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ये पीला वासन्तिया चांद
By फ़ुरसतिया on May 14, 2011
कल डा.अनुराग ने प्रेम गली अति सांकरी पर टिपियाते हुये लिखा-
यादें समेटते हुयी याद आयी एक और ठोस मादा पात्र। हमारे स्कूल से घर के रास्ते में बकरमंडी की ढाल उतर के थाना बजरिया के पास एक सुरसा की मूर्ति थी। मुंह खोले बडी नाक वाली। स्कूल से लौटते समय हम भाग के मूर्ति की नाक में उंगली करते। जो पहले करता वह खुश होता कि यह बेवकूफी उसने पहले कर ली। पर इसे तो कोई प्यार नहीं मानेगा इसलिये छोड़ा जाये इसे।
हमारे एक दोस्त हैं। स्वभाव से प्रेमीजीव। उनके बारे में हम अक्सर कहते कि दो अंकों की उमर वाली कोई भी मादा उनके लिये आकर्षण का कारण बन सकती है। दोनो की उमर के बीच का फासला जितना कम होगा और सम्बंधो(रिश्ते) में जितनी दूरी होगी यह संबंध उतना ही प्रगाढ होगा। कई किस्से चलन में थे उनके,जिनका प्रचार वे खुद करते। पर उनके बारे में फिर कभी।
तो हमारे साथ यह संयोग रहा कि किसी से इतना नहीं लटपटा पाये कभी कि किसी का चेहरा हमारी नींद में खलल डाल पाये या किसी की आंख का आंसू हमें परेशान करे तथा हम कहने के लिये मजबूर हों:
सुनो ,
अब जब भी कहीं
कोई झील डबडबाती है
मुझे,
तुम्हारी आंख मे
ठिठके हुये बेचैन
समंदर की याद आती है।
आज जब मैं सोचता हूं कि ऐसा क्या कारण रहा कि बिना प्यार की गली में घुसे जिन्दगी के राजमार्ग पर चलने लगे। बकौल जीतेन्द्र बिना प्यार किये ये जिन्दगी तो अकारथ हो गयी। कौन है इस अपराध का दोषी। शायद संबंधों का अतिक्रमण न कर पर पाने की कमजोरी इसका कारण रही हो। मोहल्ला स्तर पर सारे संबंध यथासंभव घरेलू रूप लिये रहते हैं। हम उनको निबाहते रहे। जैसे थे वैसे। कभी अतिक्रमण करने की बात नहीं सोची। लगे रहे किताबी पढाई में। जिंदगी की पढाई को अनदेखा करके। कुछ लोगों के लिये संबंधों का रूप बदलना ब्लागस्पाट का टेम्पलेट बदलना जितना सरल होता है। पर हम इस मामले में हमेशा ठस रहे। मोहल्ले के बाद कालेज में भी हम बिना लुटे बचे रहे।
इस तरह हम अपनी जवानी का जहाज बिना किसी बेवकूफी की भंवर में फंसाये ठाठ से ,यात्रा ही मंजिल है का बोर्ड मस्तूल से चिपकाये , समयसागर के सीने पर ठाठे मार रहे थे कि पहुंचे उस किनारे पर जहां हमारा जहाज तब से अब तक लंगर डाले है। मेरी पहली मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से 10-15 मिनट की थी। उतनी ही देर में हम यह सोचने को बाध्य हुये जब शादी करनी ही है तो इससे बेहतर साथी न मिलेगा। दूर-दूर तक शादी की योजना न होने के बावजूद मैने शादी करने का निर्णय ले लिया। यह अपनी जिन्दगी के बारे में लिया मेरा पहला और अन्तिम निर्णय था, और हम आज तक अपने इस एकमात्र निर्णय पर फिदा हैं—रपट पडे तो हर गंगा।
कहते हैं कि जीवनसाथी और मोबाइल में यही समानता है कि लोग सोचते हैं -अगर कुछ दिन और इन्तजार कर लेते तो बेहतर माडल मिल जाता।पर अपने मामले में मैं इसे अपवाद मानता हूं।
मेरे शादी के निर्णय के बाद कुछ दिन मेरे घर वाले लटकाये रहे मामला। न हां , न ना। ये कनौजिया लटके-झटके होते हैं। शादी की बात के लिये लड़की वाला जाता है तो लड़के वाले कहते हैं—अभी कहां अभी तो हमें लडकी(शायद जिसने स्कूल जाना हाल में ही शुरु किया हो )ब्याहनी है। हमें एहसास था इस बात का। सो हम वीर रस का संचार करते हुये आदर्शवाद की शरण में चले गये। दाग दिया डायलाग भावी पत्नीजी से—हमारे घर वाले थोड़ा नखरा करेंगे पर मान जायेंगे। पर जिस दिन तुम्हे लगे कि और इन्तजार नहीं कर सकती तो बता देना मैं उसी दिन शादी कर लूंगा। हमें लगा कि महानता का मौका बस आने ही वाला है। पर हाय री किस्मत। घर वालों ने मुझे धोखा दिया। उनके इन्तजार की मिंयाद खतम होने से पहले ही अपनी नखरे की पारी घोषित कर दी। हम क्रान्तिकारी पति बनने से वंचित होकर एक अदद पति बन कर रह गये।
आदर्शवादी उठान तथा पतिवादी पतन के बीच के दौर में हमने समय का सदुपयोग किया और वही किया जो प्रतीक्षारत पति करते हैं। कुछ बेहद खूबसूरत पत्र लिखे। जो बाद में प्रेम पत्र के नाम से बदनाम हुये। इतनी कोमल भावनायें हैं उनकी कि बाहरी हवा-पानी से बचा के सहेज के रखा है उन्हें। डर लगता है दुबारा पढ़ते हुये–कहीं भावुकता का दौरा ना पड जाये।
