Friday, May 04, 2012

घूस देने वाले की उलझनें

http://web.archive.org/web/20140419213044/http://hindini.com/fursatiya/archives/2951

घूस देने वाले की उलझनें

दुनिया में करप्शन का चलन शुरु से रहा है।
अगर सृष्टि की शुरुआत के लिये बड़े धमाके वाले सिद्धांत को ही सही मान लिये जाये तो देखिये कि जरा सी जगह से निकला हुआ मसाला पूरी दुनिया में फ़ैलता जा रहा है। बिना रजिस्ट्री कराये सितारे, आकाशगंगायें, ब्लैकहोल, धूमकेतु, अलाय-बलाय बनते चले गये। जहां जगह मिली अपना तम्बू तान दिया। न किसी रजिस्ट्रार के यहां रजिस्ट्री कराई। न स्टैम्प ड्यूटी जमा की। ये करप्शन नहीं तो और क्या?
कभी-कभी तो यह भी लगता है कि ये जो प्रकाश की गति से सितारे, आकाशगंगायें, ग्रह-नक्षत्र, हेन-तेन एक दूसरे से दूर भाग रहे हैं प्रकाश की गति से वो अपराधियों की ’घपला करके फ़ूट लो’ के सिद्धांत के अनुसार है। घपले की जगह टिके तो पकड़े जाओगे।
जिस किसी दिन भी ये घपला किसी की निगाह में आ गया तो दुनिया भर के सारे घपले-घोटाले इसके सामने बौने हो जायेंगे। लेकिन किसको पड़ी है इन सबकी जांच करने की।
करप्शन में घूस का भी चलन भी शुरु से ही रहा है। तमाम तरह के करप्शनों में घूस को वही प्रतिष्ठा प्राप्त है जैसे सौंन्दर्य में गोरेपन का। अगर गोरापन है तो सौंन्दर्य है। उसई तरह लोग मानते हैं कि अगर घूस का लेन-देन हुआ तो भ्रष्टाचार हुआ। बाकी तरह के भ्रष्टाचार को लोग शिष्टाचार, भाई-भतीजावाद कहकर टरका देते हैं।
हमारे समाज में घूस लेने वालों की तो बड़ी चर्चायें होती हैं। उनकी हरकतों का विस्तार से सौंन्दर्य वर्णन होता है। लेकिन बेचारे घूस देने वाले को वो प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त है जिसका वो हकदार है। घूस देने वाले को घूस देने में बहुत पापड़ क्या रोटी, सब्जी तक बेलनी पड़ती है। न जाने कित्ती मेहनत करता है फ़िर भी उसके कारनामें उजागर नहीं हो पाते। भ्रष्टाचार के महल की नींव की ईंट बनकर रह जाता है घूस देने वाला।
घूस देने वाले को हजार बवाल झेलने पड़ते हैं।
शुरुआत तो इस बात से करनी पड़ती है कि काम घूस से होगा या चापलूसी से ही बात बन जायेगी। कई बार वह सोचता है चापलूसी से बात बन जायेगी और बाद में पता चलता है कि उसका रकीब घूस देकर काम करवा ले गया। उसकी चापलूसी ईमानदारी की तरह उपेक्षित रह गयी।
कई बार उलटा भी होता है। वो समझता है कि खाली घूस से काम चल जायेगा। लेकिन बाद में असलियत खुलती है कि उस काम के लिये घूस के साथ-साथ थोड़ी चापलूसी की भी जरूरत थी जैसे कि कभी-कभी जनप्रतिनिधि के लिये जनता की भलाई के जज्बे के साथ-साथ गुंडागीरी का फ़्लेवर भी जरूरी होता है।
जहां घूस का चलन है वहां तो मामला ठीक रहता है। रेट खुले हैं। पेमेन्ट किया काम हुआ। साल-दो साल में डी.ए. की तरह रेट बढ़ा। उसका भी भुगतान किया फ़िर काम हो गया।
समस्या वहां होती है जहां घूस का चलन नहीं होता। चलन नहीं होता मतलब रेट फ़िक्स नहीं होते। घूस देने वाले की एड़ियां घिस जाती हैं पता करने में कि काम पैसे से होगा, चापलूसी से या पक्की ईमानदारी से।
