषित हुये कैसे रहसकता है?
यह भ्रम है कि शारीरिक आकर्षण का हमला केवल युवाओं पर होता है .राजा ययाति अपने चौथेपन में भी कामपीडित रहे.कामाग्नि को पूरा करने के लिये ययाति ने अपने युवा पुत्र से यौवन उधार मांगा और मन की मुराद पूरी की.हर दरोगा उधार पर मजे करता है.
केशव को शिकायत रही कि उनके समय में खिजाब का चलन नहीं था और सुंदरियां उन्हें बाबा कहती थीं:-
केशव केसन अस करी जस अरिहूं न कराहिं,
चंद्रवदन मृगलोचनी बाबा कहि-कहि जांहि.
इससे पता चलता है मन ज्यादा बदमास है देह के मुकाबले.पर इन कहानियों से शायद लगे कि इसमें सुन्दरी का कोई पक्ष नहीं रखा गया .तो इस विसंगति को दूर करने के लिये एकदम आधुनिक उदाहरण पेश है:-
पिछले दिनों आस्ट्रेलियन विश्वसुन्दरी मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहीं थीं.बेचारी स्कर्ट अपना और सुंदरी के सौंदर्यभार को संभाल न सकी .सरक गयी.संदरी ने पहले शर्म का प्रदर्शन किया फिर समझदारी का.स्टेज से पर्दे के पीछे चली गयी.हफ्तों निम्न बातें चर्चा में रहीं:-
1.संदरी ने बुद्धिमानी से बिना परेसान हुये स्थिति का सामना किया.
2.स्कर्ट भारी थी जो कि सरक गयी.
3.सुंदरी ने जो अंडरवियर पहना था वह सस्ता ,चलताऊ किस्म का था.
4.सुंदरी के शरमाने का कारण स्कर्ट का गिर जाना उतना जितना साधारण , सस्ता अंडरवियर पहने हुये पकङे जाना था.
इस हफ्तों चली चर्चा में देह का जिक्र कहीं नहीं आया.देह ,वह भी विश्वसुंदरी की,नेपथ्य में चली गयी.चर्चित हुयी सुन्दरी की भारी स्कर्ट,साधारण अंडरवियर और उसका दिमाग.
तो इससे साबित होता है कि कुछ नही है देह सिवा माध्यम के.सामान बेचने का माध्यम .उपभोक्तावाद का हथियार.उसकी अहमियत तभी तक है जब तक वह बिक्री में सक्षम है .जहां वह चुकी -वहां फिकी.
आज ऐश्वर्या राय का जन्मदिन है.सबेरे से टीवी पर छायी हैं.दर्शकों का सारा ध्यान उसके गहनों,कपङों, मेकअप पर है.उसका नीर-क्षीर विवेचन कर रहें हैं.सम्पूर्णता में उसका सौंदर्य उपेक्षित हो गया.यह विखंडन कारी दर्शन आदमी को आइटम बना देता है.
युवा का देह के प्रति आर्कषण कतई बुरा नहीं है.बुरा है उसका मजनूपना ,लुच्चई.कमजोर होना.देखा गया है कि साथ जीने मरने वाले कई मजनू दबाव पङने पर राखी बंधवा लेते हैं.
प्रेम संबंध भी आजकल स्टेटस सिंबल हो गये हैं.जिस युवा के जितने ज्यादा प्रेमी प्रेमिका होते हैं वह उतना ही सफल स्मार्ट माना जाता है.प्रेमी प्रेमिका भी आइटम हो चुके हैं.यही उपभोक्तावाद है.
मेरी तो कामना है कि युवाओं में खूब आकर्षण बढे शरीर के प्रति.पर यह आकर्षण लुच्चई में न बदले.यह आकर्षण युवाओं में सपने देखने और उन्हें हकीकत में बदलने का जज्बा पैदा करे.साथी के प्रति आकर्षण उनमें इतनी हिम्मत पैदा कर सके कि उनके साथ जुङने ,शादी करने की बात करने पर ,स्थितियां विपरीत होने पर उनमें
श्रवण कुमार की आत्मा न हावी हो जाये और दहेज के लिये वो मां-बाप के बताये खूंटे से बंधने के लिये न तैयार हो जायें.
फिलहाल तो जिस देह का हल्ला है चारो तरफ वह कुछ नहीं है सिर्फ पैकिंग है.ज्यादा जरूरी है सामान .जब पैकिंग अपने अंदर सबसे ऊपर रखे सामान (दिमाग)पर हावी होती है तो समझिये कि सामान में कुछ गङबङ है.
मेरी पसंद
एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया.
बोल है कि वेद की ऋचायें
सांसों में सूरज उग आयें
आखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे
मन सारा नील गगन हो गया.
गंध गुंथी बाहों का घेरा
जैसे मधुमास का सवेरा
फूलों की भाषा में देह बोलने लगी
पूजा का एक जतन हो गया.
पानी पर खीचकर लकीरें
काट नहीं सकते जंजीरें
आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं
अग्निबिंदु और सघन हो गया.
एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया.
---कन्हैयालाल नंदन
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बहुत सही, खूब सारी लुकी छिपी बाते खुल खुल कर किये हो
ReplyDeleteगुरू तुम्हरा अन्दाज ही निराला है.
तनिक आस्ट्रेलियन सुन्दरी के स्कर्ट प्रकरण पर पूरा प्रकाश डाला जाये.
देखो जल्द ही समाचार विस्तार से देने की कोशिश करता हूं.
ReplyDeleteऔरों के कपड़े खुलने के ऊपर लिख कर हाथ और दिमाग दोनों खुल गये हैं तुम्हारी. सही लाइन पकड़ रहे हो. आस्ट्रेलियाई सुंदरी की दशा का वर्णन उत्सुकता जगा रहा है ऐसा हम देख रहे हैं.
ReplyDeleteतुम्हारी निगाह कहां है और तुम निशाना कहां लगा रहे हो इंदरजी?
ReplyDeleteअनूप भाई,
ReplyDeleteअगर आपका गूगल मेल पर एकाउन्ट है तो बताइये,
नही तो मेरे को jitu.chaudhary@gmail.com पर एक इमेल भेजे, मै निमन्त्रण भेज दूंगा.
साथ ही orkut का भी, काफी काम की चीज है.
गूगल मेल पर unicode चलता है,
बात तो गुरु सही किहे हो..
ReplyDelete"जब पैकिंग अपने अंदर सबसे ऊपर रखे सामान (दिमाग)पर हावी होती है
तो समझिये कि सामान में कुछ गङबङ है."
मौका मिलने पर हम ई लाइन पार ज़रूर करेंगे
पकड़े गये तो माफ़ी माँग लेंगे ।
लेकिन ई सेन्टेन्सवा गज़ब का है,
सूक्ति संग्रह में शामिल करने लायक !
आनन्दम आनन्दम !
गजबे लिखा है... सही मायने वही समझा होगा जो कायदे से पढ़ा होगा... :) :)
ReplyDeleteएक जगह जरा सी कनफ्यूजन थी. आवृता से लेकर दिगंबरा तक.. क्या मायने हैं इनके?