उन्हीं किन्हीं दिनों किसी दिन सबेरे-सबेरे एक कविता लिखी जिसके बारे में हम कहते हैं पत्नी से कि तुम्हारे लिये लिखी है।
इतने संक्षिप्त घटनाक्रम के बाद हम शादीगति को प्राप्त हुये। दिगदिगान्तर में हल्ला हो गया कि इन्होंने तो प्रेमविवाह किया है। कुछ दिन तो हम बहुत खुश रहे कि यार ये तो बड़ा बढ़िया है। एक के साथ एक मुफ्त वाले अंदाज में शादी के साथ प्रेम फालतू में।
पर कुछ दिन बाद हमें शंका हुयी कुछ बातों से। हमने अपने कुछ दोस्तों से राय ली। पूछा–क्या यही प्यार है! लोगों ने अलग-अलग राय दी। हम कन्फूजिया गये। फिर हमारे एक बहुपाठी दोस्त ने सलाह दी कि तुम किसी के बहकावे में न आओ। ये किताबें ले जाओ। दाम्पत्य जीवन विशेषांक की। इनमें लिटमस टेस्ट दिये हैं यह जानने के लिये कि आप अपने जीवन साथी को कितना प्यार करते हैं। इनको हल करके पता कर लो असलियत। हमने उन वस्तुनिष्ठ सवालों को पूरी ईमानदारी से हल किया तो पाया कि बहुत तो नहीं पर पास होने लायक प्यार करते हम अपनी पत्नी को। कुछ सलाह भी दी गयीं थीं प्यार बढ़ाने के लिये।
अब चूंकि परचे आउट थे सो हम दुबारा सवाल हल किये। मेहनत का फल मिला। हमारा प्यार घंटे भर में ही दोगुना हो गया। फिर मैंने सोचा देखें हमारी पत्नी हमें कितना चाहती है। उसकी तरफ से परचा हल किया। हमें झटका लगा। पता चला वह हमें बहुत कम चाहती है। बहुत बुरा लगा मुझे । ये क्या मजाक है? खैर पानी पीकर फिर सवाल हल किये उसकी तरफ से। नंबर और कम हो गये थे। फिर तो भइया न पूंछो। हमने भी अपने पहले वाले नंबर मिटाकर तिबारा सवाल हल किये। नंबर पत्नी के नंबर से भी कम ले आये। जाओ हम भी नहीं करते प्यार।
वैसे भी कोई कैसे उस शख्स को प्यार कर सकता है जिसके चलते उसकी दुकान चौपट हो गयी हो। शादी के पहले घर में मेरी बहुत पूछ थी। हर बात में लोग राय लेते थे। शादी के हादसे के बाद मैं नेपथ्य में चला गया। मेरे जिगरी दोस्त तक तभी तक मेरा साथ देते जब तक मेरी राय पत्नी की राय एक होती। राय अलग होते ही बहुमत मेरे खिलाफ हो जाता। मै यही मान के खुश होता कि बहुमत बेवकूफों का है। पर खुशफहमी कितने दिन खुश रख सकती है।
रुचि, स्वभाव तथा पसंद में हमारे में 36 का आंकड़ा है। वो सुरुचि संपन्नता के लिये जानी जाती हैं मैं अपने अलमस्त स्वभाव के लिये। मुझे कोई भी काम निपटा देना पसंद है। उसको मनमाफिक न होने पर पूरे किये को खारिज करके नये सिरे से करने का जुनून। मुझे हर एक की खिंचाई का शौक है। बीबीजी अपने दुश्मन से भी इतने अदब से बात करती हैं कि बेचारा अदब की मौत मर जाये।
जब-जब मुझसे जल्दी घर आने को कहा जाता है, देर हो जाती है। जब किसी काम की आशा की जाती है, कभी आशानुसार काम नहीं करता। जब कोई आशा नहीं करता मैं काम कर देता हूं। झटका तब लगता है जब सुनाया जाता है- हमें पता था तुम ऐसा ही करोगे।
जब बीबी गुस्साती है हम चुप रहते हैं (और कर भी क्या सकते हैं) जब मेरा गुस्सा करने का मन करता तो वह हंसने लगती है। परस्पर तालमेल के अभाव में हम आजतक कोई झगड़ा दूसरे दिन तक नहीं ले जा पाये।
एक औसत पति की तरह मुझे भी पत्नी से डरने की सुविधा हासिल है। हम कोई कम डरपोंक थोड़ी हैं। पर यह डर उसके गुस्से नाराजगी से नहीं उसकी चुप्पी से है। ऐसे में हम लगा देते हैं ‘अंसार कंबरी’ की कविता:-
पर दुनिया में भलाई का जमाना नहीं। कुछ लोगों ने अफवाह उड़ा दी कि हम लोग बड़े खुश मिजाज है। लोगों के लिये हमारा घर तनाव मुक्ति केन्द्र बना रहा(जाहिर है मेरे लिये तनाव केन्द्र)शाहजहांपुर में।
ऐसे में व्यक्ति विकल्प खोजता है। मैंने भी कोशिश की। टुकड़ों-टुकड़ों मे तमाम महिलाओं में तमाम गुण, चीजें देखीं जो मुझे लगातार आकर्षित करते रहे। पर टुकड़े, टुकड़े ही रहे। उन टुकड़ों को जोड़कर कोई मुकम्मल कोलाज ऐसा नहीं बन पाया आज तक जो मेरी बीबी की जगह ले सके। विकल्पहीनता की स्थिति में खींच रहे हैं गाडी- इश्क का हुक्का गुड़गुड़ाते हुये।
पत्नी आजकल बाहर रहती हैं। हफ्ते में मुलाकात होती है (इसई लिये हम उनको वीकेन्ड वाइफ़ कहते हैं) :)। चिन्ता का दिखावा बढ़ गया है हमारा। दिन में कई बार फोन करने के बाद अक्सर गुनगुनाते हैं:
ये भी देख , पढ़, सुन लें अगर मौका और मन हो:
तुम,
कोहरे के चादर में लिपटी,
किसी गुलाब की पंखुङी पर
अलसाई सी,ठिठकी
ओस की बूंद हो.