बेचारी घूस देने वाला नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे पता करता रहता है- काम कौन करेगा, किसको साधने से सब सधेंगे, कितना साधना पड़ेगा। मामला साहब तय करेंगे कि उसका बाबू कि उनकी बीबी या कि उनकी वो। उनकी वो वाली बात भी अनिश्चित रहती है। किसी की कई ’वो’ होती हैं। तब बवाल कि कौन ’वो’ सबसे पक्की ’वो’ हैं। (जिनका यह मत है कि मैडमें इस मामले में पीछे नहीं होती हैं वे साहब की जगह या साथ में मैडम भी पढ़ लें।)
घूस का आंकलन भी बड़ा ऊंचे दर्जे का काम होता है। कित्ते में काम होगा यह अनुमान लगाना बड़ी कलाकारी का काम है। कभी लगता है कि सस्ते में निपट गये। कभी पता चलता है कि ज्यादा दे आये। सस्ते में निपटने का सुख और चपत लगने की चोट कभी एक साथ ही पड़ती है। पता चला कि एक काम सस्ते में निपटा पर तीन काम में ज्यादा दे आये। इससे कभी-कभी जी धक्क से रह जाता है। एक दिन की बात हो तो कोई झेल भी। जब अक्सर इस तरह होने लगता है तो घूस देने वाला सदमें में आ जाता है।
इस समस्या से निपटने के लोग तरह-तरह के उपाय सोचते हैं। कुछ लोगों का तो मानना है कि बैंक में लोन देने के पहले जिस तरह रिस्क आंकलन करने के लिये गणित के जानकार ड्यूटी बजाते हैं वैसे ही घूस देने में रिस्क का आंकलन करने वाले भी होने चाहिये। पैसे डूबेगा कि काम हो जायेगा। बाजिब घूस कितनी होगी। इस सबके आंकलन की भी व्यवस्था होनी चाहिये।
घूस काम होने के पहले दी जाये या बाद में लफ़ड़ा दोनों में होता है। एडवांस देने में पैसा फ़ंसता है। बाद में देने का मन नहीं करता। जहां रेट बंधा होता है वहां कोई खतरा नहीं होता। ऐसे लेने वाले ईमानदार टाइप के होते हैं। मान लो खर्चा भी हो गये पैसे तो कहते हैं- अगली घूस मिलते ही आपने पैसे वापस कर देंगे। :)
घूसवालों के सामने सबसे ज्यादा चुनौती का काम होता है ईमानदार माने जाने वाले को घूस का प्रस्ताव देना। सर्टिफ़ाइड ईमानदार माना जाने वाला व्यक्ति भी यह इच्छा रखता है कि उसको कोई घूस का आफ़र दे और वह उसे मना कर सके। ईमानदार माने जाने वाले व्यक्ति की खुशी इसी भावना में होती है कि वह बिका नहीं। उसने घूस का प्रस्ताव ठुकरा दिया। घूस का प्रस्ताव को नकारना उसकी ईमानदारी की बिल्डिंग पर रंग रोगन की तरह होता है। वह चमकने लगता है कि उसे कोई खरीद नहीं सका।
ईमानदार माने जाने वाले को घूस का प्रस्ताव देना बड़ा बवालिया काम होता है। कुछ लोग मुस्कराकर मना करते हैं। कुछ गुस्से में। कुछ लोगों की कामना होती है कि उनको अकेले में आफ़र किया जाये ताकि वे विनम्रता किन्तु दृढ़ता से मना कर सकें और बाद में अपने संस्मरणों में लिख सकें। कुछ लोग सरे आम मना करने के इच्छुक होते हैं। अलग-अलग तरह के ईमानदार होते हैं। घूस देने वाला कितना जी अनुभवी क्यों न हो लेकिन किसी ईमानदार माने जाने को घूस देने में हिचकता है यह सोचकर कि न जाने क्या हरकत कर बैठे अगला।
ईमानदार व्यक्ति को घूस देने का प्रस्ताव देना किसी उम्रदराज व्यक्ति से प्रेम प्रस्ताव रखना सरीखा होता है- कहीं अगला उखड़ न जाये। :)
कहां तक गिनायें घूस देने वालों की उलझने। एक सोचो हजार होती हैं। लेकिन क्या करे बेचारा वो भी। काम कराने के लिये जमाने का चलन तो नहीं बदल सकता है। :)

