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लोकपाल के इंतजार में एक आम आदमी
By फ़ुरसतिया on December 24, 2011
बहुत
दिन से लोकपाल का हल्ला मच रहा है। तरह तरह के बयान टहल रहे हैं। कभी इधर,
कभी उधर। कभी लगता है मामला निपट गया। अगले दिन पता चलता है पालिटिक्स हो
गयी। लोकपाल पर मट्ठा पड़ गया। सारा देश इंतजार कर रहा है। लोकपाल का अवतार हो- भ्रष्टाचार के राक्षस का संहार करे। बवाल कटे।
मीडिया वाले लिये माइक घूमते रहते हैं। जिस किसी के भी मुंह के आगे सटा देते हैं। लोकपाल के बारे में उनके मुंह से बयान घसीट लेते हैं। लोकपाल के बारे में आपके क्या ख्याल हैं? कौन वाला अच्छा है? बाकी में क्या खराबी है?
हमारे एक बयान प्रेमी मित्र एक रोज दिन दहाड़े शीशे के सामने डायलाग का अभ्यास करते हुये पकड़ गये- दिल दिया है जान भी देंगे ऐ सनम तेरे लिये। पूरा हफ़्ता लगा उनको अपनी घरैतिन को समझाने में कि वे सिर्फ़ अन्ना जी के अंदाज-ए-बयान का अभ्यास कर रहे थे। दुनिया में उनका कौनौ सनम नहीं है। बाद में सरमाते हुये बताये भी कि अन्ना जी के बयान में ओरिजिनलिटी लाने के लिये उन्होंने वतन की जगह सनम प्रयोग किया था। उनको अन्दाजा नहीं था बहर में होने के बावजूद मतलब इतना फ़िसल जायेगा।
राजनीति करने वालों का तो खैर काम ही पालिटिक्स करना होता है। बयान देना,मुकर जाना, पलट जाना उनकी कोर कम्पीटेन्सी (प्रमुख योग्यता/सामर्थ्य/गुण)होती है। टीम अन्ना के लोग भी कम बयान बहादुर नहीं है। उनके मुंह से भी बयान झरते रहते हैं। देखकर लगता है जैसे सर्दी के मौसम में पहाड़ों पर बर्फ़ गिर रही है। एक-एक बात पर तीन-तीन, चार-चार बयान निकाल देते हैं।
टीम अन्ना के लोग दिल के सच्चे हैं। बयान उनके दिल से निकलते हैं। कभी-कभी क्या अक्सर ही वे बयान देते समय बहुत गुस्से में लगते हैं। झल्लाये हुये से। सवाल पूछता आदमी उनको सरकार ही लगता है। कभी-कभी तो लगता है कि सवाल पूछने वाला पत्रकार कच्चा चबाये जाने से बचा हुआ है तो सिर्फ़ अपने और उनके बीच माइक के चलते। हम तो टीम अन्ना के सदस्यों का हर बयान आंख मूंदकर देखते हैं। उनके चेहरे का गुस्सा देखकर जी दहल जाता है।
अन्ना जी की टीम में सिर्फ़ कुमार विश्वास जी ही हैं जो थोड़ा हंसमुख हैं। वे बयान भी ऐसे देते हैं जैसे कवि सम्मेलन में कविता पढ़ने के पहले चुटकुले सुनाते हैं। मूलत: वे एक समर्पित कवि हैं। टीम अन्ना से जुड़कर वे कवि सम्मेलन का अभ्यास करते हैं। वे अपने ऊपर लगे इस आरोप का भी बड़े अच्छे से मजाक उड़ा लेते हैं कि उनको क्लास न लेने पर कारण बताओ नोटिस मिला है। बड़े प्यारे लगते हैं वे हास्यपूर्ण बातें करते हुये।
उधर बेचारी सी.बी.आई. की हालत दौप्रदी सरीखी होती जा रही है। पांच-पांच लोगों को रिपोर्ट करना पड़ेगा उसे। क्या पता चले आगे चलकर वह किसी महाभारत का कारण बने।
