http://web.archive.org/web/20140419215558/http://hindini.com/fursatiya/archives/2020
पिछले हफ़्ते सबेरे-सबेरे अनवरगंज रेलवे स्टेशन गये। कैमरा साथ लिये गये। सोचा कुछ खैचा-वैंचा जाये। जित्ती खैंची उनमें कुछ फ़ोटो ऐंची-तानी हो गयीं। लेकिन अब भाई फ़ोटो ही तो हैं कोई हीरोइन तो हैं नहीं कि हमेशा सुन्दर दिखें। सोते-जागते। सो हम कहे कोई नहीं आओ। जैसी हो पोस्ट हो जाओ। वैसे भी सौंन्दर्य तो देखने वाले की आंखों में होता है। है न!
ये पहला फोटो अनवरगंज रेलवे स्टेशन का है। गाड़ी जाने के बाद कैसा शान्ति दिखता है स्टेशन पर। लेकिन जाने के जरा पहिले देखिये। भागते-दौड़ते लोग। कुछ लोगों को भागते हुये ट्रेन मिल भी जाती है। दौड़ते हुये गाड़ी पकड़ने का सुख कैसा होता है? क्या कोई कवि इस पर कविता लिखा है आज तलक? अगर हमसे कोई कहे तो हम तो फ़ौरन शुरु हो जायेंगे। अरे अभी नहीं भाई! जब कोई कहेगा।
ये दूसरकी फोटो में देखिये ये भाई जी आसमान ताक रहे हैं। क्या सोच रहे होंगे? कोई बता सकता है भला? नयी सुबह इनके लिये क्या लायी होगी! हमने अपनी एक तथाकथित कविता में लिखा था:
दो साधु जी लोग रेलवे स्टेशन के बाहर सो रहे थे। सुबह हुई तो दरी-चादर तहाकर उठ गये। हम कई कोने से उनकी फोटो लिये लेकिन वह तस्वीर धुंधली ही रही। कविताई मुहावरे में कहा जाये तो इनकी किस्मत की तरह।
आगे देखा तो तमाम लोग सड़क किनारे सोये दिखे। कोई बेंच पर, कोई खटिया पर , कोई गुमटी पर। एक गुमटी पर लिखा था-
आजकल शहर की सड़कें सीवर लाइनें बिछने के लिये जगह-जगह खुद रही हैं। पूरा शहर राणा सांगा बना हुआ है। खुदाई के पहले सड़क पर सीवर पाइप लाकर रखे हुये हैं। लाइन से रखी सीवर लाइने देखिये। कितनी अनुशासित दिख रही हैं।
सुबह-सुबह मजूर लोग ठेले पर लोहा लादे चले जा रहे हैं। दोपहर में गर्मी बहुत होती है। इसलिये शायद सुबह का समय चुना गया होगा। अब तो कोलतार सड़कों पर उतना पिघलता नहीं। पहले कोलतार दोपहर में पिघलता था। मजूर लोग पैरों में बोरे बांधकर ठेला खींचते थे।
आगे एक मकान में देखा भैंसे मजे से रह रही हैं। खूब पानी का इंतजाम। जगह। शेड। बगल में कार। क्या जलवे हैं भैंसों के भी।
जगह-जगह फ़ुटपाथ पर/सड़क पर लोग ईंटों के चूल्हे बनाकर खाना बना रहे थे। रिक्शेवाल जगह-जगह अपने रिक्शों पर सो रहे थे। यह तस्वीर गुमटी के पास की है। गुमटी शहर का मुख्य व्यापारिक/दुकान वाला इलाका है। आसपास के गांवों से रोजी-रोटी के जुगाड़ में लोग कानपुर आते हैं। इसी तरह छोटे-मोटे काम पकड़कर पेट पालते हैं। जिस समय हम बेड टी भी नहीं लेते होंगे उस समय इनका अस्थाई किचन शुरु हो जाता होगा।
