Sunday, November 02, 2008

हंसी की एक बच्ची है जिसका नाम मुस्कान है

web.archive.org/web/20140419215331/http://hindini.com/fursatiya/archives/544

50 responses to “हंसी की एक बच्ची है जिसका नाम मुस्कान है”

  1. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    अद्‌भुत! आनन्दम्‌…। पर ऐसी दुखान्त कविता पर हँसे कैसे? :)
  2. subhash bhadauria
    कुंटल-कुंटल के कूल्हे सखी,और थन तुम्हरे कटहल जैसे.
    हमदोनों हाथ से थामत हैं,वे सरकत हैं मखमल जैसे.
    खाई में गिरे वे ना निकरे,हमहुँ तो फँसे दलदल जैसे.
    दिन रात तुम्हारे ज़ुल्मों को हम रहत सहत निर्बल जैसे.
  3. दिनेशराय द्विवेदी
    अरे! यह सतीश जी ने कहाँ लटका दिया। हम तो जहाँ रहते हैं वहाँ ठहाके ही गूंजते हैं, और यह सब विरासत में मिला है। पोस्ट पढ़ते हुए पिताजी के ठहाके खूब याद आए। इतने की आंसू तक आ गए।
  4. manvinder bhimber
    हंसी की एक बच्ची है
    जिसका नाम मुस्कान है
    यह अलग बात है कि उसमें
    हंसी से कहीं ज्यादा जान है।
    आज तो मौसम कुछ अलग सा लग रहा है…… बात मुस्कुराहटों की हो रही है……. अपनी बात भी रखी जा रही है…..कुल मिला कर माहोल खुशनुमा सा लग रहा है……ओह्ह …… हैप्पी सन्डे
  5. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    हंसी बहुत सीरियस विषय है और आपने उसके साथ पूरा न्याय किया है।
    बोले तो फुल्ली जस्टीफाइड लेख।
  6. ताऊ रामपुरिया
    “हंसी के मौके आसपास न जाने किन-किन रूपों में बिखरे रहते हैं पता ही नहीं चलता। वे अनायास आपके पास आकर खड़े हो जाते हैं। आप उनको तव्वजो न देंगे तो वे आपके पास से चले जायेंगे।”
    आप कैसे एक एक लाइन पर हंसा लेते हो ? जैसे आप चेलेंज करते हो की बेटा हंसना मत ! पर बिना हँसे आपको कोई पढ़ ही नही सकता ! हमको तो लट्ठ लेकर लोगो को हंसाना पड़ता है की हंस नही तो लट्ठ चिपका देंगे ! :) और आपकी पोस्ट रात को पढ़ही नही सकते ! क्यों ? वो इसलिए की अगर ताई सो गई और हमने आप की पोस्ट पढ़ना शुरू कर दी तो शुरू में तो मंद मंद मुस्करा कर काम चल जाता है ! पर कहाँ जाकर रावण वाली अठ्ठहासी हँसी छुट जायेगी , कहना मुश्किल है ! और इसी वजह से हम अक्सर कई बार लट्ठ खा चुके हैं ! सो विशेष ख्याल रखते हैं की आपकी पोस्ट और चिठ्ठाचर्चा को दिन में ही निपटा दे !
    भाई शुक्ल जी कोई गण्डा ताबीज हो तो हमको भी बाँध दीजिये !
    बहुत शुभकामनाए ! आपका लिखा पढ़ कर तबियत दुरुस्त हो जाती है ! या यूँ कहिये एक टाईम दवाई का खर्चा बच जाता है !
  7. अविनाश वाचस्‍पति
    हंसने का इत्‍ता लंबा पाठ पढ़ाया
    कविता भी पढ़ाई
    पर वो तो रहा होगा निर्मोही
    जिसे इत्‍ते पर भी हंसी न आई।
    चेहरे से काली घटा उतरी
    और खिलखिलाहट न आहट मचाई
    आपने होली भी मनाई
    हंसी भी मनाई
    हंसना भी मनाया
    मुस्‍कराना भी सिखाया
    फुरसत में हैं आप

    मैं तो यूं कहूं कि
    आप हैं फुरसत के पितामह
    इतना गहन अध्‍ययन हंसते
    हंसते तो कोई फुरसत का सरदार
    ही परोस सकता है
    और बिना हंसे कोई कैसे उठ सकता है ?