भ्रष्टाचार अगर अच्छी-अच्छी संस्थायें बनाने से दूर होता तो अब तक यह अपने देश से कब का गो,वेन्ट,गॉन हो गया होता। इतनी प्यारी-प्यारी संस्थायें हैं। इतने अच्छे-अच्छे विभाग हैं। लेकिन सब भले नागरिकों की तरह भ्रष्टाचार को साइड देते रहते हैं।
आगे चलकर लोकपाल नाम की कोई स्वतंत्र संस्था बनेगी अगर तो पक्का अभी के सारे आई.ए.एस. का इम्तहान देने वाले लोकपाल विभाग में भर्ती का इम्तहान देने लगेंगे। अभी जो लोग देश सेवा के लिये सिविल सर्विसेज में जाते हैं वे लोकपाल में जाने लगेंगे। शहर-शहर में लोकपाल स्टडी सर्किल खुल जायेंगे।
केंद्रीय सतर्कता आयोग के एक चेयरमैन ने एक बार कहा था-
कहा जाता हैं कि नियम/कानून का पालन न करना भ्रष्टाचार होता है। नियम/कानून, ऑडिट, भ्रष्टाचार आदि का एक लालित्यपूर्ण उदाहरण देखा जाये:
आजकल का भ्रष्टाचार बहुत जटिल टाइप का हो गया है। इसकी पहचान के लिये एक्सपर्ट की आवश्यकता पड़ती है।
और न जाने कित्ते कारण होंगे भ्रष्टाचार के लेकिन पसीने-पसीने की कीमत में अंतर का होना भी एक बहुत बड़ा कारण इसके फ़लने-फ़ूलने का। न्यूनतम मजदूरी के कानून के बावजूद एक मजदूर को दिन भर पसीना बहाने के अधिक से अधिक दो सौ रुपये मिलते हैं। एक खबर के अनुसार नये साल के अवसर पर किसी फ़ाइव स्टार होटल में डांस के लिये मल्लिका सेहरावत का दो करोड़ का अनुबंध हुआ है। पसीने-पसीने की कीमत में
दस हजारएक लाख से भी अधिक गुने का अंतर है।
लोग कहते हैं काला धन देश में लाओ। इन डांस पार्टियों में खर्चा होने वाला पैसा क्या गोरा पैसा है? क्या पैसा काला होने के लिये स्विस बैंक में ही होना जरूरी है। अपने देश में टहलते, बवाल काटते, अय्यासी करते, शान से घूमते हराम के पैसे ने क्या अपराध किया है कि उसे स्विस बैंक के काले पैसे के बराबर इज्जत न दी जाये।
अब तो अनशन मुंबई में हो रहा है। क्या पता मल्लिका सहरावत जी अपने और तमाम साथियों के साथ वहां आंदोलन में शिरकत करने आयें। आयेंगी तो अच्छा ही होगा। आंदोलन थोड़ा तो और सौंन्दर्यपूर्ण लगेगा। जब बालीवुड के लोग भ्रष्टाचार हटाने की बात करेंगे तो हम भी आंख खोल के उनके बयान सुनेंगे।
लोकपाल के इंतजार में एक आम आदमी और क्या कर सकता है भला!
सोये लोग जगें -
तो कोई बात बने।
रोज-रोज मरना-खपना ही
क्या जीवन है
क्या जीवन है
रोज-रोज लुटना-पिटना ही।
मुट्ठी एक तने-
तो कोई बात बने।
रोज मिटें पर रोज बनें भी
तब जीवन है
जीवन है जब
बिखरे-बिखरे रहें
मगर हों
कभी घने भी।
एक मशाल जले-
तो कोई बात बने।
शब्द-पुष्प-धारा-पहाड़ हों,
तो जीवन है
जीवन जिसमें
कुछ निषेध के प्रति दहाड़ हो।
एक सवाल उठे-
तो कोई बात बने।
विनोद श्रीवास्तव
मीडिया वाले लिये माइक घूमते रहते हैं। जिस किसी के भी मुंह के आगे सटा देते हैं। लोकपाल के बारे में उनके मुंह से बयान घसीट लेते हैं। लोकपाल के बारे में आपके क्या ख्याल हैं? कौन वाला अच्छा है? बाकी में क्या खराबी है?
