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फ़टाफ़ट क्रिकेट में चीयरबालाओं की स्थिति
By फ़ुरसतिया on April 25, 2011
कभी क्रिकेट सभ्य लोगों का खेल माना जाता था। खिलाड़ी सफ़ेद पोशाक में
सभ्य लोगों की तरह खेलते थे। आज खिलाड़ी सफ़ेद पोशाक तो नहीं ही पहनते हैं।
वे ऐसी कोई हरकत भी नहीं करते जिसके उन पर सभ्य होने का इल्जाम लगाया जा
सके। अक्सर गेंदबाज आउट करके बल्लेबाज को ऐसे देखता है जैसे अगर वह क्रीज
से न गया तो उसका खून पी जायेगा। बल्लेबाज ज्यादा रन बनाकर बल्ला कुदाल की
तरह ऐसे घुमाता है कि देखकर लगता है अगर गेंदबाज दूर न खड़ा हो तो उसका सर
फ़ट ही जाये।
पहले क्रिकेट में पूरे मैच में दो-चार छक्के लगते थे। दिन भर में कुल जमा दो-तीन सौ रन बनते थे। आज फ़टाफ़ट क्रिकेट का जमाना है। मैच में लगने वाले चौवों-छक्कों की संख्या देश में घपलों-घोटालों की तरह बढ़ गयी है। जैसे देश में किसी भी योजना में कोई भी घपला हो सकता है वैसे ही बल्लेबाज किसी भी गेंद पर छक्का मार देता है। जिस पिच से दिन भर में पसीना बहाकर खिलाड़ी तीन सौ रन पैदा कर पाते थे उसी पिच से दोनों टीमें मिलकर आधे दिन में चार-साढ़े चार रन बटोर लेती हैं।
पहले खिलाड़ी पिच पर आकर उसका व्यवहार देखते थे। मिजाज भांपते थे। टिकते थे। पिच को बल्ले से आहिस्ते से ठोंकते थे। इसके बाद दायें देखते थे। बायें निहारते थे। क्रीज पर खड़े होकर गेंद का इंतजार करते थे। कभी-कभी गेंदबाज के दौड़ना शुरु करने के बाद क्रीज से हट जाते थे। गेंदबाज हिन्दमहासागर से अमेरिका सातवें बेड़े की तरह वापस लौट जाता था। बल्लेबाज साइड स्क्रीन इधर-उधर हटवाते थे। गेंदबाज फ़िर से गेंद पर थूक लगाकर पैंट पर रगड़ता था। गेंद फ़ेंकता था ऊऊऊंह करते हुये। बल्लेबाज गेंद खेलकर विकेट के आसपास टहलते थे। फ़िर अगली खेलते थे। उसके बाद फ़िर अगली। अक्सर बल्लेबाज गेंद को आदर के साथ वापस खेल देता था। या फ़िर ऐसी जगह भेज देता था गेंद को ताकि वह खोये नहीं, गेंदबाज के पास सुरक्षित वापस पहुंच जाये। इसके बाद बल्लेबाज का किसी गेंद पर दिल आ गया तो रन बना लेता था। और ज्यादा मन किया तो एकाध चौका मारकर संतोष कर लेते थे। कभी-कभी बहुत मूड खराब हुआ तो दिन भर में एकाध छक्का भी मार देते थे। इस बीच वे दूसरी टीम के खिलाड़ियों से हंसी-मजाक भी कर लेते थे।
लेकिन आज मामला उलट गया है। खिलाड़ी पिडारियों की तरह पहली ही गेंद से रन लूटने लगते हैं। न हेल्लो, न हाय। न हाउ डु यू डू न केमछो। न भालो! बस पहली गेंद से ही मार-पीट शुरु। कभी-कभी किसी बल्लेबाजों को देखकर तो लगता है कि कोई अफ़सर मलाईदार पोस्ट की कीमत चुकाकर आया है। जित्ती जल्दी हो सके माल काट लेना चाहता है। पोस्टिग के लिये खर्चा किये पैसे तबादला होने के पहले निकाल लेना चाहता है। गेंदबाज बेचारा आम जनता की तरह पिटता रहता है। एकाध विकेट ले भी लेता है तो अगला आकर उसे फ़िर से पीटने लगता है। जैसे अपने साथी को आउट करने का बदला चुका रहा हो।