    हंसना नहीं बीमारी है
    हंसना एक सामाजिक जिम्‍मेदारी है
    कवि रघुवीर सहाय ने लिखा है खूब
    हंसो हंसो जल्‍दी हंसो
    सिर्फ कविता ही नहीं
    उनकी इस नाम की पुस्‍तक भी है
    पर उसमें चुटकुले नहीं
    कविता ही भरी हैं, पूरी हैं
    पर जितनी पूरी हैं
    वे खाने के लिए नहीं
    हंसने के लिए हैं
    अरे नहीं, कचौरियां वहां नहीं हैं
    उनके पास किताब में
    कचौरियां परोसने की फुरसत ही नहीं है।
    फुर‍सतिया जी आप जरूर
    अपनी एक पोस्‍ट में
    हंसी की कचौरियां परोसें
    देखना सब खा जायेंगे
    हंसते हंसते
    हंसने के लिए पायेंगे
    फिर नये नये रस्‍ते (रिश्‍ते)

    फुरसत में तो हम भी हैं आज
    पर हंसी की कचौरियां आप ही परोसें
    आपसे इतनी है दरख्‍वास्‍त।
  8. डा. अमर कुमार
    एही तो होम भि कोहते हँय अनुप जि,
    की होँसी होँसी में अपना ऊ जो है, का बोकते हँय मेसेजवा… नू, त ऊसको देना केतना
    मुस्कील हय ई बड़का बिद्वान लोग सब नहिं न बूझेगा । अकबरवा एकबार बीरबल से बोलिस
    कि गधहवा को गूदगूदी लगा के हँसा के देखाओ.. त बीरबल कान पकड़ लिहीन बादसहवा का
    नहीं.. अपना कान पकड़ के बोलिन के हाज़ूर गदहवा को गूदगूदायंगे त दूलत्तिये न मारेगा,तनि
    पीछला दुन्नो गोर बान्ह के हँसायंगे त पिच्छे से पोंक मारेगा.. सो ईसका कोनो फैदा नहीं हय ।

    अनूप भाई, विद्वता बघारने की रोचक शैली ईश्वर सबको दे, ताकि ग्रहण करना बेवकूफ़ों के बस
    में हो जाय.. नहीं तो जय हो गुरु, जय हो गुरु से आगे कोई पट्ठा बढ़ ही नहीं पायेगा ।
    हाँ, आपकी कविता का एक एक टुकड़ा मस्त करेला है !

  9. डा. अमर कुमार
    एही तो होम भि कोहते हँय अनुप जि,
    की होँसी होँसी में अपना ऊ जो है, का बोकते हँय मेसेजवा… नू, त ऊसको देना केतना
    मुस्कील हय ई बड़का बिद्वान लोग सब नहिं न बूझेगा । अकबरवा एकबार बीरबल से बोलिस कि गधहवा को गूदगूदी लगा के हँसा के देखाओ.. त बीरबल कान पकड़ लिहीन बादसहवा का नहीं.. अपना कान पकड़ के बोलिन के हाज़ूर गदहवा को गूदगूदायंगे त दूलत्तिये न मारेगा, मुला पीछला दुन्नो गोर बान्ह के हँसायंगे त पिच्छे से पोंक मारेगा.. सो ईसका कोनो फैदा नहीं हय ।

    अनूप भाई, विद्वता बघारने की रोचक शैली ईश्वर सबको दे, ताकि ग्रहण करना बेवकूफ़ों के बस में हो जाय.. नहीं तो जय हो गुरु, जय हो गुरु से आगे कोई पट्ठा बढ़ ही नहीं पायेगा ।
    हाँ, आपकी कविता का एक एक टुकड़ा मस्त करेला है !

    पिछली टिप्पणी में नाम पता गलत हो गया था, सो यह टिप्पणी रिठेल है..
    रिठेल कविता पर रिठेल टिप्पणी कौनो नाज़ायज़ नहीं माना जाय !

  10. Shiv Kumar Mishra
    “अनुशासन के नाम अपने चेहरे पर इस्पात चढ़ाये रहते हैं। उनको यह अंदाज ही नहीं होता कि इस्पात पर जंग लग जाता है।”
    बहुत शानदार!
    हम तो हँसते हैं भैया. कोई मेहनत भी नहीं लगती हँसने में. हाँ, सीरियसता का लबादा ओढ़ने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती है. हम तो ऐसे ही हैं जी.