हमारे एक बयान प्रेमी मित्र एक रोज दिन दहाड़े शीशे के सामने डायलाग का अभ्यास करते हुये पकड़ गये- दिल दिया है जान भी देंगे ऐ सनम तेरे लिये। पूरा हफ़्ता लगा उनको अपनी घरैतिन को समझाने में कि वे सिर्फ़ अन्ना जी के अंदाज-ए-बयान का अभ्यास कर रहे थे। दुनिया में उनका कौनौ सनम नहीं है। बाद में सरमाते हुये बताये भी कि अन्ना जी के बयान में ओरिजिनलिटी लाने के लिये उन्होंने वतन की जगह सनम प्रयोग किया था। उनको अन्दाजा नहीं था बहर में होने के बावजूद मतलब इतना फ़िसल जायेगा।
राजनीति करने वालों का तो खैर काम ही पालिटिक्स करना होता है। बयान देना,मुकर जाना, पलट जाना उनकी कोर कम्पीटेन्सी (प्रमुख योग्यता/सामर्थ्य/गुण)होती है। टीम अन्ना के लोग भी कम बयान बहादुर नहीं है। उनके मुंह से भी बयान झरते रहते हैं। देखकर लगता है जैसे सर्दी के मौसम में पहाड़ों पर बर्फ़ गिर रही है। एक-एक बात पर तीन-तीन, चार-चार बयान निकाल देते हैं।
टीम अन्ना के लोग दिल के सच्चे हैं। बयान उनके दिल से निकलते हैं। कभी-कभी क्या अक्सर ही वे बयान देते समय बहुत गुस्से में लगते हैं। झल्लाये हुये से। सवाल पूछता आदमी उनको सरकार ही लगता है। कभी-कभी तो लगता है कि सवाल पूछने वाला पत्रकार कच्चा चबाये जाने से बचा हुआ है तो सिर्फ़ अपने और उनके बीच माइक के चलते। हम तो टीम अन्ना के सदस्यों का हर बयान आंख मूंदकर देखते हैं। उनके चेहरे का गुस्सा देखकर जी दहल जाता है।
अन्ना जी की टीम में सिर्फ़ कुमार विश्वास जी ही हैं जो थोड़ा हंसमुख हैं। वे बयान भी ऐसे देते हैं जैसे कवि सम्मेलन में कविता पढ़ने के पहले चुटकुले सुनाते हैं। मूलत: वे एक समर्पित कवि हैं। टीम अन्ना से जुड़कर वे कवि सम्मेलन का अभ्यास करते हैं। वे अपने ऊपर लगे इस आरोप का भी बड़े अच्छे से मजाक उड़ा लेते हैं कि उनको क्लास न लेने पर कारण बताओ नोटिस मिला है। बड़े प्यारे लगते हैं वे हास्यपूर्ण बातें करते हुये।
उधर बेचारी सी.बी.आई. की हालत दौप्रदी सरीखी होती जा रही है। पांच-पांच लोगों को रिपोर्ट करना पड़ेगा उसे। क्या पता चले आगे चलकर वह किसी महाभारत का कारण बने।
भ्रष्टाचार अगर अच्छी-अच्छी संस्थायें बनाने से दूर होता तो अब तक यह अपने देश से कब का गो,वेन्ट,गॉन हो गया होता। इतनी प्यारी-प्यारी संस्थायें हैं। इतने अच्छे-अच्छे विभाग हैं। लेकिन सब भले नागरिकों की तरह भ्रष्टाचार को साइड देते रहते हैं।
आगे चलकर लोकपाल नाम की कोई स्वतंत्र संस्था बनेगी अगर तो पक्का अभी के सारे आई.ए.एस. का इम्तहान देने वाले लोकपाल विभाग में भर्ती का इम्तहान देने लगेंगे। अभी जो लोग देश सेवा के लिये सिविल सर्विसेज में जाते हैं वे लोकपाल में जाने लगेंगे। शहर-शहर में लोकपाल स्टडी सर्किल खुल जायेंगे।
केंद्रीय सतर्कता आयोग के एक चेयरमैन ने एक बार कहा था-
नौकरशाही में आदमी जब आता है तो ईमानदार होता है। नौकरशाही उसे बेईमान बना देती है।अपने यहां भ्रष्टाचार के मामले परसाई जी का उद्धरण अक्सर याद आता है:
शासन का घूंसा किसी बडी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है पर न जाने किस चमत्कार से बडी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूंसा पड जाता है।सी.बी.आई. की स्वायत्तता और लोकपाल का जब गठन होगा तब होगा लेकिन पिछले कुछ समय से केंद्रीय सतर्कता आयोग की सक्रियता के चलते हाथ बचाकर काम करने लगे हैं। तमाम मामलों में देखा गया है कि लोग बड़ी खरीद के मामले में निर्णय लेने से बचने का प्रयास करते हैं। कोशिश करते हैं कि निर्णय का काम ऊपर के लोग करें या नीचे का अधिकारी। खरीददारी के निर्णय कितने ही काबिल व्यक्ति ने कितनी ही ईमानदारी से क्यों न किये हों लेकिन उसमें कोई न कोई नुक्स निकालने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है।
कहा जाता हैं कि नियम/कानून का पालन न करना भ्रष्टाचार होता है। नियम/कानून, ऑडिट, भ्रष्टाचार आदि का एक लालित्यपूर्ण उदाहरण देखा जाये:
पांचवे वेतन आयोग में वाहन भत्ता मिलने की शर्त यह थी कि कार्यस्थल से घर की दूरी एक किलोमीटर से अधिक होनी चाहिये। वेतन आयोग के लागू होते ही सब लोगों ने वाहन भत्ता लेना शुरु किया। कुछ दिन बाद ऑडिट ने आपत्ति जताई कि कुछ लोगों के घर कार्यस्थल से एक किलोमीटर से कम हैं। उनको वाहन भत्ता देना तुरन्त बन्द किया जाये। जिनको दिया गया है उनसे वापस लिया जाये। अब बताइये भला घर की दूरी 999 मीटर और 1001 मीटर होने पर हजार/डेढ़ हजार का नुकसान कैसे सहा जाये। प्रभावित होने वाले लोग बहुत से थे। जनता जनार्दन की भलाई के लिये उपाय यह निकाला गया कि एक अधिकारी को, जिसका घर कार्यस्थल से सबसे नजदीक 300/400 मीटर की दूरी पर था, एक कमेटी का चेयरमैन बनाया गया जिसको यह जांच करके बताना था कि किन लोगों के घर कार्यस्थल से एक किलोमीटर से कम दूरी पर हैं। जहां तक मुझे याद है कि छठे वेतन आयोग के लागू होने तक उस कमेटी की रिपोर्ट आयी नहीं थी और न किसी का वाहन भत्ता कटा।आजकल भ्रष्टाचार उन्मूलन में सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार के पहचान की है। पहले जमाने में इसकी पहचान आसान थी। पुराने समय में एक धाकड़ ईमानदार मंत्री ने आफ़िशियल बातचीत की तो सरकारी तेल जलाया। व्यक्तिगत बातचीत की तो अपना पर्सनल दिया जला लिया। नैनो टेक्नालाजी के जमाने में भ्रष्टाचार इत्ता महीन हो गया है कि बिना एक्सपर्ट के कभी-कभी दिखाई नहीं देता। जब किरण बेदी जैसी ईमानदार और भली हस्ती तक यह नहीं समझ पाती कि किसी से ज्यादा किराया लेकर कम किराये में यात्रा करना भी भ्रष्टाचार है। उनको भी दूसरे समझाते हैं तब वे पैसा वापस करती हैं। तो आम आदमी के लिये भ्रष्टाचार की पहचान कित्ता मुश्किल काम है।
आजकल का भ्रष्टाचार बहुत जटिल टाइप का हो गया है। इसकी पहचान के लिये एक्सपर्ट की आवश्यकता पड़ती है।
