http://web.archive.org/web/20140419214649/http://hindini.com/fursatiya/archives/553
क्या है कि दो दिन पोस्ट न लिखो तो अखरने लगता है।
लगता है भारतीय संविधान की अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के साथ विश्वास घात कर रहे हैं। आत्मा कचोचती है। इसी दिन के लिये ब्लागिंग शुरू की थी।
दिमाग में पड़े तमाम चिरकुट आईडिये भुनभुनाते हैं- भैया, हमसे बड़े-बड़े चिरकुट छप गये ब्लाग जगत में। टिप्पणी भी पा चुके अपने हिस्से की। हमने कौन गुनाह किया है जो हमें सामने आने का मौका नहीं दे रहे हो? तुमसे न बने तो जायें किसी दूसरे ब्लागर का दिमाग देंखें। दूसरी जगह होते तो अब तक छप चुके होते।
हम समझाने का प्रयास करते हैं- धीरज धरो। गबड़ी न काटो। सबको मौका मिलेगा। अच्छी तरह से इज्जत के साथ पेश किया जायेगा तुमको।
आइडिये कुलबुलाने लगते हैं- कित्ता तो धीरज धरे हैं। लेकिन कलक तो होती ही है जब देर होती है। हमें तो लगता है कि गलती किये जो
फ़ुरसतिया समझ के आपके दिमाग में शरण ले लिये। यहां आकर लगा कि आपका नाम छलावा है। न हो किसी कविता वाले बक्से में करके ही पेश कर दो।
कविता की बात चली तो पता लगा कि ब्लाग जगत में लोग बड़ी ऊंची बात कहने लगें हैं। एक दम सिरीमान जी की तरह। कवि अब दिल, जिगर, आह, ऊह, आंसू, लब तक ही सीमित नहीं रहा। वह ग्लोबल हो लिया है। सवाल पूछता है। ऐसा होगा तो क्या होगा?वैसा होगा तो के होगा? कविता संवाददाता सम्मेलन हो गयी है।
कवि लोग बड़े जिम्मेदार सवाल उठाने लगे हैं। हल्के-फ़ुल्के पन के विरोध में भारी-भारी वजन की कवितायें पेश की जा रहीं हैं। कुछ कवि तो एकदम मौलिक चिंतन तक करने पर उतारू हैं। बुजुर्ग कवि इस बात पर उखड़ जाते हैं कि उनको बुजुर्ग क्यों कहा गया? बच्चा कवि इस बात पर फ़िरंट है कि उसको बालकवि क्यों समझा जा रहा है अब तक?
इस तरह की बातों पर दिमाग क्या खपायें? आइये आपको एक विचारोत्तेजक सिरीमानजी टाइप कविता सुनायें। कविता की प्रेरणा के स्रोत हैं माननीय कविवर समीरलाल जी जो कि अभी हाल ही में समलैंगिकों के साथ देखे गये। दरअसल इसे कविता समझना कविता के साथ अन्याय करना होगा। यह शुद्ध हाहा,हीही है। गंभीर , स्टील टाइप के लोग इसे पढ़ें तो अपने जोखिम पर पढ़ें। हमारी कोई गारंटी न होगी।
किसी दिन पकड़ा गया तो क्या होगा?
हर गोरी के मुखड़े पे तम्बू तान देता है
कोई मजनू थपड़िया देगा तो क्या होगा?
लहरों को उठाता है, वापस पटकता है
सागर कहीं तऊआ गया तो क्या होगा?
उधार की रोशनी पर चमकता, ऐठता है,
सूरज समर्थन खैंच लेगा तो क्या होगा?
अभी तक गोरे मुखड़ों पे विराजते रहे बबुआ
ओबामा सावले चेहरे पे बईठा दिहिस तो क्या होगा?
तो क्या होगा?