    बिना ये सोचे हुए कि लोग क्या कहेंगे..मौज लेने वाला कहें, हँसने वाला कहें, कामेडियन कहें, स्टैंड-अप कामेडियन कहें, सिट-अप कामेडियन कहें, पुश-अप कामेडियन कहें…मन हो तो बफून भी कह सकते हैं. लेकिन अपना हँसना जारी रहेगा जी. जब किसी से पूछ कर हँसते नहीं तो पूछ कर हँसना बंद क्यों करें?
  11. Dr .Anurag
    .आहा ये .. जानकर खुशी हुई की आप २५ साल से कविता कह रहे है सन्डे के दिन फुरसतिया वाकई फुरसत में आ गये है …हम तो कब से कहते आ रहे है की खुशी गायब सी हो गई है तभी तो लोग पैसे देकर सुबह सुबह हंसने वाला क्लब ज्वाइन करते है .ठहाका लगाने वाले आदमी भी कम दीखते है….सभ्यता का लिबास अब ठहाको को भी नियंत्रित करने लगा है….
    वैसे सतीश जी की निजी राय पर मै इत्तेफाक नही रखता खास तौर से … नीरज जी के बारे में कही बात को सिरे से ग़लत मानता हूँ ,आशा करता हूँ की वे ब्लॉग जगत में दूसरे के सम्मान की रक्षा करेगे ….सन्डे मनाने से पहले .एक शेर छोडे जा रहा हूँ …..
    कुछ लोग लिखते है ज़िंदगी की बाते
    शेर लिखने वाले सब शायर नही होते
  12. प्रवीण त्रिवेदी-प्राइमरी का मास्टर
    1 – “इस लटके चेहरे के साथ तुम हसीन तो लग रहे हो लेकिन उत्ते हसीन नहीं जित्ते मुस्कराते हुये लगते हो।”
    2 – “फ़ुरसतिया की सतत मौज की सप्लाई का नाब का रेग्यूलेटर कहां हैं?”
    3 – “फ़ुरसतिया की हंसी का टेटुआ कहां हैं? (लाओ तो जरा दाब देते हैं)”
    4 – “ज्ञानजी असल में ज्ञानी व्यक्ति हैं। ज्ञानबीड़ी सुलगाये रहते हैं लेकिन हमने उनको कई बार हंसी सुनी है। हंसते हैं तो बड़े क्यूट लगते हैं।”
    5 – “अजित वडनेरकर तो बेचारे गंभीरता के आरोप से घबरा गये और अपने ब्लाग पर कोलगेटिय़ा हंसी वाली फोटो लगा ली। हंसी का प्रमाणपत्र।”
    6 – “शास्त्रीजी के बारे में कुछ कहना ऐसे भी खतरनाक है। कुछ लिखेंगे तो वे उसे अपने ब्लाग पर लटका देंगे।”
    मजा आ गया !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
    लिखने की स्टाइल से आप दोआबा के लगते हैं?
    फ़िर पढने जा रहा हूँ /
  13. Abhishek Ojha
    पढ़ के मुस्कुरा रहे हैं… ठहाका नहीं लगा सकते नहीं तो पड़ोसी सोचेंगे की अकेले घर में… कहीं दिमाग के कील-कांटे तो ढीले नहीं हो रहे हैं. :-)
  14. anil pusadkar
    हम तो भैय्या जी भर कर गालियां बकते है और दिल खोल कर हंसते हैं। अपना मूलमंत्र है टेंशन लेने का नहि देने का। हंसो और हंसने दो।
  15. नितिन
    हा हा हा! ये पूरा लेख पढते वक्त और उसके बाद भी बहुत देर तक हंसने के बाद की गई टिप्पणी है।
  16. Dr.Arvind Mishra
    उस गजल का पहला शेर है -पेशानियें हयात पर कुछ ऐसे बल पड़े हँसाने को जो जी चाहा आंसू निकल पड़े !
    कुछ जवाब मिल गया होगा !
  17. राज भाटिया
    अरे जनाब हम खुब हंसते है, ओर अपने साथ वालो को भी खुब हंसाते है, अब कोई उजड कहे या जंगली हमे कोई असर नही,ओर हमारे हंसने का भी कोई निश्चित समय नही, लेकिन गुस्सा भी उसी रुप मै करते है, अरे भाई एक हंसी ही तो बची है, फ़िर इसे भी क्यो राशन कार्ड की तरह से ले, दिल खोल कर हंसो दुनिया भी हंसती है आप के हंसने से, आप का लेख बहुत कुछ कह रहा है, एक सुंदर संदेश दे रहा है…..
