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फुरसतिया बोले हमहू साइट बनैबे…
By फ़ुरसतिया on April 1, 2007
समीरलाल आज सबेरे से ही परेशान थे।
बोले- भाईजी, हम तो कहीं मुंह दिखाने लायक न रहे। हल्का-फुल्का लिखने के कारण वैसे भी कोई इज्जत-शिज्जत नहीं करता था। अब जो गाढ़े समय के लिये बचाई थी वह भी लुट गयी।
समीरलाल कनाडा में सुबक रहे थे। आवाज बंद होने के बावजूद हमारे पीसी पर उनकी सिसकियों के नगाड़े बज रहे थे।
हमने पूछा- भाई किसको मुंह दिखाने लायक नहीं रहे? क्या हो गया? क्यों मुंह कुम्हला रहा है? क्या हाल बना रखा है? कुछ लेते क्यों नहीं?
समीरलाल बोले- देखो भाई हमें मोहल्ले वालों नें लटका दिया है अपने पोर्टल पर। सबेरे से लटके हैं। इत्ती देर तो सद्दाम को भी नहीं लटकाया किसी साइट वाले ने।
हमने कहा- अरे आपने लिखने का वायदा किया होगा। साइट बनवाने में सहयोग करेंगे। उसी का कुछ है। प्रचार हो रहा है। मजे लीजिये।
अरे आपको मजाक सूझ रहा है। लिखने का मतलब यह थोड़ी कि हम बीच की चीज हो गये। देखो कैसे हमें रवि रतलामी और प्रतीक के बीच ऐसे ठूंस दिया गया है जैसे हम कोई जनरल डिब्बे में बैठे हों, बिना टिकट। यहां ससुरा सांस लेना मुश्किल हो रहा है और आप कहते हो प्रचार हो रहा है।अरे हम एन.आर.आई. हैं। कौनौ झुमरी तलैया के वोटर नहीं। कुछ तो स्टेटस का ख्याल रखना चाहिये कि नहीं! -समीरलाल जी फड़ाफड़ा रहे थे।
स्टेटस का ख्याल रखा तो गया है। आपको बीच में सभापति की तरह सटाया गया है। और कित्ता स्टेटस चाहिये आपको?
बीच में रखा गया उ तो ठीक है। लेकिन कुछ जरा जगह और होती तो अच्छा लगता। अभी हिलते-डुलते तक नहीं बन रहा है। एक बार रविरतलामी की तरफ़ खिसकना चाहा तो धमकियाये कि देशी ट्यून में अगला कार्टून आपका डाल देंगे। प्रतीक की तरफ़ वाली हवा से सांस लेने की कोशिश की तो कहने लगा अगले टाइम पास वाले सेक्सी सीन में मर्लिन मुनरो की जगह आपका फोटो लगा देंगे। पहले तो हम सोचकर शरमाये कि हाय दैया ऐसा होगा तो कैसे लगेंगे, लोग क्या कहेंगे। लेकिन फिर यह सोचकर कि ये मेरे सौन्दर्य को बिल्कुल तवज्जो नहीं देगा हम कसमसाके रह गये। यह सोचकर संतोष किया कि लड़का आगरे का है। आगरे वाले ऐसे ही बाते करते हैं। :)-समीरलाल के चेहरे पर ‘संतोष-धन’ का पोस्टर चस्पा था।
अच्छा समीरभाई, हम लोग काहे नहीं अपना एक-एक ठो पोर्टल बना लेते हैं। एक ठो आप बनाऒ एक ठो हम बनायें और साले को दनादन-दनादन लेख पोस्ट करें।
पूरे दुनिया में हल्ला मच जाये। समीरलाल ने अपनी साइट शुरू की। फुरसतिया ने अपना अलग पोर्टल शुरू किया-स्वामीजी सकते में। ब्लाग बाजार में तहलका। बीबीसी से अनुबंध। याहू ने हाथ मिलाया। एनडीटीवी ने फोटॊ दिखाया। -हमारे ऊपर भी इतवारी सुरूर छा रहा था।