44 responses to “घूस देने वाले की उलझनें”

  1. Gyandutt Pandey
    ईमानदार व्यक्ति को घूस देने का प्रस्ताव देना किसी उम्रदराज व्यक्ति से प्रेम प्रस्ताव रखना सरीखा होता है- कहीं अगला उखड़ न जाये।
    ————
    अच्छा, किसी ने होली पर टाइटल दिया था – बचपन से बुढ़ापे में कदम रखा, जवानी किसके नाम कर दी?!
    किसी बेचारे मूलभूत ईमानदार को दिया गया होगा यह टाइटल! :-)
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..लिमिटेड हाइट सब वे (Limited Height Sub Way)
  2. Gyandutt Pandey
    ये घूस देने वाले अंकल जी कितने हैण्डसम प्रसन्नश्च लग रहे हैं। कहां से झटका उनका फोटो?
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..लिमिटेड हाइट सब वे (Limited Height Sub Way)
    1. सतीश सक्सेना
      कौन हैं यह …जवाब दिया जाए …
      पब्लिक जवाब चाहती है
      सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..आओ बच्चो मिल कर के ये कसम उठानी है – सतीश सक्सेना
  3. Anonymous
    वाह! वाह!! फुर्सतिया बाऊ। क्या लेख लिखे हैं।
    आपबीती है अथ्वा empirical है?
  4. देवेन्द्र पाण्डेय
    ईमानदार माना जाने वाला व्यक्ति भी यह इच्छा रखता है कि उसको कोई घूस का आफ़र दे और वह उसे मना कर सके। ईमानदार माने जाने वाले व्यक्ति की खुशी इसी भावना में होती है कि वह बिका नहीं। उसने घूस का प्रस्ताव ठुकरा दिया। घूस के प्रस्ताव को नकारना उसकी ईमानदारी की बिल्डिंग पर रंग रोगन की तरह होता है। वह चमकने लगता है कि उसे कोई खरीद नहीं सका।
    ….वाह! क्या बात है!!
    …उस मसले पर भी आप कितना दिमाग चला सकते हैं जो कमेंट करने से भी आसान हो! :)
  5. रवि
    तो लीजिए, हमारी भी घूस – टिप्पणी के रूप में. अब आप हमारा भी काम करवा दीजिए. बदले में डबल, और ज्यादा बड़ा टिप्पणी मार के! :)
    रवि की हालिया प्रविष्टी..इन सलमान खान की तारीफ तो अपने बिल गेट्स भी कर रहे हैं!
  6. amit srivastava
    एक बार श्रीमती जी को मनाने के लिए घूस में ‘बेला की बेणी’ लाकर दी थी कि लगाले बालों में | परिणाम गुस्सा और भड़क गया और सारे फूल नुचे मिले थे | कारण वह यह सोचकर उद्वेलित हो उठी थी कि मैंने यह सीखा कहाँ से ‘गजरे बाजी’ |
    amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.." स्मृति की एक बूंद मेरे काँधे पे……."
  7. G C Agnihotri
    अत्यंत मार्मिक एवं निष्ठापूर्ण विवेचन, घूस की बहुत साड़ी dimensions का एकसाथ वर्णन
  8. अजय कुमार झा
    जय हो ..पांडे जी एकदम सही भांपे हैं ..ई पर्स निकाल के टेबुल पर नोट ससरा रहे मोटू जी की पिरसन्नता का ठिकाना नहीं है । घूस पुराण का तो आप शल्य चिकित्सा करके पोस्टमार्टम रपट लिख डाले हैं हो ..फ़ुरसत से ..आज जाके देने वाले का महत्व स्थापित हो पाया है । जय हो
    अजय कुमार झा की हालिया प्रविष्टी..कोल्ड-बोल्ड ब्लॉगिंग और फ़ास्ट फ़्युरियस फ़ेसबुक
  9. satyavrat shukla