    धन्यवाद
  18. gagansharma09
    किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,
    किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,
    किसी का दर्द मिल सके तो दे उतार,
    जीना इसी का नाम है।
  19. दीपक
    यह जींदगी का एक बहुत बडा तर्क है
    कि हंसी जानवर और इंसान के बीच का बहुत बडा फ़र्क है !!हंसता हुआ आदमी जिंदादिल होता है और जिंदगी जिंदादिली का ही नाम है !!
  20. - लावण्या
    फुल स्माईली के साथ :-))
    मुस्कान और हँसी दोनोँ को हमारा भी सलाम पहुँचे ..अनूप भाई आप अपने साथोयोँ से कितना नेह रखते हो वह साफ है -
  21. सतीश सक्सेना
    @डॉ अनुराग जी,
    आपने मेरे कहे का ग़लत अर्थ लगाया, मैंने नीरज जी और डॉ सुभाष भदौरिया (जो कि ग़ज़ल के सिद्धहस्त विद्वान् हैं, और मैं ग़ज़ल के बारे में कुछ समझ नही रखता, ) दोनों विद्वानों की चर्चा उनके सम्मान में की है, भाव बड़े स्पष्ट हैं, आशा है दोबारा पढेंगे ! मैं ब्लाग जगत में किसी के प्रति दुर्भावना की सोच भी नही सकता…
    @शिव कुमार मिश्रा जी,
    ने अपने आखिरी लाइनों में जो कुछ कहा है रचना जी उसे मेरा उत्तर मान सकती हैं , शिव जी का आभारी हूँ मेरा जवाब देने के लिए !
    @अनूप भाई
    आपने बहुत प्यारी चर्चा की आज, मैं आज तक नही समझ पाता हूँ की ब्लाग जगत में हम लोग एक दूसरे को भली भांति न जानते हुए भी,एक दूसरे को नीचा दिखने के प्रयत्न में लगे रहते हैं ! स्वच्छ हंसी में भी लोग मतलब ढूँढने क्यों लगते हैं, हंसने हँसाने में क्या सम्मान और विद्वता कम हो जाती है, हम बड़ों से अच्छे तो बच्चे होते हैं, आपस में हंस कर एक दूसरे के साथ प्यार बांटते हैं और बिछड़ते समय बिलखते हैं !
    मैंने उक्त कमेंट्स में अपने कुछ ब्लाग मित्रों को संदेश देने की चेष्टा की थी कि अनूप शुक्ला की हंसी(उक्त चिटठा चर्चा में आपकी कविता), एक आमंत्रण है आपको साथ आकर हंसने के लिए …पर लगता है मेरी चेष्टा असफल ही रही! शायद मैं अपने मित्रों की भावनाओं को पहचाननें में अयोग्य हूँ !
    आपका आभारी हूँ अनूप भाई पहचानने के लिए !
  22. sumant mishra
    एक दिन किताब पढते पढ़ते किसी डा‍यलाग पर मै मुस्करानें लगा तभी एफ०एम०रेड़ियो पर जगजीत जी आँखे तरेरनें लगे‘तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या कोई ग़म है छुपा रहे हो’अब आप हँसनें की सलाह दे रहें हैं क्या करुँ?
  23. VIVEK SINGH
    यहाँ तो लोग अपने अपने हँसमुख होने का प्रमाणपत्र देने में ऐसे जुटे पडे हैं कि यह मौका अगर चूक गए तो आगे से हँसते हुए पकडे जाने पर छह माह की कैद अथवा/तथा पाँच हजार रुपये जुर्माना होने वाला हो . अरे कोई जबरदस्ती है क्या जो शुक्ला जी कहें तो हँसना ही पडे . (दर असल ऊपर की टिप्पणियाँ एक जैसी हैं इसलिए आज गंभीरों का प्रतिनिधित्व मुझे करना पडा अन्यथा आपकी बूथकैप्चरिंग मानी जाती )
  24. समीर लाल
    हम तो आप जानते ही है कि गंभीर लेखन से ही जाने जाते हैं. न हँसी और न ही उसकी बिटिया मुस्कान को जानते हैं.