इस सबके के चक्कर में सबसे ज्यादा मरन बेचारी चियरलीडरानियों की होती है। हर छक्के-चौके पर उनको ठुमका लगाना पड़ता है। सौंन्दर्य की इत्ती खुलेआम बेइज्जती और कहीं नहीं खराब होती जितनी चीयरबालाओं की होती है। एकाध रन पर भले वे धीरे-धीरे हिलें लेकिन चौका-छक्का लगने पर उनको बहुत तेज हिलना पड़ता है। जैसे उनको बिजली नंगा का तार छू गया हो। वे बेचारी कोसती होंगी चौका-छक्का लगाने वाले खिलाड़ियों को- खुद तो रन लेने के लिये हिलता नहीं। छक्का मारकर हमारा कचूमर निकलवा रहा है। अरे इत्ता ही शौक है रन बनाने का तो दौड़कर रन लो। पसीना बहाओ। लेकिन नहीं। खुद तो हिलेगा नहीं। गेंद उछाल कर मैदान के बाहर कर दी। हमको हिलाकर धर दिया। हिटर कहीं का। चौकाखोर कहीं का। छक्केबाज नहीं तो।
सहवाग, युसुफ़ पठान, गिलक्रिस्ट, सचिन, जडेजा आदि खिलाड़ियों को भले ही चियरबालायें कुछ कहें भले न पेट के खातिर लेकिन मन ही मन इनको कोसती जरूर होंगी। अगर चियरबालाओं को उनका आदर्श खिलाड़ी चुनने के लिये पूछा जाये तो वे -क्रिकेट खिलाड़ी कैसा हो, सुनील गावस्कर जैसा हो जैसा कुछ कहेंगी। सुनील गावस्कर ने पहले विश्वकप में ओपनिंग की और साठ ओवर में नाटआउट रहते हुये कुल छत्तीस रन बनाये थे।
चियरबालायें बहुत खूबसूरत होती हैं। वे खूब सारा डांस-करती हैं। बहुत कम कपड़े पहनती हैं। इतने कम कि वे अगर खूबसूरत न हों और उनके पहने कपड़े गन्दे हों तो देश की आम जनता सी लगीं।
इतनी खूबसूरत और अल्पवसना होने पर भी खिलाड़ी उनकी तरफ़ आंख उठाकर नहीं देखते। बल्लेबाज और गेंदबाज दोनों की निगाह गेंद पर ही रहती है। इतने चपल सौंन्दर्य से अविचलित रहकर खिलाड़ी अपने खेल में लगे रहते हैं। पुराने समय में अप्सरायें तपस्यारत ऋषियों-मुनियों को डिगाकर उनकी तपस्या की गिल्लियां उड़ा देती थीं । लेकिन आजकल वे बेचारी दिन भर ठुमकती रहती हैं। खिलाड़ी पर उनका कोई जादू नहीं चलता। वह उनको लगातार ठुमके लगाने के लिये बाध्य करता रहता है।
क्या इससे यह समझा जाये कि आजकल खिलाड़ी पुराने जमाने के ऋषियों-मुनियों की तुलना में ज्यादा संयमी होते हैं। अपने पूर्वजों की तुलना में सौंन्दर्य के हमले ज्यादा सफ़लता से झेल सकते हैं। यह भी कारण हो सकता है कि तपस्या करते समय आदमी निठल्ला रहता है। जबकि खेलते समय मेहनत पड़ती है। सौंन्दर्य के लिये निठल्ले का विकेट गिराना हमेशा आसान रहता है एक पसीना बहाने वाले खिलाड़ी की तुलना में।
चीयरबालायें जब घर से अपने काम के लिये निकलती होंती तो शायद अपने-अपने इष्ट देवताओं से प्रार्थना करती होंगी-
खैर हमारी छोड़िये। आप बताइये आपके क्या विचार हैं इस बारे में?