और न जाने कित्ते कारण होंगे भ्रष्टाचार के लेकिन पसीने-पसीने की कीमत में अंतर का होना भी एक बहुत बड़ा कारण इसके फ़लने-फ़ूलने का। न्यूनतम मजदूरी के कानून के बावजूद एक मजदूर को दिन भर पसीना बहाने के अधिक से अधिक दो सौ रुपये मिलते हैं। एक खबर के अनुसार नये साल के अवसर पर किसी फ़ाइव स्टार होटल में डांस के लिये मल्लिका सेहरावत का दो करोड़ का अनुबंध हुआ है। पसीने-पसीने की कीमत में
लोग कहते हैं काला धन देश में लाओ। इन डांस पार्टियों में खर्चा होने वाला पैसा क्या गोरा पैसा है? क्या पैसा काला होने के लिये स्विस बैंक में ही होना जरूरी है। अपने देश में टहलते, बवाल काटते, अय्यासी करते, शान से घूमते हराम के पैसे ने क्या अपराध किया है कि उसे स्विस बैंक के काले पैसे के बराबर इज्जत न दी जाये।
अब तो अनशन मुंबई में हो रहा है। क्या पता मल्लिका सहरावत जी अपने और तमाम साथियों के साथ वहां आंदोलन में शिरकत करने आयें। आयेंगी तो अच्छा ही होगा। आंदोलन थोड़ा तो और सौंन्दर्यपूर्ण लगेगा। जब बालीवुड के लोग भ्रष्टाचार हटाने की बात करेंगे तो हम भी आंख खोल के उनके बयान सुनेंगे।
लोकपाल के इंतजार में एक आम आदमी और क्या कर सकता है भला!
मेरी पसंद
तो कोई बात बने।
रोज-रोज मरना-खपना ही
क्या जीवन है
क्या जीवन है
रोज-रोज लुटना-पिटना ही।
मुट्ठी एक तने-
तो कोई बात बने।
रोज मिटें पर रोज बनें भी
तब जीवन है
जीवन है जब
बिखरे-बिखरे रहें
मगर हों
कभी घने भी।
एक मशाल जले-
तो कोई बात बने।
शब्द-पुष्प-धारा-पहाड़ हों,
तो जीवन है
जीवन जिसमें
कुछ निषेध के प्रति दहाड़ हो।
एक सवाल उठे-
तो कोई बात बने।
विनोद श्रीवास्तव
Posted in बस यूं ही | 58 Responses
ashish की हालिया प्रविष्टी..ओ दशकन्धर
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..चल दिए सू-ए-अदम – अदम गोंडवी
कि दिन बहुरेंगे..
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बूढ़े बाज की उड़ान
वाह क्या मित्र हैं!
‘राजनीति करने वालों का तो खैर काम ही पालिटिक्स करना होता है। बयान देना,मुकर जाना, पलट जाना उनकी कोर कम्पीटेन्सी होती है। ‘
पहली बात कि नेता ऐसे हो सकते हैं, राजनीति नहीं। राजनीति कोई भौतिक चीज थोड़े है! हम यह आरोप राजनीति पर नहीं लगा सकते।
‘सिर्फ़ कुमार विश्वास जी ही हैं जो थोड़ा हंसमुख हैं।’
हा हा हा। सुना है मोर साँप खाता है, बड़ा खूबसूरत होता है!
‘केंद्रीय सतर्कता आयोग’
इस आयोग की साइट में ऐसे घोंचू किस्म के आदमी लगते हैं कि स्पेल चेक तक का चिन्ह रेखांकन प्रिंट स्क्रीन से ले लिया है।
‘लोकपाल विभाग में भर्ती का इम्तहान देने लगेंगे। अभी जो लोग देश सेवा के लिये सिविल सर्विसेज में जाते हैं वे लोकपाल में जाने लगेंगे। शहर-शहर में लोकपाल स्टडी सर्किल ‘
यह भविष्यवाणी सही है। विचार तो मजेदार है ही। क्यों न पहले ही इसपर काम शुरू कर दिया जाय! बाजार पर मेरी भी एक बात है। फेसबुक प्रवचन में कहूँगा कल। आज नहीं।
‘पसीने-पसीने की कीमत में दस हजार से भी अधिक गुने का अंतर है।’
हिसाब फिर दस गुना गलत हो गया है। दस हजार गुना नहीं एक लाख गुना! यह हमारी(देश की) खासियत है!