By फ़ुरसतिया on November 7, 2008
लगता है भारतीय संविधान की अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के साथ विश्वास घात कर रहे हैं। आत्मा कचोचती है। इसी दिन के लिये ब्लागिंग शुरू की थी।
दिमाग में पड़े तमाम चिरकुट आईडिये भुनभुनाते हैं- भैया, हमसे बड़े-बड़े चिरकुट छप गये ब्लाग जगत में। टिप्पणी भी पा चुके अपने हिस्से की। हमने कौन गुनाह किया है जो हमें सामने आने का मौका नहीं दे रहे हो? तुमसे न बने तो जायें किसी दूसरे ब्लागर का दिमाग देंखें। दूसरी जगह होते तो अब तक छप चुके होते।
हम समझाने का प्रयास करते हैं- धीरज धरो। गबड़ी न काटो। सबको मौका मिलेगा। अच्छी तरह से इज्जत के साथ पेश किया जायेगा तुमको।
आइडिये कुलबुलाने लगते हैं- कित्ता तो धीरज धरे हैं। लेकिन कलक तो होती ही है जब देर होती है। हमें तो लगता है कि गलती किये जो
फ़ुरसतिया समझ के आपके दिमाग में शरण ले लिये। यहां आकर लगा कि आपका नाम छलावा है। न हो किसी कविता वाले बक्से में करके ही पेश कर दो।
कविता की बात चली तो पता लगा कि ब्लाग जगत में लोग बड़ी ऊंची बात कहने लगें हैं। एक दम सिरीमान जी की तरह। कवि अब दिल, जिगर, आह, ऊह, आंसू, लब तक ही सीमित नहीं रहा। वह ग्लोबल हो लिया है। सवाल पूछता है। ऐसा होगा तो क्या होगा?वैसा होगा तो के होगा? कविता संवाददाता सम्मेलन हो गयी है।
कवि लोग बड़े जिम्मेदार सवाल उठाने लगे हैं। हल्के-फ़ुल्के पन के विरोध में भारी-भारी वजन की कवितायें पेश की जा रहीं हैं। कुछ कवि तो एकदम मौलिक चिंतन तक करने पर उतारू हैं। बुजुर्ग कवि इस बात पर उखड़ जाते हैं कि उनको बुजुर्ग क्यों कहा गया? बच्चा कवि इस बात पर फ़िरंट है कि उसको बालकवि क्यों समझा जा रहा है अब तक?
इस तरह की बातों पर दिमाग क्या खपायें? आइये आपको एक विचारोत्तेजक सिरीमानजी टाइप कविता सुनायें। कविता की प्रेरणा के स्रोत हैं माननीय कविवर समीरलाल जी जो कि अभी हाल ही में समलैंगिकों के साथ देखे गये। दरअसल इसे कविता समझना कविता के साथ अन्याय करना होगा। यह शुद्ध हाहा,हीही है। गंभीर , स्टील टाइप के लोग इसे पढ़ें तो अपने जोखिम पर पढ़ें। हमारी कोई गारंटी न होगी।
तो क्या होगा?
चांद की आवारगी है बढ़ रही प्रतिदिनकिसी दिन पकड़ा गया तो क्या होगा?
हर गोरी के मुखड़े पे तम्बू तान देता है
कोई मजनू थपड़िया देगा तो क्या होगा?
लहरों को उठाता है, वापस पटकता है
सागर कहीं तऊआ गया तो क्या होगा?
उधार की रोशनी पर चमकता, ऐठता है,
सूरज समर्थन खैंच लेगा तो क्या होगा?
अभी तक गोरे मुखड़ों पे विराजते रहे बबुआ
ओबामा सावले चेहरे पे बईठा दिहिस तो क्या होगा?
आप एक पुस्तक छपवायेँ – ऐसी ही सुध्ध “सुकुल छाप ” कवित्ताई की -
आपसे सानुरोध निवेदन है !!
