Tuesday, December 19, 2006

देश का पहला भारतीय तकनीकी संस्थान

http://web.archive.org/web/20110926073651/http://hindini.com/fursatiya/archives/219

काफ़ी दिनों के बाद आज मन किया फिर से अपने साइकिल यात्रा के किस्से सुनाने का। जिन साथियों को इससे पहले के किस्से पढ़ने का मन करे वे जिज्ञासु यायावर श्रेणी की पोस्टें देख सकते हैं।
गोलानी, अनूप, विवेक और उसका दोस्त
कलकत्ता से हम सबेरे ही सबेरे नाश्ता करके निकल लिये थे। हमारी अगली मंजिल थी खड़गपुर। खड़गपुर कलकत्ता से करीब १२० किमी दूर है। हम कलकत्ता से सबेरे निकलकर पैडलियाते हुये जब खड़गपुर पहुंचे तो रात हो चुकी थी। वहां आई.आई.टी.खड़गपुर में हमें रुकना था जहां कि हमारे कनपुरिया मोहल्ले के दोस्त विवेक बाजपेयी हमारा बेसब्री से इंतजार कर रहे थे।

विवेक हमारे मोहल्ले गांधी नगर में ही रहते थे। हम दोनों ने एक साथ बी.एन.एस.डी. इंटरकालेज से इंटर किया था। मैं इंटर के तुरंत बाद इलाहाबाद मोनेरेको चला गया था। विवेक ने अगले साल अपनी मेहनत के बल पर आई.आई.टी. खड़गपुर में एडमिशन लिया। बाद में लगनपूर्वक प्रयास करके आई.आई.एम. से एम.बी.ए. किया। आज पता नहीं कहां है विवेक लेकिन अब जब यह पोस्ट लिख रहा हूं तो पुराने दिनों की याद सामने आ रही है।
हम लोग एक ही मोहल्ले में रहते थे। विवेक से परिचय हुआ तब हम लोग ग्याहरवीं में पढ़ते थे। हमारा स्कूल १२ बजे से होता था। हम विवेक के घर के पास ही बने पार्क में अक्सर क्रिकेट खेला करते थे। हमारे साथियों में राकेश मिश्रा और राकेश द्विवेदी भी होते थे। राकेश मिश्रा बाद में दरोगा बन गये और राकेश द्विवेदी आजकल दैनिक जागरण में हैं। अपने घर के अलावा जिस एक घर में मैंने अपना समय सबसे ज्यादा बिताया वह राकेश द्विवेदी के घर था। क्या विडम्बना है कि अपने ही शहर में रहते हुये भी अपने सबसे बेहतरीन समय के साथियों से रूबरू मुलाकात किये हुये महीने, साल गुजर जाते हैं।

उन दिनों मोबाइल का चलन तो था नहीं कि मिनट-मिनट की खबर लेते रहें। फोन भी विलासिता ही थे। संप्रेषण का माध्यम चिट्ठी-पत्री ही था। हमने काफ़ी पहले ही विवेक को अपने आने की सूचना दे दी थी। हमें कोई जवाब नहीं मिला था लेकिन विश्वास था कि वह वहां मिलेगा।

हमारे पहुंचते-पहुंचते रात हो गयी थी। मेस शायद बंद थी या देर हो जाने के कारण हमने हास्टल के पास ही बने ढाबों में खाना खाया। वापस आकर विवेक के कमरे में ही लेटे-लेटे बातें करते-करते हम कब सो गये हमें पता ही नहीं चला। विवेक अपने किसी दोस्त के कमरे में सोने चला गया।
गोलानी, विनय, विवेक और उसका दोस्त
सबेरे नास्ता करके हम आई.आई.टी. कैम्पस देखने निकले। तमाम जगह घूमते रहे। संस्थान की मुख्य इमारत के पास हमने फोटो भी खिंचवाई। आज जब मैं अपनी उन फोटुऒं को देख रहा था तो लग रहा था कि समय के साथ हमारे शरीर के ढांचे में कितना अतिक्रमण जमा हो गया है। मैं दुबला-पतला था जबकि आज मेरा वजन अस्सी-नब्बे के बीच झूलता रहता है। लेकिन लंबाई कुछ ढंके रहती है सचाई। विनय का तो चतुर्दिक विकास हो गया है। दिलीप गोलानी के बहुत दिन से दर्शन नहीं हुये। न जाने किस हाल में हो हमारा यायावर साथी!
पिछले दिनों खड़गपुर आई.आई.टी. के एक छात्र ने एक छात्रा की अश्लील फोटो बाजी.काम साइट के माध्यम से बेचने का प्रयास किया था। यह अपनी तरह का पहला मामला था। इसी क्रम में जानकारी देते चलें कि खड़गपुर का तकनीकी संस्थान अपने देश का पहला प्रौद्योगिकी संस्थान है।

