Friday, January 09, 2009

मृत्य जिजीविषा से बहुत डरती है

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38 responses to “मृत्य जिजीविषा से बहुत डरती है”

  1. लावण्या
    आपने बडी सार्थक कविता पढवाई नँदन जी की -
  2. दिनेशराय द्विवेदी
    बहुत जबर्दस्त कविता है। शीर्षक में ही बहुत आकर्षण था। यह मृत्यु पर जीवन की विजय का गीत है।
  3. विवेक सिंह
    सब ईश्वर की लीला है
  4. Arvind Mishra
    बहुत प्रभावित करती रचना -जी जिजीविषा के चलते निश्चित ही परास्त होती है मृत्यु !
  5. Manoshi
    वाह!
  6. nirmla.kapila
    bahut hi bhaavmay abhivyakti hai bdhaai
  7. seema gupta
    उसी तरह
    जीवन के साथ
    थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
    मरती है।
    ‘निशब्द….”
    regards
  8. संजय बेंगाणी
    अंतिम पंक्तियाँ कमाल है.
  9. डा. अमर कुमार

    सच है, मैंने अपने कैरियर में ऎसे जीवंत मिसाल देखे हैं !
  10. कुश
    इस पर कोई टिप्पणी नही..
  11. पा.ना. सुब्रमणियन
    “जीवन के साथ थोड़ा-बहुत मृत्यु भी मरती है।” बहुत ही खूबसूरत गणित. आभार.
  12. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    नन्दन जी ने बहुत गहन भाव दिया है। क्षण क्षण अपने में कुछ न कुछ मरता है। यह जरूर है – मेरे में छिपा खाता बही देखने वाला बनिया यह हिसाब लगाता है कि कोई तत्व रोज जन्म भी लेता है क्या?
    इतनी बढ़िया कविता भी मुझे जोड़ बाकी का हिसाब करने को प्रवृत्त कर देती है।
  13. रचना.. बजाज
    गुस्ताखी के लिये माफ़ करे‍गे लेकिन यही पन्क्ति अभी मन मे आ रही है—-
    झूठ कहते है‍ आप कि मौत जिन्दगी से डरने लगी है,
    सच तो यही है कि मौत, जिन्दगी की सगी है…..
  14. समीर लाल
    बहुत सुन्दर कविता पढ़वा दिये, वाह!! आभार कहते हैं.
  15. vijay kumar
    anup ji ,
    aapne mrutuyu par itni achai kavita padwayi ,iske liye dhanyawad.
    kavita ka ek ek lafz sahi hai ..
    maine kuch nai nazme likhi hai ,dekhiyenga jarur.
    vijay
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  16. ताऊ रामपुरिया
    आदर्णिय नन्दनजी की यह कविता मुझे तो बहुत प्रासंगिक और सत्य लगती है.
    थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
    मरती है।
    इसीलिये मृत्य
    जिजीविषा से
    बहुत डरती है।
    रामराम.
  17. jimmy
    bouth he aacha post kiyaa aapne
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  18. Radhika budhkar
    बड़ी सुंदर कविता हैं ..सही कहा आपने मृत्यु जिजीविषा से बहुत डरती हैं .
  19. Zakir Ali 'Rajneesh'
    जिंदगी को जीने का यह सकारात्मक नजरिया है, जो कविता के रूप में उतर आया है। सुंदर एवं सार्थक कविता।
  20. Zakir Ali 'Rajneesh'
    जिंदगी को जीने का यह एक सकारात्मक नजरिया है। सुंदर एवं सार्थक कविता।
  21. Abhishek Ojha
    भाई साहब वाला लिंक भी पढ़ा ! क्या कहें? सच ही तो है.
  22. ranjana
    वाह ! अद्भुत ! अतिसुन्दर ! क्या बात कही है ! लाजवाब !
  23. प्रवीण त्रिवेदी-प्राइमरी का मास्टर
    बडी सार्थक कविता पढवाई !!!
  24. abha
    सार्थक पोस्ट, आभार
  25. गौतम राजरिशी