नन्हा सूरज ,
तुम्हे बार-बार छूता ,खिलखिलाता है.
मैं,
सहमा सा दूर खड़ा
हवा के हर झोंके के साथ
तुम्हे गुलाब की छाती पर
कांपते देखता हूं।
अपनी हर धड़कन पर
मुझे सिहरन सी होती है
कि कहीं इससे चौंककर
तुम ,
फूल से नीचे न ढुलक जाओ।
-अनूप शुक्ल
आपकी इस गली में एंट्री का कोई जिक्र नहीं है….बड़ी सफाई से आपने यहाँ भी अपने ज़ज्बातो को कंट्रोल कर लिया है ….कसम उस पहले प्यार की शुक्ल जी…..आज बह जाने दीजिये ..बस कह डालिए !बाद में और साथियों ने भी डा.साहब की बात पर ध्यान देने की अनुरोध किया। डा.अनुराग की – सफ़ाई से जज्बातों पर कंट्रोल करने की बात इतने विश्वास से कही कि मेरा मन किया कि किसी और के किस्से अपने नाम से सटा दें। लेकिन फ़िर सोचा कि जिसका किस्सा होगा वह हल्ला मचायेगा। बदनामी होगी। बेइज्जती अलग से खराब होगी। इसलिये एक बार फ़िर से रिठेल का सहारा लिया जा रहा है और छह साल पहले की पोस्ट फ़िर से सटाई जा रही है। डा.अनुराग की आग्रह से फ़ायदा यह हुआ कि हमने अपने आलस्य को ठेंगा दिखाते हुये चौबीस साल पहले की फ़ोटो खोज निकाली जब हमारी मुलाकात अपनी होनी वाली पत्नी से हुई थी। मजे हैं। वही फ़ोटो यहां लगी है। यह फ़ोटो देखकर ख्याल आया- हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी!
ये पीला वासन्तिया चांद
पिछलीपोस्ट लिखते समय लगा कि अगली पोस्ट में तफसील से लिखेंगे। पर सब हवा हो गया। इसीलिये संतजन कहते हैं कि आज का काम कल पर नहीं छोडना चाहिये। पर अब क्या करें छूट गया सो छूट गया।यादें समेटते हुयी याद आयी एक और ठोस मादा पात्र। हमारे स्कूल से घर के रास्ते में बकरमंडी की ढाल उतर के थाना बजरिया के पास एक सुरसा की मूर्ति थी। मुंह खोले बडी नाक वाली। स्कूल से लौटते समय हम भाग के मूर्ति की नाक में उंगली करते। जो पहले करता वह खुश होता कि यह बेवकूफी उसने पहले कर ली। पर इसे तो कोई प्यार नहीं मानेगा इसलिये छोड़ा जाये इसे।
हमारे एक दोस्त हैं। स्वभाव से प्रेमीजीव। उनके बारे में हम अक्सर कहते कि दो अंकों की उमर वाली कोई भी मादा उनके लिये आकर्षण का कारण बन सकती है। दोनो की उमर के बीच का फासला जितना कम होगा और सम्बंधो(रिश्ते) में जितनी दूरी होगी यह संबंध उतना ही प्रगाढ होगा। कई किस्से चलन में थे उनके,जिनका प्रचार वे खुद करते। पर उनके बारे में फिर कभी।
तो हमारे साथ यह संयोग रहा कि किसी से इतना नहीं लटपटा पाये कभी कि किसी का चेहरा हमारी नींद में खलल डाल पाये या किसी की आंख का आंसू हमें परेशान करे तथा हम कहने के लिये मजबूर हों:
सुनो ,
अब जब भी कहीं
कोई झील डबडबाती है
मुझे,
तुम्हारी आंख मे
ठिठके हुये बेचैन
समंदर की याद आती है।
आज जब मैं सोचता हूं कि ऐसा क्या कारण रहा कि बिना प्यार की गली में घुसे जिन्दगी के राजमार्ग पर चलने लगे। बकौल जीतेन्द्र बिना प्यार किये ये जिन्दगी तो अकारथ हो गयी। कौन है इस अपराध का दोषी। शायद संबंधों का अतिक्रमण न कर पर पाने की कमजोरी इसका कारण रही हो। मोहल्ला स्तर पर सारे संबंध यथासंभव घरेलू रूप लिये रहते हैं। हम उनको निबाहते रहे। जैसे थे वैसे। कभी अतिक्रमण करने की बात नहीं सोची। लगे रहे किताबी पढाई में। जिंदगी की पढाई को अनदेखा करके। कुछ लोगों के लिये संबंधों का रूप बदलना ब्लागस्पाट का टेम्पलेट बदलना जितना सरल होता है। पर हम इस मामले में हमेशा ठस रहे। मोहल्ले के बाद कालेज में भी हम बिना लुटे बचे रहे।