पूरे दुनिया में हल्ला मच जाये। समीरलाल ने अपनी साइट शुरू की। फुरसतिया ने अपना अलग पोर्टल शुरू किया-स्वामीजी सकते में। ब्लाग बाजार में तहलका। बीबीसी से अनुबंध। याहू ने हाथ मिलाया। एनडीटीवी ने फोटॊ दिखाया। -हमारे ऊपर भी इतवारी सुरूर छा रहा था।
भाईजी आपके ऊपर किसी निर्दलीय विधायक की आत्मा आ गयी है जो चुनाव का पर्चा भरते ही मुख्यमंत्री बनने के सपने की रील देखने लगता है। ये ठीक नहीं है। कुछ झाड़फूंक करवाऒ। अरे हम अपना लिंक लगाने, फोटो सटाने और पोस्टिंग करने के अलावा तकनीकी सिफर हैं। साइट बनाना तकनीकी काम है। ये तो उन लोगों के काम हैं जो लिखने में माशाअल्लाह हैं। कैसे होगा साइट बनाने का काम? जरा समझाइये तो। -समीरलाल ने चेहरे पर सवालिया निशान लगाया।
हमने कहा- अरे भाई सोचने में क्या जाता है। एक ठो घॊषणा कर देते हैं। सनसनी मचने दो फिर हम कह देंगे तकनीकी कारणों से और देश हित में योजना स्थगित की जाती है। तकनीक के आगे हम उसी तरह बेबस हैं जैसे बांगला देश में सामने भारत। देखो बांगलादेशी हमें दोहरी चोट दे रहे हैं। इधर बंगाल, आसाम में घुस के बैठ गये, घुसते आ रहे है, और हमें उधर वेस्ट इंडीज से बाहर कर दिया। खुदा इन बांगला देशियों को हज्जारों तस्लीमा नसरीन दे। और देश हित के लिये तो हम कुछ भी करने को तैयार हैं। आप तो जानते ही हैं।
अच्छा मान लीजिये हमारा-आपका पोर्टल खुदा न खास्ता चल निकला। ऐसी धूम मचा दे जैसी धूम-२ ने भी न मचाई हो। तब क्या होगा? क्या करेंगे हम लोग?
क्या करेंगे आप?- समीरलाल पूरे सवालिया मूड में थे।
क्या करेंगे आप?- समीरलाल पूरे सवालिया मूड में थे।
हम क्या करेंगे भाई! तुम्ही ने दर्द दिया है तुम्ही दवा देना की तर्ज पर जो करना होगा खुदा करेगा। जब खुदा पोर्टल/ साइट खुलवायेगा तो आगे का इंतजाम भी वही करेगा। लेकिन तब शायद इस तरह की खबरें सारी दुनिया में छपें-
-अभी-अभी फुरसतिया साइट से खबर मिली है कि समीरलाल ने अपना इंडीब्लागीस इनाम लौटा दिया है। इनाम जीतने के बाद पाठकों की अपेक्षाऒं के अनुसार लिख न पाने के अपराध बोध से बचने के लिये उन्होंने ऐसा कदम उठाया। उधर जिस लेखक से समीरलाल अपनी पोस्ट लिखवाते थे उसने मोहल्ले के तमाम लोगों से संबंध करके आधे दाम पर लिखने की पेशकश की है। लेकिन मोहल्ले वाले कह रहे हैं जब हमें मुफ़्त के लेखक मिल रहे हैं तो पैसा क्यों लुटायें।
- समीरलाल पोर्टल की खबर के अनुसार नारद के संचालन की आड़ में जीतेंन्द्र चौधरी मोहल्ले वालों से सांठगांठ करते पाये गये। ब्लाग-पुलिस ने जो वीडियो बरामद किये उसमें जीतेंद्र मोहल्ले के लोगों के ब्लागों को प्रमोट करने के लिये मोलभाव करते पाये गये। एक जगह उनको यह कहते हुये सुना गया कि -अगर अपने ब्लाग को नारद पर रजिस्टर कराना है तो हमारे सारी पुरानी पोस्टों पर कम से कम पांच-पांच टिप्पणियां करनी पड़ेंगी। इस खुलासे वे लोग खुश हैं जिन्होंने केवल प्रति पोस्ट केवल एक टिप्पणी के बदले एक माह पहले अपने ब्लाग रजिस्टर कराये। वीडियो को हैदराबाद के सागर फोरेन्सिक विभाग में जांच के लिये भेज दिया गया है।