    अतः क्या कहें इन लोगों का जो हर समय हा हा ठी ठी करते हैं. हम से तो कोशिश करके हा हा ही ही के उपर कुछ नहीं होता.
    कविता तो हमारी शुरु से पसंदीदा रही है यह वाली..आज आलेख भी पसंद की श्रेणी में आ गया.
    वैसे आप इतना सिरियस कैसे रह लेते हैं??
  25. rachna
    पर लगता है मेरी चेष्टा असफल ही रही! शायद मैं अपने मित्रों की भावनाओं को पहचाननें में अयोग्य हूँ !
    bilkul sahii shrii satish saxena ji
  26. सतीश सक्सेना
    अनूप भाई !
    आपका लिंक “मेरे गीत” पर दिया है,
    “अपने शानदार व्यक्तित्व का अहसास दिलाना यदि आवश्यक है तो मुसकान और हंसना अवश्य सीखिए ! और आप कितने लोकप्रिय हैं यह अपने आप न कहकर दूसरों को कहने दें ! अनूप शुक्ल ने अपनी सौम्य हंसी बिखेरते हुए बहुत कुछ गंभीर लिखा है ! बेहद उपयोगी लेख !”
  27. masijeevi
    हम कम से कम कहते तो रहे ही हैं कि ब्‍लॉगिंग में तो ‘स्‍माइली ही संदेश है’ बाकी जो कुछ हे वह एडल्‍ट्रेशन है।
    बिना बात के गंभीर रहने वालों अपनी ऐसी-तैसी कराने के लिये किसी के मोहताज नहीं होते। वे अपनी ऐसी-तैसी में आत्मनिर्भर होते हैं।
    ये भी खूब कही।
  28. sameer yadav
    स्पोन्सरर नहीं मिला फ़िर भी हम हँस रहे हैं…क्या कहें… पहले आती थी हाल-ये-दिल पर हँसी अब……हा हा हा हा…सभी बात पर आती है..! दीवाने हो गए हैं, पर आप ही बताये किस बात पर न हँसे हम ..राज ठाकरे, बिहारी नेता, विलासराव देशमुख, मुंबई पुलिस, मालेगांव, साध्वी प्रज्ञा, दिल्ली-अहमदाबाद-असम, गृहमंत्री, आर्थिक मंदी, तरलता, शेयर बाजार, महंगाई, सब्सिडी, 24 घंटे के न्यूज चेनल, चुनाव आयोग, विधान सभा के चुनाव,,,,,,! चंद्र-अभियान , नुक्लेअर डील… अरे क्या..ये क्या हँसी रुक जायेगी. चलिए..फ़िर हँसते हैं…छठवां वेतन आयोग, बहु- दलीय चुनाव प्रणाली, लोकसभा चुनाव….~~~!
  29. kanchan
    ham filhaal to aap ki post padhane ke baad ha.nsi ki bachchi se hi kaam chala rahe hai.n…. ! aur filhaal apna koi shade hi nahi decide kar paa rahe hai.n. blog vale kahate hai.n rulati bahut ho. mitra kahate hai.n ha.nsaati bahut ho, bachche kahate hai.n darati bahut ho. amma kahati hai.n roti bahut ho, bhaiya kahate hai.n ha.nsati bahut ho…fursatiya paa ji mai kaha.n jau.n….:(:( :)
  30. amit
    ह्म्म, चलो आप कहते हो तो मान लेते हैं कि हंसी की बच्ची का नाम मुस्कान है, नहीं तो मेरा अभी तक यही सोचना था कि मुस्कान की मम्मी का नाम हंसी तो नहीं है!! ;)
    अगर तानाशाह हिटलर और मुसोलिनी को हंसी के इंजेक्शन दिये जायें तो वे हंसने लगेगें। उनकी क्रूरता ,कठोरता जाती रहेगी। वे मानवीय और लोकतांत्रिक हो जायेंगे।
    हम्म, मैं नहीं इत्तेफ़ाक रखता इस बात से। हंसते तो वे वैसे भी होंगे लेकिन उसका क्रूरता के कम होने से कोई लेना देना नहीं है!! क्या फिल्मों और टीवी सीरियलों में नहीं देखे हैं कि विलेन सबसे अधिक हंसता है, हीरो से भी अधिक जो कि बेचारा थोड़ा बहुत मुस्कुराता ही है, और हंसने के साथ ही विलेन की क्रूरता भी बढ़ती जाती है, सैडिस्टिक लॉफ़्टर यू नो!! :)