इस तरह हम अपनी जवानी का जहाज बिना किसी बेवकूफी की भंवर में फंसाये ठाठ से ,यात्रा ही मंजिल है का बोर्ड मस्तूल से चिपकाये , समयसागर के सीने पर ठाठे मार रहे थे कि पहुंचे उस किनारे पर जहां हमारा जहाज तब से अब तक लंगर डाले है। मेरी पहली मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से 10-15 मिनट की थी। उतनी ही देर में हम यह सोचने को बाध्य हुये जब शादी करनी ही है तो इससे बेहतर साथी न मिलेगा। दूर-दूर तक शादी की योजना न होने के बावजूद मैने शादी करने का निर्णय ले लिया। यह अपनी जिन्दगी के बारे में लिया मेरा पहला और अन्तिम निर्णय था, और हम आज तक अपने इस एकमात्र निर्णय पर फिदा हैं—रपट पडे तो हर गंगा।
कहते हैं कि जीवनसाथी और मोबाइल में यही समानता है कि लोग सोचते हैं -अगर कुछ दिन और इन्तजार कर लेते तो बेहतर माडल मिल जाता।पर अपने मामले में मैं इसे अपवाद मानता हूं।
मेरे शादी के निर्णय के बाद कुछ दिन मेरे घर वाले लटकाये रहे मामला। न हां , न ना। ये कनौजिया लटके-झटके होते हैं। शादी की बात के लिये लड़की वाला जाता है तो लड़के वाले कहते हैं—अभी कहां अभी तो हमें लडकी(शायद जिसने स्कूल जाना हाल में ही शुरु किया हो )ब्याहनी है। हमें एहसास था इस बात का। सो हम वीर रस का संचार करते हुये आदर्शवाद की शरण में चले गये। दाग दिया डायलाग भावी पत्नीजी से—हमारे घर वाले थोड़ा नखरा करेंगे पर मान जायेंगे। पर जिस दिन तुम्हे लगे कि और इन्तजार नहीं कर सकती तो बता देना मैं उसी दिन शादी कर लूंगा। हमें लगा कि महानता का मौका बस आने ही वाला है। पर हाय री किस्मत। घर वालों ने मुझे धोखा दिया। उनके इन्तजार की मिंयाद खतम होने से पहले ही अपनी नखरे की पारी घोषित कर दी। हम क्रान्तिकारी पति बनने से वंचित होकर एक अदद पति बन कर रह गये।
आदर्शवादी उठान तथा पतिवादी पतन के बीच के दौर में हमने समय का सदुपयोग किया और वही किया जो प्रतीक्षारत पति करते हैं। कुछ बेहद खूबसूरत पत्र लिखे। जो बाद में प्रेम पत्र के नाम से बदनाम हुये। इतनी कोमल भावनायें हैं उनकी कि बाहरी हवा-पानी से बचा के सहेज के रखा है उन्हें। डर लगता है दुबारा पढ़ते हुये–कहीं भावुकता का दौरा ना पड जाये।
उन्हीं किन्हीं दिनों किसी दिन सबेरे-सबेरे एक कविता लिखी जिसके बारे में हम कहते हैं पत्नी से कि तुम्हारे लिये लिखी है।
इतने संक्षिप्त घटनाक्रम के बाद हम शादीगति को प्राप्त हुये। दिगदिगान्तर में हल्ला हो गया कि इन्होंने तो प्रेमविवाह किया है। कुछ दिन तो हम बहुत खुश रहे कि यार ये तो बड़ा बढ़िया है। एक के साथ एक मुफ्त वाले अंदाज में शादी के साथ प्रेम फालतू में।
पर कुछ दिन बाद हमें शंका हुयी कुछ बातों से। हमने अपने कुछ दोस्तों से राय ली। पूछा–क्या यही प्यार है! लोगों ने अलग-अलग राय दी। हम कन्फूजिया गये। फिर हमारे एक बहुपाठी दोस्त ने सलाह दी कि तुम किसी के बहकावे में न आओ। ये किताबें ले जाओ। दाम्पत्य जीवन विशेषांक की। इनमें लिटमस टेस्ट दिये हैं यह जानने के लिये कि आप अपने जीवन साथी को कितना प्यार करते हैं। इनको हल करके पता कर लो असलियत। हमने उन वस्तुनिष्ठ सवालों को पूरी ईमानदारी से हल किया तो पाया कि बहुत तो नहीं पर पास होने लायक प्यार करते हम अपनी पत्नी को। कुछ सलाह भी दी गयीं थीं प्यार बढ़ाने के लिये।
अब चूंकि परचे आउट थे सो हम दुबारा सवाल हल किये। मेहनत का फल मिला। हमारा प्यार घंटे भर में ही दोगुना हो गया। फिर मैंने सोचा देखें हमारी पत्नी हमें कितना चाहती है। उसकी तरफ से परचा हल किया। हमें झटका लगा। पता चला वह हमें बहुत कम चाहती है। बहुत बुरा लगा मुझे । ये क्या मजाक है? खैर पानी पीकर फिर सवाल हल किये उसकी तरफ से। नंबर और कम हो गये थे। फिर तो भइया न पूंछो। हमने भी अपने पहले वाले नंबर मिटाकर तिबारा सवाल हल किये। नंबर पत्नी के नंबर से भी कम ले आये। जाओ हम भी नहीं करते प्यार।