-पुणे के संवाददाता देबाशीष के अनुसार, मोहल्ले के संचालक अविनाश को लोगों की टिप्पणियों को पोस्ट के रूप में पेश करने का आरोप लगाया गया है। देबाशीष का कहना है कि यह एक तरह की टिप्पणियों की कबूतरबाजी है। टिप्पणियों को ब्लाग पोस्ट के रूप में पेश करके अविनाश मोहल्ले की पोस्टों की जनसंख्या बढ़ा रहे हैं। अविनाश इस मसले पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की शरण में चले गये हैं और कहते पाये गये। हमारे पास जो होगा हम उसे चढ़ायेंगे( पोस्ट नहीं करेंगे)। आप हमें रोकेंगे तो हम जीतू जी से कह देंगे हमारा उनसे बहुत याराना है।
-हैदराबाद के सागरचंद नाहर ने तरकश के संचालक संजय बेंगाणी पर, मार्च के महीने की व्यस्तता की आड़ लेकर तारीफी टिप्पणियों में जानबूझकर कमीं करने का आरोप लगाया है। तमाम दूसरे लोगों ने भी इस आरोप पुष्टि की है। अपने मेसेंजर पर अतिव्यस्त का वोट लगाये हुये संजय बेंगाणी इस बात पर प्रतिक्रिया के लिये उपलब्ध नहीं हुये लेकिन उनके अपनी बंदर सीरीज के लिये चर्चा में रहे उनके छोटे भाई पंकज भाई मे इस आरोप को बेफालतू का बताते हुये कहा है – हमारे भैया कभी गलत काम नहीं करते। वे जो करते हैं सही करते हैं।
-आगरा के प्रख्यात मनोरोग अस्पताल से हमारे संवाददाता प्रतीक ने बताया कि वहां इलाज के लिये आने वाले लोगों की संख्या हिंदी ब्लागर्स की संख्या के अनुपात में बढ़ती जा रही है। वार्ड के रोगियों से बातचीत करने पर पता चला कि इनमें से ज्यादातर वे लोग हैं जिन्होंने हिंदी ब्लाग जगत की कवितायें समझने के प्रयास किये, प्रमोद सिंह के ब्लाग पर रवीश कुमार की स्थिति को बूझने की कोशिश की। डाक्टरों ने इसका एक ही इलाज बताया है कि वे लोग फुरसतिया की पोस्ट पढ़ें। कुछ पुराने लाइलाज माने जाने वाले रोगियों ने इसका प्रतिवाद करते हुये हल्ला मचाया कि उनकी यह हालत फुरसतिया की पोस्ट पढ़कर ही हुयी है। प्रतीक ने उनको अपनी टाइम पास वाली पोस्टें दिखायीं इससे उनकी हालत में वैसा ही सुधार हुआ जैसा ग्रेग चैपल के आने से भारतीय क्रिकेट टीम की हालत में हुआ।
-मोहल्ले के संवाददाता के अनुसार हिंदी ब्लाग जगत के संस्थापक रामदुलारे के बारे में बंबई के एक समाचार पत्र विस्तार से रिपोर्ट छापी है। रिपोर्ट के अनुसार रामदुलारे ने तीन महीने पहले अपना ब्लाग शुरू करते हुये सालों पहले से जमें पड़े हिंदी ब्लागर्स को पीछे छोड़ते / उखाड़ते हुये हिंदी ब्लाग संस्थापक का दर्जा हासिल किया। अखबार में छपी फोटो में रामदुलारे के चेहरे से पसीने की बूंदे टपक रही थीं। कुछ अखबार तो इतने पसीने और भावनाऒं से इतने गीले हो गये कि घर पहुंचते-पहुंचते यह ऐतिहासिक समाचार लुगदी बन गया।