एक दम्पति ठेलिया पर कई छोटे-बड़े प्लास्टिक के डब्बों में पानी भरकर अपने घर ले जा रहे थे। पीने के पानी की किल्लत शहरों का भयावह कटु सच है। पीने को पानी उपलब्ध नहीं है और हम विकसित देश कहलाने के आसपास हैं।
आगे सड़क पर तमाम सीवर लाइनों का झमाझम उपयोग देखा। किसी की टिफ़िन सर्विस चालू है। क्या रचनात्मक उपयोग है सड़क के किनारे सीवर लाइन में परिवर्तित होने के लिये प्रतीक्षारत पाइपों का।
लोगों ने अपने-अपने विज्ञापन लगा रखे थे। कोई वोट मांग रहा था । कोई समोसा बेच रहा है।
कैमरे से फोटो खैंचकर साटने का मन अक्सर करता है। लेकिन बड़ा बवाली काम है। जिसकी फोटो खैंचो वो सवाल पूछ लेता है- काहे के लिये खैंच रये हौ? कुछ न कुछ तो करोगे। चचा-भतीजे वाली चाय की गुमटी पर सोते लोगों के आराम में खलल पड़ा तो उन्ने न जाने कित्ते सवाल पूंछ डाले। सारे सवाल-जबाब वहीं पड़ेगे होंगे दुकान के पास। हम केवल फ़ोटू लै आये सो आप देखिये।
एक बुजुर्ग दिखे साइकिल पर। वे कैरियर पर बैठे साइकिल हांक रहे थे। जब तक हम कैमरा फ़ोकस किये तब तक वे सड़क पर आ गये। पदयात्री हो गये। अपने यहां मिनट-मिनट पर तो आदमी स्टैंड बदलता है। अब उनसे कहते कि आप फ़िर से कैरियर वाला पोज दे दीजिये तो उनकी निजता का उल्लंघन होता न। इसई लिये नहिऐ कहा फ़िर। ठीक किया न!
एक सुबह कैमरे के साथ
By फ़ुरसतिया on May 24, 2011
पिछले हफ़्ते सबेरे-सबेरे अनवरगंज रेलवे स्टेशन गये। कैमरा साथ लिये गये। सोचा कुछ खैचा-वैंचा जाये। जित्ती खैंची उनमें कुछ फ़ोटो ऐंची-तानी हो गयीं। लेकिन अब भाई फ़ोटो ही तो हैं कोई हीरोइन तो हैं नहीं कि हमेशा सुन्दर दिखें। सोते-जागते। सो हम कहे कोई नहीं आओ। जैसी हो पोस्ट हो जाओ। वैसे भी सौंन्दर्य तो देखने वाले की आंखों में होता है। है न!
ये पहला फोटो अनवरगंज रेलवे स्टेशन का है। गाड़ी जाने के बाद कैसा शान्ति दिखता है स्टेशन पर। लेकिन जाने के जरा पहिले देखिये। भागते-दौड़ते लोग। कुछ लोगों को भागते हुये ट्रेन मिल भी जाती है। दौड़ते हुये गाड़ी पकड़ने का सुख कैसा होता है? क्या कोई कवि इस पर कविता लिखा है आज तलक? अगर हमसे कोई कहे तो हम तो फ़ौरन शुरु हो जायेंगे। अरे अभी नहीं भाई! जब कोई कहेगा।
ये दूसरकी फोटो में देखिये ये भाई जी आसमान ताक रहे हैं। क्या सोच रहे होंगे? कोई बता सकता है भला? नयी सुबह इनके लिये क्या लायी होगी! हमने अपनी एक तथाकथित कविता में लिखा था:
सबेरा अभी हुआ नहीं है
लेकिन यह दिन भी सरक गया हाथ से
हथेली में जकड़ी बालू की तरह। अब सारा दिन
फ़िर इसी एहसास से जुझना होगा।
दो साधु जी लोग रेलवे स्टेशन के बाहर सो रहे थे। सुबह हुई तो दरी-चादर तहाकर उठ गये। हम कई कोने से उनकी फोटो लिये लेकिन वह तस्वीर धुंधली ही रही। कविताई मुहावरे में कहा जाये तो इनकी किस्मत की तरह।