वैसे भी कोई कैसे उस शख्स को प्यार कर सकता है जिसके चलते उसकी दुकान चौपट हो गयी हो। शादी के पहले घर में मेरी बहुत पूछ थी। हर बात में लोग राय लेते थे। शादी के हादसे के बाद मैं नेपथ्य में चला गया। मेरे जिगरी दोस्त तक तभी तक मेरा साथ देते जब तक मेरी राय पत्नी की राय एक होती। राय अलग होते ही बहुमत मेरे खिलाफ हो जाता। मै यही मान के खुश होता कि बहुमत बेवकूफों का है। पर खुशफहमी कितने दिन खुश रख सकती है।
रुचि, स्वभाव तथा पसंद में हमारे में 36 का आंकड़ा है। वो सुरुचि संपन्नता के लिये जानी जाती हैं मैं अपने अलमस्त स्वभाव के लिये। मुझे कोई भी काम निपटा देना पसंद है। उसको मनमाफिक न होने पर पूरे किये को खारिज करके नये सिरे से करने का जुनून। मुझे हर एक की खिंचाई का शौक है। बीबीजी अपने दुश्मन से भी इतने अदब से बात करती हैं कि बेचारा अदब की मौत मर जाये।
जब-जब मुझसे जल्दी घर आने को कहा जाता है, देर हो जाती है। जब किसी काम की आशा की जाती है, कभी आशानुसार काम नहीं करता। जब कोई आशा नहीं करता मैं काम कर देता हूं। झटका तब लगता है जब सुनाया जाता है- हमें पता था तुम ऐसा ही करोगे।
जब बीबी गुस्साती है हम चुप रहते हैं (और कर भी क्या सकते हैं) जब मेरा गुस्सा करने का मन करता तो वह हंसने लगती है। परस्पर तालमेल के अभाव में हम आजतक कोई झगड़ा दूसरे दिन तक नहीं ले जा पाये।
एक औसत पति की तरह मुझे भी पत्नी से डरने की सुविधा हासिल है। हम कोई कम डरपोंक थोड़ी हैं। पर यह डर उसके गुस्से नाराजगी से नहीं उसकी चुप्पी से है। ऐसे में हम लगा देते हैं ‘अंसार कंबरी’ की कविता:-
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिये,ये 36 के आंकड़े बताते हैं कि हमारे घर में ई.आर.पी.तकनीक बहुत पहले से लागू से है। किसी स्वभाव,गुण,रुचि की डुप्लीकेटिंग नहीं।
शर्त ये है कि तुम कुछ कहो तो सही।
पढ़ सको तो मेरे मन की भाषा पढ़ो,
मौन रहने से अच्छा है झुंझला पड़ो।।
पर दुनिया में भलाई का जमाना नहीं। कुछ लोगों ने अफवाह उड़ा दी कि हम लोग बड़े खुश मिजाज है। लोगों के लिये हमारा घर तनाव मुक्ति केन्द्र बना रहा(जाहिर है मेरे लिये तनाव केन्द्र)शाहजहांपुर में।
ऐसे में व्यक्ति विकल्प खोजता है। मैंने भी कोशिश की। टुकड़ों-टुकड़ों मे तमाम महिलाओं में तमाम गुण, चीजें देखीं जो मुझे लगातार आकर्षित करते रहे। पर टुकड़े, टुकड़े ही रहे। उन टुकड़ों को जोड़कर कोई मुकम्मल कोलाज ऐसा नहीं बन पाया आज तक जो मेरी बीबी की जगह ले सके। विकल्पहीनता की स्थिति में खींच रहे हैं गाडी- इश्क का हुक्का गुड़गुड़ाते हुये।
पत्नी आजकल बाहर रहती हैं। हफ्ते में मुलाकात होती है (इसई लिये हम उनको वीकेन्ड वाइफ़ कहते हैं) :)। चिन्ता का दिखावा बढ़ गया है हमारा। दिन में कई बार फोन करने के बाद अक्सर गुनगुनाते हैं:
फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न होसाथ ही सैंकड़ो बार सुन चुके गीत का कैसेट सुन लेता हूं:
शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना,
चित्र उभरे कई किंतु गुम हो गये
मैं जहां था वहां तुम ही तुम हो गये
लौट आने की कोशिश बहुत की मगर
याद से हो गाया आमना-सामना।
ये पीला वासन्तिया चांद,इस गीत की आखिरी पंक्तियां हैं:
संघर्षों में है जिया चांद,
चंदा ने कभी राते पी लीं,
रातों ने कभी पी लिया चांद.
राजा का जन्म हुआ था तोपहली बार यह गीत संभावित पत्नी से तब सुना था जब हमारे क्रान्तिकारी पति बनने की संभावनायें बरकरार थीं, महानता से सिर्फ चंद दिन दूर थे हम। आज सारी संभावनायें खत्म हो चुकी हैं पर गीत की कशिश जस की तस बरकरार है।
उसकी माता ने चांद कहा
इक भिखमंगे की मां ने भी
अपने बेटे को चांद कहा
दुनिया भर की माताओं से
आशीषें लेकर जिया चांद !