पहले क्रिकेट में पूरे मैच में दो-चार छक्के लगते थे। दिन भर में कुल जमा दो-तीन सौ रन बनते थे। आज फ़टाफ़ट क्रिकेट का जमाना है। मैच में लगने वाले चौवों-छक्कों की संख्या देश में घपलों-घोटालों की तरह बढ़ गयी है। जैसे देश में किसी भी योजना में कोई भी घपला हो सकता है वैसे ही बल्लेबाज किसी भी गेंद पर छक्का मार देता है। जिस पिच से दिन भर में पसीना बहाकर खिलाड़ी तीन सौ रन पैदा कर पाते थे उसी पिच से दोनों टीमें मिलकर आधे दिन में चार-साढ़े चार रन बटोर लेती हैं।
पहले खिलाड़ी पिच पर आकर उसका व्यवहार देखते थे। मिजाज भांपते थे। टिकते थे। पिच को बल्ले से आहिस्ते से ठोंकते थे। इसके बाद दायें देखते थे। बायें निहारते थे। क्रीज पर खड़े होकर गेंद का इंतजार करते थे। कभी-कभी गेंदबाज के दौड़ना शुरु करने के बाद क्रीज से हट जाते थे। गेंदबाज हिन्दमहासागर से अमेरिका सातवें बेड़े की तरह वापस लौट जाता था। बल्लेबाज साइड स्क्रीन इधर-उधर हटवाते थे। गेंदबाज फ़िर से गेंद पर थूक लगाकर पैंट पर रगड़ता था। गेंद फ़ेंकता था ऊऊऊंह करते हुये। बल्लेबाज गेंद खेलकर विकेट के आसपास टहलते थे। फ़िर अगली खेलते थे। उसके बाद फ़िर अगली। अक्सर बल्लेबाज गेंद को आदर के साथ वापस खेल देता था। या फ़िर ऐसी जगह भेज देता था गेंद को ताकि वह खोये नहीं, गेंदबाज के पास सुरक्षित वापस पहुंच जाये। इसके बाद बल्लेबाज का किसी गेंद पर दिल आ गया तो रन बना लेता था। और ज्यादा मन किया तो एकाध चौका मारकर संतोष कर लेते थे। कभी-कभी बहुत मूड खराब हुआ तो दिन भर में एकाध छक्का भी मार देते थे। इस बीच वे दूसरी टीम के खिलाड़ियों से हंसी-मजाक भी कर लेते थे।
लेकिन आज मामला उलट गया है। खिलाड़ी पिडारियों की तरह पहली ही गेंद से रन लूटने लगते हैं। न हेल्लो, न हाय। न हाउ डु यू डू न केमछो। न भालो! बस पहली गेंद से ही मार-पीट शुरु। कभी-कभी किसी बल्लेबाजों को देखकर तो लगता है कि कोई अफ़सर मलाईदार पोस्ट की कीमत चुकाकर आया है। जित्ती जल्दी हो सके माल काट लेना चाहता है। पोस्टिग के लिये खर्चा किये पैसे तबादला होने के पहले निकाल लेना चाहता है। गेंदबाज बेचारा आम जनता की तरह पिटता रहता है। एकाध विकेट ले भी लेता है तो अगला आकर उसे फ़िर से पीटने लगता है। जैसे अपने साथी को आउट करने का बदला चुका रहा हो।
इस सबके के चक्कर में सबसे ज्यादा मरन बेचारी चियरलीडरानियों की होती है। हर छक्के-चौके पर उनको ठुमका लगाना पड़ता है। सौंन्दर्य की इत्ती खुलेआम बेइज्जती और कहीं नहीं खराब होती जितनी चीयरबालाओं की होती है। एकाध रन पर भले वे धीरे-धीरे हिलें लेकिन चौका-छक्का लगने पर उनको बहुत तेज हिलना पड़ता है। जैसे उनको बिजली नंगा का तार छू गया हो। वे बेचारी कोसती होंगी चौका-छक्का लगाने वाले खिलाड़ियों को- खुद तो रन लेने के लिये हिलता नहीं। छक्का मारकर हमारा कचूमर निकलवा रहा है। अरे इत्ता ही शौक है रन बनाने का तो दौड़कर रन लो। पसीना बहाओ। लेकिन नहीं। खुद तो हिलेगा नहीं। गेंद उछाल कर मैदान के बाहर कर दी। हमको हिलाकर धर दिया। हिटर कहीं का। चौकाखोर कहीं का। छक्केबाज नहीं तो।
