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मुंह में भी छुरी तेज लगवैइयो।…”
लगता है आपके हीरो के दांत नहीं हैं – औसत भारतीय राजनीतिज्ञ जैसे जो 70 साल के बूढ़े हो गए हैं, इसीलिए, नहीं तो आप कहते -
अपने दांतों में धार करिवैयो….
मेरी कलम – मेरी अभिव्यक्ति
यह असली ‘चुनाव आचार संहिता’ है जिसका पालन कराने के लिए किसी ‘ऑब्जर्वर’ की जरूरत नहीं पड़ती।
क्यों कि कठिनतम चुनाव
भी न कर सकेगा कम,
तनिक क्षणिक तेरा भाव!
राह में रह अग्रसर
ब्लॉग में न रहे कसर
शांत भाव से ठेल कर
देख जन की हांव-हांव!
हमारे अंतिम पंक्ति यों होते.
मुंह में भी छुरी तेज लगवैइयो।
” हा हा हा हा हा हा हा हा हा खूब कही आज तो ..”
Regards
कुछ ताम करो कुछ झाम करो
दक्षिणपंथी या वाम करो
‘वातावरण’…. हलकायमान है
तभी ऐसा विषाद उपजता है !
- लावण्या
और इस पंक्ति पर तो खूब हँसा — जगह मिले जहां धंसि जइयो।
यदि अवसर परे गुरु को भी गरियईयो
बहुत मजेदार.
लगता है पहले उन्होंने ने आपकी बात आत्मसात कर ली है फिर आपने इसको हमें पढ़वाया.