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
हां यह राजनीति करने वालों के लिये ही लिखा गया है- ‘राजनीति करने वालों का तो खैर काम ही पालिटिक्स करना होता है। बयान देना,मुकर जाना, पलट जाना उनकी कोर कम्पीटेन्सी होती है। ‘ राजनीति का इसमें क्या दोष है?
२. ‘केंद्रीय सतर्कता आयोग’
इस आयोग की साइट में ऐसे घोंचू किस्म के आदमी लगते हैं कि स्पेल चेक तक का चिन्ह रेखांकन प्रिंट स्क्रीन से ले लिया है।
सब लोग लगता है व्यस्त हैं भ्रष्टाचार मिटाने में। इसलिये वे अपनी साइट देख नहीं पाते होगे। सुधार नहीं पाते होंगे।
३. फ़ेसबुक प्रवचन का इंतजार है।
४. ‘पसीने-पसीने की कीमत में दस हजार से भी अधिक गुने का अंतर है।’
हिसाब फिर दस गुना गलत हो गया है। दस हजार गुना नहीं एक लाख गुना! यह हमारी(देश की) खासियत है!
सही है। अब बताओ हम पसीने की दस हजार गुने की कीमत के अन्तर से ही हलकान थे। लाख गुने से भी अधिक का अन्तर कौन हाल करेगा हमारा ?
शुक्रिया ये गणितीय गलती बताने के लिये।
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
कोर कम्पीटेन्सी मतलब सबसे प्रमुख योग्यता/सामर्थ्य/गुण
”मीडिया वाले लिये माइक घूमते रहते हैं। जिस किसी के भी मुंह के आगे सटा देते हैं”।
”उधर बेचारी सी.बी.आई. की हालत दौप्रदी सरीखी होती जा रही है।”
हम भी आपसे सहमत हैं |
आनंद आ गया…मन एकदम से हरिया गया…
और क्या कहें आगे…???
Ranjana की हालिया प्रविष्टी..जीवन..
(कुमार विश्वास पर आपकी टिप्पणी व्यक्तिगत लगा, बेचारा अच्छा बोलता है।)
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..तेरी याद सताए
कुमार विश्वासजी को आप बेचारा कैसे कह रहे हैं जी! वे देश के सबसे लोकप्रिय मंचीय कलाकार/गीतकार हैं। वे अच्छा क्या बहुत अच्छा बोलते हैं। बाकी जो बातें लिखीं वो उनके ही मुंह से सुनकर लिखीं। उनकी उपस्थिति किसी भी कार्यक्रम की सफ़लता की गारंटी है। ऐसी सक्षम हस्ती को आप कम से कम बेचारा तो मती कहिये।
तो फिर ऐसे लोकपाल से क्या लाभ जो सीबीआई को परेशां कर दे.
सी.बी.आई.की स्वायत्तता कहीं जायेगी नहीं। देर सबेर वो स्वायत्त होकर रहेगी। शुरुआती परेशानी भले हो कुछ दिन।
अब दुबारा पढ़ने पर ठीक लगा।
अपने पहले की टिप्पणी में संशोधन करता हूं।
एक बात तो सही है, कि हर घड़ी उसके चेहरे पर हंसी रहती है।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..तेरी याद सताए
कुमार विश्वास जी की दो खासियत हैं:
१.वे जिस मंच पर रहते हैं वहां सबसे लोकप्रिय रहते हैं।
२.उनकी प्रस्तुति के बाद आमतौर पर कार्यक्रम समाप्त हो जाता है।
इन बातों के बारे में जब सोचता हूं तो लगता है कि कहीं वे टीम अन्ना में अन्ना जी से भी पापुलर न हों जायें और अपनी किसी बेहतरीन प्रस्तुति के बाद (लोकपाल) कार्यक्रम के समापन की घोषणा न कर दें।
फिर भी,हम इंतज़ार करेंगे,तेरा क़यामत तक,
खुदा करे कि क़यामत (शामत) हो और तू(लोकपलवा) आये !!