सहवाग, युसुफ़ पठान, गिलक्रिस्ट, सचिन, जडेजा आदि खिलाड़ियों को भले ही चियरबालायें कुछ कहें भले न पेट के खातिर लेकिन मन ही मन इनको कोसती जरूर होंगी। अगर चियरबालाओं को उनका आदर्श खिलाड़ी चुनने के लिये पूछा जाये तो वे -क्रिकेट खिलाड़ी कैसा हो, सुनील गावस्कर जैसा हो जैसा कुछ कहेंगी। सुनील गावस्कर ने पहले विश्वकप में ओपनिंग की और साठ ओवर में नाटआउट रहते हुये कुल छत्तीस रन बनाये थे।
चियरबालायें बहुत खूबसूरत होती हैं। वे खूब सारा डांस-करती हैं। बहुत कम कपड़े पहनती हैं। इतने कम कि वे अगर खूबसूरत न हों और उनके पहने कपड़े गन्दे हों तो देश की आम जनता सी लगीं।
इतनी खूबसूरत और अल्पवसना होने पर भी खिलाड़ी उनकी तरफ़ आंख उठाकर नहीं देखते। बल्लेबाज और गेंदबाज दोनों की निगाह गेंद पर ही रहती है। इतने चपल सौंन्दर्य से अविचलित रहकर खिलाड़ी अपने खेल में लगे रहते हैं। पुराने समय में अप्सरायें तपस्यारत ऋषियों-मुनियों को डिगाकर उनकी तपस्या की गिल्लियां उड़ा देती थीं । लेकिन आजकल वे बेचारी दिन भर ठुमकती रहती हैं। खिलाड़ी पर उनका कोई जादू नहीं चलता। वह उनको लगातार ठुमके लगाने के लिये बाध्य करता रहता है।
क्या इससे यह समझा जाये कि आजकल खिलाड़ी पुराने जमाने के ऋषियों-मुनियों की तुलना में ज्यादा संयमी होते हैं। अपने पूर्वजों की तुलना में सौंन्दर्य के हमले ज्यादा सफ़लता से झेल सकते हैं। यह भी कारण हो सकता है कि तपस्या करते समय आदमी निठल्ला रहता है। जबकि खेलते समय मेहनत पड़ती है। सौंन्दर्य के लिये निठल्ले का विकेट गिराना हमेशा आसान रहता है एक पसीना बहाने वाले खिलाड़ी की तुलना में।
चीयरबालायें जब घर से अपने काम के लिये निकलती होंती तो शायद अपने-अपने इष्ट देवताओं से प्रार्थना करती होंगी-
१.हे भगवान, आज का मैच लो स्कोरिंग करा दो। कमरदर्द के मारे बुरा हाल है। आपसे तो कुछ छिपा नहीं भगवान। आज सहवाग,पठान को जल्दी आउट कर दो। केवल नीचे के ठुकठुकिया खिलाड़ियों को विकेट पर टिकाओ। सौ रुपये का प्रसाद चढ़ाउंगी।अगर कोई हमसे पूछे तो मैं यही चाहता हूं कि चीयरबालाओं से इतनी मेहनत न कराई जाये। कम से कम उनको बैठने के लिये स्टूल और पहनने के लिये पूरे कपड़े मुहैया कराये जायें।
२. हे ईश्वर, आज का मैच डकबर्थ-लुइस खाते में डाल दो। हफ़्ते भर तुम्हारा नाम लूंगी। आज मुझे जल्दी घर वापस आना है। बहुत सर दर्द हो रहा है। लगता है माइग्रेन उठने वाला है।
३.हे बजरंगबली, आज शीला का मैच हाई स्कोरिंग करा दो। अपने मेकअप और ब्यूटीशियन के बारे में बड़ी-बड़ी डींगे हांक रही है। जहां चौके-छक्के पड़ेंगे। सारा मेकअप खुल जायेगा टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले की तरह।
४. हे प्रभु, आज कुछ ऐसा करा दो कि हर गेंद पर अम्पायर तीसरे अंपायर से निर्णय मांगे। मैच भले देर तक चले लेकिन गेंदों के बीच में अंतराल रहे ताकि हर गेंद के बाद लोकपाल बिल की तरह झटके न लगें।
५. हे भगवान, जो-जो खिलाड़ी हमको इस जन्म में अपने छक्के-चौकों से हिला-हिलाकर हलकान किये हैं उनको आप अगले जनम चीयरलीडरई का काम देना। साथ में उनको इस जनम के मैचों की यादे भी देना ताकि उनको यह एहसास हो सके कि उनकी हरकतों के चलते हमारे नाजुक शरीर की क्या गत होती होगी।
खैर हमारी छोड़िये। आप बताइये आपके क्या विचार हैं इस बारे में?