आगे देखा तो तमाम लोग सड़क किनारे सोये दिखे। कोई बेंच पर, कोई खटिया पर , कोई गुमटी पर। एक गुमटी पर लिखा था-
लस्सी भतीजे कीये मामला आजकल की कंपनियों की गारंटी की तरह का है। जिसमें महीन अक्षरों में लिखा रहता है-कंडीशन लागू।
गारंटी चाचा की।
आजकल शहर की सड़कें सीवर लाइनें बिछने के लिये जगह-जगह खुद रही हैं। पूरा शहर राणा सांगा बना हुआ है। खुदाई के पहले सड़क पर सीवर पाइप लाकर रखे हुये हैं। लाइन से रखी सीवर लाइने देखिये। कितनी अनुशासित दिख रही हैं।
सुबह-सुबह मजूर लोग ठेले पर लोहा लादे चले जा रहे हैं। दोपहर में गर्मी बहुत होती है। इसलिये शायद सुबह का समय चुना गया होगा। अब तो कोलतार सड़कों पर उतना पिघलता नहीं। पहले कोलतार दोपहर में पिघलता था। मजूर लोग पैरों में बोरे बांधकर ठेला खींचते थे।
आगे एक मकान में देखा भैंसे मजे से रह रही हैं। खूब पानी का इंतजाम। जगह। शेड। बगल में कार। क्या जलवे हैं भैंसों के भी।
जगह-जगह फ़ुटपाथ पर/सड़क पर लोग ईंटों के चूल्हे बनाकर खाना बना रहे थे। रिक्शेवाल जगह-जगह अपने रिक्शों पर सो रहे थे। यह तस्वीर गुमटी के पास की है। गुमटी शहर का मुख्य व्यापारिक/दुकान वाला इलाका है। आसपास के गांवों से रोजी-रोटी के जुगाड़ में लोग कानपुर आते हैं। इसी तरह छोटे-मोटे काम पकड़कर पेट पालते हैं। जिस समय हम बेड टी भी नहीं लेते होंगे उस समय इनका अस्थाई किचन शुरु हो जाता होगा।
एक दम्पति ठेलिया पर कई छोटे-बड़े प्लास्टिक के डब्बों में पानी भरकर अपने घर ले जा रहे थे। पीने के पानी की किल्लत शहरों का भयावह कटु सच है। पीने को पानी उपलब्ध नहीं है और हम विकसित देश कहलाने के आसपास हैं।
आगे सड़क पर तमाम सीवर लाइनों का झमाझम उपयोग देखा। किसी की टिफ़िन सर्विस चालू है। क्या रचनात्मक उपयोग है सड़क के किनारे सीवर लाइन में परिवर्तित होने के लिये प्रतीक्षारत पाइपों का।
लोगों ने अपने-अपने विज्ञापन लगा रखे थे। कोई वोट मांग रहा था । कोई समोसा बेच रहा है।
कैमरे से फोटो खैंचकर साटने का मन अक्सर करता है। लेकिन बड़ा बवाली काम है। जिसकी फोटो खैंचो वो सवाल पूछ लेता है- काहे के लिये खैंच रये हौ? कुछ न कुछ तो करोगे। चचा-भतीजे वाली चाय की गुमटी पर सोते लोगों के आराम में खलल पड़ा तो उन्ने न जाने कित्ते सवाल पूंछ डाले। सारे सवाल-जबाब वहीं पड़ेगे होंगे दुकान के पास। हम केवल फ़ोटू लै आये सो आप देखिये।
एक बुजुर्ग दिखे साइकिल पर। वे कैरियर पर बैठे साइकिल हांक रहे थे। जब तक हम कैमरा फ़ोकस किये तब तक वे सड़क पर आ गये। पदयात्री हो गये। अपने यहां मिनट-मिनट पर तो आदमी स्टैंड बदलता है। अब उनसे कहते कि आप फ़िर से कैरियर वाला पोज दे दीजिये तो उनकी निजता का उल्लंघन होता न। इसई लिये नहिऐ कहा फ़िर। ठीक किया न!