    बहुत दिनों पहले पढ़ी थी ये कविता वो भी चलते-चलते कहीं ट्रेन में..फिर से पढ़वाने का शुक्रिया अनूप जी…
  26. गौतम राजरिशी
    लिंक पढ़कर वापस आया हूं अनूप जी…..बस कोई उचित शब्द नहीं ढ़ूंढ़ पा रहा भाव व्यक्त करने को…
    कविता दुबारा पढ़ता हूं और सोचता हूँ ’क्या सचमुच मृत्यु जिजीविषा से डरती है’….सहज ही कुछ कह नहीं सकता.कहने को कितनी बातें.मगर बहस से डरता हूं.फिर कभी मृत्यु के इस डरने वाली बात पर आपसे बहस करूंगा…
    अब कन्हैयालाल नंदनजी से तो कर नहीं सकता
  27. anitakumar
    कविता तो है ही कमाल की, नंदन जी लिखते ही इतना अच्छे हैं। हम समझ सकते है कि किस मनोस्थिती में आप को ये कविता याद आयी होगी। इस प्रकार की अभिव्यक्ती से मन हल्का हो जाता है। आशा है आप का मन भी हल्का हुआ होगा।
  28. जि‍तेन्‍द्र भगत
    गहन भाव बोध से संपृक्‍त, बेजोड़ कवि‍ता।
    पढ़वाने के लि‍ए आभार।
  29. SHUAIB
    शुक्रिया
  30. mahendra mishra
    सुंदर सार्थक कविता..आभार
  31. अशोक पाण्‍डेय
    सही है। यह जीजिविषा बहुत जरूरी है। जीजिविषा है तो जीवन है। इससे मौत तो डरेगी ही।
  32. kanchan
    bahut shai aur bahut samvedanshil…!
  33. Devesh
    बहुत जबर्दस्त कविता है। शीर्षक में ही बहुत आकर्षण था। यह मृत्यु पर जीवन की विजय का गीत है।
    Mia dewedi ji se puri tarah sahamat hai….yah mrittu par jeevan ka geet hai…
    Great poem….
    Regards
  34. sumit
    जिवन में कोई नही मरता
    अगर स्वयं भगवान नही मरता ( राम,श्याम,)
    ये तो म्रुत्यु लोक है (शिव )
    यहा जो भी आया हे उसे जाना हे (गीता)
    जो दुनिया हे वो भी नशवर हे (गीता)
    समुद्र है उसे भी एक दिन सुखना है (रामायण)
    जो धरती हे उसको धुल बनकर खो जाना है ( ब्र्म्हा)
    जिसको हम जानते हे वो थोडे समय बाद हमे नही जाने गा (मानव)
    हम जिस शक्ति को याद करते हे वो हमारे सामने आयेगी (गुरु)
    जो हमने किया उसको पुरा भोगना होगा (गरुड पुरान)
    एक छोटा ओर अज्ञान प्राणी
    सुमीत व्यास
    new2@in.com
  35. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] मृत्य जिजीविषा से बहुत डरती है [...]
  36. swamishishuvidehananda sarswti tiwarimaharaj karanjalad datt.maharashtra.
    जिजीविषा……याने ”’जद’दो….जहद …अक प्रकार ..की संघर्ष की वो इच्छा की जिसमे ..लगातार अक ….घ””र””श””न””” रहता है
  37. अनूप शुक्ल
    मरने में मरने वाला ही नहीं मरता
    उसके साथ मरते हैं
    बहुत सारे लोग
    थोड़ा-थोड़ा!
    जैसे रोशनी के साथ
    मरता है थोड़ा अंधेरा।
    जैसे बादल के साथ
    मरता है थोड़ा आकाश।
    जैसे जल के साथ
    मरती है थोड़ी सी प्यास।
    जैसे आंसुओं के साथ
    मरती है थोड़ी से आग भी।
    जैसे समुद्र के साथ
    मरती है थोड़ी धरती।
    जैसे शून्य के साथ
    मरती है थोड़ी सी हवा।
    उसी तरह
    जीवन के साथ
    थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
    मरती है।
    इसीलिये मृत्य
    जिजीविषा से
    बहुत डरती है।
    डा.कन्हैयालाल नंदन
  38. Gaurav Srivastava
    ये कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया सर ।

1 comment:

  1. शाश्वत सत्य को आत्मसात करती कविता.

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