Posted in बस यूं ही | 41 Responses
राहुल बाबा नहीं जी, द्रवीड !
हो सकता है। जब गावस्कर जी ने साठ ओवर में छत्तीस रन नाटआउट बनाये थे तब कई चीयरलीडरानियां पैदा भी न हुई होगी। शायद इसीलिये वे राहुल द्रविड़ को हीरो मानती होंगी। जानकारी का अभाव गलत चुनाव करवा सकता है।
पर मैं सोच रहा हूं कि इन सुंदर बालाओं के मनोभावों के पढ़ने के लिए आपने क्रिकेट देखते समय चीयरलीडर्स को कितने ध्यान से देखा होगा… और भाभीजी सोच रहे होंगे कि आप “क्रिकेट” देख रहे हैं
सिद्धार्थ जोशी की हालिया प्रविष्टी..लो आ गया नया ज्योतिषी
जब हम क्रिकेट देखते हैं तो अगर दिखता है तो चीयरबालाओं को सबसे ज्यादा देखते हैं। यह सच है कि हमको उनकी मेहनत देखकर कष्ट होता है। पत्नीजी अगर देखते हुये देख लेती हैं तो उसका भी इलाज है -उनकी तारीफ़ कर देते हैं।
इतना अंदरुनी खबर -मुला एकाध बात वह आपसे भी नहीं बतायी ….जैसा उसने कहा -
हे भगवान् आज तो हम अपनी मासिक धरम से हैं ….
Arvind Mishra की हालिया प्रविष्टी..शहर में मोर नाचा सबने देखा!
इतनी अंतरंग बातें चीयरबालायें आपके साथ ही शेयर कर सकती हैं। सखी भाव से।
सही कह रहे हैं आप। अब क्रिकेट में जो-जो चीजें जुड़ती जा रही हैं उनको देखकर लगता है क्रिकेट बड़ा बवाल हो गया है।
उन पर क्या बीतती है यह अध्ययन का विषय है। वैसे सच यह है कि उन पर जो बीतने के बाद उनके मन में भी इसी तरह चीयरबालाओं के लिये सहानुभूति उपजने लगती होती होगी। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ।
Amit Srivastava की हालिया प्रविष्टी..T-39 – C- लोको कॉलोनी
फ़ीयरगर्ल के लिये पति सिर्फ़ एक आइटम होता है। वे उनसे मन,मौका और मूड के अनुसार बर्ताव करती हैं। विस्तार से तुम्हारी शंका का समाधान इस पोस्ट में मिल सकता है
http://hindini.com/fursatiya/archives/662
सही है भाई। चीयरबालाओं की ही तरह शापिंग माल्स में देखिये सेल्स ब्वाय /गर्ल्स दिन भर खड़े-खड़े हलकान हो जाते हैं। उनके लिये बैठने तक का इंतजाम नहीं होता। चमकदार दिखती चीजों की कितनी क्रूर व्यवस्था होती है!
अल्पवसना किस भार से संतप्त हो देवी कहो?
धीरज धरो संसार में किसके नहीं दुर्दिन फिरे,
ठुमके लगाने से कहीं छक्केबाज के विकेट गिरे।
कुछ और कीजिए अबला, जो ये भूतल पर गिरे।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..पक्षी प्रवास पर क्यों जाते हैं
Ghanshyam Maurya की हालिया प्रविष्टी..ज्योतिषी
घोर कलजुग महाराज.. घोर कलजुग!!!