Posted in कानपुर, बस यूं ही | 37 Responses
- लस्सी भतीजे की, गारंटी चाचा की
अच्छी तस्वीरें.. वो अंग्रेजी में कहते हैं न कि Kanpur Rejuvenated…
काहे को हर जगह हाथ डाल देते हो गुरु …
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..क्या बच्चों को होस्टल में नहीं डालना चाहिये Should not put children in Hostel
ठेठ “कनपुरिया” अंदाज के दर्शन हुए.
Poonam की हालिया प्रविष्टी..The Drama Continues !
और ऊ मनई दऊवाअ क निहार रहा है -वही कुछ देदे शायद !
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..मेरे पति मेरे कामों में बिलकुल भी हाथ नहीं बटाते!
पर फोटू खींची कस के है …जबरदस्त ..
Amit Srivastava की हालिया प्रविष्टी..लॉयल्टी टेस्ट से नार्को टेस्ट तक
दूसरी फोटो में ग्लास उल्टा है अन्यथा पोज का अर्थ कुछ और भी हो सकता था …..
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..प्रति पदार्थAnti matter-ब्रह्माण्ड की संरचना भाग ९
चित्र अच्छे हैं.. पर या तो कैमरे की गुणवत्ता खराब थी या फिर प्रदूषण
गारंटी चाचा की।
पोस्ट फुरसतिया की ……… टिपण्णी हरबरिया की……………..
प्रणाम.
गारंटी चाचा की।
पोस्ट फुरसतिया की ……… टिपण्णी हरबरिया की……………..
प्रणाम.
लागत है, इलाहाबाद की हवा खा गयै ह्यो !
काम धाम सबई छोड़ कै सुबह सुवेरे फोटों हींचत घूमत ह्वैं लला ।
कोऊ पकरौ इननै, कछु खाय वाय के जनौ लाँघि आयें कउनौ बला !
गुरु कुआलिटी सँवार लियो, पूरी फोटुँआ रघु रॉय किलास की ह्वैं !
कुआलिटी गुरु की हालिया प्रविष्टी..श्री गधे जी का महत्व – वैशाखी अमावस्या पर
Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..खाते पीते घर का
धन्यवाद !!!
मानवी मौर्य की हालिया प्रविष्टी..गुदड़ी के लाल- अवधी भाषा के सशक्त हस्ताक्षर
चित्र और शब्द का अद्भुत तालमेल !
लापतागंज वाले लल्लन जी की बात याद आ गयी , “हमसे किसी ने कहाई नई”
अरे हम कह रहे है लिखिए ना …………………
बाकि फोटू सब चकाचक है ,अपने देश के सारे शहरों में सुबह सुबह लगभग एक से नज़ारे होते है स्टेशन जाते या आते समय …… पर फोटू खीचने के विचार आपको ही आ सकते है …….
–आशीष
अभय तिवारी की हालिया प्रविष्टी..एक पुरानी गाँठ
Gyan Pandey की हालिया प्रविष्टी..आंधी के बीच – भय और सौन्दर्य
Gyan Pandey की हालिया प्रविष्टी..आंधी के बीच – भय और सौन्दर्य
सोच रहे है कि अभी प्रातः का कार्यक्रम निबटना है, इसीलिए तो उकडू बैठे हैं बढिया फोटू. सच कहा – ब्यूटी लाइज़ इन द आइज़ ऑफ़ बिहोल्डर ॥
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..बयाने-दर्दे-दाँत
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..तुम नहीं समझोगी !
लिखते रहिये भ्राता श्री जब सस्त्र की फैक्ट्री में ही हैं तो आप का कोऊ का करिहैं और फोटू दिखावें रोज रोज
सुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
surendra shukl Bhramar5 की हालिया प्रविष्टी..दुःख ही दुःख का कारण है
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..कोलकाता यात्रा का फल
हिम्मत और् सहनशीलता भरा काम है.
Manish की हालिया प्रविष्टी..प्रेम : “आओ जी”
गारंटी चाचा की।
बहुत अलग है कानपूर …..
Devanshu Nigam की हालिया प्रविष्टी..मोड़ पे बसा प्यार…