ये पीला वासन्तिया चांद,
संघर्षों में है जिया चांद।
ये भी देख , पढ़, सुन लें अगर मौका और मन हो:
- स्व. कन्हैयालाल नंदन की कविता उनकी आवाज में – सुनो अब जब भी कहीं कोई झील डबडबाती है
- हमारे विवाह के अवसर पर गाया गया मंगल गीत -जीवन पथ पर मिले इस तरह
- हम घिरे हैं पर बवालों से
मेरी पसंद
तुम,
कोहरे के चादर में लिपटी,
किसी गुलाब की पंखुङी पर
अलसाई सी,ठिठकी
ओस की बूंद हो.
नन्हा सूरज ,
तुम्हे बार-बार छूता ,खिलखिलाता है.
मैं,
सहमा सा दूर खड़ा
हवा के हर झोंके के साथ
तुम्हे गुलाब की छाती पर
कांपते देखता हूं।
अपनी हर धड़कन पर
मुझे सिहरन सी होती है
कि कहीं इससे चौंककर
तुम ,
फूल से नीचे न ढुलक जाओ।
-अनूप शुक्ल
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अगर कुछ दिन और इन्तजार कर लेते तो बेहतर माडल मिल जाता… बड़े पते की बात कही आपने….:)
mukesh sinha की हालिया प्रविष्टी..लेंड-क्रूजर का पहिया
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सुकला जी ये लिंक पल मेरे मेल पर भेज दे.
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संस्कार अनुशासित, आपकी यह खालिस प्रेमकथा सचमुच बहुत रोचक है खासकर विवाहोपरान्त जुगलबन्दी। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप दोनो के बीच ६३ का आंकड़ा बना रहे।
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[...] कल और आज कुछ पुरानी पोस्टों की पॉडकास्टिंग की। सोच बहुत दिन से रहे थे लेकिन कल करने का मुहूर्त कल ही निकला। हुआ असल में ये कि हम माइक तो बहुत पहले से खरीद के धरे थे लेकिन वह खाली सुनने के काम आ रहा था। जब भी कुछ रिकार्डिंग करने की कोशिश की मौन रिकार्ड हुआ। दो दिन पहले एक को दिखाया तो पता चला कि रिकार्डिंग का बटन बंद किये थे। म्यूट पर रिकार्डिंग हो रही थी तो मौन ही तो पसेगा रिकार्ड में। बहरहाल एक बार जब शुरु हुये तो कई करते गये। सुनिये यहां, यहां और यहां। [...]
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दुबारा पढ़ा। पहले भी अच्छा लगा होगा लेकिन आज तो ग़ज़ब लगा।
ढेर सारी शुभकामनाएँ…
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bahut khoob…badhaai aap dono ko
आपने भी कभी गाना गाया या नहीं…तुझ में रब दिखता है यारा मैं क्या करूं….
जय हिंद…
आशीष श्रीवास्तव ‘झालीया वाले!’ की हालिया प्रविष्टी..बृहस्पति-मंगल-बुध और शुक्र एक रेखा मे !
इतना दीर्ध लेखन क्यों करते हैं आप…
छोटा लेख क्यों नहीं लिखते हैंsssss….
एक बात पूछूं भाभीजी को पढ़ाया क्या…
सिद्धार्थ जोशी की हालिया प्रविष्टी..ज्ञान है- अंतर्ज्ञान है- पर अनुभव की परिपक्वता
पोस्ट तो बाद में पढ़ेंगे।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..रंग-भेद
लखीमपुर वाली भाभी जी बहुत अच्छी हैं। लोगो को अदब से मार देने की खासियत लखीमपुर वालों में भरपूर होती है :p पहली तस्वीर उस दुनिया में जैसे ले जाकर छोड आती है और मुस्कराने पर मजबूर कर देती है
ये मुस्कराहटें हमेशा यूं ही रहें.. Touchwood!
पंकज उपाध्याय की हालिया प्रविष्टी..वे दिन
क्या सही बात कही … जो बड़े थे वो हमारे लिए दीदी-भैया और जो छोटे थे हम उनके लिए।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..रंग-भेद
आप ने शादी के पहले यह भी अवसर पा ही लिया। यहां तो ….
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..रंग-भेद
बहुत बढ़िया लगा आपका गढ़ना और मुझे पढ़ना।
लगा मेरी अपनी बात आपके मुंह से सुन रहा हूं, सिवाए १०-१५ मिनट के।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..रंग-भेद
शादीगति
प्यार का लिटमस टेस्ट
परचे आउट
महानता से सिर्फ चंद दिन दूर
ओर
पहला प्यार पत्नी से ..!
आखिरी वाली बात पे जबरिया स्टेम्प लगा देते है .सहमति की ….
क्या सोचा था …..के कानपूर की किसी गली का ब्यौरा मिलेगा… किसी मास्टर जी बेटी पानी का गिलास पकडाते पकडाते आपका दिल ले बैठी होगी…..या छत पे पतंग उड़ाते उड़ाते ..या मोहल्ली की दो अंको वाली कोई कन्या …..पर आपने तो ख्वाबो का एक दम :दी एंड “कर दिया ….
फोटो चकाचक है ..आप लकी है जी !