    बकिया तो चकाचक ही लगे है।
    और आपको टैग किया है, अपनी पढ़ी पुस्तकों में से कोई पाँच कथन उद्धृत करने हैं, यहाँ देखिए:
    http://hindi.amitgupta.in/2008/11/04/read-and-remember/
  31. Anonymous
    इसके बाद मैंने सोचा बच्चे तो मासूम होते हैं
    कम से कम वे तो अंगूठा नहीं दिखायेंगे
    न हंस पर कहने पर जरूर मुस्करायेंगे
    मैंने एक बच्चे को पकड़ा गुदगुदाया
    लेकिन यह क्या उसकी तो आंख से आंसू निकल आया
    बोला-अंकल आजकल हम छिपकर,बहुत किफायत से हंसते हैं
    क्योंकि हम अपने नंबर कटने से बहुत डरते हैं
    हर हंसी पर ‘सरजी’प्रोजेक्ट वर्क बढ़ा देते हैं
    ठहाके पर तो टेस्ट के नंबर घटा देते हैं
    इससे मम्मी-पापा अलग परेशान होते हैं
    कुछ देर स्कूल को कोसते हैं फिर गुस्सा हम पर उतार देते हैं
    इसीलिये हम अपनी हंसी का पूरा हिसाब रखते हैं
    दिन भर में दो बार मुस्कराते हैं,एक बार हंसते हैं
    ठहाका तो हफ्ते में सिर्फ एक बार लगाते हैं
    सच में बहुत ही चिंता का विषय है ये
    वाह सबने सब कह दिया अब क्या कहें सिर्फ़ इसके आप हंसी की गोली जरा और स्ट्रोंग कर दें
  32. जि‍तेन्‍द्र भगत
    पढ़कर आनंद आ गया या यों कहें कि‍ हँसी से पहले मुस्‍कान दस्‍तक दे गई।
  33. कुन्नू सिंह
    फोटो देख कर लगा की जैसे पहली बार गरीबो को हसता देखा हूं
  34. कुन्नू सिंह
    क्या लीखूं की गूस्सा वाला आईकन आए
    angry icon
  35. anita kumar
    Anonymous Nov 4th, 2008 at 8:33 pm
    इसके बाद मैंने सोचा बच्चे तो मासूम होते हैं
    कम से कम वे तो अंगूठा नहीं दिखायेंगे
    न हंस पर कहने पर जरूर मुस्करायेंगे
    मैंने एक बच्चे को पकड़ा गुदगुदाया
    लेकिन यह क्या उसकी तो आंख से आंसू निकल आया
    बोला-अंकल आजकल हम छिपकर,बहुत किफायत से हंसते हैं
    क्योंकि हम अपने नंबर कटने से बहुत डरते हैं
    हर हंसी पर ‘सरजी’प्रोजेक्ट वर्क बढ़ा देते हैं
    ठहाके पर तो टेस्ट के नंबर घटा देते हैं
    इससे मम्मी-पापा अलग परेशान होते हैं
    कुछ देर स्कूल को कोसते हैं फिर गुस्सा हम पर उतार देते हैं
    इसीलिये हम अपनी हंसी का पूरा हिसाब रखते हैं
    दिन भर में दो बार मुस्कराते हैं,एक बार हंसते हैं
    ठहाका तो हफ्ते में सिर्फ एक बार लगाते हैं
    सच में बहुत ही चिंता का विषय है ये
    वाह सबने सब कह दिया अब क्या कहें सिर्फ़ इसके आप हंसी की गोली जरा और स्ट्रोंग कर दें.
    sorry yeh anonymous dikha rahaa hai yeh mera comment tha…anita
  36. rajni bhargava
    बहुत बढ़िया कविता है। मैं खिलखिला कर हंस भी रही हूँ और मुस्करा भी रही हूँ।
  37. पुनीत ओमर
    सच है की हम में से बहुत लोग अक्सर अपने गम छिपाने के लिए भी हँसते हैं.
  38. Satish saxena
    बिल्कुल ग़लत रचना जी ! आप भी मेरी बात समझ नही पाती हैं ….
    जाकी रही भावना जैसी ….