    मौसा जी बहुत ही सुन्दर ……काफी अच्छा शोध है |और घूस देने वाले के दर्द और उलझन का बहुत ही सटीक चित्रण है |आपने दर्पण के दूसरी तरफ झाकने की सफल कोशिश की है |
  10. देवांशु निगम
    ये बात तो एकदम सही है , घूस देने वाले के धर्म संकट के बारे में कोई सोचता ही नहीं :) :) :)
    आजकल तो ऑनलाइन टिकट बुक कराने पर कन्विनियेंस चार्ज लगता है , हिंदी में इसे ही सुविधा शुल्क कहते हैं | अब सब ओफिसिअल मामला हो गया है |
    घूस की महत्ता का वर्णन काका हाथरसी ने भी किया है :
    कूटनीत मंथन करी , प्राप्त हुआ ये ज्ञान |
    लोहे से लोहा कटे, यह सिद्धांत प्रमान |
    ये सिद्धांत प्रमान , ज़हर से ज़हर मारिये |
    काँटा लग जाये कांटे से ही निकालिए |
    कह काका कवि काप रहा क्यूँ रिश्वत लेकर |
    रिश्वत पकड़ी जाए छूट जा रिश्वत देकर |
    रिश्वत की महिमा अपरमपार है | :) :) :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..ए ट्रेन टू पाकिस्तान!!!
  11. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    आपने यदि इस शोधपत्र में यह भी बता दिया होता कि ईमानदार माने जाने वाले व्यक्ति को घूस का प्रस्ताव देने के सफल तरीके (नुस्खे) क्या हो सकते हैं तो हम कुछ लाभान्वित हो जाते। ऐसा तरीका कि ईमानदार आदमी ईमानदार माना भी जाता रहे और उसे कुछ अतिरिक्त आमदनी भी हो जाय… :)
    सुना है कुछ होशियार लोग इस कला में पारखी होते हैं।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..बच्चों के लिए खुद को बदलना होगा…
  12. aradhana
    इस बार आपने ग्रह-नक्षत्रों को भी नहीं छोड़ा. उन्हें भी ले लिया चपेटे में :)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..बाऊजी की बातें
  13. संतोष त्रिवेदी
    @चापलूसी ईमानदारी की तरह उपेक्षित रह गयी।
    क्या पकड़ा और रगड़ा है ? यह सब पढ़कर लगता है कि घूस देने वाले से बेहतर है कि लेने वाले बनते….कोई धरम-संकट नहीं !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..जुगनू बन जलता हूँ !
  14. sanjay jha
    क्या अच्छा होता के किसी ‘ब्लाक-होल’ को लोकायुक्त बना दिया जाता……जिधर से गुजरे…….सारे के सारे ‘भ्रस्टाचार’ गोल??????
    प्रणाम.
  15. चंदन कुमार मिश्र
    घूस देनेवाला तो बेचारा इतना साहसी होता है कि सब तनाव-परशानी-जोखिम ले-उठाकर घूस देता है और लेनेवाला भी ऐसा ही है।
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..भारत में बौद्ध धर्म की क्षय – दामोदर धर्मानंद कोसांबी
  16. दीपक बाबा
    @ईमानदार व्यक्ति को घूस देने का प्रस्ताव देना किसी उम्रदराज व्यक्ति से प्रेम प्रस्ताव रखना सरीखा होता है- कहीं अगला उखड़ न जाये।
    दिल्ली के किसी बिल्डर से ईमानदार अफसर के बारे में बात कीजिए “साला क्या उखाड लेगा” ये उसका उत्तर होगा है….
    हैं न गज़ब.
  17. हर भजन सिंह बडबोले
    तमाम तरह के करप्शनों में घूस को वही प्रतिष्ठा प्राप्त है जैसे सौंन्दर्य में गोरेपन का। :)