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..कभी चलना आसमानों पे मांजे की चरखी ले के
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..तुम नहीं समझोगी !
ऐसा ही होता है
या ब्रह्म ज्ञान संतकिरपा से ही प्राप्त होता है
जय ही बाबा की
उत्तर रामचरित मानस में कागभुसुन्दी संवाद में पढ़ा था की उनके आश्रम के एक योजन की परिधि में आने वाले प्राणी का ह्रदय संतत्व से पूरित हो जाता था. वही स्थिति यहाँ पर भी है. यहाँ आने या परिधिक्षेत्र में प्रवेशमात्र से जो मौजत्व की प्राप्ति होती है उसका वर्णन शेष महेश सुरेश गणेश मिलकर भी नही कर सकते.
मस्त….
लिटमस टेस्ट ने तो दिल ही जीत लिया.. अति आनंदमय… इसे कहते है असली मोती
कुश भाई “जो चोर नहीं है ” की हालिया प्रविष्टी..सुगर क्यूब पिक्चर्स प्रजेंट्स सिक्का
पहले पढ़ा था. आज फिर से पढ़ लिया.
प्रणाम.
मेरी नज़र में एक व्यंगकार के रूप में आप अनूप नहीं अनुपम हैं. (साथ में खेर या शुक्ल में से जो चाहे लगा लें आपकी वेल्यु कम नहीं होगी ) अतः इस विषय में इससे ज्यादा वाहवाही ठीक नहीं. मैं तो सिर्फ यह कहना चाहता हूँ की आपकी नयी और पुरानी तस्वीर का आंकलन करके मुझे ये ज्ञात हुआ की एक व्यंगकार होने से पहले आप एक सुन्दर सुशील गुणी युवक थे और बढ़ती तोंद ने आपको व्यंगकार बना दिया.
मेरी नज़र में एक व्यंगकार के रूप में आप अनूप नहीं अनुपम हैं. (साथ में खेर या शुक्ल में से जो चाहे लगा लें आपकी वेल्यु कम नहीं होगी ) अतः इस विषय में इससे ज्यादा वाहवाही ठीक नहीं. मैं तो सिर्फ यह कहना चाहता हूँ की आपकी नयी और पुरानी तस्वीर का आंकलन करके मुझे ये ज्ञात हुआ की एक व्यंगकार होने से पहले आप एक सुन्दर सुशील गुणी युवक थे और बढ़ती तोंद ने आपको व्यंगकार बना दिया.
deep pandey की हालिया प्रविष्टी..मुझे माफ़ करें मैंने कोशिश तो बहुत की पर चुप रह न पाया
Ghanshyam Maurya की हालिया प्रविष्टी..चालाकी
पत्नी के प्रति ये समर्पण-भाव ही पूरे परिवार को खुशहाल रखता है.
बहुत देर तक पुरानी वाली तस्वीर देखती रही, बहुत अच्छी है.
बाकी, अनुराग जी का कमेंट ही मेरा भी माना जाये.
Gyan Dutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..हरीलाल का नाव समेटना
विवाह का एक फ़ायदा जबर्दस्त होता है , मेरे ख्याल से ,वह यह कि ,शादी के बाद घर में सोने की जगह फ़िक्स हो जाती है कम से कम ।नही तो मालूम चला कि कोई मेहमान घर में आया और आप अपना चद्दर-तकिया लिये घूम रहे हैं ,कहीं छत पे या आंगन में या बरामदे में ,अथवा किसी के साथ लुढका दिया गया आपको ।
प्रेम-विवाह का फ़ायदा यह है कि आप इकबाले-जुर्म पहले ही कर चुके होते है और फ़िर सारे अपराध करते हैं ।अतः बड़ी आसानी से सभी से क्षमा दान और सहानुभूति मिलती रहती है ।
Amit Srivastava की हालिया प्रविष्टी..खूंटी पे टंगे जिस्म
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..मेरा नया ब्लॉगThoughts of a Lensसतीश पंचम
अब ऐसे टेस्ट पेपर सोल्व करेंगे तो यही होगा … बढ़िया पोस्ट …
sangeeta swarup की हालिया प्रविष्टी..तथागत
पहली तस्वीर तो माशाअल्लाह…
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..पुरानी कमीज
अब जब भी कहीं
कोई झील डबडबाती है
मुझे,
तुम्हारी आंख मे
ठिठके हुये बेचैन
समंदर की याद आती है।
पहले तो ये आपकी पूरी पोस्ट ही मन को छू गयी ,साथ हो तो ऐसा ,जब भी मुड़कर देखो तो जीने की वजह मिले ,.सफ़र हर हाल में अपना सुहाना रहे .
आप दोनों की फोटो देख चली आई ये तस्वीरे अनमोल है ,बीते हुए लम्हों को जिन्दा रखती है ,अपने में हुए बदलाव को जताती है ,एवं इतिहास दोहराती है ,वंदना की बात बहुत अच्छी लगी आपस में समर्पण का भाव ही रिश्तों को बांधे रखता है ,इतना कहना तो नहीं चाहिए था मुझे लेकिन दिल खुश हो गया ऐसे पावन बंधन को देख .इस पर मैं अभिमान कर सकती हूँ जहाँ बहुत कुछ है लेने को ,फिर पढने आऊँगी अभी मन नहीं भरा
भगवान आपकी जोड़ी सौ साल और ऐसी ही बनाये रखे, इसी जन्म में।
भाभी जी तो माशाल्लाह २४ साल बाद तो पहले से अधिक खूबसूरत लग रही हैं.