Prashant Priyadarshi (जो जानता है कि कुश चोर नहीं है) की हालिया प्रविष्टी..ये सिस्टम जो हमें भ्रष्ट होने पर मजबूर करता है
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..खंडित विश्वास -सतीश सक्सेना
आभार
उस वक्त का क्रिकेट सफ़ेद था, आज का क्रिकेट रंगीन है…
जय हिंद…
Khushdeep Sehgal, Noida की हालिया प्रविष्टी..It happens only in Indiaअद्भुत तस्वीरेंखुशदीप
लेकिन आज तो व्यंग्य के साथ-साथ कुछ दर्द भी दिखा आपकी पोस्ट में … जैसे कि ” अगर कोई हमसे पूछे तो मैं यही चाहता हूं कि चीयरबालाओं से इतनी मेहनत न कराई जाये। कम से कम उनको बैठने के लिये स्टूल और पहनने के लिये पूरे कपड़े मुहैया कराये जायें।”
aradhana chaturvedi “mukti” की हालिया प्रविष्टी..खुश रहने की कुछ वजहें
बैट्समैन के हट जाने से बालर का अमेरिका के सातवें बेड़े की तरह लौट जाने की उपमा अद्भुत है. एक से बढ़कर क्रिकेट के खेल पर बड़ी बारीक दृष्टि डाली है आपने.
मुझे यह लगता है की क्रिकेट खुद इतना मनोरंजक खेल है. उसके लिए बाकी चिरकुटई जैसे वीजे, दीजे, चीयर बालों का नाच वगैरह नहीं होने से भी चल जाएगा. लेकिन अब हम उस ज़माने में रह रहे हैं जिसमें एक चीज को दुसरे से जोड़ देना बढ़िया बिजनेस सेन्स कहलाता है.
हां, इल्जाम ही है ये
“सौंन्दर्य की इत्ती खुलेआम बेइज्जती और कहीं नहीं खराब होती जितनी चीयरबालाओं की होती है”
सही है. तकलीफ़्देह भी.
“क्या इससे यह समझा जाये कि आजकल खिलाड़ी पुराने जमाने के ऋषियों-मुनियों की तुलना में ज्यादा संयमी होते हैं।”
न, सौंदर्य के इस मुक्त और सुलभ दर्शन की उन्हें आदत हो गयी है.
“अगर कोई हमसे पूछे तो मैं यही चाहता हूं कि चीयरबालाओं से इतनी मेहनत न कराई जाये। कम से कम उनको बैठने के लिये स्टूल और पहनने के लिये पूरे कपड़े मुहैया कराये जायें।”
काश कोई पूछ ही ले……
व्यंग्य के पीछे खूब दर्द समेटा है चीयरबालाओं का, जिनके मन के बारे में कोई सोचता ही नहीं.
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..दिल बोले अन्ना मेरा गाँधी
शुरू में तो ४-५ पैराग्राफ निकल गए तो हमें लगा कि अभी तक चीयर लिडरनियाँ आई ही नहीं. लेकिन जब आई तो बिजली के नंगे तार के झटके के साथ. गजब !
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..खिली-कम-ग़मगीन तबियत भाग २
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..दुनिया की सबसे बेहतरीन और तेज इंटरनेट सेवा
नितिन की हालिया प्रविष्टी..विश्व विकास यात्रा
amrendra nath tripathi की हालिया प्रविष्टी..कविता – कुपंथी औलाद रफ़ीक शादानी
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..गर्मी-Summer
“चौकाखोर कहीं का। छक्केबाज नहीं तो। ”
“हे भगवान, आज का मैच लो स्कोरिंग करा दो। कमरदर्द के मारे बुरा हाल है। आपसे तो कुछ छिपा नहीं भगवान। आज सहवाग,पठान को जल्दी आउट कर दो। केवल नीचे के ठुकठुकिया खिलाड़ियों को विकेट पर टिकाओ। सौ रुपये का प्रसाद चढ़ाउंगी।”
vijay gaur की हालिया प्रविष्टी..तेहरान की सड़क पर
मौज मौज में कड़वा सच कह गए यही खासियत है आपकी…..
–आशीष श्रीवास्तव
प्रणाम.