    उसकी चापलूसी ईमानदारी की तरह उपेक्षित रह गयी। :) :)
    जनता की भलाई के जज्बे के साथ-साथ गुंडागीरी का फ़्लेवर :) :) :)
    किसको साधने से सब सधेंगे :) :) :) :)
    एडवांस देने में पैसा फ़ंसता है। बाद में देने का मन नहीं करता। :) :) :) :) :)
    सर्टिफ़ाइड ईमानदार माना जाने वाला व्यक्ति भी यह इच्छा रखता है कि उसको कोई घूस का आफ़र दे और वह उसे मना कर सके। :) :) :) :) :) :)
    ईमानदार व्यक्ति को घूस देने का प्रस्ताव देना किसी उम्रदराज व्यक्ति से प्रेम प्रस्ताव रखना सरीखा होता है- कहीं अगला उखड़ न जाये। :) :) :) :) :) :) :)
    आ गए गुरु अपने रंग में…..:) :) :)
    चरण कहाँ हैं आपके? प्रणाम करने का मन है :) :) :) :)
  18. प्रवीण पाण्डेय
    मना करने पर सामने वाला दुनिया में क्या होता है, बताने लगता है। भ्रष्टाचार का विश्व फैलता ही जा रहा है, दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बिग बैंग के प्रश्न
  19. arvind mishra
    मजा आ गया .. :) हा हा हा ….मनोभावों का बारीक विश्लेषण ! इस विषय का आपका फर्स्ट हैण्ड अनुभव विस्मित करता है और इस कला की निरंतरता को लेकर आश्वस्त भी …..लेने वालों की तो जैसे अब कोई उलझन ही नहीं रह गयी है :) इस पर भी जरा तफसील से एक सेशन हो जाय…ईमानदार सचमुच चाहता है कि उसे घूस की आफर होती रहे और वह ठुकरा ठुकरा कर आत्मतोष करता रहे और बात पर व्याख्यान भी देता रहे जन्म को सार्थक करता रहे !
  20. Puja Upadhyay
    घूस देने वाले के दर्द पर ऐसा महापुराण आप ही लिख सकते थे…पोस्ट में कितने सारे चमकते हुए वन लाइनर हैं. घूस लेने-देने जैसे नाज़ुक टाइटल पर प्रेम जैसे टॉपिक का सिक्सर…आहा..आहा…
    ‘ईमानदार व्यक्ति को घूस देने का प्रस्ताव देना किसी उम्रदराज व्यक्ति से प्रेम प्रस्ताव रखना सरीखा होता है- कहीं अगला उखड़ न जाये। ‘
    आज एकदम फुर्सत में हम भी इधर चिपके हैं…बहुत सब बांच के जाएंगे…लेकिन आप आजकल जो लिखना कम कर दिए हैं, कौन चीज़ में बीजी हैं?
  21. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] घूस देने वाले की उलझनें [...]
  22. k.c. maida
    घुसखोरी हा हा हा…
  23. सतीश चन्द्र सत्यार्थी
    पुराना माल था. हम तो अंत तक आज का लिखा समझ रहे थे. इससे पता चलता है कि घूस एक सदाबहार, हमेशा सामयिक रहने वाला विषय है. :)
  24. कट्टा कानपुरी असली वाले
    बिगड़े हाल सुकुल जी,थोडा जोर लगाओ
    बासी माल परोस रहे , फ़ुरसतिया जी !
    कारतूस सब ख़तम, रिटायर हो जाओ
    खाली पीली हांक रहे, फुरसतिया जी !
    दावत दे दे बुलवाते, सब यारों को
    सड़ी मिठाई खिलवाते फ़ुरसतिया जी !
    असली कट्टा कानपुरी अब केस करें
    सम्मन भेज बुलायेंगे, फ़ुरसतिया जी !
    कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..घर से माल कमाने निकले, रंग बदलते गंदे लोग -सतीश सक्सेना

Leave a Reply



No comments:

Post a Comment