कविता भी अति सुन्दर है !
ये पोस्ट पहले भी पढ़ी थी ,आज फिर से पढ़ी , आज का हासिल ए पोस्ट यह है कि नाक में उंगली करने कि आदत आज की नहीं है , फुरसतिया बचपन से ही ऐसे है ……
हहहहहहाहा हहहहहहाहा
मज़ा आ गया जी , हम भी बचपन में ऐसे पंगे ले लिया करते थे…..
“-अगर कुछ दिन और इन्तजार कर लेते तो बेहतर माडल मिल जाता- ” हमारे मामले में भी अपवाद है ……..
—आशीष श्रीवास्तव
अच्छा? सच्ची क्या? ऐसी नाज़ुक पोस्ट तो जीवन और मानवीय मूल्यों के प्रति गहरी आस्था रखने वाला ही लिख सकता है. दोहरे व्यक्तित्व के स्वामी आप हैं नहीं, लिहाजा आपके इस कथन को मैं सिरे से नकारती हूँ
” अपनी जिन्दगी के बारे में लिया मेरा पहला और अन्तिम निर्णय था, और हम आज तक अपने इस एकमात्र निर्णय पर फिदा हैं”
अपने इस फैसले के बारे में सुमन जी का क्या ख़याल है???
प्यार का लिटमस टेस्ट मजेदार है……ये कहना भी कितना मासूमियत भरा है की-
“जाओ हम नहीं करते प्यार…”
अदब की मौत……मजेदार सुमन को पढाया न?
” चिन्ता का दिखावा बढ़ गया है हमारा। दिन में कई बार फोन करने के बाद अक्सर गुनगुनाते हैं”
ये कहने का मतलब ही है की आप दिखावा नहीं करते.
अपनी हर धड़कन पर
मुझे सिहरन सी होती है
कि कहीं इससे चौंककर
तुम ,
फूल से नीचे न ढुलक जाओ।
बहुत सुन्दर कविता है.
अब ये कहना तो बेकार है की आप दोनों का प्यार और बढे , क्योंकि इससे ज्यादा और क्या बढेगा? तो दोनों के इस सुंडा साथ को किसी की नज़र न लगे, चश्मेबद्दूर.
शानदार, अपनी तरह की एक अनोखी पोस्ट.
नंदन जी की आवाज़ में कवितायें सुनना अद्भुत अनुभव है. इतनी असरदार आवाज़ कम लोगों की होती है. आवाज़ और कविता दोनों ही दमदार.
आपकी शादी पर लिखा गया मंगलगीत सुना, मुझे मेरी शादी का अभिनन्दन-पात्र याद आ गया, जो मेरे पापा ने लिखा था. अब ये चलन ख़त्म हो गया है, लेकिन पहले ये शादी की तमाम रस्मों की ही तरह ज़रूरी होता था. बहुत बढ़िया है मंगलगीत.
वंदना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..डॉ कमलाप्रसाद- ऐसे कैसे चले गये आप
तो…….. यह पुरानी आदत है
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..डॉरघुवंश- Dr Raghuvansh
वक्त ज़रूरत ले जाया करूँ
सुरसा के मुंह में उंगली
आदर्शवादी उठान तथा पतिवादी पतन
इतने अदब से बात करती हैं कि बेचारा अदब की मौत मर जाये।
हमें पता था तुम ऐसा ही करोगे ।
यह पोस्ट पढ़ने पर आपको यही सुनने को मिलेगा, हमें पता था तुम ऐसा ही लिखोगे ।
चित तो उनकी रहती ही है, समय पड़ने पर पट भी उनके खाते में…. 36 का आँकड़ा, हुँह ।
सरासर झूठ .. फोटुआ में कईसी सट सट के खड़ी हैं, चलो हटो काहे को बनायी झूटी बतियाँ ।
लाज़वाब पोस्ट !
रुख से पर्दा जब बो सरकाएगें
कोहिनूर सी चमक हैं चहरे की
कब तक वो छुपा पायेंगें
सावन भी घिर आयेगा
जब वो इस अदा से जब वो लहरायेगें
बहारों के फूल तब खिल जायेगं
शुष्क होथों से जब वो मुस्करायेगें।
एकदम कम्पलीट पोस्ट है
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..इस लम्हे का ख़याल
वैसे अच्छा हुआ आपने कविता के कीटाणु जल्दी ही मार दिए…इतनी अच्छी कविता कीजियेगा तो कितने ब्लॉग-कवि तो अपनी दुकान बंद करके चल देंगे.
फोटो बड़ी मासूम है पहले वाली…कुछ पुराने दिन हमें भी याद आ गए.
चकाचक पोस्ट
Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..सो माय लव- यू गेम
“एक औसत पति की तरह मुझे भी पत्नी से डरने की सुविधा हासिल है। हम कोई कम डरपोंक थोड़ी हैं। ”
“बीबीजी अपने दुश्मन से भी इतने अदब से बात करती हैं कि बेचारा अदब की मौत मर जाये।”
“परस्पर तालमेल के अभाव में हम आजतक कोई झगड़ा दूसरे दिन तक नहीं ले जा पाये”
बहुत ही बढ़िया पंक्तियाँ लगीं…
देवांशु की हालिया प्रविष्टी..कहानी