-पहली महिला चिट्ठाचर्चाकार नीलिमा ने नोटपैड पर छपे किचन के बहिष्कार के प्रयास को समर्थन देने की पेशकश की है। उधर तारीफ़ी टिप्पणियों की शौकीन प्रत्यक्षा ने यह प्रस्ताव पेश करने का मन बनाया है कि ब्लाग जगत में होने वाली कुल टिप्पणियों की तैतींस प्रतिशत टिप्पाणियां महिलाऒं के लिये आरक्षित होनी चाहिये। मानसी ने यह सुझाव दिया कि अनाम ब्लागों पर जितनी तारीफ़ी टिप्पणियां हैं उन सबको उठाकर महिलाऒ के ब्लाग पर पोस्ट कर दिया जाये। बेजीजी ने भी इस सुझाव का समर्थन किया है।
अपनी साइट के शेखचिल्ली सपनों का समीरलाल जी ऊपर असर देखने के लिये हमने गरदन घुमाई तो उनके चेहरे पर जो कुछ उड़ रहा था। बाद में पता लगा कि उड़ने वाली चीज को हवाइयां कहा जाता है। हमने यह समझा कि समीरजी आनंद विभोर हैं। उसी दिव्य आनंद की छटा उनके चेहरे पर विराज रही है। हमने पूछा समीरजी कैसा लगा! समीर बोले बहुत अच्छा, खासकर सपने का अंत बहुत अच्छा लगा।
समीरजी वैसे भी किसी के लिखे की बुराई नहीं करते। हमारी भी नहीं की। लेकिन सहमते हुये बोले- भाईजी, जब पोर्टल ही बना रहे हो तो हर सपने के बीच में कुछ कामर्शियल ब्रेक टाइप का भी करो न! लोग सांस तो ले लेंगे आराम से।
हमने इस रचनात्मक सुझाव को स्वीकारते हुये कहा- ऒके, डन।
इसके बाद हमने पूछा – तो समीर भाई कब से शुरू करे साइट/पोर्टल।
समीर भाई बोले- भाईजी, आपका सपना तो ठीक है। लेकिन अपना दिल कुछ कमजोर है। हमने झेल तो लिया। लेकिन ऐसे भयावह सपने को साकार करने से अच्छा रवि रतलामी और प्रतीक के बीच में ठुंसे रहना है। हम यहीं ठीक हैं। आप शुरू करो। हम ताली बजायेंगे। टिप्पणी करते रहेंगे- जैसे अब तक करते रहे।
हमने कहा- क्या समीर भाई, आप भी कैसी बाते करते हैं। अभी तो कह रहे थे कि कहीं मुंह दिखाने काबिल नहीं रहे। अब वहीं जा रहे हो। कौन सा मुंह लेकर जाओगे वहां अब जहां से निकलने का मन रहा थे।
जायेंगे कहां मुंह ढक के सो जायेंगे। किसी को दिखाने की क्या जरूरत। वैसे भी रात काफ़ी हो गयी। नींद आ रही है। -समीरजी उबासी ले रहे थे।
हमने कहा- जाऒ भाई, आज आपक दिन है जो मन आये सो करो। एक अप्रैल को इससे ज्यादा और किसी से क्या कह सकते हैं?
Posted in बस यूं ही | 29 Responses
आज के दिन के अनुसार मजेदार।
हास्यरस में डुबते-उभरते रहे.
हास्य से आँखो से धाराएं बहने लगी.
अतिउत्तम.
वह भी मझाक के लिए!!
वैसे पढ कर आपकी क्रिएटिविटी की दाद {खाज वाली नही} ज़रूर दूगीं।
बहुत ही मजेदार है।
कर दें तो पेट में बल पड़ने का डर और सीने में रखा दिल धौंकनी की तरह ऐसी चले
कि ब्लड प्रेशर का बहम होने लगे।
और हंसी को रोकने की कोशिश करें तो गाल गुब्बारे और आंखों से बरसात!
अब तो कुछ भी हो, रुका नहीं जाता, एएए येल्लो हंसी का फव्वारा नहीं रुक रहाााााा
भई, मज़ा आगया।