Monday, July 07, 2008

बारिश – कुछ गद्यात्मक बिम्ब

http://web.archive.org/web/20140419215238/http://hindini.com/fursatiya/archives/466

14 responses to “बारिश – कुछ गद्यात्मक बिम्ब”

  1. अफ़लातून
    छत टपकाने की गारण्टी वाले बरगद और पीपल कत्तई काटे भी नहीं जा सकते , चूँकि देवताओं पर खतरा है । विश्वविद्यालय के निर्माण विभाग में विशेष रूप से इस काम के लिए स्थायी पद पर एक मुसलिम कर्मी नियुक्त है।
  2. Shiv Kumar Mishra
    सारे गद्यात्मक बिम्बों से पूरी तरह से सहमत.
    चिरकुट प्लानिंग का एक उदाहरण पिछले बरस हमारे शहर में देखा गया. एक फ्लाईओवर बनाकर उदघाटन कर दिया गया. फ्लाईओवर के आस-पास सड़क बड़ी धाँसू बनाई गई. करीब छ महीने बाद प्लानिंग करने वालों को याद आया कि वे लोग मैनहोल बनाना भूल गए. बाद में उस धाँसू सड़क को पूरी तरह से खोद दिया गया. नई सड़क बनने में फिर से छ महीने लग गए.
  3. SHUAIB
    आपका लेख पढ मुसकुराहट आगाई ऐसे :)
  4. प्रत्यक्षा
    सही है ..बारिश से उपजी चिंतन मनन की मानसिक स्थिति .सही है
  5. MEET
    बहुत बढ़िया बिम्ब. उत्तम विवरण. मज़ा आ गया पढ़ कर. लगा जैसे हमारे शहर की ही बात हो रही है.
  6. संजय बेंगाणी
    वर्षा में गरमागरम पकौड़े खाने सा आनन्द आया.
  7. समीर लाल
    लगता है बारिश में भीगते हुए लिखा है. हम भी भीग लिए जी इन बिम्बों में.
  8. Gyan Dutt Pandey
    खराब योजना भ्रष्टाचार से ज्यादा खतरनाक है।
    यह तो बहुत पते की बात है।
  9. डा०अमर  कुमार
    गड्ढा खोदो…फिर पाटो । फिर खोदो…फिर पाटो …इस खुदाई में पाटने की ग़ुंज़ाइश और पाटने में फिर से खुदाई की ग़ुंज़ाइश बनाये रखने की समझदारी को आप चिरकुटई , भ्रष्टाचार पता नहीं किस झोंक में कह गये, अब तो….
    आपके ‘ गर्व से कहो-हम भारतीय हैं ‘ पर मुझे संदेह होने लगा है, अनूप भाई !
  10. दिनेशराय द्विवेदी
    बरसात की प्रतीक्षा है।
  11. लावण्या
    आम जनता की बारीश मेँ और भी दुर्दशा हुई जात है ..
    बहुत सही चित्रण किये हो आप !
    - लावण्या
  12. anitakumar
    अजी शरीर का 80% हिस्सा तो पानी ही है तो पानी से क्या घबराना, चाहे छ्त से आये या नल से , पानी के मजे लो, क्या कहा? हाल बुरा है तो उसके लिए पानी को क्युं दोष भाई , सड़कों को दोष दें। छ्त चांद सी घुटी रखे ये बात पते की है…।:) मजा आया पढ़ कर
  13. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    यहाँ इलाहाबाद में पिछले पन्द्रह दिन से रोज़-ब-रोज़ मूसलाधार बारिश हो रही है। आपके सारे बिम्ब यहाँ सजीव हो उठे हैं। ख़ासकर, मेरे सरकारी आवास की छत तो जैसे मेनहोल की मौसी लगती है। सारा पानी सहेज कर नीचे भेज देती है, मेरे कंप्यूटर को भी स्नान करने की आदत पड़ती जा रही है। डरता हूँ कहीं इसे न्यूमोनिआ न पकड़ ले। दतर की फाल्स सीलिंग आधा ‘फाल’ कर चुकी है। वायरिंग को भींगने से ‘वाइरल’ हो गया फिर सन्निपात हो चुका है। आजकल प्राकृतिक हवा और रोशनी का आनन्द ले रहा हूँ। वैधानिक चेतावनी: यह बिम्ब नहीं सत्यकथा है।
  14. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
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