सन १९४६ में बने उच्च तकनीकी शिक्षा आयोग ने यह सिफारिश की कि अमेरिका के मेसाट्यूट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी की तर्ज पर भारत में भी तकनीकी संस्थान स्थापित किये जायें। उन दिनों भारत के अधिकांश उद्योग कलकत्ता में थे इसलिये पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से अनुरोध किया कि पहले तकनीकी संस्थान की स्थापना कलकत्ता में ही की जाये। परिणाम स्वरूप मई,१९५० में कलकत्ता में पूर्वी उच्च तकनीकी संस्थान की स्थापना हुई। बाद में जून, १९५० में इस तकनीकी संस्थान को कलकत्ता से १२० किमी दूर खड़गपुर के हिजली नामक एतिहासिक स्थान में स्थानान्तरित किया गया।
कलकत्ता में तकनीकी संस्थान ५, एस्प्लेनेड में बनाया गया। यह मेरे लिये सुखद सूचना सा है क्योंकि हमारी आयुध निर्माणियों का मुख्यालय बहुत दिनों तक ६, एस्प्लेनेड, कलकत्ता में रहा। आज भी हमारे विभाग के कुछ कार्यालय ६,एस्प्लेनेड, कलकत्ता में हैं।

हिजली एक ऐतिहासिक स्थल है। पहले यह हिजली बंदी ग्रह के रूप में जाना था(अब शहीद भवन)यहां अंग्रेजों के जमाने में राजनैतिक बंदी लाये जाते थे।यहां उन पर मुकदमा चलता था और उनको बंदी बनाकर रखा जाता था। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यहां पर अमेरिकी की २०वीं वायुसेना कमान का मुख्यालय भी रहा।
सन १९५६ में खड़गपुर तकनीकी संस्थान के संस्थान के दीक्षांत समारोह में अपने उद्गार व्यक्त करते हुये भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा:-
ऐतिहासिक हिजली बंदी ग्रह जो भारत के बेहतरीन स्मारकों में से एक है अब भारत के नये भविष्य के रूप में बदल रहा है। यह चित्र मुझे उन परिवर्तनों का आभास कराता है जो कि भारत में हो रहे हैं।
हालांकि संस्थान की मुख्य इमारत की फोटुयें धुंधली हो गयीं हैं लेकिन भारतीय तकनीकी संस्थान,खड़गपुर की उन इमारत में नाम के नीचे लिखी हुयी मेरी याद में अभी भी एकदम ताजा है। वहां लिखा है:-


यह संस्थान राष्ट्र की सेवा के लिये समर्पित है।
देश और राष्ट्र के लिये समर्पण करने वाले अब अल्पमत में हैं और समर्पण भावना अब पुराने फैशन की चीजों मे शामिल हो गयी है। लेकिन इमारते हैं कि अपना रूप नहीं बदलती।

बहरहाल, हम दोपहर को खाना खाकर आगे के लिये चल दिये। रास्ते में कुछ समय लग गया और शाम होते-होते हम खड़गपुर से मात्र ३५ किमीं दूर बेल्दा कस्बे तक ही पहुंच पाये। बेल्दा पश्चिम बंगाल के मिदिनापुर जिले का एक कस्बा है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या ५ के पास स्थित है। यह राजमार्ग भारत सरकार की महत्वाकांक्षी स्वर्णचतुर्भुज योजना से जुड़ा है। बेल्दा से कुछ ही दूर पर उड़ीसा राज्य की सीमा शुरू होने के कारण इसे उड़ीसा का प्रवेश द्वार भी कहते हैं।

हम शाम को बेल्दा पहुंचे थे। खाना खाकर रात में वहीं एक मंदिर में रुक गये। उस दिन तारीख थी -१४ जुलाई, १९८३ ।
हमारी अगली मंजिल थी बालासोर!

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

14 responses to “देश का पहला भारतीय तकनीकी संस्थान”

