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बिहारी जी से हुई बातचीत में अपने बारे में उन्होंने ये कहा था-
एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं
उसकी गर्दन जानती है कि सभी दुधारे हैं .
घर से बाहर जाए तो वह डर – डर जाती है
घर में ही कुछ हो जाए तो वह मर -मर जाती है
किस से अपनी व्यथा कहे जब सब हत्यारे हैं .
एक लड़की है… और सौ – सौ आरे हैं .
इस दुनिया में उसका आना एक दुर्घटना है
फिर तो उसका सारा जीवन टुकड़ा -टुकड़ा कटना है
उसकी सूनी आँखों में बस आंसू खारे हैं .
एक लड़की है … और सौ -सौ आरे हैं .
कैसा भाई , कैसे रिश्ते ? किसने उसको प्यार दिया
जिसको उसने अपना समझा ,उसने उसको मार दिया
उसके सपने लड़ते -लड़ते अपनों से ही हारे हैं .
एक लड़की है …और सौ – सौ आरे हैं .
एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं
By फ़ुरसतिया on January 23, 2013
कृष्णबिहारी
कानपुर में अपना बचपन और जवानी के दिन बिताने वाले और आजकल अबूधाबी में
अध्यापक कृष्णबिहारी जी हिन्दी के जानेमाने कथाकार हैं। उनके बारे विस्तार
से जानने के लिये उनसे हुयी एक बातचीत ( कृष्ण बिहारी- मेरी तबियत है बादशाही ) और कथाकार गोविंद उपाध्याय द्वारा उन पर लिखा आत्मीय लेख (मैं कृष्णबिहारी को नहीं जानता – गोविन्द उपाध्याय ) पढ सकते हैं। बिहारी जी से हुई बातचीत में अपने बारे में उन्होंने ये कहा था-
“मैं ‘मनमौजी’ या ‘बादशाह’ तबियत का जाना जाता हूं लेकिन शायद कुछ करीबी लोगों को छोड़कर बहुत से लोग यह नहीं जानते कि मेरे भीतर का फकीर ही सच्चा इनसान है । मैंने लगभग तीस साल पहले एक ग़ज़ल कही थी -उन्होंने दिल्ली में हुई बलात्कार की घटना पर उन्होंने अपनी फ़ेसबुक दीवार पर जो लिखा उसे जस का तस यहां पेश कर रहा हूं।
लाख होने दो मेरी तबाही
मेरी तबीयत तो है बादशाही।
एक फकीराना किस्मत मेरे साथ हर कदम पर होती है । हो सकता है कि कुछेक पल पहले मेरी जेब भरी हो और कुछेक पल बाद ही मैं अप्रत्याशित रूप से खाली हो गया होऊं। मगर हर हाल में खुश रहना मेरी तबियत का स्थायी अंश है ।”
एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं
डेल्ही गैंग रेप को सुनकर मैंने आक्रोश में एक गीत लिखा . उस गीत पर मेरे विद्यालय की एक छात्रा ने विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर अभिनय किया जिसे देखकर भारतीय राजदूतावास के प्रेक्षागार में उपस्थित सभी दर्शकों की आँखें भर आयीं .गीत इतनी करुण स्थिति उत्पन्न करेगा , मैं नहीं जानता था . यह गीत हिन्दुस्तान की हर लड़की की आपबीती है . यदि आप किसी लड़की के भाई , चाचा , पिता , मित्र या प्रेमी हैं तो उसकी व्यथा को दूर करने में अपनी भागीदारी निभाएं . गीत आपके सामने है :एक लड़की है … और सौ – सौ आरे हैं
उसकी गर्दन जानती है कि सभी दुधारे हैं .
घर से बाहर जाए तो वह डर – डर जाती है
घर में ही कुछ हो जाए तो वह मर -मर जाती है
किस से अपनी व्यथा कहे जब सब हत्यारे हैं .
एक लड़की है… और सौ – सौ आरे हैं .
इस दुनिया में उसका आना एक दुर्घटना है
फिर तो उसका सारा जीवन टुकड़ा -टुकड़ा कटना है
उसकी सूनी आँखों में बस आंसू खारे हैं .
एक लड़की है … और सौ -सौ आरे हैं .
कैसा भाई , कैसे रिश्ते ? किसने उसको प्यार दिया
जिसको उसने अपना समझा ,उसने उसको मार दिया
उसके सपने लड़ते -लड़ते अपनों से ही हारे हैं .
एक लड़की है …और सौ – सौ आरे हैं .
Posted in बस यूं ही | 7 Responses
दरअसल ‘दामिनी’ के मामले में संवेदना का ज्वार इसलिए भी उभरा क्यूंकि कहीं न कहीं हम सब स्वयं को भी दोषी मान रहे थे ! ख़ैर…स्थिति बदले यही उस ‘बेटी’ के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगी !
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बख्शा तो हमने खुद को भी नहीं है