बिलकुल सीरीयसली कहए रहे हैँ – चूँकि
आप के बनाये नये उपमान वाकई मेँ लाजवाब हैँ –
जैसे,
” कोई मजनू थपड़िया देगा तो क्या होगा?”
“सागर कहीं तऊआ गया तो क्या होगा?”
“ओबामा सावले चेहरे पे बईठा दिहिस तो क्या होगा?”
हाहाहाहाहाहा :-)))
aap likhte rahe…..bheeter kuch baat ho to use chipana nahi chaahiye……blogger bekrar rahte hai aapki furstya padne ke liye…
bahut achcha likha hai
किसी दिन पकड़ा गया तो क्या होगा?
हर गोरी के मुखड़े पे तम्बू तान देता है
कोई मजनू थपड़िया देगा तो क्या होगा?
आपकी बिना गारंटी के पढ़ कर भी हम मुस्करा रहे हैं और मजे ले रहे हैं ! बहुत जोरदार ! शुभकामनाएं !
आईडिया ऐसे ही भुनभुनाते रहें. और आप ऐसे आईडिये भुनाते रहें. आईडिया आता रहे, कुटकुट, चिरकुट या बगटुट हों.
….हल्का कहकर भारी परोसते है. चाँद के बहाने पता नहीं किस किस को कोसते है.
कोई मजनू थपड़िया देगा तो क्या होगा?
ha ha ha ha ha ha hahaha ha ha ha ha ha h दिमाग में पड़े तमाम चिरकुट आईडिये भुनभुनाते हैं- shee hai idea to kmal ka aaya hai…… in chirkute idea ka jvab bhee nahee mashaalah hume aise idea kyun nahee aaty………… deemag mey na shee dil jiger mey yee aa jayen ha ha ha..”
Regards
लाजवाब कविता है.पढ़कर आनंद आ गया.
आपकी पोस्ट बोझिल मन के सारे बोझ झाड़ झूड़कर एकदम मन प्रफ्फुलित कर देती हैं.
कविता तो बहुत उम्दा उभर कर आई है. बधाई हो महाराज!!
काहे को डरें जो होना होगा वही होगा !
आराम बड़ी चीज है मुंह ढक के सोयें।
जब जो होगा देखा जाएगा।
एक शेर पढिये मेड बाई गालिब ब्राट टु यु बाइ दीपक
डुबोया मुझको होने ने
ना होता मै तो क्या होता ?
इसी तरह के एक लेख में तैयार टिपण्णी भी है जो फिट बैठ रही है.
पेश है ;
मैंने कविता की खेती के कारण उपजे श्रम सीकर सुखाते हुये अपने लड़के की तरफ देखा.वह मुस्कराता हुआ बोला -पिकअप तो अच्छा है पर अब मुझे डर लग रहा है कि कहीं लोग आपकी तुकबंदियों की तारीफ न करने लगें और आप गलतफहमी के शिकार न हो जायें.
बड़ा गहन चिंतन है. सीरियस लिखने वाले सुन लें,
मगज के पेंच ढीलीयाने वालों ज़रा सोच लो,
फुरसतिया रिसिया गया तो क्या होगा.
कविता आप बड़ी मौज में लिखते हैं। मजेदार, खासकर-
उधार की रोशनी पर चमकता, ऐठता है,
सूरज समर्थन खैंच लेगा तो क्या होगा?
सूरज समर्थन खैंच लेगा तो क्या होगा?
ISASE AAGE KYAA KAHEN
अब काहे उनको और शर्मिंदा कर रहे हो आप..
आप इलाहाबाद आकर लौट गये, तो हम बहुत दूर तक सोच बैठे हैं। का हम एतनौ लायक नहीं?
कविता तो बहुतै बढिया है (कविता के पिताजी को न बताइये कि हमने कविता के बारे में कुछ कहा है) हमकौ ऐसन लगत है जैसे कि यह कविता हम पहले पढ़े हैं कहीं – देजा-वू होगा शायद!