  1. समीर लाल
    वाह, यायवरी का किस्सा फिर शुरु हुआ…अच्छा लगा.जारी रखें. आजकल तो खोये साथी अंतरजाल के माध्यम से जल्दी मिल जाते हैं, प्रयास करें सफलता मिलेगी.
  2. bhuvnesh
    सायकिल-श्रृंखला के पुन: शुरू करने के लिए धन्यवाद
    अच्छा लगा पढ़कर
  3. मनीष
    आज भी खड़गपुर के मुख्य भवन की इमारत वैसी ही दिखती है जैसे की श्वेत श्याम चित्र में दिख रही है। अच्छा लगा आपका ये विवरण पढ़कर ।
  4. Pratik Pandey
    अच्छा लेख है। इस शृंखला के पुराने लेख पढ़ने के लिए ऊपर दी हुई कड़ी पर क्लिक करने से जिज्ञासु यायावर आर्काइव नहीं खुल पा रही है। कृपया देखें।
  5. हिंदी ब्लॉगर
    बहुत अच्छी जानकारी मिली ये वृतांत पढ़ कर. बीच-बीच में इस सिरीज़ के लिए भी समय देते रहें.
  6. eswami
    आर्काईव्स ना खुलने की बिमारी नई थीम की है. आज ठीक कर दूंगा.
  7. साक्षात्कार « मुझे भी कुछ कहना है…..
    [...] कुछ कहना चाहते हो?— — हाँ, जो सफल हैं उनके लिये–  ”है ईश्वर मेहरबान उन पर, साथ मे उनके जग भी है,   मै थोडा सा पिछडा तो क्या, मन मे निश्चय तो अब भी है!   आज तो वे जीते सुख्न से उनके कल भी सुनहरे हैं,   होगा वक्त उन्ही का सब, कुछ तो अच्छे पल मेरे हैं!   काले सपनो को लिये खडी ये रात कभी तो जायेगी,   जिस दिन मुझको भी काम मिले वो सुबह कभी तो आयेगी!!!” —————————-      #**  हम जल्द से जल्द विकसित कहलाने की होड मे लगे हैं.हर तरफ बाजार, नफा और नुकसान की बातें हो रही है.हमारे देश मे जो व्यवसाय सबसे ज्यादा फल-फूल रहा है, वो है शिक्षा का. हर तरफ ‘इन्जीनीयरिंग’ और ‘एमबीए’की ‘डीग्रियों’की दूकाने खुल रही हैं और ज्यादातर बडी दूकानो के मालिक या तो राजनीतिज्ञ, या फिर राजनीति से पोषित लोग हैं. देश के जो चन्द प्रतिष्ठितसंस्थान है,उनमे उपलब्ध सीटों की संख्या पढने वालों की संख्या की तुलना मे बेहद कम है. आधे-आधे अँकों को लेकर मारा-मारी है.”केट” हर किसी के पकड मे नही आती और “गेट” भी हर कोई नही खोल पाता! केट और गेट के इस पार और उस पार वालों मे बहुत अन्तर है, चाहे कोई उस पार जाने मे जरा-सा ही मात खा गया हो. कहा जा रहा है कि रोजगार के अवसर और लोगों के लिये सुविधा बढ रही है. हाँ काम मिल रहा है बडे-बडे ‘शाॅपिंग माॅल्स’, ‘मल्टीप्लेक्स’ मे टाई-सूट-बूट पहन कर ‘वेलकम’,’मे आय हेल्प यू?’ और ‘थैन्क्यू’ कहने का!! या फिर किसी कम्पनी का प्रोडक्ट बेचने के लिये ‘सेल्स रीप्रेसेन्टिव’ बनने का. ये काम तो वो बिना डीग्री के भी कर लेगा,फिर डीग्रीयों की दूकाने लगाकर क्यों लूटा जा रहा है? कहते हैं कि कोई भी काम छोटा या बडा नही होता, तो शायद फिर इसी तरह बडे व्यवसायी बडे से बडे होते जायेंगे छोटे लोगों की मेहनत के बल पर!  **#   [...]
  8. रचना बजाज
    आपका ये लेख बहुत पसंद आया खासकर ये लाइनें:-
    देश और राष्ट्र के लिये समर्पण करने वाले अब अल्पमत में हैं और समर्पण भावना अब पुराने फैशन की चीजों मे शामिल हो गयी है। लेकिन इमारते हैं कि अपना रूप नहीं बदलती।
    और हां ये किसने कहा:-
    सन १९५६ में खड़गपुर तकनीकी संस्थान के संस्थान के दीक्षांत समारोह में अपने उद्गार व्यक्त करते हुये कहा…
  9. ‍अभिनव
    वाह वाह
  10. eswami
    ये चित्र तो जैसे अपने साथ अतीत में ही ले जाते हैं!
  11. फुरसतिया » बेल्दा से बालासोर
    [...] बेल्दा में हम एक मंदिर में रुके थे। सबेरे वहां से नाश्ता करके हम आगे के लिये चल दिये। थोड़ी ही देर में हम उड़ीसा राज्य की सीमा पर मौजूद थे। “उड़ीसा आपका स्वागत करता है” के पत्थर के दोनों तरफ खड़े दिलीप गोलानी और विनय अवस्थी के फोटो हमने खींचे थे। २३ साल पहले के खींचे फोटो में चेहरे पहचाने जा रहे हैं यह कम बड़ी बात नहीं है। ये फोटो क्लिक-III कैमरे से खींचे गये थे। लगभग तीन महीने तक ये रोल बिना डेवलप हुये हमारे पास रखे रहे। [...]
  12. SR Shankhala
    अच्छा लगा आपका ये विवरण पढ़कर
  13. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] पड़े 4..हंसी तो भयंकर छूत की बीमारी है 5.देश का पहला भारतीय तकनीकी संस्थान 6.उभरते हुये चिट्ठाकार 7.बेल्दा से [...]

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