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..संसद से सड़क तक !
हां अवश्य इंतजार करिये। कहा भी गया है कि इंतजार का फ़ल मीठा होता है!
हम्म, तो नोट छापने की मशीनें लोकपाल के यहां स्थानांतरित होने का अंदेशा है आपको
संस्था के रूप में तो कुछ दिन ऐसा ही होने का अंदेशा है।
कवि रामेन्द्र त्रिपाठी की कविता है:
राजनीति की मंडी बड़ी नशीली है,
इस मंडी ने सारी मदिरा पी ली है।
रवि की हालिया प्रविष्टी..आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ – Stories from here and there – 40
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..भोपाल में कुपोषण से बच्ची की मौत – दोषी कौन?
कई नौकरियों में तमाम अधिकारी ईमानदारी से काम कर रहे हैं। जी रहे हैं। मकान बनवा रहे हैं। बच्चों को पढ़ा भी रहे हैं। ऐसा उन जगहों में है जहां भ्रष्टाचार वैयक्तिक स्तर पर है। जहां भ्रष्टाचार संस्थागत है वहां ईमानदार लोगों के लिये ज्यादा मुश्किल है।
काले धन पे उठाया गया सवाल बहुत सटीक है, और भ्रष्टाचार घुस चुका है हमारे खून में, बचपन से दुनियादारी के नाम पे यही तो सिखाया जाता है…
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..आप आ रहे हो ना?
यह काफ़ी हद तक सही है कि बचपन से ही कुछ लफ़ड़ा हुआ है हम लोगों के साथ।
आप तो मूर्धन्य ब्लॉगर हैं, सहियै कह रहे होंगे।
ज्ञान दत्त पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..पण्डा जी
हम खिल्ली नहीं उड़ा रहे। हम तो उनके अंदाज की बात कर रहे हैं। उनका रुख थोड़ा ज्यादा अड़ियल है।
रवि जी जो कह रहे हैं, वह सच है।
आलोक नंदन शुरू में ही लिखकर कह रहे थे कि ‘भारत के भ्रष्टतम ऑफिसों में से एक ‘…
हाँ। मैं तो भूल गया था कि फेसबुक प्रवचन लिखना है। दो लिखा जा चुका है, तीसरा तुरत लिखता हूँ, आपके लिए।
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी.blogspot.com या हिन्दी.tk लिखिए जनाब न कि hindi.blogspot.com या hindi.tk
फ़ुरसतिया नाम को सार्थक करते हुए, कुमार विश्वास से भी अधिक फ़ुर्सत में लगते हैं आप…
जय हो आपकी…
Suresh Chiplunkar की हालिया प्रविष्टी..Darul Islam, Melvisharam, Tamilnadu, Dr Subramanian Swamy
प्रणाम.
कहने का तात्पर्य यह कि जो महंगे फ्लैट हाथों-हाथ बिक जा रहे हैं उन्हें कौन खरीद रहा है. उनके खरीदारों की जांच हो तो सब सामने आ जाए. महँगाई और भ्रष्टाचार सब एक दूसरे के पूरक हैं. मेरे कहने का आशय यह बिलकुल नहीं है कि सभी सरकारी कर्मचारी एक जैसे हैं. लेकिन एक ईमानदार व्यक्ति का जीना कितना मुश्किल है यही मेरी टिप्पणी का आशय था. यदि मेरी उपरोक्त टिप्पणी से किसी को भी कोई चोट पहुंची हो तो मैं उसके लिए माफी चाहता हूँ.
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..भ्रष्टाचार पर अरण्य रोदन के विषय में
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..भ्रष्टाचार पर अरण्य रोदन के विषय में
आप अपना खाता कृपया http://en.gravatar.com/ में खोल लीजिये। आपका चित्र स्वाभाविक हो जायेगा।
यहीं से पढना शुरू करते है …
बहुत बढ़िया व्यंग्य है .
” ये कली जब तलक फूल बन के खिले ..
इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार कीजिये .”
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
—आशीष श्रीवास्तव