  39. कविता वाचक्नवी
    केवल और केवल मनुष्य को यह नेमत मिली है कि वह हँस सकता है। मेरे ख्याल से तो दूसरों के लिए यह उतना जरूरी नहीं जितना अपने स्वयम् के लिए जरूरी है। अपने ही को भयंकर ब्रेन हैमरेज जैसे बीमारियों की बात तो डॊ. बताते ही हैं, पर उस से भी पहले जो जीवन भर दिखाई देता है कि हँसने वाले चेहरे अधिक कान्तिवान् हुआ करते हैं, जबकि हर बात पर भिड़ने वाले चेहरे कठोर और अनाकर्षक हो जाते हैं। इसलिए आकर्षक बने रहने का सबसे बड़ा राज है — हँसना। और हाँ, अपने आप को झुर्रियों से बचाने का भी सबसे कारगर तरीका है, हँसी।
    हँसी पर सबसे सीरियस टिप्पणी कर दी ना? अब तो इस मूर्खता पर सबको हँसी आना लाजिमी है।
  40. puja
    आप सच कह रहे हैं, वाकई हंसी गायब होती जा रही है, ठहाका मारने की आदत इस तरह ख़त्म हो चुकी है की घर पर अकेले भी कुछ पढ़ रहे होते हैं तो मुस्कुरा कर काम चला लेते हैं. लड़कियों को बहुत कम खुल कर हंसते देखा है, हमारा यहाँ बचपन से पाठ जो पढ़ा दिया जाता है की जोर से मत हंसो.
  41. navneet
    Thanks
  42. ilahi
    very nice great post :)
  43. vandana a dubey
    सच है अनूप जी.आज खुल कर हंसने वालों का भी टोटा हो गया है.कोई ज़ोर से हंसे तो बेअदबी…देशबन्धु में हमारे मुख्य सम्पादक थे श्यामसुन्दर शर्मा जी उनके ठहाके पूरे प्रेस की जान थे.हममें काम करने का जोश भर देते थे उनके ठहाके. कोई गलती हो जाने पर भी उसी उन्मुक्त ठहाके में उडा देते और हमें गलती होने के अपराधबोध से उबार लेते. सच है आज ठहाके लगाने वाले बहुत कम हो गये हैं. ये अलग बात है कि मुझे हंसने और हंसाने दोनों में मज़ा आता है….. :D
  44. shefali
    abhi to post padhkar hee hanse ja rahe hain….tippaniyon ko baad me padhenge, link rakh liya hai…
  45. …कविता का मसौदा और विश्व गौरैया दिवस
    [...] इसी तरह के और कुछ खुशनुमा बातें ठेलकर कवि महोदय कोई घरेलू सा शीर्षक देकर उन श्रोताओं/पाठकों के सामने पटक देंगे जिसे वे पेश करना कहते हैं। अगर ऐन मौके पर स्मृति पट भड़भड़ा उठे तो कहो कवि किसी का शेर भी ठेल दें जिसका कविता से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं हो! जैसे कि यही वाला देख लीजिये: अपनी खुशी के साथ मेरा गम भी निबाह दो, इतना हंसो कि आंख से आंसू छलक पड़ें। [...]
  46. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] [...]
  47. अनूप शुक्ल
    एक निर्मल हंसी अनेक दुखों को दूर कर देती है। हंसी एक नियामत है। दुख तो समाज में हैं हीं। विसंगतियां भी हैं। हर बात पर हंसते रहना अच्छी बात नहीं। लेकिन हंसने के मौके गंवाना भी कम बुरी नहीं।
    परसाईजी ने एक लेख लिखा है- वनमानुष नहीं हंसता। इस लेख में परसाईजी कहते हैं-
    " मैं व्यंग्य इसीलिये लिखता रहा हूं कि हर आदमी हंसता हुआ दिखे। कोई मनहूस , चिंतित या रोनी सूरत का न हो। हंसना बहुत अच्छी बात है। प्राणियों में मनुष्य ही ऐसा है जिसे हंसने की क्षमता प्रकृति ने दी है।"
  48. Sanjay Chandwani
    Chaa gaye sukul..aur parsai ji toh sada hi chaatey rehtey hain
  49. Reena Mukharji
    Nice post
  50. रचना त्रिपाठी
    हंसना एक कला है, और स्वभाव भी। कभी-कभी ज्यादा हंसने वाले लोगों को अंडर एस्टिमेट कर दिया जाता है।इसलिए लोग जबरदस्ती का चुप्पी साधे रहते हैं।
    रचना त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..हाउसवाइफ मतलब हरफ़नमौला

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